जरूरी है धरती के बिगड़ते स्वास्थ्य पर नजर के साथ-साथ उपचार; इलस्ट्रेशन: आईस्टॉक  
जलवायु

अलविदा 2024: बढ़ते तापमान से साल भर बदहाल रही धरती, बने-बिगड़े कई जलवायु रिकॉर्ड

पृथ्वी को लगातार 12 महीने रहा बुखार, 2024 में जनवरी से दिसंबर तक हर महीने जलवायु परिवर्तन का असर आंकड़ों में साफ-साफ देखने को मिला

Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के लिहाज से 2024 अच्छा नहीं रहा। इस दौरान मौसम और जलवायु के कई रिकॉर्ड टूटे तो कई नए बने। इस बीच चरम मौसमी घटनाओं का कहर भी पूरी तरह दुनिया पर हावी रहा।

वैज्ञानिक भी कह चुके हैं कि बढ़ते तापमान के लिहाज से 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष बन सकता है, इसकी पुष्टि की बस औपचारिकता बाकी है। कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) से जुड़े वैज्ञानिकों ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह करीब-करीब तय है कि 2024 दर्ज जलवायु इतिहास का अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा।

देखा जाए तो 2024 की विदाई के साथ ही एक नए साल का आगाज हो रहा है, यह समय जहां नए साल के स्वागत का है, वहीं साथ ही पीछे मुड़कर गलतियों से सबक सीखने का भी है, ताकि 2025 को कहीं बेहतर बनाया जा सके। ऐसे में आइए आंकड़ों से समझते हैं 2024 में कैसा था देश दुनिया में बढ़ते तापमान और जलवायु का हाल:

नवंबर में भी गर्मी से नहीं मिली राहत

अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि इस साल नवंबर का महीना सामान्य से कहीं ज्यादा गर्म था, जब वैश्विक औसत तापमान बीसवीं सदी के औसत तापमान (12.9 डिग्री सेल्सियस) से 1.34 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया।

दर्ज जलवायु इतिहास में यह दूसरा मौका था जब नवंबर के महीने में तापमान इतना अधिक दर्ज किया गया। गौरतलब है कि अब तक के सबसे गर्म नवंबर 2023 में दर्ज किया गया था। जब तापमान औसत से 1.42 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

मतलब की नवंबर 2024 अब तक के सबसे गर्म नवंबर से महज 0.08 डिग्री सेल्सियस कम रहा। वहीं 1977 से देखें तो यह लगातार 48वां नवंबर है जब तापमान नवंबर में 20वीं सदी के औसत तापमान से ऊपर दर्ज किया गया।

175 वर्षों में भारत-पाकिस्तान ने अब तक के सबसे गर्म अक्टूबर का किया सामना

नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) ने अपनी रिपोर्ट नई रिपोर्ट में पुष्टि की है कि जहां वैश्विक स्तर पर पिछले 175 वर्षों में अब तक का दूसरा सबसे गर्म अक्टूबर दर्ज किया गया।

आंकड़ों के मुताबिक तापमान 20वीं सदी में अक्टूबर के दौरान दर्ज औसत तापमान (14 डिग्री सेल्सियस) से 1.32 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। वहीं भारत, पाकिस्तान के लिए यह अब तक का सबसे गर्म अक्टूबर था।

बता दें कि इससे पहले भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भी पुष्टि की थी कि 1901 के बाद से औसत और न्यूनतम तापमान के लिहाज से 2024 में अक्टूबर का महीना अब तक का सबसे गर्म अक्टूबर था। इसके लिए कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि भी जिम्मेवार है।

दिल्ली की बात करें तो 1951 के बाद से यह पहला मौका था जब अक्टूबर में इतनी ज्यादा गर्मी पड़ी। हैरानी की बात है कि इस दौरान दिल्ली में बारिश की एक बूंद भी नहीं गिरी।

जलवायु इतिहास का दूसरा सबसे गर्म सितम्बर आया सामने

कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने अपने ताजा रुझानों में पुष्टि की है कि सितम्बर 2024 जलवायु इतिहास का अब तक का दूसरा सबसे गर्म सितम्बर का महीना था। जब बढ़ता तापमान औद्योगिक काल (1850 से 1900) से पहले की तुलना में 1.54 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। बता दें कि इससे पहले 2023 में अब तक का सबसे गर्म सितम्बर का महीना दर्ज किया गया था।

देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर इस बढ़ते तापमान के लिए काफी हद तक हम इंसान ही जिम्मेवार हैं, जो जलवायु परिवर्तन की कड़वी सच्चाई को जानते हुए भी बढ़ते प्रदूषण और उत्सर्जन की रोकथाम के लिए ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।

अगस्त ने तोड़े गर्मी के पिछले रिकॉर्ड

बढ़ते तापमान का असर अगस्त में भी साफ गौर पर देखने को मिला, जब पिछले 175 वर्षों का अब तक का सबसे गर्म अगस्त का महीना दर्ज किया गया। गौरतलब है कि इस महीने तापमान बीसवीं सदी के औसत तापमान से 1.27 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा। दर्ज आंकड़ों के मुताबिक अगस्त 2024 में वैश्विक औसत तापमान 15.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

