बदलाव अच्छा या बुरा: दो दशकों में तटीय सूक्ष्म शैवालों के विस्तार में दर्ज की गई 13 फीसदी की वृद्धि

इन दो दशकों में फाइटोप्लैंक्टन के खिलने से 3.15 करोड़ वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र प्रभावित हुआ था, जोकि दुनिया के कुल महासागरीय क्षेत्र के करीब 8.6 फीसदी हिस्से के बराबर है
24 जून, 2010 को आइसलैंड के पश्चिमी तट पर खिले फाइटोप्लांकटन की उपग्रह से ली गई तस्वीर, इस तस्वीर में हरे और नीले रंग का मिश्रण स्पष्ट देखा जा सकता है; फोटो: नासा
24 जून, 2010 को आइसलैंड के पश्चिमी तट पर खिले फाइटोप्लांकटन की उपग्रह से ली गई तस्वीर, इस तस्वीर में हरे और नीले रंग का मिश्रण स्पष्ट देखा जा सकता है; फोटो: नासा
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पिछले दो दशकों में 2003 से 2020 के बीच तटीय फाइटोप्लैंक्टन (समुद्र की ऊपरी सतह पर तैरने वाले इन सूक्ष्म शैवाल) में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि दर्ज की गई है। पता चला है कि इस दौरान फाइटोप्लैंक्टन के विस्तार में 13.2 फीसदी की वृद्धि हुई है। इतना ही नहीं पहले की तुलना में अब यह शैवाल अब कहीं ज्यादा बार खिल रहे हैं। पता चला है कि इस अवधि के दौरान यह 59.2 फीसदी तक अधिक बार खिले थे।

यदि आंकड़ों पर गौर करें तो इस दौरान इनका विस्तार वैश्विक महासागरों के अतिरिक्त 40 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर हो गया है। हालांकि इन सूक्ष्म शैवालों का बढ़ना हमारे लिए अच्छा या या बुरा यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।

पता चला है कि इन दो दशकों में फाइटोप्लैंक्टन के खिलने से 3.15 करोड़ वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र प्रभावित हुआ था, जोकि दुनिया के कुल महासागरीय क्षेत्र के करीब 8.6 फीसदी हिस्से के बराबर है।

आंकड़ों के अनुसार इससे सबसे ज्यादा यूरोप प्रभावित हुआ था। इस दौरान कुल प्रभावित क्षेत्र 95 लाख वर्ग किलोमीटर से ज्यादा था। वहीं उत्तरी अमेरिका में 67.8 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र प्रभावित हुआ था। इसके विपरीत अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में सबसे ज्यादा बार इनके खिलने की घटनाएं सामने आई थी। जहां इनके खिलने की औसत दर 6.3 प्रति वर्ष थी। वहीं ऑस्ट्रेलिया में इसकी दर सबसे कम 2.4 प्रति वर्ष दर्ज की गई थी।

देखा जाए तो एक तरफ यह मत्स्य पालन के लिए फायदेमंद हैं, वहीं दूसरी तरफ कई अन्य वजहों से नुकसानदेह भी हैं। जहां मछली और अन्य समुद्री जीव फाइटोप्लैंक्टन को खाते हैं। वहीं इनमें से कुछ जहरीले भी होते हैं जिनकी वृद्धि समुद्री जीवन के लिए घातक हो सकती है। इतना ही नहीं इनकी वजह से समुद्रों में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है, जिनकी वजह से डेड जोन बन सकते हैं।

यह डेड जोन खाद्य श्रृंखला और मत्स्य पालन के लिए खतरा हैं। ऐसा ही एक उदाहरण के 2016 में चिली के पास सामने आया था। जब इन शैवालों के खिलने की वजह से मछली पालन को 6,580 करोड़ का नुकसान हुआ था। ऐसा ही एक मामला अगस्त 2015 की शुरुआत अमेरिका के अटलांटिक और प्रशांत तटों के बीच सामने आया था।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2003 से 2020 के बीच हर रोज समुद्र में तटीय शैवालों के खिलने की जांच की थी। इसके लिए वैज्ञानिकों ने उपग्रहों की मदद ली थी। पता चला है कि जांच में 153 में से 126 तटीय देशों में फाइटोप्लैंक्टन के खिलने की जानकारी सामने आई थी।

देखा जाए तो समुद्र में फाइटोप्लैंक्टन के विकास का चक्र लगातार चलता रहता है, लेकिन जब परिस्थितियां अनुकूल होती हैं तो यह इतने बड़े पैमाने पर होता है कि इन सूक्ष्म शैवालों की वृद्धि अंतरिक्ष से दिनों से लेकर कई सप्ताह तक दिखाई देती है।

कौन है इस बेतहाशा वृद्धि के लिए जिम्मेवार

इस रिसर्च के नतीजे एक मार्च 2023 को अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं। निष्कर्षों के मुताबिक जहां वैश्विक स्तर पर इनका विस्तार हुआ है वहीं उत्तरी गोलार्ध के उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इनका खिलना कम हो गया।

गौरतलब है कि फाइटोप्लैंक्टन पौधों की तरह होते हैं। वे बढ़ने के लिए सूर्य के प्रकाश के साथ कार्बन डाइऑक्साइड, हवा और पानी से ऊर्जा लेते हैं। चूंकि यह शैवाल सूर्य पर निर्भर रहते हैं, ऐसे में यह केवल झील या समुद्र के ऊपरी हिस्सों में रह पनपते हैं।

रिसर्च के मुताबिक इसके लिए कहीं न कहीं जलवायु में आता बदलाव जिम्मेवार है। पता चला है कि जिस तरह समुद्र की सतह का तापमान बढ़ रहा है वो इसकी एक वजह है। हालांकि वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि इसके लिए क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग कारक जिम्मेवार हो सकते हैं।

इसी तरह समुद्र के प्रवाह में बदलाव, और पोषक तत्वों का बढ़ना भी इसकी एक वजह हैं। रिसर्च में शोधकर्ताओं ने इसके लिए मानव विकास को भी जिम्मेवार माना है। आज जिस तरह कृषि क्षेत्र से बहकर उर्वरक समुद्र में मिल रहे है इससे वहां इनके लिए पोषक तत्व बढ़ रहे हैं, जिनकी वजह से इनके खिलने में वृद्धि हो रही है।

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