महासागरों में जिंक चक्र में हो रहा बदलाव, खतरे में पड़े समुद्री जीव

गर्म जलवायु जिंक के क्षरण को बढ़ाती है, जिससे वायुमंडल में अधिक धूल बनती है जिसके कारण महासागरों में अधिक धूल जमा होती है।
दक्षिणी महासागर दुनिया भर में फाइटोप्लांकटन के उत्पादकता में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है, जो वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
दक्षिणी महासागर दुनिया भर में फाइटोप्लांकटन के उत्पादकता में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है, जो वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
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एक नए अध्ययन के मुताबिक, दक्षिण महासागर दुनिया भर में कार्बन चक्र में अहम भूमिका निभाता है। अध्ययन में पहली बार क्षेत्रीय सबूतों के आधार पर इन चक्रों में अकार्बनिक जिंक (जेडएन) के कणों की भूमिका को सामने लाया गया है।

दक्षिणी महासागर दुनिया भर में फाइटोप्लांकटन के उत्पादकता में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है, जो वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इन प्रक्रियाओं में, समुद्र के पानी में सूक्ष्म मात्रा में मौजूद जिंक, समुद्री जीवों में कई जैव रासायनिक प्रक्रियाओं और विशेष रूप से ध्रुवीय फाइटोप्लांकटन खिलने के लिए अहम और जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्व है।

जब फाइटोप्लांकटन के फूल नष्ट हो जाते हैं, तो इनसे जिंक निकलता है। लेकिन आज तक, वैज्ञानिक हैरान हैं क्योंकि जिंक और फास्फोरस के बीच एक विसंगति देखी गई थी, जो महासागरों में जीवन के लिए आवश्यक एक और पोषक तत्व है, भले ही दोनों पोषक तत्व फाइटोप्लांकटन में समान इलाकों में पाया जाता हो। इसके बजाय अक्सर जिंक और घुले हुए सिलिका के बीच एक मजबूत जुड़ाव देखा जाता है।

स्टेलनबोश विश्वविद्यालय के शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि वे अब पहली बार महासागरों के जिंक चक्र को चलाने वाली जैव-भू-रासायनिक प्रक्रियाओं को समझा सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने शोध में बताया कि उन्होंने गर्मियों और सर्दियों दोनों में अंटार्कटिका के रास्ते में विशाल दक्षिणी महासागर को पार करते हुए, सतह और गहरे समुद्री जल के नमूने तलछट के साथ एकत्र किए।

साइंस पत्रिका में प्रकाशित शोध के मुताबिक, दक्षिणी महासागर का अध्ययन करना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वैश्विक महासागर प्रसार के लिए एक मुख्य केंद्र के रूप में काम करता है। दक्षिणी महासागर में होने वाली प्रक्रियाएं अटलांटिक, हिंद और प्रशांत महासागरों तक पहुंच जाती हैं।

शोधकर्ताओं ने नमूनों का एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपिक तकनीक का उपयोग करके कण-दर-कण विस्तृत विश्लेषण किया, जिससे उन्हें नमूनों का परमाणु और आणविक स्तर पर अध्ययन करने में मदद मिली।

महासागरों में वैश्विक जिंक चक्र के बदलाव के लिए जिम्मेवारों को सामने लाना

शोध के मुताबिक, गर्मियों में भारी उत्पादकता महासागर के सतह पर कार्बनिक हिस्से के रूप में जिंक की अधिक प्रचुरता की ओर ले जाती है, जो फाइटोप्लांकटन द्वारा आसानी से ग्रहण किए जाने के लिए उपलब्ध हो सकता है। लेकिन शोधकर्ताओं ने इन नमूनों में मौजूद चट्टानों और पृथ्वी से निकले मलबे और वायुमंडलीय धूल से जुड़े जिंक की भारी मात्रा भी पाई।

खुले महासागर में, कणों से जिंक से जुड़े या इसके परस्पर क्रिया, समुद्री जीवन को सहारा देने के लिए विघटित हुए जिंक की फिर से पूर्ति के लिए अहम है।

शोधकर्ता ने शोध में कहा सर्दियों में कमजोर विकास के कारण, जिंक के कणों को सिलिका जैसे अकार्बनिक ठोस पदार्थों द्वारा ग्रहण किया जाता है, जो डायटम के रूप में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है, साथ ही लौह और एल्यूमीनियम ऑक्साइड भी इसमें शामिल है। डायटम सूक्ष्म शैवाल हैं जो सिलिका से बने कंकाल वाले एककोशिकीय जीव हैं, जिनकी मदद से महासागरों में जिंक और सिलिका के बीच मजबूत संबंध के बारे में पता चला है।

जब जिंक किसी कार्बनिक परमाणु से बंधा होता है तो यह समुद्री जीवन जैसे कि फाइटोप्लांकटन द्वारा आसानी से अवशोषित हो जाता है। हालांकि खनिज अवस्था में जिंक को घुलाना आसान नहीं होता है और इसलिए यह अवशोषण के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं होता है। इस रूप में, कण जिंक बड़े समूह बना सकता है और गहरे समुद्र में डूब सकता है, जहां यह फाइटोप्लांकटन द्वारा अवशोषण के लिए उपलब्ध नहीं होता है।

जलवायु परिवर्तन पर असर

शोधकर्ता शोध के हवाले से चेतावनी देते हैं कि दुनिया भर में जिंक चक्र की इस समझ का महासागरों के गर्म होने को लेकर अहम भूमिका है। गर्म जलवायु जिंक के क्षरण को बढ़ाती है, जिससे वायुमंडल में अधिक धूल बनती है जिसके कारण महासागरों में अधिक धूल जमा होती है। अधिक धूल का मतलब है जिंक के कणों का अधिक संचय, जिससे फाइटोप्लांकटन और अन्य समुद्री जीवन को बनाए रखने के लिए जिंक कम उपलब्ध होता है।

शोधकर्ता महासागरीय जिंक चक्र का अध्ययन करने के उनके नए नजरिए ने अब अन्य अहम सूक्ष्म पोषक तत्वों की जांच के लिए द्वार खोल दिए हैं। जिंक की तरह, भविष्य में तांबा, कैडमियम और कोबाल्ट के वितरण में भी जलवायु में बदलाव हो सकता है।

शोध में कहा गया है कि शोध के निष्कर्ष जलवायु और समुद्री खाद्य जाल को नियमित करने में दक्षिणी महासागर के वैश्विक प्रभाव की पुष्टि करते हैं।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, हमारे निष्कर्ष इस जुड़ाव का एक प्रमुख उदाहरण हैं, जहां आणविक स्तर पर होने वाली जैव रासायनिक प्रक्रियाएं हमारे ग्रह के गर्म होने जैसी वैश्विक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकती हैं।

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