मांसाहार पर रोक लगाने से जलवायु संकट हल नहीं होगा : शोध

कम मांस वाले आहार करना ठीक है पर इसको पूरी तरह से बंद कर देना जलवायु परिवर्तन का समाधान नहीं है
मांसाहार पर रोक लगाने से जलवायु संकट हल नहीं होगा : शोध
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अमेरिका या यूरोप जैसे औद्योगिक क्षेत्रों के लोगों को आमतौर पर स्वस्थ और कम उत्सर्जन करने का सुझाव दिया जा रहा है। आहार के रूप में मांस और पशुओं से प्राप्त होने वाले खाद्य पदार्थों को कम खाने को कहा जाता है, लेकिन एक नए शोध में वैज्ञानिकों का तर्क है कि इस तरह की सिफारिशें निम्न या मध्यम आय वाले देशों के लिए नहीं की जा सकती। इन देशों में पशुधन आय और भोजन के लिए महत्वपूर्ण हैं।

जैव प्रौद्योगिकी और उष्णकटिबंधीय कृषि के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के वैज्ञानिक बिर्थे पॉल ने कहा कि काफी प्रचलित रिपोर्टों से निकाले गए निष्कर्षों का तर्क है कि वैश्विक स्तर पर जलवायु और मानव स्वास्थ्य के लिए मांस खाना बंद कर देना चाहिए। लेकिन यह तर्क सभी देशों पर लागू नहीं होता। 

उदाहरण के लिए 1945 से पशुधन पर प्रकाशित हो रहे सभी वैज्ञानिक साहित्य में से केवल 13 फीसदी ने अफ्रीका को कवर किया है। फिर भी अफ्रीका दुनिया भर में 20 फीसदी मवेशियों, 27 फीसदी भेड़ और 32 फीसदी बकरी आबादी का घर है।

पशुधन पर शोध प्रकाशित करने वाले दुनिया के शीर्ष 10 संस्थानों में से आठ अमेरिका, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और नीदरलैंड में हैं। अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान (आईएलआरआई) सहित अफ्रीका में केवल दो मुख्यालय हैं, जहां पशुधन क्षेत्र अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। फिर भी उनपर बहुत कम आंकड़े उपलब्ध है।

नोटिनबायबार्ट इंटरनेशनल एंड सीआईएटी के ए नॉटेनबार्ट ने कहा कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में मिश्रित व्यवस्था है, जहां पशु उत्पादन पूरी तरह से फसल उत्पादन के साथ जुड़ा हुआ है। वास्तव में यह पर्यावरणीय रूप से अधिक टिकाऊ हो सकता है।

उप-सहारा अफ्रीका में खाद एक पोषक तत्व संसाधन है जो मिट्टी के स्वास्थ्य और फसल उत्पादकता को बनाए रखता है। जबकि यूरोप में औद्योगिक तरीके से पशुधन उत्पादन के माध्यम से उपलब्ध कराई गई भारी मात्रा में खाद कृषि भूमि के लिए जरूरत से ज्यादा है, जो पर्यावरणीय समस्याओं का कारण बन रही है।

अफ्रीका के सवाना के आसपास रात में देहाती भेड़ या मवेशी पालने वाले किसान अपने झुंडों को एकत्रित करते हैं, जो पोषक तत्वों की विविधता और जैव विविधता के आकर्षण के केंद्र बनते हैं। चारा उत्पादन भी स्थानीय स्तर पर अधिक हो सकता है, जबकि औद्योगिक प्रणालियों में यह ज्यादातर आयात किया जाता है।

ब्राजील में सोयाबीन की फसल उगाने के लिए अमेजन वनों की कटाई की जा रही है। इसके बाद इसे वियतनाम और यूरोप में जानवरों को खिलाने के लिए निर्यात किया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान में सस्टेनेबल लाइवस्टॉक सिस्टम के प्रोग्राम लीडर पोली एरिकसेन ने कहा कि किसी भी खाद्य पदार्थ की तरह जब मांस का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है और अधिक व्यवसाय होता है तो इसका प्रभाव हमारे पर्यावरण पर कई गुना बढ़ जाता है।

एरिकसेन ने कहा कि हमारे आहार से मांस को खत्म करना उस समस्या को हल करने वाला नहीं है। कम मांस वाले आहार करना ठीक है पर इसको पूरी तरह से बंद कर देना जलवायु परिवर्तन का समाधान नहीं है और यह हर जगह लागू नहीं होता है।

खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, उप-सहारा अफ्रीका में 2028 तक प्रति व्यक्ति मांस की खपत औसतन 12.9 किलोग्राम कम होगी। इसके पीछे के कारणों में जानवरों से कम आय और जलवायु संबंधी गर्मी के तनाव, मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव जैसे कुपोषण और शरीर का विकास न होना आदि।

तुलनात्मक रूप से देखे तो अमेरिका में मांस की प्रति व्यक्ति खपत 100 किलोग्राम से अधिक होने की उम्मीद है, जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है। यह शोध एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ताओं ने स्वीकार किया कि पशुधन प्रणाली ग्रीनहाउस गैसों का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन को कम करने की रणनीति बनाते वक्त निम्न और मध्यम आय वाले देशों से अधिक आंकड़ों की आवश्यकता है।

शोध रिपोर्ट में ऐसे समाधानों की ओर इशारा किया गया, जिनका पर्यावरण पर कम से कम प्रभाव पड़े। उनमें से पशु आहार में सुधार हुआ है, इसलिए पशुओं से ग्रीनहाउस गैसों जैसे मीथेन प्रति किलोग्राम दूध या मांस से कम उत्सर्जित होती है। बेहतर ढंग से प्रबंधित भूमि और फसल और पशुधन को मिलाकर जहां खाद मिट्टी में वापस मिल जाती है, किसानों और पर्यावरण दोनों को फायदा पहुंचा सकती है।

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