कम उपजाऊ भूमि पर दोबारा खेती न करने से कम किया जा सकता है जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

छोड़ी गई भूमि पर फिर से खेती करने से 31 फीसदी संभावित वन्यजीवों निवास स्थानों में कमी तथा कार्बन जमा करने में 35 फीसदी की कमी आई
कम उपजाऊ भूमि पर दोबारा खेती न करने से कम किया जा सकता है जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
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दुनिया भर के ग्रामीण इलाकों से शहरों में बसने वाले लोगों द्वारा लाखों एकड़ भूमि को त्यागा या छोड़ा जा रहा है। कुछ लोग आर्थिक समृद्धि की तलाश में गांव से निकल जाते हैं। कुछ संघर्ष या जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण बाहर जाने को मजबूर हो जाते हैं।

वैश्वीकरण और मशीनीकरण के साथ जनसंख्या परिवर्तन इन क्षेत्रों में खेती के अर्थशास्त्र को बदल रहे हैं, जिससे कम उत्पादक भूमि को छोड़ा जा रहा है।

इनमें से कुछ फसल उगाने वाली जमीन आखिरकार प्राकृतिक आवासों में बदल जाती है, जिससे जैव विविधता के बढ़ने और वायुमंडलीय कार्बन को अवशोषित करने में मदद मिलती है। जबकि पर्यावरणविद् इस प्रक्रिया को सही मानते हैं, उनका मानना है कि इस तरह की भूमि से आवास और कार्बन को अवशोषित करने के अवसर मिलते हैं।

लेकिन नीतिगत हस्तक्षेप के बिना यह प्रक्रिया नहीं चल सकती है। नए अध्ययन से पता चलता है कि अंततः अधिकांश भूमि पर फिर से खेती की जाती है।

अध्ययन के मुताबिक हाल ही में लाखों एकड़ फसल भूमि को छोड़ दिया गया। क्या यह पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करने के अवसर पैदा कर सकता है? नहीं अगर इस पर फिर से खेती की जाती है तो।

सह-अध्ययनकर्ता डेविड विलकोव ने कहा जैसे-जैसे लोग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर बढ़ते हैं, वन्यजीवों और जलवायु को फिर से जमीन हासिल करने का मौका मिलता है। जैसे कि छोड़ दिए गए खेत और चरागाह वापस जंगलों और घास के मैदानों में बदल जाते हैं।

लेकिन हमारे अध्ययन से पता चलता है कि ऐसा नहीं हो रहा है क्योंकि 'छोड़ी गई' भूमि पर तेजी से खेती की जा रही है। विलकोव, हाई मीडोज एनवायर्नमेंटल इंस्टिट्यूट (एचएमईआई) में पारिस्थितिकी और विकासवादी जीव विज्ञान तथा सार्वजनिक मामलों के प्रोफेसर हैं। 

प्रमुख अध्ययनकर्ता क्रिस्टोफर क्रॉफर्ड ने कहा जब तक देश और नीति निर्माता इन जमीनों को फिर से बहाल करने की अनुमति देने के लिए बेहतर नियम और प्रोत्साहन विकसित नहीं करते हैं, तब तक पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करने का यह मौका पूरी तरह से संभव नहीं होगा। तब तक जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान से लड़ने का मौका हाथ से जाता रहेगा। क्रॉफर्ड, एचएमईआई में प्रिंसटन एनर्जी एंड क्लाइमेट स्कॉलर्स प्रोग्राम के शोधकर्ता हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने इस बात का पता लगाया कि फसल उगाने वाली भूमि का कहां दुबारा उपयोग किया जा रहा है और यह प्रक्रिया कितनी देर तक चली। इसके लिए उन्होंने 1987 से 2017 तक के उपग्रह इमेजरी से विकसित अत्याधुनिक वार्षिक भूमि-आवरण मानचित्रों का उपयोग किया। समय के साथ फसल भूमि के अलग-अलग हिस्सों को ट्रैक करके छोड़ी गई और दोबारा उपयोग की गई भूमि का अनुमान लगाया गया।

