2009 से अब तक खत्म हो चुके हैं दुनिया के 14 फीसदी मूंगे

2009 से 2018 के बीच करीब 11,700 वर्ग किलोमीटर में फैली यह प्रवाल भित्तियां (कोरल अथवा मूंगे) अब पूरी तरह खत्म हो चुकी हैं, जिसके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं
2009 से अब तक खत्म हो चुके हैं दुनिया के 14 फीसदी मूंगे
Published on

पिछले एक दशक से भी कम समय में दुनिया के करीब 14 फीसदी मूंगे (कोरल्स अथवा प्रवाल भित्तियां) खत्म हो चुके हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो 2009 से 2018 के बीच करीब 11,700 वर्ग किलोमीटर में फैली यह प्रवाल भित्तियां अब पूरी तरह खत्म हो चुकी हैं।

यह त्रासदी कितनी बड़ी है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह जो नुकसान है वो ऑस्ट्रेलिया में मौजूद सभी जीवित कोरल्स से भी ज्यादा है। यह जानकारी आज जारी नई रिपोर्ट स्टेटस ऑफ कोरल रीफ्स ऑफ द वर्ल्ड: 2020 में सामने आई है, जिसे ग्लोबल कोरल रीफ मॉनिटरिंग नेटवर्क द्वारा जारी किया गया है।

यही नहीं रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि रीफ शैवाल, जो कोरल्स के तनाव में आने के कारण बढ़ता है, 2010 से 2019 के बीच उसमें भी 20 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है, जो दिखाता है कि इन खूबसूरत प्रवाल भित्तियों पर अपने जीवन को लेकर संघर्ष बढ़ता जा रहा है। 

यह रिपोर्ट 1978 से 2019 तक के 40 से अधिक वर्षों के कोरल्स से जुड़े वैश्विक डेटासेट पर आधारित है। इसे तैयार करने में दुनिया भर के 300 से भी अधिक शोधकर्ताओं ने सहयोग दिया है। इसके लिए दुनिया के 73 से ज्यादा देशों के 12,000 से भी अधिक स्थानों पर करीब 20 लाख से ज्यादा अवलोकन किए गए हैं।

दुनिया के 10 क्षेत्रों में मौजूद प्रवाल भित्तियों के विश्लेषण से पता चला है कि जिस तरह से समुद्र के तापमान में वृद्धि हो रही है उससे कोरल ब्लीचिंग की घटनाओं में वृद्धि हुई है, यह इन प्रवाल भित्तियों को हो रहे नुकसान का सबसे बड़ा कारण है।

गौरतलब है कि 1998 में इसी तरह की कोरल ब्लीचिंग की एक घटना में दुनिया की 8 फीसदी प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुंचा था जिसका असर 6,500 वर्ग किलोमीटर में हुआ था। यह नुकसान कितना बड़ा था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह इतनी कैरिबियन में मौजूद कुल जीवित कोरल्स से भी ज्यादा था।  इसका सबसे ज्यादा असर हिंद महासागर, जापान और कैरिबियन पर पड़ा था। 

कितनी महत्वपूर्ण हैं यह प्रवाल भित्तियां

प्रवाल भित्तियां एक खूबसूरत प्रजाति है जो न केवल समुद्र के परिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है, यह हमारे लिए भी बहुत मायने रखती हैं|  देखा जाए तो 100 से भी ज्यादा देशों में फैली यह भित्तियां समुद्र तल के सिर्फ 0.2 फीसदी भाग को ही कवर करती हैं पर यह समुद्र में रहने वाली 25 फीसदी प्रजातियों को आधार प्रदान करती हैं। यह करीब 830,000 से अधिक प्रजातियों का घर हैं|

यही नहीं यह तटों पर रहने वाले लोगों को भोजन और जीविका भी प्रदान करती हैं। इनसे मतस्य पालन और पर्यटन को मदद मिलती है| यह न केवल समुद्री तूफानों से तटों की रक्षा करती हैं, साथ ही कई डूबते द्वीपों के लिए आधार भी प्रदान करती हैं|

यदि इनके द्वारा प्रदान की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य आंका जाए तो वो हर वर्ष 201.3 लाख करोड़ रुपए के करीब बैठता है, जिसमें इनके पर्यटन से होने वाली 2.7 लाख करोड़ रुपए की आय भी शामिल है। 

जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहा है कोरल्स पर दबाव

जलवायु परिवर्तन पहले ही प्रवाल भित्तियों के लिए बड़ा खतरा बन चुका है, समुद्री हीटवेव के परिणाम बड़े स्तर पर कोरल ब्लीचिंग के रूप में सामने आने लगे हैं| समय के साथ यह घटनाएं गंभीर और तीव्र होती जा रही हैं और बड़े पैमाने पर प्रवाल भित्तियों के मरने का कारण बन रही हैं| देखा जाए तो कोरल भित्तियों का कंकाल कैल्शियम कार्बोनेट का बना होता है, जिस तरह से समुद्रों में अम्लीकरण बढ़ रहा है यह उनके कंकाल को विकसित करने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है, जिसका सीधा असर उनके विकास पर भी पड़ रहा है|

यही नहीं हम इंसान जिस तरह से स्थानीय तौर पर समुद्रों को दूषित कर रहे हैं उनसे भी इन प्रवाल भित्तियों पर असर पड़ रहा है। कृषि में प्रयोग होने वाले केमिकल, प्लास्टिक, और जिस अनियंत्रित तरीके से मछलियों को पकड़ा जा रहा है वो सब इनके विनाश का कारण बन रहे हैं। 

गौरतलब है कि इससे पहले प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकाडेमी ऑफ साइंसेज जर्नल (पनास) में छपे एक शोध में यह सम्भावना व्यक्त कि गई थी कि वैश्विक उत्सर्जन में जिस रफ्तार से वृद्धि हो रही है उसके चलते 2050 तक दुनिया की करीब 94 फीसदी प्रवाल भित्तियां खत्म हो जाएंगी। 

हालांकि इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन से उपजे तनाव के बावजूद कुछ प्रवाल भित्तियों को नुकसान नहीं पहुंचा था, आशा के संकेत भी देती है। इन कोरल के नुकसान के बावजूद दोबारा ठीक होने की संभावनाएं बरकरार थी। जिसका मतलब है कि उम्मीदें अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं, हमारे पास अभी भी इन प्रवाल भित्तियों को बचाने का समय है पर वो समय बहुत तेजी से हमारे हाथों से निकला जा रहा है। ऐसे में इन्हें बचाने के लिए तुरंत कार्रवाई करने की जरुरत है। 

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in