यह सर्वविदित है कि जलवायु परिवर्तन और भूवैज्ञानिक घटनाएं विकास को आकार दे सकती हैं। पर्यावरण में एक बड़ा बदलाव जैसे, 6.6 करोड़ साल पहले एक उल्कापिंड पृथ्वी से टकराता है जिससे धरती पर कई तरह के बदलाव हुए थे। इसके कारण तूफान आए, भूकंप की घटनाएं हुई, ठंड और अंधेरा आदि हुआ जो जानवरों के जीने, मरने और विकसित होने के तरीके को निर्धारित कर सकते थे।
लेकिन जब यह आमतौर पर इस तरह की अवधारणा को स्वीकार किया जाता है, तो वहीं वैज्ञानिक यह पता लगाने के लिए सटीक आंकड़ों पर भरोसा करते हैं कि कैसे इस प्रकार के बदलाव किसी एक प्रजाति के विकास को प्रभावित करते हैं।
नए अध्ययन में 3,000 से अधिक प्रजातियों के आंकड़ों को संकलित किया गया है। इनके माध्यम से यह पता लगता है कि कैसे पिछले 6.6 करोड़ वर्षों में पूरे एशिया में जलवायु और भूगर्भीय परिवर्तन ने महाद्वीप के स्तनधारियों के विकास को आकार दिया है।
अध्ययनकर्ता एंडरसन फीजो कहते हैं कि एशिया दुनिया का सबसे बड़ा महाद्वीप है और यहां लगभग हर तरह के जीव रहते हैं। एशिया में उत्तर में रेगिस्तान, दक्षिण में ऊष्णकटिबंधीय वन, पूर्व में समशीतोष्ण वन हैं। उन्होंने कहा हमें यह समझना था कि ये सभी क्षेत्र कैसे जुड़े हुए थे और हम विभिन्न क्षेत्रों में स्तनधारियों की विभिन्न प्रजातियों के साथ कैसे जुड़े हुए थे।
सह-अध्ययनकर्ता ब्रूस पैटरसन कहते हैं कि ऐतिहासिक घटनाओं को समझने के लिए, वैज्ञानिक उनके समय और स्थान के साथ जुड़ाव का पता लगाते हैं, प्रजातियां कब और कहां दिखाई दीं और तब और क्या हो रहा था? यह अध्ययन पूरे एशियाई स्तनपायी जीवों की बात करता है।
पैटरसन कहते हैं कि एशिया में दुनिया के सबसे अधिक स्तनपायी प्रजातियां या सबसे अलग प्रकार के आवास नहीं हैं, लेकिन जो इसे खास बनाता है, वह है इसके संबंध। यह उत्तरी अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप और आस्ट्रेलिया को आपस में जोड़ता है।
शोधकर्ता यह देखना चाहते थे कि विभिन्न स्तनधारी एशिया में कैसे आए और समय के साथ वहां से चले गए, साथ ही साथ नई प्रजातियां कैसे विकसित हुईं। यह निर्धारित किया कि क्या वे एशिया की स्तनपायी विविधता में इन बदलावों को क्षेत्र के भूविज्ञान में परिवर्तन के साथ जोड़ सकते हैं जैसे कि विवर्तनिक प्लेटों का निर्माण पहाड़ और जलवायु आदि।
फीजो ने कहा इस परियोजना का एक बड़ा कदम स्तनपायी प्रजातियों के वितरण की बहुत अच्छी समझ बनाना था। इसमें काफी समय लगा क्योंकि हमें साहित्य, सार्वजनिक डेटाबेस और संग्रहालय संग्रहों को पढ़ने की जरूरत थी।
द फील्ड और नेशनल जूलॉजिकल म्यूजियम ऑफ चाइना हाउस संग्रह जैसे संग्रहालयों में जानवरों के संरक्षित नमूने और जीवाश्म शामिल हैं, जो यह जानकारी देते हैं कि जानवर कहां और कब पाया गया था। उन्होंने उनके फॅमिली ट्री या परिवार ट्री का भी इस्तेमाल किया, जिसमें दिखाया गया कि कैसे विभिन्न प्रजातियां स्तनधारियों के विकास की बड़ी तस्वीर से संबंधित हैं।
कुल मिलाकर, शोधकर्ताओं ने पिछले 6.6 करोड़ सालों में पृथ्वी की जलवायु में बदलाव और एशिया के विभिन्न क्षेत्रों में पाए जाने वाले स्तनधारियों के बीच स्पष्ट संबंध पाया। जैसे-जैसे जलवायु धीरे-धीरे गर्म और ठंडी होती गई, कुछ प्रजातियां विलुप्त हो गईं या नए आवासों में चली गईं, जबकि अन्य संपन्न हुईं।
इसी तरह, टेक्टोनिक प्लेट की गतिविधि, जैसे कि जब भारतीय उपमहाद्वीप शेष एशिया की ओर बढ़ा और अंततः उसमें दुर्घटनाग्रस्त हो गया, हिमालय का निर्माण हुआ, जिसने स्तनधारियों की गतिविधि, विलुप्त होने और विकास में एक बड़ी भूमिका निभाई।
शोधकर्ता हर एक प्रजाति के विकास पर जलवायु और भूविज्ञान के प्रभावों का पता लगाने में भी सफल हुए। फीजो ने एक छोटे से जानवर पिकास का उदाहरण देते हुए समझाया कि पिकास अपने करीबी रिश्तेदारों, खरगोशों की तरह दिखते हैं, लेकिन उनके छोटे और कान गोल होते हैं, वे कम ऑक्सीजन के स्तर के साथ उच्च ऊंचाई पर रहने के लिए अनुकूलित होते हैं।
फीजो कहते हैं, पिकास की उत्पत्ति लगभग 1.5 करोड़ वर्ष पहले तिब्बती पठार पर हुई थी और हम मानते हैं कि इस पठार का गठन इस समूह के विकास का एक अहम हिस्सा था। फिर वहां से, उन्होंने उत्तरी एशिया के तराई क्षेत्रों को उपनिवेश बनाया और फिर उत्तरी अमेरिका पर आक्रमण किया, जहां वे आज भी पाए जाते हैं।
फीजो कहते हैं कि कुल मिलाकर इस शोधने बहुत स्पष्ट कर दिया कि सब कुछ एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। आज हम जलवायु में बहुत से बदलाव देख रहे हैं, और शोध से पता चलता है कि प्रत्येक भूगर्भीय जलवायु परिवर्तन की घटना ने विविधीकरण या विलुप्त होने या प्रवासन को जन्म दिया है और हम भविष्य में भी ऐसा ही होने की उम्मीद कर सकते हैं। यह अध्ययन प्रोसीडिंग्स ऑफ़ थे नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।