अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए ) ने कहा कि दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन कोरोना महामारी से पहले के स्तर पर लौट आया है। इसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने के आसार हैं, जिससे जलवायु समझोंते के लक्ष्यों को पूरा कर पाना कठिन हो जाएगा। कार्बन उत्सर्जन को लेकर अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए ) ने ग्लोबल एनर्जी रिव्यू: 2020 में सीओ2 उत्सर्जन को लेकर आंकड़े जारी किए हैं।
आईईए ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक साल पहले की तुलना में दिसंबर 2020 में ऊर्जा से संबंधित उत्सर्जन 2 प्रतिशत या 6 करोड़ टन अधिक था। कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन के बाद दुनिया भर की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं फिर से पटरी पर लोटने लगी, आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई जिसने ऊर्जा की मांग को बढ़ाया, साथ ही सीओ2 उत्सर्जन बढ़ा। जबकि 2020 में बिजली क्षेत्र से वैश्विक उत्सर्जन में 45 करोड़ टन की गिरावट आई। यह बढ़ा हुआ उत्सर्जन आर्थिक सुधार और स्वच्छ ऊर्जा नीतियों की कमी की ओर इशारा करता है।
आईईए के कार्यकारी निदेशक डॉ. फतह बिरोल ने कहा पिछले साल के अंत में वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का बढ़ना एक चेतावनी है जो बताता है कि दुनिया भर में स्वच्छ ऊर्जा का प्रसार उतनी तेजी से नहीं हो रहा है, जितना होना चाहिए।
यदि सरकारें सही ऊर्जा नीतियों के साथ जल्द से जल्द आगे नहीं बढ़ती हैं, तो वैश्विक उत्सर्जन निश्चित तौर पर शिखर पर पहुंच जाएगा जो दुनिया को खतरे में डालने के लिए काफी है।
एक साल पहले अंतर सरकारी एजेंसी ने सरकारों से स्वच्छ ऊर्जा को आर्थिक प्रोत्साहन योजनाओं में सबसे बड़ा स्थान देने के लिए आह्वान किया था, लेकिन इस अपील पर अधिकतर देशों की सरकारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
बिरोल ने कहा बढ़ता उत्सर्जन दर्शाता है कि हम ऐसे व्यापार की ओर लौट रहे हैं जहां कार्बन का अधिक उपयोग होता है, जैसा कि सामान्य रूप से होता है। चीन में पिछले साल कार्बन प्रदूषण 2019 के स्तर के आधे प्रतिशत से अधिक था, जबकि वहां वायरस के प्रसार को रोकने के लिए कड़ा लॉकडाउन लगाया गया था।
चीन जो वैश्विक सीओ2 उत्पादन के एक चौथाई से अधिक के लिए जिम्मेदार है, यह 2020 में विकास करने वाली एकमात्र प्रमुख अर्थव्यवस्था थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य देश भी अब उत्सर्जन के मामले में कोविड -19 संकट के पहले के स्तर से ऊपर बढ़ रहे हैं। भारत का भी उत्सर्जन सितंबर से 2019 के स्तर से अधिक बढ़ गया है, क्योंकि आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हुई और कोविड प्रतिबंधों में ढील दी गई है।
मई में ब्राजील में सड़क परिवहन बंद होने से तेल की मांग में कमी आई, जबकि 2020 के अंत में गैस की मांग बढ़ने से अंतिम तिमाही में उत्सर्जन 2019 के स्तर से ऊपर चला गया। 2020 में अमेरिकी सीओ2 उत्सर्जन में 10 प्रतिशत की गिरावट आई थी, लेकिन यह दिसंबर से पहले साल के स्तर तक पहुंच गया था।
विकास और उत्सर्जन में गिरावट
बिरोल ने कहा अगर इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था के बढ़ने की उम्मीद हैं, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में बड़े नीतिगत बदलावों के अभाव में वैश्विक उत्सर्जन बढ़ने की आशंका है। आर्थिक गतिविधियों में तेजी अपने साथ प्रदूषण को भी लाता है। उदाहरण के लिए, वार्षिक जीडीपी वृद्धि और सीओ2 उत्सर्जन, दोनों 2008 की महामंदी के बाद बढ़े।
बिरोल ने कहा कि जलवायु संकट से निपटने के लिए देशों पर दबाव बनता है, ऐसे उत्साहजनक संकेत हैं कि प्रमुख उत्सर्जक देश बढ़ते तापमान को कम करने के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए कदम उठा रहे हैं, जिससे आर्थिक विकास के कम होने के आसार हैं।
उन्होंने कहा कि चीन ने 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने की बात की है, पेरिस समझौते में अमेरिका के पुन: शामिल होने के साथ बिडेन प्रशासन का महत्वाकांक्षी जलवायु एजेंडा और यूरोपीय संघ का ग्रीन न्यू डील सभी सही दिशा में जा रहे हैं।
बिरोल ने कहा भारत के अक्षय ऊर्जा के प्रयास और इसकी सफलता ऊर्जा के भविष्य को बदल सकती है। 2020 में वैश्विक उत्सर्जन लगभग 200 करोड़ टन कम हो गया, जो इतिहास में सबसे बड़ी गिरावट है। सड़क परिवहन और विमानन के लिए ईंधन के कम उपयोग के कारण आधे से अधिक गिरावट आई थी।
2015 के पेरिस समझौते में वैश्विक तापमान में वृद्धि को प्री-इंडस्ट्रियल स्तरों की तुलना में "2 डिग्री सेल्सियस" नीचे और यदि संभव हो तो 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य रखा गया था।
पृथ्वी की सतह पहले से ही औसतन 1.1 डिग्री सेल्सियस गर्म है, जो कि घातक हीटवेव, सूखे और बड़े तूफान (सुपरस्टॉर्म) की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ाने के लिए पर्याप्त है, जो बढ़ते समुद्र स्तर के कारण अधिक विनाशकारी बन गया है।