क्या बढ़ते एएमआर के लिए प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन भी है जिम्मेवार

अनुमान है कि 2050 में हर साल एक करोड़ से ज्यादा लोगों की जान रोगाणुरोधी प्रतिरोध की वजह से जाएगी। इसका मतलब है कि 2050 में एएमआर उतने लोगों की जान लेगा जितनी 2020 में कैंसर से भी नहीं गई थी
क्या बढ़ते एएमआर के लिए प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन भी है जिम्मेवार
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एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स (एएमआर) यानी रोगाणुरोधी प्रतिरोध की समस्या दुनिया में तेजी से अपने पैर पसार रही है, जिसे और नजरअंदाज करना हानिकारक हो सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि दशकों से इन रोगाणुरोधी दवाओं ने इंसानों, जानवरों और फसलों में संक्रामक रोगों को सीमित करने, इंसानी जिंदगियां बचाने और उत्पादकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन उनकी प्रभावशीलता अब खतरे में है। जैसे-जैसे रोगाणु विकसित हो रहे हैं, वो इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधी बनते जा रहे हैं। जिसकी वजह से रोगाणुरोधी उपचार कम प्रभावी होते जा रहे हैं।

कितनी गंभीर हो चुकी है यह समस्या

इस बारे में हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि 2019 में इसकी वजह से करीब 13 लाख लोगों की जान गई थी जो 2050 में बढ़कर एक करोड़ से ज्यादा हो जाएगी।

इसका मतलब है कि 2050 में एएमआर उतने लोगों की जान लेगा जितनी 2020 में कैंसर से भी नहीं गई थी। आंकड़ों को देखें तो 2019 में कहीं न कहीं करीब 50 लाख लोगों की मौत के लिए इससे जुड़ा संक्रमण जिम्मेवार था।

ऐसा नहीं है कि एएमआर केवल लोगों के स्वास्थ्य के लिए ही खतरा है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी कमजोर कर रहा है। अनुमान है कि 2050 में वैश्विक स्तर पर एएमआर 3.8 फीसदी जीडीपी के नुकसान का कारण बनेगा। रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि 2030 तक इसकी वजह से हर साल जीडीपी को करीब 257.6 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा। साथ ही इसकी वजह से और 2.4 करोड़ लोग गरीबी की गर्त में जाने को मजबूर हो जाएंगे।   

कैसे प्रदूषण के जरिए पर्यावरण में फैल रहा है एएमआर

देखा जाए तो जब इन एंटीबायोटिक्स को ऐसे ही पर्यावरण में छोड़ दिया जाता है तो वो अन्य कारकों के साथ मिलकर प्राकृतिक सूक्ष्मजीवों (माइक्रोबियल) को प्रभावित करते हैं इनमें से सूक्ष्मजीव या जीवाणु कई बीमारियों के लिए जिम्मेवार होते हैं। समय के साथ यह माइक्रोबियल इन एंटीबायोटिक के प्रति रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं जोकि इन्हें और बेहतर बना देता है। कई मामलों में बढ़ता प्रदूषण भी पर्यावरण में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के विकास में योगदान दे रहा है, क्योंकि उसमें कुछ चुने हुए एंटीबायोटिक्स होते हैं।   

स्वच्छता का आभाव, सीवेज और दूषित जल इस समस्या को बढ़ा रहा है। अनुमान है कि हर साल डायरिया के करोड़ों मामलों का एंटीबायोटिक दवाओं से इलाज किया जाता है, जिनमें से 60 फीसदी को साफ पानी और सामुदायिक स्वच्छता से रोका जा सकता था। ऐसे में इन दवाओं का उपयोग रोगाणुरोधी प्रतिरोध को बढ़ावा दे रहा है। समस्या तब ज्यादा गंभीर हो जाती है जब लोग खुले में शौच करते हैं या फिर उससे जुड़े दूषित जल का ठीक से निपटान नहीं किया जाता और उसे पर्यावरण में ऐसे ही छोड़ दिया जाता है, जिसमें एंटीबायोटिक दवाओं के भी अंश होते हैं। 

इसी तरह फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री, स्वास्थ्य केंद्रों से निकलने वाला वेस्ट और एफ्लुएंट भी इसके प्रसार को बढ़ा रहा है। कृषि में अनियंत्रित तरीके से इस्तेमाल हो रही एंटीबायोटिक दवाएं और कीटनाशक भी एक बड़ा खतरा हैं। वहीं अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर करीब 11 फीसदी कृषिभूमि की सिंचाई के लिए दूषित जल का उपयोग किया जा रहा है जिसे ठीक से साफ नहीं किया गया था।

देखा जाए तो वैश्विक स्तर एएमआर को लेकर ज्यादातर ध्यान कृषि और स्वास्थ्य पर दिया गया है जिसमें कहीं न कहीं पर्यावरण को नजरअंदाज कर दिया जाता है। पर सच यह है कि पर्यावरण में बढ़ता रोगाणुरोधी प्रतिरोध भी इंसानों, जानवरों और पौधों में इसके विकास, प्रसार और फैलने के लिए जिम्मेवार है।

