
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसी) की जून क्लाइमेट मीटिंग्स, जिसे 62वीं सहायक निकायों की बैठक (एसबी62) के नाम से भी जाना जाता है, 16 जून से 26 जून 2025 तक बॉन में आयोजित की जा रही हैं।
हालांकि, सम्मेलन के उद्घाटन दिवस पर औपचारिक एजेंडा पारित नहीं हो सका, क्योंकि इसमें प्रस्तावित कुछ विषयों को लेकर मतभेद उत्पन्न हो गए।
विशेष रूप से, विकासशील देशों के दो एजेंडा आइटम जलवायु वित्त और एकतरफा व्यापार उपायों के प्रस्ताव का विकसित देशों ने कड़ा विरोध किया। अंततः, सम्मेलन का एजेंडा दूसरे दिन शाम करीब 6 बजे अपनाया गया, जिससे उस समय तक सभी वार्ताओं के विषय अनिश्चितता में बने रहे।
नए एजेंडा आइटम
जून की शुरुआत में समान विचार वाले देशों के समूह (एलएमडीसी) ने बॉन सम्मेलन के एजेंडा में दो नए आइटम जोड़ने का प्रस्ताव दिया। एक- पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 पर और दूसरा- एकतरफा व्यापार उपायों पर। इस समूह में भारत भी शामिल है।
अनुच्छेद 9.1 को लेकर प्रस्ताव में यह मांग की गई कि एक ऐसा एजेंडा तय किया जाए जिसमें जलवायु वित्त पर चर्चा हो सके। खासकर इस बात पर बातचीत हो कि विकसित देश किस तरह से विकासशील देशों को जलवायु वित्त इस तरीके से दें जो अतिरिक्त हो (यानी पहले से दिए जा रहे फंड से अलग हो), पहले से तय और भरोसेमंद हो, रियायती शर्तों पर हो और पूरी तरह पारदर्शी हो।
यह संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप29) में बाकू में तय किए गए फैसले से जुड़ा है। वहां एक नया लक्ष्य बनाया गया कि हर साल विकासशील देशों की मदद के लिए जलवायु से जुड़ी कार्रवाई के लिए 300 अरब डॉलर दिए जाएंगे। इसमें विकसित देशों को यह पैसा जुटाने और मदद करने की मुख्य जिम्मेदारी दी गई है।
यह 300 अरब डॉलर के लक्ष्य का हिस्सा था, जो 2035 तक कुल मिलाकर 1.3 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ सकता है। यह पैसा कई जगहों से आ सकता है, जैसे कि निजी कंपनियां और कुछ विकासशील देश जो इसमें हिस्सा लेना चाहें। लेकिन इस फैसले में सीधे पैसा देने की बजाय सिर्फ ‘वित्त जुटाने’ की बात की गई है, मतलब सरकारें अपने पैसे का इस्तेमाल करके निजी निवेशकों को भी पैसा लगाने के लिए प्रेरित करें या दूसरे स्रोतों से पैसा इकट्ठा करें। यह पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.3 के अनुसार है।
अनुच्छेद 9.1 को बाकू निर्णय में नजरअंदाज किया गया, क्योंकि विकसित देशों ने विकासशील देशों को सीधे सार्वजनिक वित्त उपलब्ध कराने की अपनी जिम्मेदारी से बचने का निर्णय लिया, जबकि सार्वजनिक वित्त निजी वित्त की तुलना में अधिक जवाबदेही प्रदान करता है।
एकतरफा व्यापार के उपायों, जैसे यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर टैक्स और ऐसे ही नियम जो इंग्लैंड और कनाडा ने बनाए हैं, के खिलाफ समान सोच वाले देशों यानी एलएमडीसी ने एजेंडा में कहा है कि सभी देशों को जलवायु मुद्दों को राजनीति का हिस्सा बनाने और एकतरफा फैसलों का विरोध करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जो एकतरफा कदम सीमाओं के पार नुकसान पहुंचाते हैं, वे यूएनएफसीसी और पेरिस समझौते के नियमों के खिलाफ हैं।
