पौधों पर दिखे जलवायु परिवर्तन के कई तरह के प्रभाव: अध्ययन

पौधों के लगभग 50 करोड़ मापों के विश्लेषण से पता चला कि जलवायु परिवर्तन का असर पौधों के उगने वाले विशेष स्थान पर अत्यधिक निर्भर करता हैं
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स,
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वैज्ञानिकों ने जलवायु में हो रहे बदलाव का दुनिया भर के पौधों पर किस तरह का असर हो रहा है इसके बारे में पता लगाया है। इसके लिए उन्होंने आर्कटिक के ऊंचे पहाड़ों पर उगने वाले (अल्पाइन) पौधों की प्रजातियों को चुना। इन पौधों पर ग्लोबल वार्मिंग का असर किस तरह पड़ता है तथा वे इसका मुकाबला कैसे करते हैं, इस बात का पता लगाया गया।

अध्ययनकर्ताओं ने नॉर्वे के पहाड़ी क्षेत्र से पौधों के लगभग 50 करोड़ मापों का विश्लेषण किया। विश्लेषण से पता चला कि जलवायु परिवर्तन के होने वाले परिणाम पौधों के विशेष स्थान पर अत्यधिक निर्भर करते हैं। विशेष रूप से पर्णपाती या पतझड़ वाली प्रजातियों को तापमान बढ़ने से लाभ होता है। जिसके परिणामस्वरूप आर्कटिक के अल्पाइन क्षेत्रों की हरियाली में और वृद्धि होने की संभावना बढ़ेगी। यह अपनी तरह का अब तक का सबसे अनोखा अध्ययन है जिसे बॉन विश्वविद्यालय और दक्षिण-पूर्वी नॉर्वे विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

ठंड के महीनों के दौरान नॉर्वे के पहाड़ काफी दुर्गम होते हैं। फिर भी, यहां ऐसे पौधे हैं जो खतरनाक तापमान का शानदार ढंग से सामना करते हैं। इनमें बौना सन्टी बेटुला नाना और ब्लैक क्राउबेरी एम्पेट्रम हेर्मैफ्रोडिटम के पौधे शामिल हैं। दोनों आर्कटिक अल्पाइन स्थितियों में पनपते हैं, जिससे इन्हें टुंड्रा वनस्पति में उगने वाले विशेष पौधों के रूप में जाना जाता है।

अब तक, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि बौना सन्टी और क्राउबेरी नामक पौधों की वृद्धि विशिष्ट पर्यावरणीय परिस्थितियों से कैसे प्रभावित होती है। नॉर्वे के अल्पाइन क्षेत्रों में, 30 वर्षों से एक परियोजना चल रही है जिसका उद्देश्य इसे बदलना है। बॉन विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के प्रो.डॉ. जोर्ग लोफ्लर बताते हैं कि हमने यहां के कुछ पौधों के बारे में पता लगाया है, उनकी माप को लगातार दर्ज किया जाता है।

इसमें एक पिन जैसा सेंसर तने के व्यास की माप दर्ज करता है। मापने की यह प्रक्रिया साल में 365 दिन, मिनट दर मिनट, एक मिलीमीटर के हजारवें हिस्से से भी कम की सटीकता के साथ होती है। साथ ही, शोधकर्ता सौर विकिरण, जड़ क्षेत्र में तापमान और मिट्टी की सतह के ठीक ऊपर और मिट्टी की नमी को भी मापते हैं।

वर्तमान में अध्ययनकर्ताओं ने 2015 से 2019 के बीच 40 पौधों के लगभग 50 करोड़ मापों का विश्लेषण किया है। अध्ययन में मुख्य रूप से यह पता लगाया गया है कि कैसे माइक्रोक्लाइमेट, यानी, हरेक पौधे द्वारा सामना की जाने वाली स्थितियां, इसके विकास को प्रभावित करती हैं। इसने बौने सन्टी और क्राउबेरी दोनों पौधों में एक शानदार लय का खुलासा किया। ठंड के महीनों के दौरान, प्रत्येक मामले में उनके तने का व्यास काफी कम हो गया था, जबकि वसंत में यह प्रक्रिया उलट गई थी।

