2024 में अत्यधिक गर्मी के कारण 639 अरब घंटे के श्रम का नुकसान हुआ, जिससे गरीब देशों को अपनी राष्ट्रीय आय का लगभग छह फीसदी का नुकसान हुआ। फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

जलवायु संकट : बढ़ती गर्मी के कारण हर एक मिनट में एक व्यक्ति की मौत

बढ़ती गर्मी, प्रदूषण और जीवाश्म ईंधनों की वजह से हर साल लाखों लोग मर रहे हैं, स्वास्थ्य संकट गहराता जा रहा है।

Dayanidhi

  • हर मिनट में एक मौत: बढ़ती गर्मी से हर मिनट मर रहा है एक इंसान।

  • गर्मी और श्रम हानि: अत्यधिक तापमान के कारण 2024 में 639 अरब घंटे के श्रम का नुकसान हुआ।

  • जीवाश्म ईंधन और प्रदूषण: जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता लाखों लोगों की मौत और वायु प्रदूषण का कारण बनी।

  • जंगल की आग और खाद्य संकट: जंगल की आग और सूखे ने 12.3 करोड़ लोगों को खाद्य असुरक्षा में डाल दिया।

  • समाधान संभव हैं: नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु अनुकूलन और स्थानीय कार्रवाई से भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है।

दुनिया आज जिस सबसे बड़े संकट से जूझ रही है, वह है जलवायु परिवर्तन। यह अब केवल पर्यावरण या मौसम का सवाल नहीं रहा, बल्कि सीधे तौर पर मानव जीवन और स्वास्थ्य का सवाल बन चुका है। हाल ही में प्रकाशित द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज 2025 की रिपोर्ट ने इस खतरे की गंभीरता को स्पष्ट कर दिया है।

रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ती गर्मी अब हर मिनट एक व्यक्ति की जान ले रही है। यह आंकड़ा बताता है कि जलवायु संकट अब किसी भविष्य की चेतावनी नहीं, बल्कि वर्तमान की सच्चाई बन चुका है।

बढ़ती गर्मी से होने वाली मौतें

रिपोर्ट में कहा गया है कि 1990 के दशक के बाद से गर्मी से होने वाली मौतों में 23 फीसदी की वृद्धि हुई है। साल 2012 से 2021 के बीच हर साल औसतन 5.46 लाख लोग केवल गर्मी के कारण अपनी जान गंवा बैठे हैं। इसका मतलब है कि पूरे साल, हर एक मिनट में एक व्यक्ति गर्मी की वजह से मर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये सभी मौतें पूरी तरह रोकी जा सकती हैं, यदि हम समय रहते प्रभावी कदम उठाएं।

बढ़ते तापमान का प्रभाव

बीते चार सालों में औसतन हर व्यक्ति को साल में लगभग 19 दिन खतरनाक गर्मी का सामना करना पड़ा। इनमें से 16 दिन केवल मानवजनित ग्लोबल वार्मिंग के कारण हुए हैं। इन दिनों में न केवल जान का खतरा बढ़ता है, बल्कि काम करने की क्षमता पर भी गहरा असर पड़ता है। रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में अत्यधिक गर्मी के कारण 639 अरब घंटे के श्रम का नुकसान हुआ, जिससे गरीब देशों को अपनी राष्ट्रीय आय का लगभग छह फीसदी का नुकसान हुआ।

प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन की भूमिका

इस संकट की सबसे बड़ी वजह है दुनिया की जीवाश्म ईंधनों (फॉसिल फ्यूल) - कोयला, तेल और गैस पर निर्भरता। ये न केवल धरती को गर्म कर रहे हैं, बल्कि वायु प्रदूषण के जरिए हर साल लाखों लोगों की जान भी ले रहे हैं। 2023 में दुनिया भर की सरकारों ने 956 अरब डॉलर (लगभग 2.5 अरब डॉलर हर दिन) की सीधी सब्सिडी इन कंपनियों को दी। यह राशि उतनी ही है जितनी लोग गर्मी की वजह से काम न कर पाने के कारण खो रहे हैं।

चौंकाने वाली बात यह है कि 15 देशों ने अपने स्वास्थ्य बजट से भी अधिक धन जीवाश्म ईंधनों पर खर्च किया। इनमें सऊदी अरब, मिस्र, वेनेज़ुएला और अल्जीरिया जैसे देश शामिल हैं।

जंगल की आग और खाद्य संकट

बढ़ती गर्मी और सूखे के कारण जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी तेजी से बढ़ी हैं। 2024 में जंगल की आग से हुई मौतों की संख्या 1.54 लाख तक पहुंच गई। साथ ही, सूखे और लू से फसलें और पशुधन बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

2023 में 12.3 करोड़ अतिरिक्त लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे, जो 1981 से 2010 की औसत संख्या से कहीं अधिक है। इसका सीधा असर गरीब और विकासशील देशों पर पड़ा है।

वित्तीय असमानता और नीतिगत विफलता

जहां एक ओर जलवायु संकट से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के कॉप29 सम्मेलन में केवल 300 अरब डॉलर सालाना देने का वादा किया गया, वहीं दूसरी ओर दुनिया ने तीन गुना अधिक धन जीवाश्म ईंधनों पर खर्च कर दिया।

दुनिया के 100 सबसे बड़े तेल और गैस उत्पादक कंपनियों ने उत्पादन बढ़ाने की योजना बनाई है, जिससे कार्बन उत्सर्जन पेरिस समझौते के लक्ष्य से तीन गुना अधिक हो जाएगा। इतना ही नहीं, बड़े बैंकों ने भी 2024 में जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में 611 अरब डॉलर का निवेश किया, जबकि ग्रीन ऊर्जा में इससे कम, 532 अरब डॉलर का निवेश किया गया।

कुछ सकारात्मक संकेत

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पिछले दस सालों में कोयले के उपयोग में कमी से हर दिन लगभग 400 लोगों की जान बचाई गई है। साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा यानी सौर और पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है। दुनिया के कई शहर और स्थानीय समुदाय अब जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपने स्तर पर ठोस कदम उठा रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक हम जीवाश्म ईंधनों के विस्तार को वित्तीय सहायता देना बंद नहीं करेंगे, तब तक एक स्वस्थ भविष्य संभव नहीं है।

आगे का रास्ता

रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि जलवायु संकट केवल पर्यावरण का विषय नहीं है, यह सार्वजनिक स्वास्थ्य की सबसे बड़ी चुनौती है। अब समय आ गया है कि सरकारें, उद्योग और समाज मिलकर ऐसे कदम उठाए जो धरती को ठंडा और जीवन को सुरक्षित बनाएं। इसके लिए हमें चाहिए:

  • जीवाश्म ईंधनों पर सब्सिडी खत्म करना

  • नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश बढ़ाना

  • शहरों और गांवों में अनुकूलन योजनाएं लागू करना

  • स्वस्थ और जलवायु-अनुकूल आहार अपनाना

  • स्थानीय समुदायों को जलवायु कार्यों में शामिल करना

जलवायु परिवर्तन अब कोई दूर का खतरा नहीं रहा। यह हर व्यक्ति के जीवन, स्वास्थ्य और भविष्य को प्रभावित कर रहा है। अगर दुनिया ने जल्द और ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाले वर्षों में यह संकट और गहराएगा।

फिर भी, समाधान हमारे पास हैं, स्वच्छ ऊर्जा, टिकाऊ विकास और सामूहिक इच्छाशक्ति। अब जरूरत है केवल एक फैसले की जो तय करे कि धरती को बचाना या इसे जलते देखना है।