यह उसी तरह का एजेंडा आइटम है जिसे बेसिक समूह (ब्राज़ील, चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका) ने कॉप29 में पेश किया था, लेकिन उस समय यूरोपीय संघ ने उसे रोक दिया था।
एजेंडा को अपनाना
बॉन में पहले दिन एजेंडा को अपनाया नहीं जा सका, क्योंकि विकसित देशों, जैसे कि यूरोपीय संघ और उसके सहयोगियों ने इन दोनों आइटम्स को शामिल करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया, जबकि जी77 और चीन समूह (जो 130+ विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व करता है) ने एलएमडीसी की मांगों पर एकजुटता दिखाई। इसके बाद लगभग 48 घंटे तक चर्चा बंद दरवाजों के पीछे चली, और यूरोपीय संघ की ओर से कोई भी सेतु प्रस्ताव (ब्रिजिंग प्रपोजल) नहीं पेश किया गया।
17 जून की शाम को सहायक निकायों के अध्यक्ष यानी एसबी चेयर्स ने फिर से पूर्ण बैठक शुरू की और बताया कि “पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 के कार्यान्वयन” शीर्षक वाला आइटम वापस लिया जाएगा, लेकिन इस पर एसबी62 में “वस्तुपरक विचार-विमर्श” के माध्यम से चर्चा की जाएगी। एसबी चेयर्स इस पर प्राप्त परिणामों की रिपोर्ट एसबी63 में देंगे, जो यूनएफसीसीसी के 30वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (कॉप30) के दौरान नवंबर में बेलें, ब्राजील में आयोजित होगा, ताकि सभी पक्ष आगे की दिशा तय करने पर विचार कर सकें, जिसमें इस विषय पर एक स्वतंत्र एजेंडा आइटम शामिल किया जाना भी संभव है।
“प्रोमोटिंग इंटरनेशनल कॉपरेशन एंड एड्रेसिंग दी कंसर्न विद क्लाइमेट चेंज रिलेटेड ट्रेड रेस्ट्रिटेक्टिव यनिलेटरेल मेजर्स” शीर्षक वाले आइटम पर पक्षों ने यह सहमति बनाई कि इस आइटम को वापस लिया जाएगा, इस समझ के साथ कि संबंधित मुद्दों पर चर्चा प्रासंगिक एजेंडा आइटम्स के तहत की जाएगी, जिसमें ‘जस्ट ट्रांजिशन वर्क प्रोग्राम’ भी शामिल है। इस प्रोग्राम में एजेंडा आइटम में एक फुटनोट जोड़ा जाएगा, जिसमें लिखा होगा कि “संबंधित मुद्दे प्रासंगिक एजेंडा आइटम्स में चर्चा के लिए शामिल होंगे, जिसमें जस्ट ट्रांजिशन वर्क प्रोग्राम भी शामिल है।”
इस घोषणा से विकासशील देशों में असंतोष फैल गया। एलएमडीसी की ओरसे बोलीविया और भारत ने विकसित देशों द्वारा वित्तीय दायित्वों पर चर्चा से हिचकिचाने पर निराशा व्यक्त की और कॉप30 में अनुच्छेद 9.1 के मुद्दे को फिर से उठाने की प्रतिबद्धता जताई। नाइजीरिया ने अनुच्छेद 9.1 को “कन्वेंशन के लिए बहुत जरूरी” बताया।
अगले दो हफ्तों की चर्चाएं
एजेंडा के अपनाए जाने के बाद सम्मेलन के तीसरे दिन से औपचारिक चर्चाएं शुरू हुईं। दिन की शुरुआत जस्ट ट्रांजिशन वर्क प्रोग्राम पर चर्चा के साथ हुई। इसके साथ ही, वैश्विक मूल्यांकन पर यूएई संवाद, जलवायु वित्त पर बाकू से बेलें तक की रूपरेखा पर चर्चा और पेरिस समझौते के अनुच्छेद 2.1(सी) पर शार्म एल-शेख संवाद भी शुरू हुए। ये विषय अगले दो हफ्तों तक विभिन्न सत्रों और चर्चाओं का मुख्य हिस्सा रहेंगे।