शोध टीम ने अमेरिका, ब्राजील, बोस्निया और हर्जेगोविना, भारत, चीन, इराक, कजाकिस्तान, बेलारूस और रूस के स्थानों सहित चार महाद्वीपों में 11 जगहों से छवियों का अध्ययन किया। इन क्षेत्रों में, युद्ध और संघर्ष से लेकर सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों तक के कारणों के लिए फसल भूमि को छोड़ दिया गया था।

कुछ जगहें पूर्व सोवियत संघ में स्थित थीं और संघ के टूटने की भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बाद छोड़ दी गईं। इस बीच, चीन में सक्रिय वनीकरण कार्यक्रम हुआ जो सीमांत कृषि भूमि पर वनों के पुनर्विकास को प्रोत्साहित करते हैं। अध्ययन में शामिल अन्य देशों की तरह यहां भी ग्रामीण इलाकों में निवास करने वालों की बढ़ती संख्या पाई गई।

जिस हद तक फसल भूमि को छोड़ देने पर पर्यावरणीय अवसर मिलता है, वह इस बात पर निर्भर करता है कि कितना हिस्सा छोड़ दिया गया है और यह कितने समय तक यह इसी अवस्था में रहता है। दुर्भाग्य से साल-दर-साल छोड़ी गई जमीन पर नजर रखने के बाद, शोधकर्ताओं ने पाया कि उन्होंने जिस भूमि का अध्ययन किया था, उसकी अधिकतर भागों में अंततः खेती की गई थी।

हालांकि यह सभी क्षेत्रों में अलग-अलग थी, पूर्व सोवियत संघ में अधिकतर भूमि में खेती की गई। इस बीच, चीन के शानक्सी और शांक्सी प्रांतों में, भूमि को कुछ समय के ली छोड़ दिया गया था, शायद सरकार के हरित कार्यक्रम के लिए, जिसमें फसल भूमि को फिर से जंगल में बदलने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि कुल मिलाकर अध्ययन के विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश फसल भूमि को औसतन केवल 14 वर्षों के लिए छोड़ा गया था। यह समय पर्याप्त मात्रा में कार्बन को अवशोषित करने या वन्यजीवों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले आवास बनने के लिए पर्याप्त नहीं है।

30 वर्षों के भीतर, उनके मॉडल भविष्यवाणी करते हैं कि लगभग 50 फीसदी छोड़ी गई फसल भूमि पर खेती की जाएगी। इस प्रक्रिया में, महत्वपूर्ण पर्यावरणीय लाभ गायब हो जाएंगे। इन जगहों पर छोड़ी गई फसल भूमि की खेती के परिणामस्वरूप 2017 तक 30 फीसदी से अधिक कम क्षेत्र छोड़े गए और 35 फीसदी कार्बन का कम अधिग्रहण हुआ।

क्रॉफर्ड ने कहा छोड़ी गई फसल भूमि के लिए कार्बन स्टॉक और जैव विविधता के स्तर तक पहुंचने के लिए, उन्हें आमतौर पर कम से कम 50 साल तक छोड़े जाने की आवश्यकता होती है।

हालांकि शानक्सी और शांक्सी प्रांतों के निष्कर्ष इस बात का प्रमाण देते हैं कि प्रोत्साहन कार्यक्रम सफल हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने यह भी सुझाव दिया की कि छोड़े गए खेतों, विशेष रूप से फसल भूमि पर जो खाद्य उत्पादन के लिए आवश्यक नहीं है, को संरक्षित क्षेत्रों में बदल दिया जाना चाहिए।

पारिस्थितिकी तंत्र सेवा कार्यक्रम भूस्वामियों को अपनी फसल भूमि छोड़ने के लिए भुगतान कर सकते हैं। यह अध्ययन साइंस एडवांस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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