See also: अगस्त ने तोड़े गर्मी के पिछले रिकॉर्ड, सामान्य से 1.27 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा तापमान

इससे पहले अगस्त 2023 अब तक का सबसे गर्म अगस्त का महीना था, जब तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.26 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इसकी पुष्टि नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) ने अपनी रिपोर्ट में की है।

यह भी सामने आया है कि पिछले महीने जहां यूरोप और ओशिनिया ने अपने अब तक के सबसे गर्म अगस्त का सामना किया, वहीं एशिया के लिए यह अब तक का दूसरा सबसे गर्म अगस्त का महीना था। ऐसी ही अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका ने अपने तीसरे सबसे गर्म अगस्त का सामना किया। ऑस्ट्रेलिया ने भी 1910 के बाद से अपने सबसे गर्म अगस्त का अनुभव किया।

एशिया, अफ्रीका, यूरोप ने किया अपने सबसे गर्म जुलाई का सामना

अमेरिकी वैज्ञानिकों के मुताबिक दुनिया ने अपने अब तक के सबसे गर्म जुलाई का सामना किया था, जब बढ़ता तापमान 20वीं सदी के दौरान जुलाई में दर्ज वैश्विक औसत तापमान से 1.21 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया।

एशिया, अफ्रीका और यूरोप के लिए भी यह अब तक का सबसे गर्म जुलाई रहा। वहीं उत्तरी अमेरिका ने भी अपने दूसरे सबसे गर्म जुलाई का सामना किया।

हालात यह थे कि 22 जुलाई को तापमान 17.16 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। वहीं 23 जुलाई 2024 को भी तापमान करीब-करीब उतना (17.15 डिग्री सेल्सियस) ही रहा। बता दें कि इससे पहले अब तक के सबसे गर्म दिन का यह रिकॉर्ड छह जुलाई 2023 के नाम दर्ज था, जब तापमान 17.08 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।

जून में बढ़ते तापमान ने तोड़े पिछले सारे रिकॉर्ड

देखा जाए तो हमारा ग्रह अब पहले जैसा नहीं रहा, जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान इस पर गहरा असर डाल रहे हैं। नतीजन दिन-प्रतिदिन जलवायु आपदाओं का कहर पहले से कहीं ज्यादा हावी होता जा रहा है।

जून में बढ़ती गर्मी का कहर भारत सहित दुनिया के कई देशों पर पूरी तरह हावी रहा। इसकी पुष्टि आंकड़े भी करते हैं। यूरोपियन यूनियन की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने पुष्टि की है कि जून में वैश्विक औसत तापमान औद्योगिक काल से पहले (1850 से 1900) की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। जलवायु रिकॉर्ड में देखें तो यह अंतर बहुत बड़ा है। देखा जाए तो यह जून और उससे पहले लगातार ग्यारह महीनों में वैश्विक तापमान में होती वृद्धि ने डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को छुआ या उसे पार किया था।

देखा जाए तो तापमान के रिकॉर्ड बनाने का सिलसिला जो जून 2023 से शुरू हुआ, वो अब तक नहीं थमा है। महीने दर महीने बढ़ता तापमान नए रिकॉर्ड बना रहा है। यह सिलसिला जून 2024 में भी जारी रहा।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भी जून 2024 को लेकर पुष्टि की है कि वो भारत के जलवायु इतिहास में 1901 के बाद से अब तक का सबसे गर्म जून का महीना था। यूरोप से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले महीने जून 2024 में, यूरोप का औसत तापमान जून 1991 से 2020 के औसत तापमान से 1.57 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। इस तरह वह रिकॉर्ड पर यूरोप का दूसरा सबसे गर्म जून बन गया।

देखा जाए तो दुनिया में बढ़ता तापमान थमने का नाम ही नहीं ले रहा। गर्मी ऐसी कि इंसान ही नहीं पेड़-पौधे, जानवर हर कोई कुम्हला जाए। ऐसा लगता है कि दुनिया में बढ़ते तापमान का रिकॉर्ड बनाने की एक होड़ सी लग गई है।

पृथ्वी को लगातार 12 महीने रहा बुखार

मई में लगातार बारहवें महीने बढ़ते तापमान ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। मई में तापमान सामान्य से 1.52 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा। वहीं इससे पहले के 11 महीनों में सभी ने डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार किया।

वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु रिकॉर्ड में कभी भी मई के महीने में इतनी गर्मी नहीं पड़ी।

कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि मई 2024 में वैश्विक औसत तापमान 1991 से 2020 के दरमियान मई के दौरान दर्ज औसत तापमान से 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। वहीं औद्योगिक काल से पहले के आंकड़ों पर नजर डालें तो मई के दौरान वैश्विक औसत तापमान में हुई यह वृद्धि 1.52 डिग्री सेल्सियस दर्ज की गई।

अप्रैल में बढ़ते तापमान ने तोड़े कई रिकॉर्ड

अप्रैल 2024 में वैश्विक औसत तापमान 20वीं सदी में अप्रैल के औसत तापमान से 1.32 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया, जो उसे अब तक का सबसे गर्म अप्रैल बनाता है

