दक्षिणी महासागर सर्दियों में पहले की तुलना में 40 फीसदी अधिक सीओ2 उत्सर्जित करता है।
पारंपरिक उपग्रहों की सीमाएं लिडार आधारित उपग्रह कैलिप्सो ने पूरी की।
समुद्री कार्बन चक्र को समझने के लिए नया तीन-लूप फ्रेमवर्क प्रस्तावित किया गया।
वैश्विक जलवायु मॉडल और आईपीसीसी के पूर्वानुमानों में अब इस संशोधित आंकड़ों को शामिल करना होगा।
दक्षिणी महासागर पृथ्वी के जलवायु तंत्र में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह महासागर दुनिया में मानवजनित गतिविधियों से निकलने वाली बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) को अवशोषित करता है और वैश्विक तापमान को संतुलित रखने में मदद करता है।
लेकिन लंबे समय से वैज्ञानिकों को यह समझने में कठिनाई हो रही थी कि यह महासागर वास्तव में साल भर में कितनी सीओ2 को अवशोषित या उत्सर्जित करता है, विशेषकर सर्दियों में, जब इस क्षेत्र में महीनों तक सूरज की रोशनी नहीं होती और मौसम अत्यंत कठोर होता है।
इन्हीं अनिश्चितताओं के कारण वैज्ञानिक इसे वैश्विक कार्बन बजट में सबसे बड़ा “अनिश्चितता का स्रोत” कहते आए हैं। लेकिन अब एक नई अंतरराष्ट्रीय शोध ने इस रहस्य को काफी हद तक स्पष्ट कर दिया है।
यह अध्ययन चीन के सेकंड इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी और नानजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ ज्योग्राफी एंड लिम्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने किया है। उनके निष्कर्षों को साइंस एडवांसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
सर्दियों में उत्सर्जन 40 फीसदी अधिक
शोधकर्ताओं ने पाया कि सर्दियों में दक्षिणी महासागर से निकलने वाली सीओ2 की मात्रा पहले के अनुमानों से लगभग 40 फीसदी अधिक है। इसका मतलब है कि महासागर इस अवधि में अपेक्षा से ज्यादा सीओ2 वापस वायुमंडल में छोड़ता है, जिसे अब तक मॉडल और पूर्व आंकड़ों में शामिल नहीं किया गया था।
पहले यह माना जाता था कि दक्षिणी महासागर साल भर सीओ2 का एक बड़ा शोषक (सिंक) है, यानी यह वायुमंडल से सीओ2 खींचता है। लेकिन इस नए खुलासे से पता चलता है कि सर्दियों में यह महासागर स्रोत भी बन जाता है, जो पृथ्वी के जलवायु समीकरण को और अधिक जटिल बना देता है।
कैसे हुआ यह खुलासा? अंधकार में देखने वाला लिडार
सर्दियों में दक्षिणी महासागर में महीनों तक सूरज नहीं उगता, तेज तूफान चलते हैं और समुद्र पर बर्फ जम जाती है। ऐसे में पारंपरिक उपग्रह, जो सूरज की रोशनी पर निर्भर होते हैं, कोई उपयोगी आंकड़े नहीं जुटा पाते।
शोधकर्ताओं ने इस समस्या का समाधान कैलिप्सो उपग्रह से प्राप्त 14 सालों के लेजर इमेजिंग डिटेक्शन और रेंजिंग (लिडार) के आंकड़ों के द्वारा किया।
लिडार एक सक्रिय तकनीक है, जो स्वयं प्रकाश उत्सर्जित करके सतहों का अवलोकन करती है। इसलिए यह पूरी अंधेरी परिस्थितियों में भी काम कर सकती है।
इस आंकड़े को मशीन लर्निंग तकनीक से विश्लेषित कर वैज्ञानिकों ने सर्दियों में सीओ2 के आदान-प्रदान का पहला विस्तृत, लगातार और सटीक मानचित्र तैयार किया।
कार्बन चक्र को समझने का नया “तीन-लूप फ्रेमवर्क”
शोध में महासागर को तीन हिस्सों में बांटकर यह समझाया गया कि कहाँ कौन-सी प्रक्रिया सीओ2 को नियंत्रित करती है:
अंटार्कटिक लूप (60 डिग्री दक्षिण के दक्षिण): समुद्री बर्फ, खारापन और भौतिक मिश्रण, सीओ2 का उत्सर्जन मुख्य रूप से भौतिक प्रक्रियाओं से प्रभावित
पोलर फ्रंट लूप (45 डिग्री दक्षिण–60 डिग्री दक्षिण) : वायुमंडलीय सीओ2 और समुद्री जैविक गतिविधि (क्लोरोफिल), जैविक गतिविधि सीओ2 अवशोषण को प्रभावित करती है
उपध्रुवीय लूप (45 डिग्री दक्षिण के उत्तर) : समुद्र की सतही तापमान, तापमान बढ़ने पर सीओ2 उत्सर्जन बढ़ता है
यह मॉडल भविष्य के जलवायु पूर्वानुमानों और आईपीसीसी की रिपोर्टों में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।
यह शोध बताता है कि पृथ्वी का कार्बन चक्र पहले की तुलना में कहीं अधिक गतिशील और संवेदनशील है। दक्षिणी महासागर की सर्दियों की गतिविधियों को अब तक नजरअंदाज किया जाता रहा था, लेकिन अब यह स्पष्ट है कि वैश्विक जलवायु मॉडलिंग में इन आंकड़ों को शामिल करना आवश्यक है। यह हमारी जलवायु परिवर्तन रणनीतियों और वैश्विक उत्सर्जन नीतियों को भी प्रभावित कर सकता है।