आज वैश्विक स्तर पर शायद ही ऐसी कोई जगह हो जो बढ़ते तापमान से प्रभावित नहीं है। दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग का असर साफ नजर आने लगा है। कृषि, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में तो इसके प्रभाव स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान खगोलीय अवलोकनों को भी प्रभावित कर सकता है।
इस बारे में बर्न विश्वविद्यालय और नेशनल सेंटर ऑफ कॉम्पीटेंस इन रिसर्च (एनसीसीआर) प्लैनेट्स से जुड़े वैज्ञानिकों ने अपनी एक नई रिपोर्ट में जानकारी दी है कि जलवायु में आता बदलाव दुनिया भर में खगोलीय अवलोकन स्थलों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। इस अध्ययन के निष्कर्ष जर्नल एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में प्रकाशित हुए हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार भू-आधारित दूरबीनों की मदद से किया जा रहा खगोलीय अवलोकन, स्थानीय वायुमंडलीय परिस्थितियों के प्रति संवेदनशील होता है। देखा जाए तो इस तरह के प्रेक्षणों की गुणवत्ता उस स्थान के वातावरण की स्पष्टता के प्रति काफी संवेदनशील होती है, जहां वे बने हैं।
यही वजह है कि इन खगोलीय दूरबीनों के लिए साइटों का चयन बहुत सावधानी से किया जाता है। वे अक्सर समुद्र तल से ऊंची होती हैं, जिससे उनके और लक्ष्य के बीच वातावरण संबंधी बाधाएं न आएं। वहीं कई दूरबीनें रेगिस्तानी क्षेत्रों में भी बनाई जाती हैं, क्योंकि बादल और यहां तक कि जल वाष्प भी रात के आकाश दृश्यता में बाधा डालते हैं।
दुनिया भर में बिगड़ते हालात
इस बारे में बर्न विश्वविद्यालय से जुड़ी अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता कैरोलिन हैस्लेबैकर का कहना है कि भले ही आमतौर पर दूरबीनों का जीवनकाल कई दशकों का होता है, लेकिन इनकी साइट का चयन करते समय केवल थोड़े समय की वायुमंडलीय परिस्थितियों पर विचार किया जाता है।
उनके अनुसार इसके लिए आमतौर पर पांच वर्ष, लम्बी अवधि के रुझानों को समझने के लिए बहुत थोड़ा समय होता है। वहीं भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग का क्या असर होगा उसकी बात तो बहुत दूर की बात है।
शोधकर्ताओं द्वारा हाई रेजोल्यूशन क्लाइमेट मॉडल की मदद से भविष्य में जलवायु परिवर्तन का क्या असर होगा उसका विश्लेषण किया गया है। विश्लेषण से पता चला है कि 2050 तक हवाई से कैनरी द्वीप समूह के साथ चिली, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया तक में प्रमुख खगोलीय वेधशालाओं की साईट पर तापमान और वातावरण में मौजूद जलवाष्प की मात्रा में इजाफा होने की आशंका है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक वातावरण में आने वाला यह बदलाव अवलोकन में लगने वाले समय के साथ-साथ प्रेक्षणों की गुणवत्ता को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इस बारे में शोधकर्ता हैस्लेबैकर ने जानकारी दी है कि मौजूदा खगोलीय वेधशालाओं को साइट की वर्तमान परिस्थितियों के तहत काम करने के लिए डिजाईन किया गया है और उनमें अनुकूलन के लिए सीमित संभावनाएं हैं।
ऐसे में दूरबीनों पर जलवायु संबंधी कई संभावित असर पड़ सकते हैं। इनमें बढ़ती ओस या खराब शीतलन प्रणाली के कारण वाष्पीकरण का जोखिम कहीं ज्यादा बढ़ सकता है। इसकी वजह से टेलीस्कोप के गुंबद पर हवा कहीं ज्यादा अशांत हो सकती है।
ऐसे में शोधकर्ता हैस्लेबैकर का कहना है कि अगली पीढ़ी के दूरबीनों के लिए साइट का चयन करते समय और खगोलीय सुविधाओं के निर्माण और रखरखाव में जलवायु में आते बदलावों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।