भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, अकेले भवनों के निर्माण और इनसे जुड़े कामों से 2040 तक चेन्नई कुल 23.19 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का उत्सर्जन करेगा।
यह अध्ययन सेंटर फॉर टेक्नोलॉजीज फॉर लो कार्बन एंड लीन कंस्ट्रक्शन और इंडो-जर्मन सेंटर फॉर सस्टेनेबिलिटी (आईजीसीएस), आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं की टीम ने किया है, जिसमें प्रोफेसर अश्विन महालिंगम और पूर्व छात्र पोखराज नायक शामिल हैं।
शोधकर्ताओं ने चेन्नई में उत्सर्जन को कम करने हेतु इमारतों के निर्माण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने का सुझाव दिया है।
इस अध्ययन के महत्व को समझाते हुए, सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. महालिंगम ने कहा, हमारे उत्सर्जन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, हमें भविष्य में हमारी 'चलता है' की आदत को बदलना होगा, उत्सर्जन का पता लगाने और इसे कम करने की आवश्यकता पर जोर देना होगा। उन्होंने आगे कहा कि यह अध्ययन इस समस्या को हल करने में एक अहम कदम साबित हो सकता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि तेजी से हो रहे शहरीकरण से पूरे देश में निर्माण सामग्री में वृद्धि होने की संभावना है। केवल निर्माण उद्योग का भारत में कुल सीओ 2 उत्सर्जन का एक चौथाई हिस्सा होने का अनुमान है। यह मुख्य रूप से कच्चे माल जैसे - सीमेंट और स्टील के उत्पादन, निर्माण स्थलों तक उनको पहुंचाने, निर्माण के दौरान उपयोग की जाने वाली ऊर्जा और सबसे महत्वपूर्ण, भवनों के संचालन के दौरान उपयोग की जाने वाली ऊर्जा से उत्पन्न होने वाले उत्सर्जन के कारण है।
शोधकर्ताओं ने लगातार चलने वाले निर्माण गतिविधियों का विश्लेषण कर तोड़े गए या विध्वंस, निर्माण, निर्माण सामग्री को गंतव्य तक पहुंचाने और भवनों के संचालन के दौरान जारी सीओ 2 का अनुमान लगाया है।
शोधकर्ताओं ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए निम्नलिखित तीन उपाय सुझाए हैं
शोधकर्ताओं ने कहा कि उत्सर्जन को कम करने में सबसे बड़ा योगदान ऊर्जा स्रोत को बदलने का है। उन्होंने कहा कि भवन की परिचालन ऊर्जा जरूरतों के 50 फीसदी की आपूर्ति के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के उपयोग से 2019 से 2040 के बीच की अवधि में कुल सीओ2 उत्सर्जन में 11.5 करोड़ टन तक की कमी हो सकती है।
उन्होंने कहा कि हालांकि पारंपरिक सीमेंट को कम कार्बन वाले सीमेंट से बदलने से उत्सर्जन को कम करने में कम प्रभाव पड़ेगा।