यह पौधों में बीमारियों के साथ मिट्टी की जैव विविधता के नुकसान का कारण बन सकता है। नतीजन इससे निपटने के लिए और ज्यादा एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है। यही वजह है कि यह समस्या और गंभीर रूप लेती जा रही है।

जलवायु परिवर्तन की भूमिका से भी नहीं किया जा सकता इंकार

रिपोर्ट के मुताबिक एएमआर के बढ़ते खतरे के लिए कहीं न कहीं जलवायु में आता बदलाव भी जिम्मेवार है। बढ़ता तापमान बढ़ते रोगाणुरोधी प्रतिरोध से भी जुड़ा है। कई रोग जलवायु के प्रति संवेदनशील होते हैं। पिछले शोधों से भी पता चला है कि पर्यावरणीय परिस्थितियों और तापमान में आता बदलाव इंसानों, जानवरों और पौधों में कई जीवाणु, वायरल, परजीवी, कवक और वेक्टर जनित रोगों के प्रसार में वृद्धि कर सकता है। इनमें से कई बीमारियों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध तेजी से बढ़ रहा है। 

साथ ही जलवायु परिवर्तन पर्यावरण में भी एएमआर को फैलने में मदद कर रहा है। जिस तरह जलवायु परिवर्तन के चलते चरम घटनाओं में वृद्धि हो रही है उससे बाढ़ आदि का खतरा बढ़ रहा है जिसके चलते ट्रीटमेंट प्लांट का वेस्टवाटर और सीवेज दूषित अवस्था में ही पर्यावरण में फैल रहा है, जिसमें कई तरह के एंटीबायोटिक्स भी होते हैं। इसी तरह जलवायु परिवर्तन के चलते घटती उत्पादकता को पूरा करने के लिए कृषि में पहले की तुलना में कहीं ज्यादा एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जा रहा है।  

कैसे मिलेगी निजात 

यूनेप द्वारा जारी इस रिपोर्ट में 'वन हेल्थ' अवधारणा के तहत पर्यावरण पर भी ध्यान देने की बात कही है। यूनेप के अनुसार एएमआर के इस बढ़ते बोझ को कम किया जा सकता है। समाधान मौजूद हैं बस इसके लिए वैश्विक स्तर पर प्रतिबद्धता की जरुरत है। रिपोर्ट में इसके लिए चार बातों पर गौर करने के लिए कहा है, इसमें पर्यावरण समबन्धी योजनाओं और नियमों को मजबूत करने की बात कही है।

एएमआर से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्य योजनाओं को विकसित करना होगा। जिसके तहत एंटीबायोटिक्स के निर्माण, जल, स्वच्छता, कृषि, ठोस कचरे के प्रबंधन और बुनियादी ढांचे सम्बंधित नियमों पर्यावरणीय नियमों पर ध्यान देना होगा। एएमआर से जुड़े प्रदूषक पर्यावरण में न फैलें इसे सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने होंगे। साथ ही लोगों को भी इसके विवेकपूर्ण इस्तेमाल से लेकर उत्पादकों की भी जिम्मेवारी तय करनी होगी। 

दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि उन प्रदूषकों को पहचान कर टारगेट करना होगा जो एएमआर से जुड़े हैं। वेस्टवाटर ट्रीटमेंट और मैनेजमेंट जैसे उपाय इसमें मददगार हो सकते हैं। साथ ही कृषि में उपयोग होने वाले कीटनाशकों पर भी ध्यान देना होगा। इसके साथ ही एएमआर को पर्यावरण में फैलने से रोकने के लिए इनके मॉनिटरिंग सिस्टम को बेहतर करना होगा। एक ऐसा साफ-सुथरा सिस्टम विकसित करना होगा जिससे यह पता चल सके इन एंटीबायोटिक दवाओं का कितना उत्पादन हुआ है, उनकी कितनी बिक्री हुई और कितनी दवाएं बची रह गई हैं। साथ ही बेकार दवाओं को किस तरह प्रबंधन और निपटान करना है इस पर भी गौर करना होगा।

इसके तहत कृषि में इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक्स पर भी नजर रखनी होगी। साथ ही बायोप्रोडक्ट्स (जैसे बायोफर्टिलाइजर्स, बायोप्लास्टिक्स, बायोसॉलिड और प्लांट ग्रोथ प्रमोटर्स) की सुरक्षा की जानकारी भी रखनी होगी। आखिर में कृषि जैसे क्षेत्रों में दी जा रही सब्सिडी और वित्तीय सहायता में भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि वो एएमआर को बढ़ावा न दें। लोगों को भी इसके प्रति जागरूक होना होगा।       

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