शोध में सामने आया कि इनहेलर का उत्सर्जन 5.3 लाख पेट्रोल कारों के बराबर प्रदूषण करता है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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अस्थमा इनहेलर से हर साल 20 लाख मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन, पर्यावरण के लिए खतरा

अस्थमा और सीओपीडी में उपयोग होने वाले इनहेलर पर्यावरण पर गंभीर असर डाल रहे हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैसें तेजी से बढ़ रही हैं।

Dayanidhi

  • मीटर्ड-डोज इनहेलर (एमडीआई) से हुआ 98 फीसदी कार्बन उत्सर्जन, जो हर साल 20 लाख मीट्रिक टन से अधिक है।

  • ड्राई पाउडर और सॉफ्ट मिस्ट इनहेलर पर्यावरण के लिए सुरक्षित विकल्प हैं क्योंकि इनमें प्रोपेलेंट गैस का उपयोग नहीं होता।

  • शोध में सामने आया कि इनहेलर का उत्सर्जन 5.3 लाख पेट्रोल कारों के बराबर प्रदूषण करता है।

  • विशेषज्ञों ने सुझाया कि नीति, तकनीक और जागरूकता के जरिए इनहेलर से होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव को घटाया जा सकता है।

अस्थमा और क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के इलाज में इनहेलर एक जरूरी दवा संबंधी उपकरण बन चुके हैं। लेकिन एक नई अमेरिकी अध्ययन के अनुसार, ये इनहेलर न सिर्फ सांस की बीमारियों से लड़ने में मदद कर रहे हैं, बल्कि पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स (यूसीएलए) द्वारा किए गए इस अध्ययन में यह बात सामने आई है कि पिछले 10 सालों में अमेरिका में इनहेलर के उपयोग से हर साल 20 लाख मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन हुआ है। यह उत्सर्जन लगभग 5.3 लाख पेट्रोल-चालित कारों के सालाना उत्सर्जन के बराबर है।

शोध के मुख्य निष्कर्ष: सबसे अधिक नुकसानदायक हैं मीटर्ड-डोज इनहेलर, इस अध्ययन में अमेरिका में 2014 से 2024 तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया, जिसमें तीन प्रकार के इनहेलर शामिल थे:

  • मीटर्ड-डोज इनहेलर (एमडीआई)

  • ड्राई पाउडर इनहेलर (डीपीआई)

  • सॉफ्ट मिस्ट इनहेलर

सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि कुल उत्सर्जन का 98 फीसदी केवल मीटर्ड-डोज इनहेलर से आया। इसका कारण है इनमें प्रयुक्त हाइड्रोफ्लोरोएल्केन (एचएफए) प्रोपेलेंट, जो कि एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। पहले यह स्प्रे और एरोसोल उत्पादों में भी उपयोग होती थी, लेकिन अब इसकी जगह अधिक पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों की सिफारिश की जाती है।

इसके विपरीत, ड्राई पाउडर इनहेलर और सॉफ्ट मिस्ट इनहेलर बिना प्रोपेलेंट के दवा प्रदान करते हैं, जिससे उनका कार्बन फुटप्रिंट बहुत कम होता है।

स्वास्थ्य सेवा और पर्यावरण के बीच की टकराहट

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया कि इनहेलर अमेरिका की स्वास्थ्य प्रणाली के कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ा रहे हैं, जिससे उन्हीं मरीजों की स्थिति और बिगड़ सकती है जो पहले से ही सांस की बीमारियों से पीड़ित हैं।

जामा नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को सिर्फ बीमारी के इलाज तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उसे पर्यावरणीय प्रभावों को भी ध्यान में रखना होगा।

शोधकर्ताओं ने अमेरिका के एक नेशनल ड्रग कोड (एनडीसी) स्तर के व्यापक डाटाबेस का उपयोग करके विभिन्न ब्रांड, दवा प्रकारों, इनहेलर डिजाइनों, प्रोपेलेंट की मात्रा, बीमा प्रदाताओं और फार्मेसी बेनिफिट मैनेजर की भूमिका का विश्लेषण किया।

शोध में कहा गया कि अब शोधकर्ता आगे दवा लेने वाली जैसी विशेष आबादी में इनहेलर के पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन करने जा रही है। इसके अलावा वे यह भी अध्ययन करेंगे कि क्या कम-उत्सर्जन इनहेलर उतने ही प्रभावशाली हैं जितने पारंपरिक इनहेलर। साथ ही, दवा कंपनियों की कीमत निर्धारण और पेटेंट रणनीतियों का विश्लेषण भी किया जाएगा।

बदलाव की दिशा में कदम

इस अध्ययन के प्रकाश में आने के बाद अब डॉक्टरों, मरीजों और नीति-निर्माताओं के पास एक अवसर है कि वे स्वास्थ्य देखभाल को अधिक सतत बना सकें। कुछ सुझाए गए कदम इस प्रकार हैं:

  • चिकित्सकों को चाहिए कि जब भी संभव हो, वे ड्राई पाउडर या सॉफ्ट मिस्ट इनहेलर को प्राथमिकता दें।

  • स्वास्थ्य नीति निर्माताओं को पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों पर आधारित इनहेलर के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन देने की जरूरत है।

  • जन जागरूकता अभियान चलाए जाएं ताकि मरीज भी अपने डॉक्टर से पर्यावरण-मित्र विकल्पों के बारे में पूछ सकें।

  • दवा कंपनियों को चाहिए कि वे कम उत्सर्जन वाले विकल्पों को सुलभ और किफायती बनाएं।

रोगियों और धरती दोनों की रक्षा संभव

इस अध्ययन से यह सिद्ध हो गया है कि यदि हम पर्यावरणीय प्रभावों को अनदेखा करते रहेंगे, तो यह न केवल धरती के लिए नुकसानदायक होगा, बल्कि स्वयं रोगियों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाल सकता है।

शोध में कहा गया है कि बदलाव की दिशा में पहला कदम है समस्या के पैमाने को समझना। उसके बाद हम लक्षित रणनीतियां बना सकते हैं जो मरीजों और पर्यावरण दोनों के लिए फायदेमंद हों।

अब समय आ गया है कि हम अपनी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को स्वस्थ और पर्यावरण के अनुकूल दोनों बनाएं,क्योंकि स्वस्थ मरीज तभी संभव हैं जब हमारा पर्यावरण भी स्वस्थ हो।