एशिया के ऊंचे पहाड़ों (एचएमए), तिब्बती पठार और आसपास के हिंदू कुश, काराकोरम और हिमालय पर्वतमाला को कवर करते हुए, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मात्रा में ग्लेशियर और बर्फ के भंडार हैं। यह 10 से अधिक प्रमुख एशियाई नदियों और लगभग दो अरब लोगों के लिए अहम जल संसाधनों का स्रोत है।
हाल के दशकों में एशिया के ऊंचे पहाड़ों में बारिश में बदलाव देखा गया है, जिसमें उत्तर में वृद्धि लेकिन दक्षिण-पूर्व में कमी देखी गई है। इन बदलावों का स्थानीय और डाउनस्ट्रीम या नीचे की और बहने वाली नदी, नालों के दोनों क्षेत्रों में पानी की सुरक्षा और पारिस्थितिकी संतुलन पर भारी असर पड़ता है।
चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के इंस्टीट्यूट ऑफ एटमॉस्फेरिक फिजिक्स (आईएपी), अमेरिका के पैसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लेबोरेटरी, जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर मेटीरियोलॉजी और ओशन यूनिवर्सिटी ऑफ चाइना के शोधकर्ताओं ने इस बारिश में बदलाव करने वाले तंत्र का पता लगाया है।
हालांकि, शोधकर्ताओं का यह भी अनुमान है कि, वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों के कारण, वर्तमान में सूख रहा हिमालयी इलाका 2040 के दशक तक मध्यम से उच्च ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत नमी या बारिश वाली स्थितियों में बदल जाएगा।
अध्ययन में साल-दर-साल उतार-चढ़ाव के बजाय, एक दशक से अधिक समय तक एशिया के ऊंचे पहाड़ों में दीर्घकालिक ग्रीष्मकालीन बारिश में होने वाले बदलावों पर गौर किया। प्रमुख अध्ययनकर्ता, आईएपी के डॉ. जियांग जी के अनुसार, ग्रीष्मकालीन एचएमए में बारिश में बदलाव दो प्रमुख पैटर्न के द्वारा होता हैं, पहला पश्चिम से जुड़ा पैटर्न और दूसरा मॉनसून से जुड़ा पैटर्न।
पूर्व उत्तरी एचएमए क्षेत्र में बारिश में बढ़ोतरी करता है जबकि दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में इसे कम करता है। उत्तरार्द्ध दक्षिण एशिया और दक्षिणपूर्वी एचएमए क्षेत्र के बीच एक आउट-ऑफ-फेज भिन्नता से मेल खाता है।
शोधकर्ताओं ने जलवायु मॉडल सिमुलेशन से विभिन्न सबूतों का उपयोग करके यह खुलासा किया कि यूरेशिया में मानवजनित एरोसोल के असमान उत्सर्जन ने जेट स्ट्रीम को कमजोर कर दिया है और 1950 के दशक से पश्चिम से जुड़े वर्षा पैटर्न को मजबूत किया है।
इसके विपरीत, मॉनसून से जुड़ा वर्षा पैटर्न इंटरडेकाडल पैसिफिक ऑसिलेशन (आईपीओ) से प्रभावित होता है, एक आंतरिक बदलाव जो हर 20 से 30 वर्षों में उतार-चढ़ाव होता है। हालिया आईपीओ चक्र, जो 1990 के दशक के उत्तरार्ध में शुरू हुआ और उष्णकटिबंधीय मध्य-पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह की स्थिति सामान्य से अधिक गर्म से सामान्य से अधिक ठंडी में परिवर्तित हो गई, जिसके कारण दक्षिण एशिया में ग्रीष्मकालीन मॉनसूनी बारिश में वृद्धि हुई और दक्षिण-पूर्वी एचएमए क्षेत्र में बारिश में कमी आई।
इन दो प्रमुख पैटर्न से प्रभावित होकर, पिछले दो दशकों में दक्षिण-पूर्वी हिमालय में सूखने की प्रवृत्ति तेज हो गई है। हालांकि, दीर्घकालिक जलवायु मॉडल अनुमान एक अलग तस्वीर पेश करते हैं, जो वर्तमान में सूख रहे हिमालय क्षेत्र सहित, 21 वीं सदी में एचएमए पर बढ़ती नमी की व्यापक प्रवृत्ति का सुझाव देते हैं। सूखने से भविष्य में नमी बढ़ने तक के इस बदलाव के पीछे के कारणों की पहचान करना, साथ ही इसके समय की पहचान करना महत्वपूर्ण है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि स्वच्छ वायु नीतियों के कारण मानवजनित एरोसोल उत्सर्जन में कमी, ग्रीनहाउस गैस मात्रा में वृद्धि के साथ, एचएमए में बढ़ती नमी वाली प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार है।
बारिश में बदलाव का चरम बिंदु, "साउथ ड्राईंग-नॉर्थ वेटिंग" से यूनिवर्सल वेटिंग की ओर बढ़ना, मुख्य रूप से मानवजनित एयरोसोल उत्सर्जन में परिवर्तन द्वारा निर्धारित किया जाएगा। इसके विपरीत, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का प्रभाव पिछले सात दशकों और भविष्य में समान रहेगा, जो वर्षा में सामान्य वृद्धि का पक्षधर है।
डॉ. जियांग के मुताबिक, एचएमए में बारिश में देखे गए बदलावों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि भिन्नताएं मानवजनित बाहरी दबाव और आईपीओ जैसे आंतरिक परिवर्तनशीलता के बीच एक नाजुक संतुलन का परिणाम हैं।
जलवायु मॉडल सिमुलेशन के आधार पर, शोधकर्ताओं ने पाया कि दक्षिण-पूर्वी हिमालय पर यह मानवजनित नमी 2040 के दशक में जलवायु की आंतरिक परिवर्तनशीलता के कारण होने वाले वर्षा परिवर्तनों से अधिक होगा, जो वर्तमान की तुलना में 0.6-1.1 डिग्री सेल्सियस के ग्लोबल वार्मिंग के साथ मेल खाएगा। मध्यम से उच्च ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन परिदृश्य के तहत।
प्रोफेसर झोउ तियानजुन ने कहा कि भविष्य में एचएमए में बारिश के पैटर्न में बदलाव से एचएमए जल संसाधनों के बारे में अनुमानों में भारी जटिलता जुड़ जाएगी। इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि क्षेत्र की जलवायु और जल संसाधनों को आकार देने में एयरोसोल कटौती के प्रभाव को समझना महत्वपूर्ण है।