जलवायु मॉडल ने प्राकृतिक नाइट्रोजन उपलब्धता को ज्यादा आंका, जिससे पौधों की सीओ2 अवशोषण क्षमता वास्तविकता से अधिक मानी गई।
पौधों की वृद्धि के लिए नाइट्रोजन आवश्यक है, लेकिन प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में इसकी उपलब्धता पहले समझी गई तुलना में कम है।
जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण प्राकृतिक क्षेत्रों में लगभग 50 प्रतिशत तक अधिक आंका गया, जिससे वैज्ञानिक निष्कर्ष प्रभावित हुए।
सीओ2 उर्वरक प्रभाव को लगभग 11 प्रतिशत अधिक माना गया, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम आंकने का जोखिम बढ़ा।
नाइट्रोजन चक्र से निकलने वाली गैसें जलवायु को प्रभावित करती हैं, इसलिए मॉडल सुधार और उत्सर्जन नियंत्रण बेहद आवश्यक हैं।
आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) जैसी गैसों की बढ़ती मात्रा है। कारखानों, वाहनों, बिजली उत्पादन और जंगलों की कटाई के कारण सीओ2 का स्तर लगातार बढ़ रहा है। यह गैस धरती की गर्मी को रोककर रखती है, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ता है और जलवायु परिवर्तन होता है।
वैज्ञानिकों ने यह भी देखा है कि जब वातावरण में सीओ2 बढ़ती है, तो पौधों की वृद्धि तेज हो सकती है। पौधे सीओ2 को अपने भोजन (प्रकाश संश्लेषण) के लिए उपयोग करते हैं और उसे अपने शरीर में जमा कर लेते हैं। इस कारण यह माना जाता रहा है कि पौधे बढ़ती सीओ2 को सोखकर जलवायु परिवर्तन को कुछ हद तक धीमा कर सकते हैं। इसे “सीओ2 उर्वरक प्रभाव” कहा जाता है।
लेकिन हाल के शोध बताते हैं कि यह प्रभाव उतना मजबूत नहीं है जितना पहले समझा जाता था। इसका मुख्य कारण है नाइट्रोजन की कमी।
पौधों के लिए नाइट्रोजन क्यों जरूरी है
पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए केवल सीओ2 ही नहीं, बल्कि नाइट्रोजन भी बहुत आवश्यक है। नाइट्रोजन पौधों को पत्तियां, तना और प्रोटीन बनाने में मदद करती है। हालांकि वातावरण में नाइट्रोजन बहुत अधिक मात्रा में मौजूद है, लेकिन पौधे उसे सीधे उपयोग नहीं कर सकते।
पौधों को नाइट्रोजन तभी मिलती है जब मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव (जैसे बैक्टीरिया) वातावरण की नाइट्रोजन को उपयोगी रूप में बदलते हैं। इस प्रक्रिया को जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहा जाता है।
नाइट्रोजन को लेकर पुरानी गलत धारणाएं
लंबे समय तक वैज्ञानिकों का मानना था कि प्राकृतिक पर्यावरण, जैसे जंगल और घास के मैदान, काफी मात्रा में नाइट्रोजन स्थिर करते हैं। इसी आधार पर जलवायु मॉडल बनाए गए, जो यह अनुमान लगाते थे कि पौधे भविष्य में कितनी सीओ2 सोख पाएंगे।
लेकिन ऑस्ट्रिया की यूनिवर्सिटी ऑफ ग्राज और कनाडा की साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी सहित कई संस्थानों के नए शोध बताते हैं कि प्राकृतिक क्षेत्रों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण को बहुत ज्यादा आंका गया था। वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी प्रणाली मॉडल प्राकृतिक सतहों पर नाइट्रोजन स्थिरीकरण को लगभग 50 प्रतिशत तक अधिक मान रहे थे।
कृषि और प्राकृतिक पर्यावरण में अंतर
शोध से यह भी पता चला है कि पिछले 20 वर्षों में कृषि क्षेत्रों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण लगभग 75 प्रतिशत बढ़ा है। इसका कारण है उर्वरकों का अधिक उपयोग और फसल प्रणालियों में बदलाव। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि प्राकृतिक जंगलों और अन्य क्षेत्रों में भी उतनी ही नाइट्रोजन उपलब्ध है।
इस अंतर को समझे बिना बनाए गए जलवायु मॉडल यह मान लेते थे कि पौधों के पास पर्याप्त नाइट्रोजन होगी और वे अधिक सीओ2 सोख सकेंगे। नई जानकारी के अनुसार, यह धारणा सही नहीं है।
जलवायु मॉडलों पर प्रभाव
नई खोजों के आधार पर वैज्ञानिकों ने जलवायु मॉडलों की तुलना वास्तविक नाइट्रोजन उपलब्धता से की। नतीजा यह निकला कि सीओ2 उर्वरक प्रभाव को लगभग 11 प्रतिशत तक अधिक आंका गया था। यानी पौधे उतनी सीओ2 नहीं सोख पाएंगे जितनी पहले उम्मीद की जा रही थी।
यह निष्कर्ष बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन मॉडलों का उपयोग अंतरराष्ट्रीय जलवायु रिपोर्टों और नीतियों को बनाने में किया जाता है, जैसे विश्व जलवायु रिपोर्ट।
नाइट्रोजन और अन्य गैसें
नाइट्रोजन चक्र केवल पौधों की वृद्धि तक सीमित नहीं है। इस प्रक्रिया के दौरान नाइट्रस ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें भी बनती हैं। ये गैसें भी वातावरण में जाकर जलवायु को प्रभावित कर सकती हैं और कभी-कभी ग्रीनहाउस प्रभाव को और बढ़ा देती हैं।
इसलिए यदि नाइट्रोजन चक्र को सही ढंग से न समझा जाए, तो जलवायु परिवर्तन के बारे में किए गए अनुमान गलत हो सकते हैं।
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित यह नया शोध हमें यह बताता है कि प्रकृति की प्रक्रियाएं बहुत जटिल होती हैं। केवल यह मान लेना कि पौधे बढ़ती सीओ2 की समस्या को हल कर देंगे, सही नहीं है। नाइट्रोजन की सीमित उपलब्धता पौधों की वृद्धि को रोकती है और उनके द्वारा सीओ2 अवशोषण की क्षमता को कम करती है।
इसलिए वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु मॉडलों को नाइट्रोजन से जुड़े नए और अधिक सटीक आंकड़ों के आधार पर संशोधित किया जाना चाहिए। साथ ही, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए केवल प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर निर्भर रहने के बजाय, मानव गतिविधियों से होने वाले उत्सर्जन को कम करना सबसे जरूरी कदम है।