कोरल और स्पंज समुद्री जीवन के लिए बहुत अहम होते हैं। यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की नींव होते हैं यह मछलियों, केकड़ों और अन्य अनगिनत जीवों को आवास प्रदान करते हैं। इन पर न्यू हैम्पशायर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि जब जलवायु परिवर्तन की बात आती है तो उसका असर गहरे-समुद्र में पाए जाने वाले कोरल और स्पंज पर अलग-अलग होता है। इनमें से कुछ पर जलवायु परिवर्तन का खतरा कम और कुछ पर ज्यादा होता है।
ऐसा क्यों होता है, इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने उत्तर पश्चिमी अटलांटिक महासागर के गहरे समुद्र का चुनाव किया था। जहां उन्होंने समुद्र के औसत तापमान में हो रही वृद्धि और उसका कोरल और स्पंज पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया है। इससे जुड़ा शोध जर्नल ग्लोबल इकोलॉजी एंड बायोजियोग्राफी में प्रकाशित हुआ है। इस शोध से जुड़ी शोधकर्ता जेनिफर डिक्स्ट्रा ने बताया कि गहरे समुद्र में पाए जाने वाले कोरल और स्पंज पारिस्थितिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि यह प्रजातियां समुद्री खाद्य तंत्र का आधार होती हैं। ऐसे में यदि हम इन्हें खो देते हैं, तो इसके कारण गहरे समुद्र की जैव विविधता भी कम हो सकती है।
इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने तापमान, लवणता, ऑक्सीजन और गहराई के बारे में समुद्री सतह की उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली वीडियो के साथ जोड़ कर विश्लेषण किया है। उन्होंने इस वीडियो की मदद से विशिष्ट क्षेत्रों में कोरल और स्पंज के घनत्व को जानने की कोशिश की है। साथ ही इसकी मदद से उन्हें स्थान की पहचान करने में भी मदद मिली है। इन वीडियो को एनओएए की महासागर अन्वेषण और अनुसंधान शाखा द्वारा पूर्वोत्तर घाटी और न्यू इंग्लैंड में दूर से ही संचालित किए जाने वाले वाहन आरओवी की मदद से एकत्र किया गया था। वहां केवल कुछ स्थानों पर ही इनका अधिक घनत्व देखा गया था। साथ ही क्षेत्रीय स्तर पर उनके विलुप्त होने का खतरा भी कहीं ज्यादा था।
शोध के अनुसार हालांकि कोरल और स्पंज साथ-साथ ही पाए जाते हैं। इसके बावजूद एक तरफ जहां जलवायु से जुड़े घटक जैसे तापमान, लवणता और ऑक्सीजन स्पंज के वितरण पर असर डालते हैं। वहीं दूसरी तरफ समुद्री ढलान, उसकी सतह में मौजूद गुण और तत्व कोरल के वितरण में योगदान देते हैं।
जलवायु परिवर्तन से इन जीवों के विकास पर पड़ सकता है असर
जेनिफर ने बताया कि शोध से पता चला है कि गहरे समुद्र में मिलने वाले सभी कोरल और स्पंज एक ही तरह के पर्यावरण सम्बन्धी घटकों से प्रभावित नहीं हुए थे। इन सभी में उनके प्रति संवेदनशीलता का स्तर अलग-अलग था। हालांकि पानी में घुली ऑक्सीजन और तापमान में हो रही वृद्धि का इन सभी पर असर देखा गया था। कोरल और स्पंज दोनों ही इनका उपयोग करते हैं। ऐसे में ऑक्सीजन और तापमान में आए बदलाव से इन जीवों के विकास पर असर पड़ा था। इससे उनके टिश्यू को नुकसान पहुंचा था और साथ ही उनकी प्रजनन क्षमता पर भी असर देखा गया था।
आम तौर पर कोरल गहरे समुद्र में 200 से 10,000 फीट की गहराई में पाए जाते हैं, जहां सूरज की रोशनी न के बराबर होती है। यह कोरल उष्णकटिबंधीय से ध्रुवीय क्षेत्रों तक दुनिया भर में महासागरों में पाए जाते हैं। इनके विपरीत उथले-पानी में पाई जाने वाली प्रवाल भित्तियां केवल गर्म उष्णकटिबंधीय पानी में ही मिलती हैं। यह कोरल पेड़ या पंखे की आकृतियों के गुच्छे की तरह होते हैं जो कई मीटर तक लम्बे हो सकते हैं।
वहीं गहरे समुद्र में पाए जाने वाले स्पंज पानी को फ़िल्टर करने में मदद करते हैं। यह बैक्टीरिया को इकट्ठा कर सकते हैं और साथ ही कार्बन, नाइट्रोजन और फॉस्फोरस को भी प्रोसेस कर सकते हैं। दुनियाभर के समुद्रों में यह कोरल्स और स्पंज गहराई में मौजूद ढलानों, घाटियों और समतल मैदानों में पाए जाते हैं। हालांकि इनके विस्तार के बारे में पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है क्योंकि अब तक समुद्रों की सतह के केवल 15 फीसदी हिस्से की ही उच्च रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग की मदद से मैपिंग की गई है।