हवाओं में बदलाव से पूर्वी अरब प्रायद्वीप में सर्दियों में होती है 30 फीसदी बारिश

1981 के बाद से पूर्वी अरब प्रायद्वीप में सर्दियों की वर्षा में 25 से 30 प्रतिशत की वृद्धि, दक्षिण और उत्तर पूर्व में लगभग 10 से 20 प्रतिशत की समवर्ती कमी भी आई है।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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हाल के दशकों में मध्य उष्णकटिबंधीय प्रशांत के इलाकों में गर्म पानी ने वायुमंडलीय हवाओं की धारा या विंड जेट में बदलाव किया है। इस बदलाव के चलते पूर्वी अरब प्रायद्वीप में सर्दियों में अधिक बारिश और दक्षिण में कम बारिश होती है।

अरब प्रायद्वीप दुनिया के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक है, जिससे यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि जलवायु परिवर्तन स्थानीय वर्षा पैटर्न को कैसे प्रभावित कर सकता है। अब आंकड़ों की तुलनाओं से पता चला है कि 1980 के दशक के बाद से प्रायद्वीप पर बदलती सर्दियों की वर्षा को समुद्र की वायुमंडलीय घटना से जोड़ा जा सकता है।

यह मध्य प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह के तापमान और उत्तरी अफ्रीका से आने वाली पश्चिमी जेट धाराओं को प्रभावित करती है। यह इस इलाके के में लंबे समय के लिए वर्षा के बेहतर पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकते हैं।

किंग अब्दुल्ला विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (कोस्ट) के वैज्ञानिक हरि दसारी कहते हैं प्रायद्वीप की लगभग 75 प्रतिशत वर्षा सर्दियों के दौरान अलग-अलग हिस्सों में होती है। कुल वर्षा अपेक्षाकृत बहुत कम होती है। बारिश स्थानीय कृषि, पेयजल और पारिस्थितिक तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा हम प्रायद्वीप में शीतकालीन वर्षा पैटर्न में लंबे समय में हो रहे बदलाओं की जांच पड़ताल करना चाहते थे और समझना चाहते थे कि वे जलवायु घटनाओं से किस तरह जुड़े हैं।

पृथ्वी मॉडलिंग विशेषज्ञ इब्राहिम होटेइट ने हाल के दशकों में अरब प्रायद्वीप में शीतकालीन वर्षा परिवर्तनों को मापने के लिए कोस्ट के वैज्ञानिकों की एक टीम की अगुवाई की है। उन्होंने 1951 से 2010 तक की अवधि में फैले प्रायद्वीप में 39 स्टेशनों द्वारा एकत्रित वर्षा माप के अलावा पूर्वी एंग्लिया विश्वविद्यालय की जलवायु अनुसंधान इकाई से इलाके में हुए वर्षा के आंकड़ों का विश्लेषण किया।

उन्होंने 1981 के बाद से पूर्वी अरब प्रायद्वीप में सर्दियों की वर्षा में 25 से 30 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जिसमें दक्षिण और उत्तर पूर्व में लगभग 10 से 20 प्रतिशत की समवर्ती कमी भी आई है।

टीम ने वैश्विक जलवायु पैटर्न के आधार पर पाया कि शीतकालीन बारिश में हो रहे बदलावों को 1970 के दशक के मध्य से उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में एक बदले हुए अल नीनो पैटर्न से जुड़े थे।

मध्य उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान गर्म हो गया है, जिसके दोनों ओर ठंडा पानी हुआ करता था। इसकी तुलना में, इस अवधि से पहले समुद्र की सतह का तापमान पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में गर्म और पश्चिमी प्रशांत में ठंडा था। परिवर्तन के कारण पृथ्वी से 8 से 10 किमी ऊपर, पछुआ हवाओं में दक्षिण की ओर बदलाव आया, जो इस क्षेत्र में वर्षा को प्रभावित करने के लिए जाने जाने वाले निम्न-दबाव प्रणालियों को बढ़ाता है।

होटेइट कहते हैं कि इंटरनेशनल पैमाने पर अल नीनो पूर्वानुमानित जलवायु में होने वाले बदलाव के लिए जाना जाता हैं। अक्सर इसका असर 12 महीने या उससे अधिक के समय तक रहता है। यदि जलवायु मॉडल इंडो-पैसिफिक समुद्री सतह के तापमान और अरब प्रायद्वीप सर्दियों की वर्षा के बीच संबंधों में देखे गए परिवर्तनों का पता लगा सकते हैं, तो वे कृषि और पर्यटन जैसे क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण प्रभावों के साथ क्षेत्रीय वर्षा में होने वाले बदलाव का पूर्वानुमान लगाने में हमारी मदद कर सकते हैं।

उन्होंने कहा टीम अत्यधिक वर्षा और गर्मी की घटनाओं के लिए जिम्मेवार महासागर के वायुमंडलीय चालकों की समझ को और बढ़ाना जारी रखेगी, जिसका उद्देश्य भविष्य में रहने योग्य स्थितियों पर उनके परिणामों के बारे में पता लगाना है।

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