सह-अध्ययनकर्ता नीदरलैंड के वैगननिंगन विश्वविद्यालय के इकोलॉजिस्ट मार्टन शेफ़र के अनुसार जलवायु परिवर्तन से वैश्विक औसत वार्षिक तापमान में 1.8 डिग्री की वृद्धि होगी। इससे लगभग एक अरब लोग गर्मी में बिना एसी के रहने के लिए मजबूर होंगे। यह अध्ययन जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज प्रेडिक्ट्स में प्रकाशित हुआ है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कितने लोग खतरे में होंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कितना होगा और दुनिया की आबादी कितनी तेजी से बढ़ती है। जनसंख्या वृद्धि और कार्बन प्रदूषण के मामले में सबसे खराब स्थिति के तहत लगभग 3.5 अरब लोग बेहद गर्म क्षेत्रों में रहेंगे। यह 2070 की अनुमानित आबादी का एक तिहाई है।
कॉर्नेल विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक नताली महोल्ड ने कहा कि यह कम समय में लोगों की बहुत बड़ी संख्या है। यही कारण है कि हम चिंतित हैं। उन्होंने और अन्य वैज्ञानिकों ने कहा कि पिछले शोधों की अपेक्षा इस नए अध्ययन में मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन की आत्यधिकता की तुलना अलग तरीके से की गई है।
जलवायु परिवर्तन को अलग तरीके से देखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने भालू, पक्षी और मधुमक्खियों पर अध्ययन किया, जिसे "जलवायु आला" कहते है। उन्होंने 6,000 साल पहले के तापमान का अनुमान लगाया जो 52 से 59 डिग्री के बीच औसत वार्षिक तापमान होने की बात कही गई।
वैज्ञानिकों ने अनुकूल तापमान वाले स्थानों की तुलना में असुविधाजनक और काफी गर्म स्थानों को देखा और गणना की कि 2070 तक कम से कम 2 अरब लोग उन स्थितियों में रहेंगे।
वर्तमान में लगभग 2 करोड़ लोग 29 डिग्री सेल्सियस से अधिक वार्षिक औसत तापमान वाले स्थानों पर रहते हैं, ऐसे स्थान जो अनुकूल तापमान वाले स्थानों से परे हैं। वह क्षेत्र पृथ्वी के 1 फीसदी से कम है, और यह ज्यादातर सहारा रेगिस्तान के पास है, इसमें मक्का, सऊदी अरब शामिल हैं।
अध्ययन से निष्कर्ष निकाला है कि दुनिया की आबादी और बढ़ती गर्मी को देखते हुए अफ्रीका, एशिया, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बड़े पैमाने पर इन देशों में तापमान की सीमा समान होगी। चीन में नानजिंग यूनिवर्सिटी के प्रमुख अध्ययनकर्ता ची जू के अनुसार, 1 अरब से 3.5 अरब लोग जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित होंगे।
इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के जलवायु वैज्ञानिक और ग्लोबल सिस्टम इंस्टीट्यूट के निदेशक सह-अध्ययनकर्ता टिम लेंटन ने कहा कि नाइजीरिया जैसे गरीब देश की आबादी सदी के अंत तक तीन गुना होने की उम्मीद है, उनकी गर्मी की समस्या से सामना करने की क्षमता कम है।