नई दुनिया का नया चेहरा
2024 में हमें एक अलग तरह के वैश्वीकरण के लिए व्यापार नियमों पर फिर से काम करना होगा। यह वैश्विक पश्चिम की अर्थव्यवस्थाओं और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। कई वर्ष पहले, जब दुनिया जलवायु संकट की संभावना पर चर्चा कर रही थी, उसी समय एक नए व्यापार समझौते पर भी बातचीत शुरू हो रही थी।
1990 की शुरुआत में जब रियो शिखर सम्मेलन में यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज पर सहमति हुई तो विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की भी स्थापना की गई और देशों के बीच मुक्त व्यापार की सुविधा के लिए वैश्विक नियमों पर हस्ताक्षर किए गए। यह सौदा बिल्कुल साफ था। जब कम श्रम लागत और पर्यावरण मानकों वाले देशों में माल का उत्पादन किया जाएगा तो विनिर्माण की लागत कम हो जाएगी।
निर्यात अर्थव्यवस्थाएं विकासशील दुनिया में समृद्धि तो लाएंगी ही, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण फायदा समृद्ध दुनिया के उपभोक्ताओं को सस्ती वस्तुओं और सर्विस सेक्टर में वृद्धि से लाभ होगा। 2001 में विश्व व्यापार संगठन में चीन के आगमन के साथ ही एक बड़ा बदलाव आया। बिना कोई ट्रेड यूनियन वाले विशाल कार्यबल के अलावा मामूली पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय और एक सत्तावादी सरकार जैसे पहलू चीन के पक्ष में थे।
डब्ल्यूटीओ में शामिल होने के बाद कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के वैश्विक उत्सर्जन में चीन की हिस्सेदारी 1990 में 5 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 21 प्रतिशत हो गई। व्यापार में तेजी आई, लेकिन वैश्विक समृद्धि का युग नहीं आया और बढ़े हुए व्यापार का मतलब है कि सीओ2 उत्सर्जन में वृद्धि हुई।
पिछले 20 वर्षों में वैश्वीकरण का यह विचार धूमिल पड़ा है। इस भव्य योजना के प्रस्तावक देश बिना बाधित वैश्विक व्यापार के विचार से मुंह मोड़ रहे हैं, जिसे राष्ट्रीय सरकारों द्वारा सब्सिडी और समर्थन की बेड़ियों के बिना डिजाइन किया गया था। सवाल यह है कि जलवायु-संकटग्रस्त और युद्धग्रस्त दुनिया में वैश्वीकरण के ये नए नियम कैसे आकार लेंगे?
आज सबसे ज्यादा चर्चित मुद्दा चीन के खिलाफ अमेरिका का रुख है। इसे निरंकुश और अलोकतांत्रिक शासन (जो सच है) के खिलाफ लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन असली कारण भविष्य के लिए आवश्यक संसाधनों और प्रौद्योगिकियों पर नियंत्रण हासिल करना है, जिसमें हरित अर्थव्यवस्था भी शामिल है और जिसकी दुनिया को सख्त जरूरत है।
चीन आज बैटरियों की आपूर्ति श्रृंखला में सबसे आगे है। चीन दुनिया के आधे से अधिक लिथियम, कोबाल्ट और ग्रेफाइट का प्रसंस्करण तो करता ही है, साथ ही यह सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक स्थापित नेता है। इस “दुश्मन” से लड़ने के लिए अमेरिका ने सब्सिडी के बारे में अपनी सभी वैचारिक शंकाओं को छोड़ने का फैसला किया है।
मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम (आईआरए) अमेरिका में कम कार्बन वाले उत्पादों के निर्माण के लिए कंपनियों को वित्त प्रदान कर रहा है। मुद्दा यह है कि क्या पश्चिमी दुनिया को चीन के इस स्वामित्व को तोड़ने के मिशन से हरित परिवर्तन की लागत अधिक होगी और इसमें देरी भी होगी? या फिर अमेरिका इस असंभव को संभव करने में सफल होगा।
दुर्लभ खनिजों तक पहुंच सुनिश्चित करके और श्रम और पर्यावरण मानकों की उच्च लागत के बावजूद अपने विनिर्माण उद्योग का पुनर्निर्माण करके। इससे डीग्लोबलाइजेशन या स्थानीयकरण हो सकता है क्योंकि अधिकांश देश प्राकृतिक संसाधनों, प्रौद्योगिकी और इसके साथ जुड़े ज्ञान के धारक के रूप में अपने लाभ को अधिकतम करने का निर्णय ले सकते हैं।
यह भी संभावना है कि प्रौद्योगिकी में ऐसी नई सफलताएं मिलेंगी जो चीन-प्रभुत्व वाली आपूर्ति श्रृंखला को निरर्थक बना देंगी। उदाहरण क लिए सोडियम-आयन बैटरियों के बारे में चर्चा है जो लिथियम बैटरियों की आवश्यकता को कम कर सकती हैं।
डी-ग्लोबलाइजेशन का एक पहलू यह भी हो सकता है कि हरित संक्रमण की गति बाधित हो जाए। उदाहरण के लिए अमेरिका आईआरए के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों के स्थानीय विनिर्माण को सहायता प्रदान कर रहा है। बाइडेन सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, जिन इलेक्ट्रिक वाहनों में चीनी निर्मित बैटरी घटक शामिल हैं, वे पूर्ण सब्सिडी के लिए पात्र नहीं होंगे।
यह कहने की जरूरत नहीं है कि वैसे वाहन आईआरए के लिए अर्हता प्राप्त नहीं करेंगे जिनका चीनी सरकार के साथ “महत्वपूर्ण” संबंध हो या चीन में स्थित या चीन द्वारा नियंत्रित ऑपरेटर के साथ लाइसेंसिंग समझौते के साथ उत्पादित किया गया है।
कच्चे खनिज और बैटरी विनिर्माण क्षेत्र में चीन के लगभग पूर्ण नियंत्रण को देखते हुए इस विघटन से इलेक्ट्रिक वाहन परिवर्तन में देर होने या मूल्यों में वृद्धि की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। चीनी इलेक्ट्रिक कार निर्माता बीवाईडी पहले ही एलन मस्क की टेस्ला से आगे निकल चुकी है।
फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, 2023 की चौथी तिमाही में टेस्ला के 4,84,000 की तुलना में बीवाईडी ने रिकॉर्ड 5,26,000 बैटरी ओनली इलेक्ट्रिक वाहन बेचे। इसलिए आज की चीन-प्रभुत्व वाली दुनिया में स्थानीयकरण और त्वरित हरित परिवर्तन के दोहरे उद्देश्यों का प्रबंधन एक चुनौती हो सकती है।
भारत में भी ऐसा ही है। हमने सौर उद्योग के लिए स्थानीय क्षमता में निवेश करने का निर्णय लिया है और यह सही भी है। भारत सरकार ने सौर सेल और मॉड्यूल निर्माण के लिए वित्तीय प्रोत्साहन की घोषणा की है और चीनी उत्पादों पर उच्च आयात शुल्क लगाया है।
अभी यह कहना मुश्किल है कि क्या इससे भारत के महत्वाकांक्षी नवीकरणीय कार्यक्रम में बाधा आएगी, क्योंकि घरेलू उत्पादन गति बनाए रखने या लागत-प्रतिस्पर्धी होने में विफल हो सकता है। दूसरी ओर हमारे उद्योग क्षेत्र के निर्माण का एक स्पष्ट लाभ है।
मुक्त व्यापार जगत के धीरे-धीरे बंद होने का असर भारतीय उद्योग के निर्यात पर भी पड़ेगा। कुल मिलाकर शहर में एक नया खेल चल रहा है और हमें यह देखना होगा कि इस बार व्यापार के नियम हमारे और हमारी धरती के पक्ष में काम करेंगे या खिलाफ।