यूरोपीय जलवायु निगरानी सेवा ने कहा कि दुनिया भर में जुलाई 2025 तीसरा सबसे गर्म महीना रहा। ग्लोबल वार्मिंग के कारण चरम मौसमों में बढ़ोतरी हुई है जिसने कई क्षेत्रों में तबाही मचा रखी है।
भारत से लेकर पाकिस्तान और उत्तरी चीन में भारी बारिश से बाढ़ की घटनाएं देखी जा रही हैं। जबकि कनाडा, स्कॉटलैंड और ग्रीस लगातार सूखे की मार के कारण यहां जंगलों में आग पर काबू पाना कठिन होता जा रहा है। एशिया और स्कैंडिनेविया के कई देशों में जुलाई के महीने में औसत से बहुत ज्यादा तापमान दर्ज किया गया।
यूरोपीय संघ की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा के मुताबिक, जुलाई 2025 पिछले 25 महीनों में केवल चौथा महीना था जिसके लिए वैश्विक औसत सतही वायु तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं था। इस 25 महीने की अवधि से पहले, केवल पांच महीने (जनवरी से मार्च 2016 और जनवरी से फरवरी 2020) 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर से ऊपर रहे।
पिछले 25 महीनों में से 14, सितंबर 2023 से अप्रैल 2024 तक और अक्टूबर 2024 से मार्च 2025 तक, 1.5 डिग्री सेल्सियस से काफी ऊपर थे, जो 1.58 डिग्री सेल्सियस से 1.78 डिग्री सेल्सियस तक थे। हालांकि मई, जून, अगस्त और सितंबर 2024 के साथ-साथ जुलाई और अगस्त 2023 तथा अप्रैल 2025 में तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस था।
कोपरनिकस ने कहा है कि रिकॉर्ड पर सबसे गर्म जुलाई के दो साल बाद, दुनिया भर में तापमान के रिकॉर्ड का हालिया सिलसिला खत्म हो गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन पर लगाम लग गई है। लगातार गर्म होती दुनिया में कई तरह के मौसमी प्रभावों को देखा जा सकता है।
जून की तरह, जुलाई में भी पिछले दो सालों की तुलना में तापमान में मामूली गिरावट देखी गई, जो पूर्व-औद्योगिक काल (1850-1900) से औसतन 1.25 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
साल 2023 और 2024 में तापमान इस मानक से 1.5 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक बढ़ गया, जो कि दुनिया भर के तापमान में वृद्धि को अपेक्षाकृत सुरक्षित स्तर पर सीमित रखने के लिए 2015 में निर्धारित पेरिस समझौते का लक्ष्य है। यह छोटी वृद्धि तूफानों, लू और अन्य चरम मौसम की घटनाओं को कहीं अधिक घातक और विनाशकारी बनाने के लिए काफी है।
पिछले महीने, खाड़ी, इराक और पहली बार तुर्की में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया, जबकि चीन और पाकिस्तान में मूसलाधार बारिश ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली। स्पेन में जुलाई की गर्मी के कारण एक हजार से अधिक मौतें दर्ज की गई, हालांकि जो 2024 की इसी अवधि में होने वाली मौतों की आधी है।
तापमान बढ़ाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) मुख्य तौर पर जिम्मेवार है, जो ज्यादातर ऊर्जा उत्पादन के लिए तेल, कोयला और गैस के जलने से पैदा होता है।
कोपरनिकस के मुताबिक, जब तक हम वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को तेजी से स्थिर नहीं करते, हमें न केवल नए तापमान रिकॉर्ड के लिए तैयार रहना चाहिए, बल्कि इसके प्रभावों में भी गिरावट आने की भी उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
वैश्विक औसत तापमान की गणना अरबों उपग्रहों और मौसम संबंधी आंकड़ों के आधार पर की जाती है, जो जमीन और समुद्र दोनों पर उपलब्ध हैं और कोपरनिकस द्वारा इस्तेमाल किए गए आंकड़े 1940 तक पहुंचते हैं।
हालांकि जुलाई कुछ जगहों पर पिछले सालों की तुलना में हल्का रहा, फिर भी चीन, जापान, उत्तर कोरिया, ताजिकिस्तान, भूटान, ब्रुनेई और मलेशिया सहित 11 देशों ने कम से कम आधी सदी में सबसे गर्म जुलाई महसूस किया।
यूरोप में, नॉर्डिक देशों में गर्म दिनों की संख्या में भारी बढ़ोतरी देखी गई, जिसमें फिनलैंड में 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के 20 से अधिक दिन शामिल हैं।
यूरोपीय सूखा वेधशाला (ईडीओ) के आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, 2012 में निगरानी शुरू होने के बाद से जुलाई के पहले तीन हफ्तों में यूरोप और भूमध्यसागरीय बेसिन के आधे से अधिक भू-भाग में सबसे भयंकर सूखा पड़ा।
इसके विपरीत उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, भारत और ऑस्ट्रेलिया व अफ्रीका के कुछ हिस्सों के साथ-साथ अंटार्कटिका में भी तापमान सामान्य से कम रहा।
समुद्र अभी भी गर्म हो रहे हैं
पिछला महीना समुद्री सतह के तापमान के हिसाब से रिकॉर्ड पर तीसरा सबसे गर्म जुलाई भी रहा। हालांकि स्थानीय स्तर पर, जुलाई के कई समुद्री रिकॉर्ड टूट गए: नॉर्वेजियन सागर में, उत्तरी सागर के कुछ हिस्सों , फ्रांस और ब्रिटेन के पश्चिम में उत्तरी अटलांटिक इसमें शामिल है।
आर्कटिक समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से 10 फीसदी से कम था, जो 47 सालों के उपग्रह अवलोकनों में जुलाई के लिए दूसरा सबसे कम था, जो 2012 और 2021 के लगभग बराबर था।
समुद्री बर्फ का कम होना चिंता का विषय इसलिए नहीं है क्योंकि इससे समुद्र का जलस्तर बढ़ता है, बल्कि इसलिए है क्योंकि इससे बर्फ जो सूर्य की लगभग सारी ऊर्जा को अंतरिक्ष में वापस परावर्तित कर देते हैं, की जगह गहरे नीले समुद्र ले लेते हैं, जो उसे अवशोषित कर लेते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न अतिरिक्त गर्मी का नब्बे प्रतिशत महासागरों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। अंटार्कटिका में इस महीने समुद्री बर्फ का विस्तार रिकॉर्ड में तीसरा सबसे कम है।
मानवजनित गर्मी के अलावा, अल नीनो (दक्षिणी प्रशांत महासागर में हवा के रुख में बदलाव) जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण साल-दर-साल बदलाव हो रहे हैं और ज्वालामुखी गतिविधि ने पिछले दो सालों में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंचा दिया है।