जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दुनियाभर में दिखने लगा है। भारत के राज्यों में भी इसके स्पष्ट संकेत नजर आ रहे हैं। ऐसे में बिहार भला इससे अछूता कैसे रह सकता है। बिहार में भी पिछले कुछ सालों से मौसम के बदलते मिजाज का असर दिख रहा है। कभी सूखा पड़ रहा है, तो कभी बाढ़ में सबकुछ डूब रहा है। कभी अधिक सर्दी खेती को प्रभावित कर रही है, तो कभी गर्मी और लू न केवल खेती चौपट कर रहा है, बल्कि लोगों की जान भी ले रहा है।
जलवायु परिवर्तन के दूरगामी प्रभावों को लेकर बिहार सरकार ने गंभीरता दिखाते हुए पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन विभाग के अंतर्गत पृथक ‘जलवायु परिवर्तन डिविजन’ का गठन किया है। इस डिविजन के लिए सरकार ने कुल 18 पदों का सृजन किया है। पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में इसे मंजूरी दी गई।
पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन विभाग से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि इस डिविजन का काम जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए एक्शन प्लान तैयार करना और उसे प्रभावी तरीके से लागू करना होगा।
पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन विभाग के ज्वाइंट सेक्रेटरी सुबोध कुमार चौधरी ने डाउन टू अर्थ को बताया, “यह डिविजन जल, जीवन व हरियाली मिशन पर काम करेगा। इसके अंतर्गत वृक्षारोपण, जलस्त्रोतों का संरक्षण व वन व वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित किया जाएगा।”
सुबोध कुमार चौधरी ने वृक्षारोपण को लेकर कहा कि इस साल डेढ़ करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है और अगले वर्ष तक इस लक्ष्य को बढ़ा कर 2.5 करोड़ किया जाएगा। इसके अलावा भूगर्भ जल का संरक्षण, वर्षा जल संचयन किया जाएगा।
उल्लेखनीय हो कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार सार्वजनिक मंचों पर ये स्वीकार करते रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर बिहार में देखने को मिल रहा है। जुलाई में जलवायु परिवर्तन को लेकर सीएम नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक भी की थी। इस मौके पर उन्होंने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रेखांकित करते हुए कहा था कि इस साल भी बारिश कम होने की आशंका है जिससे खेती प्रभावित होगी। उन्होंने बैठक में कहा था कि बिहार में कहीं बाढ़ और कहीं सुखाड़ जलवायु परिवर्तन के कारण ही आ रहा है।
बाढ़, लू व ठनका से 450 से ज्यादा मौतें
बिहार में इस साल मौसम के तीखे तेवर के कारण चार सौ से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। जून मध्य में मॉनसून के निर्धारित समय से काफी देर से आने के कारण बिहार के दक्षिणी हिस्से में भीषण गर्मी पड़ी थी, जिस कारण पहले गया में और बाद पूरे राज्य में धारा 144 लगा दी गई थी। इसी दौरान लू की चपेट में आने से करीब 140 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं, मॉनसून की दस्तक के बाद अलग अलग जगहों पर आकाशीय बिजली (ठनका) गिरने से 170 लोगों की जान चली गई थी।
वहीं दूसरी तरफ, उत्तर बिहार में बाढ़ ने तबाही मचाई दी थी। बाढ़ के चलते बिहार के 13 जिलों के 88.4 लाख लोग प्रभावित हुए थे। अधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि बाढ़ ने 160 लोगों की जान ले ली थी।
बिहार में बदल रहा मौसम का पैटर्न
मौसम विज्ञानियों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बिहार में मौसम का पैटर्न तेजी से बदल रहा है। कुछ साल पहले इंडियन कौंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) की एक रिपोर्ट में भी ऐसी ही बातें बताई गई थीं।
साउथ बिहार सेंट्रल यूनिवर्सिटी के एनवायरमेंट साइंस डिपार्टमेंट के प्रोफेसर प्रधान पार्थ सारथी पिछले 20 सालों के बारिश के पैटर्न को आधार बना कर कहते हैं कि सलाना बारिश में कमी आई है। उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया, “वर्ष 2010 के बाद बारिश के परिमाण में तेजी से गिरावट आई है। इसके साथ ही सर्दी के मौसम में भी बदलाव आया है। पहले अक्टूबर से सर्दी पड़ने लगती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है। साथ ही ये भी दिख रहा है कि सर्दी के मौसम में रात का तापमान बढ़ रहा है।”