साल 1980 के बाद से बर्फबारी में तेजी से गिरावट के पीछे जलवायु परिवर्तन: अध्ययन

अध्ययन के मुताबिक, कई अत्यधिक आबादी वाले इलाके जो पानी की आपूर्ति के लिए बर्फ पर निर्भर हैं, इन इलाकों में अगले कुछ दशकों में भारी जल संकट आने की आशंका जताई गई है।
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, मिलादा विगेरोवा
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, मिलादा विगेरोवा
Published on

जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए बर्फबारी सबसे अहम संकेतों में से एक है। हाल के कई सर्दियों की तरह दिसंबर में बर्फबारी की कमी हमारे ग्लोबल वार्मिंग के भविष्य को दिखा रही है। दुनिया के कई हिस्से बर्फ गिरने की भारी कमी का सामना कर रहे हैं।

दूसरी ओर विशेषकर अमेरिका में 2023 की शुरुआत में रिकॉर्ड बर्फीला तूफान आया, जिसने कैलिफोर्निया के पर्वतीय समुदायों को भारी नुकसान पहुंचाया, जबकि सूखे जलाशय फिर से जीवित होकर भर गए। उत्तरी एरिजोना में 11 फीट बर्फ गिरी, जो एक गर्म ग्रह पर जीवन की हमारी धारणाओं को खारिज कर देता है।

इसी तरह जमीनी अवलोकनों, उपग्रहों और जलवायु मॉडलों के वैज्ञानिक आंकड़े इस बात पर सहमत नहीं हैं कि क्या ग्लोबल वार्मिंग लगातार भारी ऊंचाई वाले पहाड़ों में जमा होने वाले बर्फ को नष्ट कर रही है, जिससे पानी की कमी का प्रबंधन करने के प्रयास जटिल हो रहे हैं, जिसके कारण कई लोगों को नुकसान होगा।

अब एक नया डार्टमाउथ अध्ययन इन अवलोकनों में अनिश्चितता को दूर करता है और इस बात को साबित करता है कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले 40 वर्षों में उत्तरी गोलार्ध के अधिकांश हिस्सों में मौसमी बर्फबारी वास्तव में काफी कम हो गई है।

बर्फ के पिघलने से नदियों में बनने वाले पानी जिसे स्नोपैक कहते हैं, इसमें ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सबसे तेज कटौती हो रही है, जो प्रति दशक 10 से 20 फीसदी के बीच दक्षिण-पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी अमेरिका के साथ-साथ मध्य और पूर्वी यूरोप में हुई है।

नेचर जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में इस नुकसान की सीमा और गति उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के लाखों लोगों को संकट में डाल सकती है, जो पानी के लिए बर्फ पर निर्भर हैं।

अध्ययनकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा कि 21वीं सदी के अंत तक, इस बात की आशंका है कि मार्च के अंत तक ये इलाके बर्फ विहीन हो जाएंगे। हम उस दौर से गुजर रहे हैं जहां पानी की भारी कमी होगी।

अध्ययन में, इस बात पर गौर किया गया है कि तापमान और बारिश पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव ने 1981 से 2020 तक उत्तरी गोलार्ध में 169 नदी घाटियों में किस तरह बदलाव किया। नुकसान का मतलब है कि नदियों, झरनों के लिए वसंत में कम पिघला हुआ बर्फ का पानी। 

अध्ययनकर्ताओं ने उन अनिश्चितताओं की पहचान की, जिन्हें मॉडल और अवलोकनों ने साझा किया, ताकि बर्फ पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करते समय वैज्ञानिक पहले चूक गए थे। एक अध्ययन में इसी तरह अनिश्चितताओं का लाभ उठाया गया कि कैसे वैज्ञानिक बर्फ की गहराई को मापते हैं और पानी की उपलब्धता के पूर्वानुमानों को बेहतर बनाने के लिए बर्फ की कमी को परिभाषित करते हैं।

अध्ययनकर्ता ने कहा, जल सुरक्षा के आकलन के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक क्षेत्रीय पैमाने पर बर्फ का अवलोकन करना मुश्किल है। सर्दियों के दौरान तापमान और बारिश में बदलाव के प्रति बर्फ बहुत संवेदनशील है और बर्फ के नुकसान से होने वाले जोखिम न्यू इंग्लैंड में दक्षिण-पश्चिम के समान नहीं हैं, या आल्प्स के एक गांव के लिए ऊंचे पर्वतीय एशिया के समान नहीं हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि उत्तरी गोलार्ध के 80 फीसदी बर्फ का हिस्सा या स्नोपैक जो इसके सुदूर-उत्तरी और भारी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हैं, जहां बहुत कम नुकसान का अनुभव हुआ। वास्तव में स्नोपैक का विस्तार अलास्का, कनाडा और मध्य एशिया के विशाल क्षेत्रों में हुआ क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण इन ठंडे क्षेत्रों में बर्फ के रूप में होने वाली बारिश में वृद्धि हुई

लेकिन यह हिमपात का शेष 20 फीसदी हिस्सा है जो चारों ओर मौजूद है और गोलार्ध के कई प्रमुख आबादी वाले इलाकों को पानी प्रदान करता है जो कम हो गए हैं। 1981 के बाद से, अवलोकनों में अनिश्चितता और जलवायु में स्वाभाविक रूप से होने वाली विविधताओं के कारण इन क्षेत्रों में बर्फबारी में दर्ज की गई गिरावट काफी हद तक असंगत रही है।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि कुल बर्फ में वार्षिक गिरावट का एक स्थिर पैटर्न तेजी से उभरता है, और आबादी वाले इलाकों में बर्फ के पिघलने से नए पानी की आपूर्ति में अचानक और लंबे समय तक कमी हो जाती है।

कई बर्फ पर निर्भर वाले इलाके अब खुद को खतरनाक रूप से उस तापमान सीमा के करीब पा रहे हैं जिसे अध्ययनकर्ता "बर्फ-नुकसान चट्टान" कहते हैं। इसका मतलब यह है कि जैसे ही पानी वाले इलाकों में सर्दियों का औसत तापमान शून्य से 8 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ जाता है, स्थानीय औसत तापमान में केवल मामूली वृद्धि के साथ भी बर्फ का नुकसान तेज हो जाता है।

अध्ययनकर्ता ने कहा, कई अत्यधिक आबादी वाले इलाके जो पानी की आपूर्ति के लिए बर्फ पर निर्भर हैं, इन इलाकों में अगले कुछ दशकों में नुकसान में तेजी आएगी।

उन्होंने कहा इसका मतलब है कि जल प्रबंधक जो बर्फ पिघलने पर निर्भर हैं, वे स्थायी जल आपूर्ति परिवर्तन की तैयारी से पहले बर्फ के नुकसान पर सभी अवलोकनों के सहमत होने का इंतजार नहीं कर सकते। तब तक, बहुत देर हो चुकी होगी। एक बार जब एक बेसिन उस चट्टान से गिर जाता है, तो यह अगली बड़ी बर्फबारी तक छोटी अवधि में आपात स्थिति का प्रबंधन करने के बारे में नहीं रह जाता है। इसके बजाय, वे पानी की उपलब्धता में स्थायी बदलावों को अपनाएंगे।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in