तप रहा है मध्य एशिया, पेड़ों के छल्लों के विश्लेषण से चला पता

पेड़ों के छल्लों का विश्लेषण वैज्ञानिकों को सैकड़ों या हजारों साल पहले के तापमान और वर्षा के पैटर्न के बारे में बता सकता है।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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शोधकर्ताओं ने एक नए तरीके से पेड़ों के छल्लों का विश्लेषण कर सालों पहले के तापमान का पता लगाया है। उन्होंने 1269 सीई के बाद से मंगोलिया में तापमान में भारी बदलाव देखने की बात कही है। नए विश्लेषण से पता चलता है कि 1990 के दशक से, गर्मी के मौसम का तापमान पिछले आठ शताब्दियों में सबसे अधिक रहा है।

मध्य एशिया पृथ्वी पर सबसे तेजी से गर्म होने वाले स्थानों में से एक है। केवल पिछले 15 वर्षों में, गर्मी के मौसम के दौरान तापमान 1.59 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गया है जोकि वैश्विक औसत दर से लगभग तीन गुना है। इसी अवधि के दौरान, इस क्षेत्र को सबसे अत्यधिक सूखे का सामना करना पड़ा है।

आज तक, मध्य एशिया में केवल कुछ ही लंबे समय के जलवायु रिकॉर्ड उपलब्ध हैं जो इन प्रवृत्तियों को जानने में में मदद कर सकते हैं। पेड़ों के छल्लों का विश्लेषण वैज्ञानिकों को सैकड़ों या हजारों साल पहले के तापमान और वर्षा के पैटर्न के बारे में बता सकता है। लेकिन इस क्षेत्र में उपयुक्त रूप से पुराने पेड़ों के नमूने लेना मुश्किल है, एक तो इनकी संख्या कम है दूसरी ओर ये बहुत दूर हैं।

क्षेत्र में पेड़ों के छल्ले या ट्री रिंग आंकड़ों की कमी को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अनुमान लगाने के लिए, डेवी और उनके सहयोगियों ने ट्री रिंग कोर का विश्लेषण किया जो मूल रूप से 1998 और 2005 में उनके गुरु, गॉर्डन जैकोबी, लैमोंट में ट्री रिंग लैब के सह-संस्थापक के नेतृत्व में एक परियोजना के लिए एकत्र किए गए थे। 

जैकोबी रिंग की चौड़ाई का उपयोग करके क्षेत्र के तापमान इतिहास को फिर से बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन आंकड़े पर्याप्त नहीं थे, इसलिए उन्होंने इसे अलग रख दिया। 2014 में जैकोबी की मृत्यु से पहले, इसके बाद डेवी ने परियोजना को संभाला। यहां बताते चलें कि अध्ययन का नेतृत्व कोलंबिया विश्वविद्यालय के लैमोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी में एक शोध वैज्ञानिक निकोल डेवी ने किया है।

डेवी ने कहा नमूने पश्चिमी मंगोलिया के कई बहुत अधिक ऊंचाई वाले जंगलों के हैं। लोग इसे विशाल मैदानी प्रणाली के रूप में समझते हैं, लेकिन पूरे देश में कुछ उल्लेखनीय पुराने जंगल में से एक हैं जो बहुत प्राचीन हैं। उन्होंने कहा कि स्थान बहुत दूर थे। इन जंगलों में जाने का अभियान काफी कठिन है।

डेवी ने कहा छल्ले, कोर 400 से 500 साल पुराने साइबेरियाई लार्च के पेड़ों के हैं। इनमें उन पेड़ों को भी शामिल किया गया जो पुराने थे और गिर गए थे लेकिन सड़े नहीं थे। जब हमें लकड़ी के अवशेष मिलते हैं तो यह बहुत रोमांचक होता है, क्योंकि हम जानते हैं कि हम इनके आधार पर समय में और पीछे जा सकते हैं।

अध्ययनकर्ता नमूनों को अच्छी तरह से उपयोग में लाना चाहते थे, चूंकि रिंग की चौड़ाई वाले मॉडल को बाहर नहीं निकाला गया था, इसलिए टीम ने उनका विश्लेषण करने का एक अलग तरीका आजमाने का फैसला किया। इसमें लकड़ी के घनत्व को मापना शामिल था। यह पेड़ के कोर का एक बेहद पतला टुकड़ा लेकर, जोकि मनुष्य के बाल से भी पतला था। इसको चमकदार रोशनी में लाकर प्रयोग किया जाता है।

अधिक प्रकाश कम घने छल्ले के माध्यम से प्रवेश करेगा और कम घने छल्ले ठंड बढ़ने की स्थिति का संकेत देते हैं। डेवी और उनकी टीम ने इस तरीके को आजमाया, लेकिन उन्होंने कहा कि यह तरीका महंगा है। इसमें बहुत समय लगता है, यह कोर को तोड़ देता है और हमें वह नहीं मिल सकता जो हमें चाहिए।

अंत में, टीम ने एक नए तरीके की ओर रुख किया जो कुछ साल पहले उपयोग में आया था और इसके आशाजनक परिणाम सामने आए। इस विधि को डेल्टा ब्लू इंटेंसिटी कहा जाता है, यह विधि यह देखती है कि लाइटर प्राचीन लकड़ी की तुलना में प्रत्येक रिंग अपने गहरे रंग का बैंड जो बाद में बढ़ते मौसम में बनता है में नीली रोशनी को कितनी अच्छी तरह दर्शाता है। कम घनी लकड़ी जो ठंडी परिस्थितियों के परिणामस्वरूप कम नीली रोशनी को अवशोषित करती है।

डेल्टा ब्लू लाइट तकनीक के परिणामों ने टीम को 1269 से 2004 सीई तक इस क्षेत्र में गर्मियों के तापमान का एक मॉडल बनाने में मदद की। दुबारा बनाए गए मॉडल 1950 के दशक के क्षेत्रीय मौसम स्टेशनों के डेटा के साथ-साथ कई बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी विस्फोटों से जुड़ी ठंड की घटनाओं के साथ अच्छी तरह से मेल खाते हैं।

डेवी ने कहा कि वह निष्कर्ष ब्लू लाइट तकनीक की बढ़ती क्षमता पर आधारित है जिसने पिछले मौसम की हमारी समझ में सुधार किया। उन्होंने मध्य एशिया के तापन को संदर्भ में रखा और अनुमानों को बढ़ाया, जिसके तहत सदी के अंत तक इस क्षेत्र के 3 से 6 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने के आसार हैं।

तेजी से बढ़ता तापमान पहले से ही नाजुक पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है। बढ़ता तापमान लोगों के पशुओं को भारी नुकसान पहुंचा रहा है, जिन्हें परंपरागत रूप से मंगोलियाई अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है।

डेवी ने कहा कि मंगोलिया में आजीविका के लिए इसका क्या अर्थ है? यह काफी हद तक कृषि प्रधान संस्कृति है। कुछ लोग शहरों में रहते हैं, लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो खानाबदोश चरवाहे हैं जो हजारों सालों से एक ही तरह से रह रहे हैं। यह मॉडल निश्चित रूप से पिछले कई दशकों के गर्म होने और वैश्विक जलवायु मॉडल को दर्शाता है कि यह भविष्य में कैसा हो सकता है।

जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन बुनियादी ढांचे और जलवायु को अपनाने जैसे कार्यक्रमों जैसे सूचकांक आधारित पशुधन बीमा में निरंतर निवेश की सिफारिश करता है ताकि समुदायों को बदलती परिस्थितियों से निपटने में मदद मिल सके।

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