जलवायु परिवर्तन बिगाड़ रहा अलास्का का ईकोसिस्टम

वर्ष 2000 से 2018 के बीच सेटेलाइट इमेज ने अलास्का में हो रहे तेजी से वानस्पतिक बदलावों को दर्ज किया है
जलवायु परिवर्तन बिगाड़ रहा अलास्का का ईकोसिस्टम
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पिछले दो दशकों में, अलास्का में वनस्पति ने कुछ नाटकीय परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं। यह प्रवृत्ति काफी जटिल है। एक तरफ दक्षिण-पश्चिम तटीय क्षेत्र में वनस्पतियों का कमजोर होना जारी है, वहीं राज्य के कई हिस्सों में पौधों और वनस्पतियां संपन्न हो रही है। 

नासा एम्स रिसर्च सेंटर के इकोलॉजिस्ट क्रिस्टोफर पॉटर बताते हैं कि अलास्का के कई क्षेत्रों में साल-दर-साल वनस्पतियों की वृद्धि वाले मौसम में बदलाव आ रहे हैं। यह दुनियाभर में सबसे तेज हलचल है, जो संभावित तौर पर जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है।  

पॉटर और उनके सहयोगी ने मई, 2020 में द जर्नल रिमोट सेंसिंग में प्रकाशित एक शोधपत्र में इस बदलाव को विस्तार से दर्ज किया है। वर्ष 2000 से 2018 के बीच गर्मी के दिनों वनस्पतियों के बढ़ने वाले सीजन के दौरान सेटेलाइट मानचित्र-1 में इस बदलाव को आसानी से देखा जा सकता है कि किस इलाके में हरियाली बढ़ी (ग्रीन) है और कहां पर घटी (ब्राउन) है। हरियाली को मापने वाले टेरा सेटेलाइट के मोडिस उपकरण से जो आंकड़े हासिल होते हैं, उसे नॉर्मलाइज्ड डिफरेंस वेजिटेशन इंडेक्स (एनडीवीआई) के जरिए वह मानचित्र पर अंकित होता है। 

सेटेलाइट इमेज-1 के वृहत दृश्य में यह गौर किया गया कि इलाके ज्यादा हरियाली वाले दिखाई दे रहे हैं या हरियाली से आच्छादित है। वहीं उत्तरी आर्कटिक क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट (मिट्टी की ऐसी अवस्था जिसमें कम से कम दो बरस वह शून्य तापमान से भी नीचे रही हो) और वनस्पतियों में अधिक पानी और पोषण दिखाई दे रहा है जिससे उनकी वृद्धि होने की संभावना है। वहीं राज्य के आंतरिक हिस्सों में कुछ अधिक हरे धब्बे दिखाई देते हैं जो वनस्पतियों के दोबारा वृद्धि को दिखा रहे हैं, यह ऐसे हिस्से हैं जो वाइल्डफायर के दौरान जल कर एक बड़े पैच में परिवर्तित हुए। 

इसके उलट, अलास्का के दक्षिण-पश्चिम तटीय हिस्से में राज्य के दूसरे हिस्सों के मुकाबले हरियाली घटती हुई दिखाई देती है। भूरे रंग की जगह, जहां हरियाली घटी या खत्म हुई हो, अलास्का खाड़ी के हिस्से कुक इनलेट के निचले सतह वाली भूमि और ब्रिस्टल खाड़ी के वाटरशेड्स वाले हिस्से हैं। 

टुंड्रा और वेटलैंड क्षेत्र में हुए वानस्पतिक बदलावों को भी सेटेलाइट मानचित्र-2 में दर्ज किया गया है। तेजी से मिट्टी कटान, बहुत ज्यादा जमाव होने के चक्र में तेजी, कीटों के प्रसार, झाड़ियों की वृद्धि, गीले घास के मैदानों में शंकुदार पेड़ इसकी वजह हो सकते हैं। 

इस तरह के सेटेलाइट मानचित्र वैज्ञानिक और भूप्रबंध करने वाले वैज्ञानिकों के लिए भविष्य में रास्ता दिखाने वाले साबित हो सकते हैं। इससे अलग-अलग स्थानों में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले वानस्पतिक बदलावों की गुत्थी भी समझने में मदद मिल सकती है। 

इकोलॉजिस्ट पॉटर कहते हैं कि इस तरह तेजी से हो रहा बदलाव शायद ही पारिस्थितिकी के लिए बेहतर साबित हो। इस बदलाव के कारण मछलियों, वन्यजीव और मानवों के अन्य संसाधनों को झटका लग सकता है। 

(एनवायरमेंट न्यूज नेटवर्क से अनुदित)

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