इसकी पुष्टि नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) ने भी अपने आंकड़ों में की है। इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक 175 वर्षों के जलवायु रिकॉर्ड में कभी भी अप्रैल इतना गर्म नहीं रहा।

इस साल अप्रैल में बढ़ता तापमान, पिछले सबसे गर्म अप्रैल से भी 0.18 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा।

एनसीईआई द्वारा जारी आंकड़ों की मानें तो यह लगातार 48वां अप्रैल था, जब बढ़ता तापमान 20वीं सदी के औसत तापमान से ज्यादा दर्ज किया गया। चिंता की बात है कि अब तक के दस सबसे गर्म अप्रैल के महीने 2010 या उसके बाद दर्ज किए गए हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले यूरोप की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने भी अपनी रिपोर्ट में अप्रैल 2024 के अब तक के सबसे गर्म अप्रैल होने की पुष्टि की थी।

अगर क्षेत्रीय तौर पर देखें तो जहां इस साल दक्षिण अमेरिका ने अब तक के अपने सबसे गर्म अप्रैल का सामना किया। वहीं यूरोप और उत्तर अमेरिका के लिए यह दूसरा सबसे गर्म अप्रैल रहा। इसी तरह एशिया के लिए यह अब तक का तीसरा सबसे गर्म अप्रैल रहा, जबकि अफ्रीका में यह चौथा मौका है जब अप्रैल में तापमान इतना अधिक दर्ज किया गया।

2024 में मार्च ने तोड़े गर्मी के पिछले सारे रिकॉर्ड

इस साल लगातार तीसरे महीने मार्च ने बढ़ते तापमान के पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। औद्योगिक काल से पहले की तुलना में देखें तो इस साल मार्च का औसत तापमान 1850 से 1900 के बीच मार्च में दर्ज किए गए औसत तापमान से 1.68 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया।

बढ़ते तापमान के यह आंकड़े इस बात को पुख्ता करते हैं कि हमारी धरती बड़ी तेजी से गर्म हो रही है, जिसके प्रभाव पूरी दुनिया में महसूस किए जा रहे हैं।

इससे पहले सबसे गर्म मार्च वर्ष 2016 में दर्ज किया गया था, लेकिन इस साल मार्च में बढ़ते तापमान ने उस रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। यदि मार्च 2016 से तुलना करें तो 2024 में मार्च का तापमान 0.10 डिग्री सेल्सियस अधिक है।

रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2024 में, यूरोप का औसत तापमान 1991 से 2020 के बीच मार्च के औसत तापमान से 2.12 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। इस तरह यह यूरोप के लिए अब तक का सबसे गर्म मार्च था।

फरवरी में लगातार नौवें महीने बढ़ते तापमान ने तोड़े रिकॉर्ड

इस साल 175 वर्षों के जलवायु रिकॉर्ड में अब तक का सबसे गर्म फरवरी दर्ज किया गया। 

वैज्ञानिकों के मुताबिक फरवरी 2024 में भूमि और महासागरों की सतह का वैश्विक औसत तापमान 20वीं सदी में फरवरी के दौरान दर्ज औसत तापमान से 1.4 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया, जो उसे अब तक की सबसे गर्म फरवरी बनाता है।

यूरोप की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने भी फरवरी 2024 को अब तक की सबसे गर्म फरवरी घोषित किया था।

इस दौरान यूरोप, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अमेरिका ने 2024 में अब तक की सबसे गर्म फरवरी का सामना किया था, जबकि अफ्रीका के लिए यह अब तक का दूसरा सबसे गर्म फरवरी का महीना था। इसी तरह उसने दिसंबर से फरवरी 2024 के बीच अपने दूसरे सबसे गर्म मौसम का सामना किया। वहीं यदि एशिया की बात करें तो उसने अब तक की 26वीं सबसे गर्म फरवरी का सामना किया था।

इतिहास की सबसे गर्म जनवरी के साथ हुआ साल का आगाज

2024 का आगाज ही अब तक की सबसे गर्म जनवरी के साथ हुआ था, जब बढ़ता तापमान औद्योगिक काल (1850 से 1900) से पहले की तुलना में 1.66 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया। वहीं 1991 से 2020 के दरमियान जनवरी के औसत तापमान से तुलना करें तो वो 0.7 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।

गौरतलब है कि वैज्ञानिक पहले ही इसको लेकर चेता चुके हैं कि यदि धरती पर बढ़ता तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाता है तो उसके बेहद गंभीर परिणाम झेलने पड़ेंगें। कहीं बारिश, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा इन सबका आना तो बेहद आम हो गया है।

देखा जाए तो यह आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि हमारी धरती बहुत तेजी से गर्म हो रही है। ऐसे में यदि उत्सर्जन की रोकथाम के लिए अभी ठोस कदम न उठाए गए तो भविष्य में स्थिति कहीं ज्यादा बदतर हो सकती है। ऐसे में क्या बढ़ते तापमान के साथ इससे भी गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।