जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ा 700 साल पुराना ग्लेशियर

एक अनुमान के अनुसार आने वाले 200 वर्ष में विश्व के सभी ग्लेशियरों का यही हाल होने वाला है।
Photo: Creative commons
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रविवार को आइसलैंड के प्रधानमंत्री की मौजूदगी में ओकजोकुल से ग्लेशियर का दर्जा वापस ले लिया गया। ‘ओकोजोकुल’ अपना ग्लेशियर का दर्जा खोने वाला आइसलैंड का पहला ग्लेशियर है। एक अनुमान के अनुसार आने वाले 200 वर्ष में विश्व के सभी ग्लेशियरों का यही हाल होने वाला है।

आइसलैंड की प्रधानमंत्री कैटरीन जैकोब्स्दोतिर, पर्यावरण मंत्री गुडमुंडुर इनगी गुडब्रॉन्डसन और संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त मेरी रॉबिन्सन भी इस समारोह में शामिल हुए। समारोह में कांस्य पट्टिका का अनावरण किया गया, जिसमें इसकी वर्तमान स्थिति बयां करने के साथ ही बाकी ग्लेशियर के भविष्य को लेकर आगाह किया गया।

राइस विश्वविद्यालय में एंथ्रोपोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर सायमीनी हावे ने जुलाई में ही इसकी स्थिति को लेकर आगाह किया था। उन्होंने कहा था, ‘‘ विश्व में जलवायु परिवर्तन के कारण अपनी पहचान खोने वाला यह पहला ग्लेशियर होगा।’ पर्यावरणविद सायमीनी हावे 50 साल से ग्लेशियरों पर अध्ययन कर रहे हैं तथा उनकी फोटो ले रहे हैं।

700 साल पुराना यह ग्लेशियर आइसलैंड देश के सबसे प्राचीन ग्लेशियरों में से एक था, यह ग्लेशियर आइसलैंड की पहचान था। 2014 में इस ग्लेशियर को समाप्त घोषित कर दिया गया क्योंकि यह पूरी तरह पिघल चुका था।

बढ़ती ग्रीनहाउस गैस के कारण वायुमंडल गरमा रहा है। यही कारण है कि ग्लेशियर अपना अस्तित्व खो रहे हैं, पिछले मई में वायुमंडल में मापे गए कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 415 पीपीएम था जो कि अपने रिकॉर्ड स्तर पर है।

हावे और राइस विश्वविद्यालय के सहयोगी डोमिनिक बोयर के अनुसार, आइसलैंड में प्रति वर्ष लगभग 11 बिलियन टन बर्फ पिघल रही है, और वैज्ञानिकों को डर है कि इस देश के 400 से अधिक ग्लेशियर 2200 तक समाप्त हो जाएंगे।

2017 के आइसलैंड विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1890 में ग्लेशियर की बर्फ 16 वर्ग किलोमीटर थी, लेकिन 2012 तक, यह सिर्फ 0.7 वर्ग किलोमीटर रह गई थी।

कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर मिनिक रोसिंग ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आर्कटिक में जलवायु तेजी से बदल रही है।

भारत के गढ़वाल क्षेत्र के हिमालय में ग्लेशियर तेजी से पीछे हट रहे हैं, शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि अधिकांश मध्य और पूर्वी हिमालयी ग्लेशियर 2035 तक गायब हो सकते हैं। ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के अहम संकेतक हैं, साथ ही ग्लेशियर पिघलने से समुद्र के जल का स्तर बढ़ता है जिससे पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर का अनुमान है कि अगर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन इसी रफ्तार से होता रहा तो 2100 तक विश्व के आधे से अधिक ग्लेशियर पिघल जाएंगे।

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