चरागाहों से बढ़ रहा है कार्बन उत्सर्जन, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

एक नया शोध बताता है कि सारे चरागाहों का कुल रेडिएशन फिलहाल लगभग न्यूट्रल के करीब है, लेकिन यह 1960 के बाद से बढ़ रहा है
चरागाहों से बढ़ रहा है कार्बन उत्सर्जन, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी
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एक नए शोध से पता चला है कि चरागाहों से होने वाले मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन 1750 के बाद 2.5 यूनिट बढ़ा है। शोध में इसके लिए जानवरों से होने वाले उत्सर्जन को जिम्मेदार माना गया है, क्योंकि जंगल में घास खाकर जीने वाले छोटे जानवरों की संख्या कम होती गई और चरागाहों में कार्बन सिकुड़ने का असर यह हुआ है कि दुनिया भर में उनके काॅर्बन सोंकने और उसे भूमि में वापस करने की क्षमता प्रभावित हुई है।

इसका आकलन वैसे तो पिछली सदी में ही हो गया था, लेकिन छितरे और प्राकृतिक चरागाहों को लेकर चीजें अब सामने आ रही हैं। क्लाईमेट वाॅच एंड द वल्र्ड रिसोर्सेस इंस्टीटयूट ने इससे संबंधित एक डाटा 2016 में प्रकाशित किया था।

इसके उलट, पिछले दशक में ऐसे चरागाह जिनका प्रबंधन खासतौर से इंसान करता आ रहा है, वे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत बन गए हैं। दरअसल इनसे उतना ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हो रहा है, जितना वैश्विक स्तर पर फसल उगाई जाने वाली भूमि से होता है, जो ग्रीनहाउस गैसों का बड़ा स्रोत है।

द इंटरनेशनल इंस्टीटयूट फाॅर एप्लाइड सिस्टम एनालिसिस के थामस गैसर के मुताबिक, चरने लायक मैदानों और जानवरों की तादाद बढ़ते जाने से हम यह कयास लगा सकते हैं कि अगर भूमि में काॅर्बन बढ़ने और जगंल कटने से रोकने के लिए नीतियां नहीं बनाई गई तो वातावरण के लिए यह कितना चुकसानदायक होगा। गैसर इसी से संबंधित पांच जनवरी को प्रकाशित शोध 'अनकवरिंग हाउ ग्रासलैंडस चेंज्ड अवर क्लाइमेट' के सहलेखक भी हैं।

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक शोध इस बारे में चर्चा करता है कि सारे चरागाहों का कुल रेडिएशन फिलहाल लगभग न्यूट्रल के करीब है, लेकिन यह 1960 के बाद से बढ़ रहा है।

इस तरह हम देखते हैं कि जिन चरागाहों का प्रबंधन किया जा रहा है, उनसे होने वाली ग्लोबल क्लाईमेट वार्निंग, छितरे और प्राक्रतिक मैदानों दवारा क्लाईमेट को ठंडा रखने और कॅार्बन सोंकने के उपायों को बेकार कर देती है. आने वाले समय में क्लाईमेट चेंज और जानवरों से जुड़े उत्पादों में वृद्धि को ध्यान में रखकर ये नतीजे ऐसे उपायों पर जोर देते हैं, जिनसे चरागाहों में कार्बन सोंकने की क्षमता बढ़े और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सके। 

नेचुरल कम्युनिकेशंस के लेखकों के शोध के मुताबिक, पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी है कि हर देश में उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की पूरी रिपोर्टिंग हो और इन देशों के उस बजट पर निगाह रखी जाए जो वे वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने पर खर्च करते हैं।

2020 में कई देशों ने क्लाईमेट पर काम करने के लिए अपना प्लान पेश किया है, जिसे राष्ट्रीय संकल्प पत्र नाम दिया गया है, इसमें देशों ने उन उपायों पर बात की है, जिनसे वे पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किस तरह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करेंगे। 

लैबोरेट्री फाॅर साइंसेस ऑफ क्लाइमेट एंड एनवायरनमेंट के सहलेखक फिलिप सियास के मुताबिक, लो वार्मिंग क्लाईमेट लक्ष्यों के संदर्भ में चरागाहों की भूमिका को कम करके या बढ़ाकर देखना कुछ कारकों पर निर्भर करता है। इसमें आने वाले समय में घास खाने वाले जानवरों की संख्या और चरागाहों में कार्बन सोंकने की संचित क्षमता भी शामिल है। साथ ही यह भी कि समय के साथ चरागाहों की काॅर्बन स्टोर करने की क्षमता बढेगी या स्थिर हो जाएगी, जैसा कि हमने पुराने प्रयोगों में देखा है।

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