डोबर्ट कहते हैं कि ठंडे महीनों के दौरान कम तापमान के कारण, पौधों के लिए शायद ही पानी उपलब्ध होता है। वे ठंड से होने वाले नुकसान से  बचने के लिए अपनी कोशिकाओं की पानी की मात्रा को कम करके अपने तने के व्यास को भी कम करते हैं। दोनों प्रजातियों के फलने-फूलने के लिए यह रणनीति कितनी महत्वपूर्ण है, यह एक अन्य अवलोकन द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। सर्दियों के दौरान बहुत कम सिकुड़ने वाले पौधे अक्सर अगली गर्मियों में बहुत कम या इनमें कोई वृद्धि नहीं होती है।

एक दूसरी महत्वपूर्ण खोज यह है कि पतझड़ या पर्णपाती बौना सन्टी के पौधे आमतौर पर हल्की सर्दी के बाद बेहतर होते हैं। लोफ्लर कहते हैं इसलिए इन्हें आम तौर पर गर्म सर्दियों से फायदा होता है। ठंडी सर्दियों में, आमतौर पर बर्फबारी कम होती है। इसका सदाबहार प्रजातियों के लिए एक फायदा हो सकता है। क्योंकि सदाबहार प्रजातियां तब प्रकाश संश्लेषक गतिविधि को लंबे समय तक जारी रख सकते हैं और इसलिए वसंत ऋतु में पहले विकास चरण में प्रवेश कर सकते हैं।

इसलिए यह संभव है कि जलवायु परिवर्तन के चलते पतझड़ वाली प्रजातियां फैल रही है और यह सदाबहार प्रजातियों के विस्थापन का कारण बन रहा हो। चूंकि पतझड़ वाले पौधों की पत्तियों का सतह क्षेत्र अपेक्षाकृत बड़ा होता है (इसके विपरीत, सदाबहार प्रजातियां आमतौर पर सुई की तरह होती हैं), यह प्रभाव आर्कटिक के अल्पाइन क्षेत्रों को और अधिक हरियाली को बढ़ाने में योगदान कर सकता है। यह अध्ययन इकोस्फीयर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

सूक्ष्म जलवायु या माइक्रोक्लाइमेट महत्वपूर्ण है

लोफ्लर बताते हैं कि हमारे परिणाम यह भी दिखाते हैं कि स्थान के आधार पर सूक्ष्म जलवायु (माइक्रोक्लाइमैटिक) स्थितियां बेहद भिन्न हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, हवा वाले स्थानों पर, बर्फ का आवरण बहुत पतला होता है। हालांकि पतझड़ बौना सन्टी के पौधों को सर्दियों में बर्फ की पर्याप्त मोटी परत की आवश्यकता होती है। इसके बाद उन्हें खुद को पाले से बचाने के लिए कम संसाधनों का उपयोग करना पड़ता है।

गर्मी के बिना, बौना सन्टी के लिए मुश्किल समय होता है। इसके विपरीत, सदाबहार क्राउबेरी, इस तरह के बिना बर्फ वाली अवधि के दौरान अतिरिक्त धूप से इन्हें फायदा मिलता है। कुल मिलाकर, हमारे माप साबित करते हैं कि वैश्विक जलवायु आंकड़े स्थानीय वनस्पति प्रभावों के बारे में बहुत कम सही सबूत देते हैं। हमारे जैसे अध्ययन संभावित रूप से हमें ऐसे जटिल प्रभावों को बेहतर तरीके से मॉडल करने में मदद कर सकते हैं। बदले में पौधों के जीवन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की बेहतर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। 

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