आखिरकार अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडन निर्वाचित हुए। इसके बाद उनके समर्थक तो खुशियां मना ही रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने भी राहत की सांस ली है, क्योंकि इन वैज्ञानिकों का आरोप है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विज्ञान और वैज्ञानिक संस्थानों को कमजोर किया। हालांकि यह बिरादरी इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित है कि लगभग आधे अमेरिकी मतदाताओं ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रप के पक्ष में मतदान किया है।
यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन लॉ स्कूल की बायोएथिसिस्ट अल्टा चारो कहती हैं कि हमारा एक लंबे समय से जारी राष्ट्रीय दुःस्वप्न खत्म हुआ। 20 जनवरी, 2021 को जब बाइडन पदभार ग्रहण करेंगे तब से ही ट्रंप प्रशासन द्वारा शुरू की गई कई नीतियों के पलटने की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। वैज्ञानिक बिरादरी यह मानती है कि ट्रंप की विज्ञान और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बनाई गई नीतियां हानिकारक थीं। इसमें जलवायु परिवर्तन, कोविड-19 महामारी आदि मुद्दे प्रमुख रूप से शामिल हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के नेतृत्व में उप-राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने वाले डेमोक्रेट बाइडन ने ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए पेरिस जलवायु समझौते के साथ फिर से जुड़ने का वायदा किया है। यही नहीं, वीजा प्रतिबंधों के चलते बड़ी संख्या में विदेशी शोधकर्ताओं के लिए अमेरिका आना मुश्किल हो गया।
शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि पिछले चार सालों में ट्रंप के शासनकाल में विज्ञान को जो नुकसान हुआ है उसे ठीक किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बाइडन ने हमारी बात सुनने का वायदा किया है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि बाइडन प्रशासन कोरोनोवायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई में अन्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को साथ लेकर लड़ेगा। विज्ञान कूटनीति और नीति सलाहकार विशेषज्ञ मार्गा गुएल सोलर कहते हैं कि बाइडन और कमला हैरिस यह समझती हैं कि कोई भी देश अकेले हमारी मौजूदा चुनौतियों का सामना नहीं कर सकता और हमें उम्मीद है कि वह विज्ञान आधारित बहुपक्षीय संस्थानों को फिर से मदद दी जाएगी।
बाइडन के लिए इस समय सर्वोच्च प्राथमिकता है कि जलवायु को प्रभावित करने वाली कई नीतियों को पलट कर सही दिशा में लाना। राष्ट्रपति बाइडन के लिए विज्ञान संबंधी पाचं प्रमुख कदम होंगे जिसे वे शीघ्र से शीघ्र करना चाहेंगे, ऐसा वैज्ञानिक समुदाय को आशा है। इसमें पहले नंबर पर है पेरिस जलवायु समझौता में लौटना, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना, बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करना और ग्रीन हाउस उत्सर्जन को रोकने के लिए 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की योजना।
अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) में काम करने वाले वैज्ञानिकों के लिए बाइडन का चुना जाना विशेष महत्व रखता है। क्योंकि ट्रप के शासन काल में पर्यावरणीय नियमों का पलट दिया गया था, प्रदूषण को रोकने के लिए भी कई प्रकार के किए जाने वाले प्रयासों पर लगाम कस दी गई थी। देखा जाए तो ट्रंप प्रशासन ने इस संस्था की अंर्तरात्मा को ही खत्म करने का हर चंद कोशिश की थी। विज्ञानी डैन कोस्टा कहते हैं कि ईपीए के कई दिग्गज वैज्ञानिकों को ट्रंप प्रशासन इस संस्था से हटाने के लिए चयन किया गया था। वह कहते हैं कि निश्चतरूप से मुझे यकीन है कि ईपीए में काम करने वाले लोग अब राहत की सांस ले रहे होंगे।
अमेरिकी वैज्ञानिकों के संघ के अध्यक्ष अली नूरी कहते हैं कि मैं अभी भी घबराया हुआ हूं। क्योंकि ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए किस हद तक जा सकते हैं, हम सभी ने देखा। मुझे ऐसा महसूस होता है कि दुर्भाग्य से ट्रंप ने हमारे देश के लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कम करके आंका है, जिनका हम हमेशा इस देश में पालन करते आए हैं।
वैज्ञानिक समूहों का कहना था कि यह भय बढ़ता गया क्योंकि व्हाइट हाउस में अपने कार्यकाल के दौरान ट्रंप प्रशासन ने सरकारी शोधकर्ताओं को रोकने और दरकिनार करने के अलावा वे नियमित रूप से राजनीतिक विरोधियों के साथ-साथ मीडिया, अदालतों, चुनाव प्रणाली और अन्य डेमोक्रेटिक संस्थानों पर हमला किया। यही कारण है कि लगभग 4,000 वैज्ञानिकों ने एक बयान पर हस्ताक्षर कर अमेरिकी लोकतंत्र की स्थिति के बारे में व्यापक चिंता व्यक्त की। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ट्रंप ने विज्ञान को बहुत नुकसान पहुंचाया और इसे ठीक होने में दशकों लग सकते हैं।
भौतिक विज्ञानी और प्रिंसटन विश्वविद्यालय में विज्ञान और वैश्विक सुरक्षा में कार्यक्रम के सह-निदेशक जिया मियां कहते हैं कि ट्रप की राजनीतिक हार काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन यह अमेरिका में लोकतांत्रिक नागरिकता पर हुए बड़े हमले का प्रतिशोध नहीं है। वह कहते हैं कि ट्रप ने सच्चाई और समानता के मुख्य मूल्यों को कम कर दिया है और ऐसे लोगों के बिना लोकतांत्रिक बहस संभव नहीं है।