दोहरे विस्थापन को मजबूर हैं अमेरिकी आदिवासी

जबरन स्थानांतरण ने अमेरिका के आदिवासियों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की चपेट में ला दिया है
Photo: Maxpixel
Photo: Maxpixel
Published on

येल यूनिवर्सिटी, कोलोरेडो स्टेट यूनिवर्सिटी और मिशिगन नेटिव यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने पाया कि अमेरिकी सरकार ने जिन लोगों को उनकी जमीन से बेदखल कर जबरन दूसरी जगहों पर बसाया था, उन पर जलवायु परिवर्तन का खतरा ज्यादा है। रिपोर्ट बताती है कि अलास्का और हवाई के अलावा सन्निहित अमेरिका के मूलनिवासी आज जिन जोखिमों को झेल रहे हैं, उनकी जड़ें जमीन से बेदखली और जबरदस्ती पलायन में हैं। वे जलवायु परिवर्तन के खतरे और जमीन के गिर चुके आर्थिक मूल्य को झेल रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, बहुत सारे आदिवासियों को अमेरिकी सरकार ने उभरते ऊर्जा औद्योगिक क्षेत्र से बाहर रखा है। बहुत सारी ऐसी जमीनें जो कभी मूलनिवासियों की हुआ करती थीं, वे अभी अमेरिका की संघीय सरकार के प्रशासन के अधीन हैं। ये परम्परागत आदिवासियों को प्रबंधन और खुली आवाजाही से रोकता है।

शोधकर्ताओं ने ऐतिहासिक स्रोतों से व्यापक आंकड़े एकत्र कर उनका डेटासेट तैयार किया और अमेरिका के मूल निवासी के लिए दो अवधियों, इतिहास और वर्तमान समय में इन आंकड़ों का वर्गीकरण किया। इसके बाद उन्होंने दो सवालों के जवाब तलाशे। पहला, सवाल यह कि हर आदिवासी समूह से कितनी जमीन ली गई और सभी समूहों को मिलाकर कितनी जमीनें ली गईं और दूसरा सवाल यह कि इन आदिवासियों को मिली नई जमीन जो काफी छोटी है और उनके पुरखों की जमीन से काफी दूर है, वहां कुछ समय में पर्यावरण की स्थिति और आर्थिक अवसरों में सुधार हुआ या उनमें गिरावट आई?

शोधकर्ताओं ने दूसरा सवाल चार परिकल्पित आयामों के आधार पर तैयार किया- जलवायु परिवर्तन के जोखिम और खतरे का उन पर असर, खनिज की संभावना, खेती के लिए उपयुक्तता और अमेरिकी संघीय सरकार द्वारा प्रबंधित जमीनों से इन जमीनों की नजदीकी। शोधकर्ताओं अपने शोध में पाया कि ऐतिहासिक अवधि के 42.1 प्रतिशत आदिवासियों के पास राज्य और संघीय सरकार द्वारा स्वीकृत जमीन नहीं है। वहीं, जिन आदिवासियों के पास जमीन है भी, उनके पास उनके पुरखे की जमीन का औसतन 2.6 प्रतिशत हिस्सा ही है। अभी जो भी जमीन उनके पास है उनमें से अधिकतर जमीन का टुकड़ा उनकी पहले की जमीन से दूर है। शोधकर्ताओं ने ये भी पाया कि जबरन पलायन की दूरी औसतन 239 किलोमीटर है। न्यूनतम दूरी 131 किलोमीटर अधिकतम दूरी 2,774 किलोमीटर तक है।

आदिवासियों के पास जो मौजूदा जमीन है वो औसतन जलवायु परिवर्तन के जोखिमों और खतरों को लेकर ज्यादा प्रभाव-प्रवण है। इनमें भीषण गर्मी और कम बारिश भी शामिल हैं। आदिवासियों की लगभग आधी आबादी ने दावानल के खतरे को झेला। आदिवासियों के पास अभी जो जमीन है, वहां कम आर्थिक मूल्य वाले खनिज हैं। इस जमीन के भूगर्भ में तेल या गैस होगा, इसकी संभावना कम ही है। शोधकर्ताओं ने कहा, “राष्ट्र और राज्य पर अब भी जलवायु संबंधित जिम्मेवारियां बाकी हैं कि वे जबरन पलायन और बेदखली को स्वीकार कर मध्यस्थता करे। क्षतिपूर्ति या पुनरोद्धार न्याय पर किसी नीतिगत बहस के बीच एक बड़ा मुद्दा यह है कि ऐतिहासिक गलतियों का किस तरह सटीक मूल्यांकन किया जाए।”

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in