असम में आबादी में वृद्धि : 1960 के दशक में केवल 600 गैंडों से बढ़कर 2024 तक 4,000 से ज्यादा गैंडों की संख्या।
काजीरंगा की वैश्विक भूमिका : दुनिया के लगभग 70 फीसदी ग्रेटर वन-हॉर्न्ड गैंडों की आबादी असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में।
संरक्षित क्षेत्र का विस्तार : ओरांग नेशनल पार्क में 200 वर्ग किमी विस्तार और लाओखोवा–बुराछापोरी में 12.82 वर्ग किमी दोबारा किया गया हासिल।
हर साल 22 सितम्बर को पूरी दुनिया में विश्व गैंडा दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि पृथ्वी पर लाखों सालों से विचरण कर रहे गैंडे आज अस्तित्व के संकट से गुजर रहे हैं।
कभी लगभग पांच लाख की संख्या वाले ये विशालकाय जीव अब दुनिया भर में केवल 28,000 के करीब रह गए हैं। ऐसे में भारत की सफलता गाथा विशेष महत्व रखती है, जहां ग्रेटर वन-हॉर्न्ड गैंडे की संख्या लगातार बढ़ी है और यह वैश्विक संरक्षण की मिसाल बन चुका है।
गैंडे क्यों हैं महत्वपूर्ण?
गैंडे केवल शानदार और प्राचीन जीव ही नहीं, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यंत आवश्यक प्रजाति हैं। ये की-स्टोन स्पीशीज हैं, जिनकी उपस्थिति से घास के मैदानों और जंगलों का संतुलन बना रहता है। गैंडे घास चरकर खुले क्षेत्र बनाते हैं, जिससे अन्य जानवरों को भी भोजन और स्थान मिलता है।
उनका कीचड़ में लोटना छोटे-छोटे जलाशय बना देता है, जो पक्षियों, मछलियों और अन्य जीवों के लिए जीवनदायी साबित होते हैं। इनके आवास से न केवल जैव विविधता संरक्षित रहती है बल्कि स्वच्छ हवा, पानी और स्थानीय समुदायों की आजीविका भी जुड़ी होती है।
गैंडों के सामने खतरे
आज भी गैंडों की स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। अवैध शिकार और तस्करी के जरिए गैंडे की सींग पारंपरिक चिकित्सा और विलासिता की वस्तु के रूप में काले बाजार में बेची जाती है। कृषि, सड़कें और बस्तियां बढ़ने से इनके प्राकृतिक घर सिकुड़ते जा रहे हैं।
बदलती जलवायु जिसमें बारिश में बदलाव, बाढ़ और सूखा इनके जीवन को असुरक्षित बना रहे हैं। यही कारण है कि अफ्रीकी और एशियाई गैंडों की कई प्रजातियां आज भी अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की गंभीर रूप से संकटग्रस्त सूची में हैं।
भारत का गौरव – ग्रेटर वन-हॉर्न्ड गैंडा
भारत और नेपाल में पाए जाने वाले ग्रेटर वन-हॉर्न्ड गैंडे एशिया की तीन प्रजातियों में सबसे बड़े हैं। इनका वजन 2800 किलोग्राम तक हो सकता है। इनकी आयु लगभग 45-50 वर्ष होती है। मोटी कवच जैसी खाल और एक सींग इनकी पहचान है। ये मुख्य रूप से घास, पत्ते, फल और जलीय पौधों पर निर्भर रहते हैं।
इनका प्राकृतिक आवास तराई क्षेत्र, बाढ़ मैदान, दलदली घास वाली जमीन और नदी तटीय वन है। भारत में यह प्रजाति असम, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में सुरक्षित है।
असम – संरक्षण की सफलता की मिसाल
भारत में गैंडों की सफलता का सबसे बड़ा श्रेय असम को जाता है। 1960 के दशक में गैंडों की संख्या केवल 600 के आसपास थी। 2024 तक यह बढ़कर 4000 से अधिक हो चुकी है।अकेले काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में दुनिया के लगभग 70 फीसदी गैंडे पाए जाते हैं। असम में कुल मिलाकर विश्व की लगभग 80 फीसदी आबादी बसती है।
असम की संरक्षण उपलब्धियां
आबादी में वृद्धि – 1980 के दशक से अब तक गैंडों की संख्या में लगभग 170 फीसदी की वृद्धि। काजीरंगा की वैश्विक पहचान अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का केंद्र और विश्व धरोहर स्थल के रूप में हुई।
ओरांग राष्ट्रीय उद्यान में 200 वर्ग किमी का विस्तार तथा लाओखोवा–बुराछापोरी में 12.82 वर्ग किमी क्षेत्र दोबारा हासिल किया गया है। नए संरक्षित क्षेत्र में सिकनाझर राष्ट्रीय उद्यान और पोबा वन्यजीव अभयारण्य का गठन किया गया है।
भविष्य की चुनौतियां
भारत में गैंडों को बचाने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, लेकिन आने वाले समय में कई चुनौतियां सामने हैं। तस्करी का खतरा: बीते एक दशक में दुनिया भर में करीब 10,000 गैंडे मारे गए। जलवायु परिवर्तन: लंबे मानसून और आक्रामक घास प्रजातियां गैंडों के चरागाह को नष्ट कर रही हैं।
मानव-वन्यजीव संघर्ष: बढ़ती आबादी और खेतों के समीप गैंडों का जाना टकराव को जन्म दे रहा है। नए आवास की जरूरत: बढ़ती गैंडा आबादी को सुरक्षित रखने के लिए बड़े और विविध प्राकृतिक क्षेत्रों की आवश्यकता है।
विश्व गैंडा दिवस हमें यह याद दिलाता है कि संरक्षण केवल एक दिन का कार्य नहीं बल्कि निरंतर प्रयास है। भारत, विशेषकर असम, ने दिखाया है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति, स्थानीय सहयोग और वैज्ञानिक प्रबंधन हो, तो कोई भी प्रजाति विलुप्ति से बाहर लाई जा सकती है।
लेकिन यह संघर्ष अभी अधूरा है। जब तक दुनिया भर में गैंडों का शिकार और तस्करी बंद नहीं होगी, तब तक यह प्रजाति संकट से पूरी तरह उबर नहीं पाएगी। गैंडे का संरक्षण केवल एक जीव की रक्षा नहीं है, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और मानवता के भविष्य की सुरक्षा है।
संदर्भ :