जहरीली हवा से निजात पाने के लिए बदलना होगा कायदा

जहरीली हवा से निजात पाने के लिए बदलना होगा कायदा

उद्योग, परिवहन, कचरे और ठोस ईंधन के जलने से होने वाले उत्सर्जन पर प्रभावी रूप से नियंत्रण पाने के लिए भारत के प्रमुख स्वच्छ वायु कार्यक्रम को पीएम10 से आगे निकलकर पीएम2.5 पर लगाम लगाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए
Published on

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) की मियाद पूरी होने में महज 2 साल बाकी हैं। यह राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक से अधिक प्रदूषक कणों को लगातार दर्ज करने वाले 131 शहरों के लिए स्वच्छ हवा के लक्ष्य तय करने का पहला प्रयास है। इन शहरों को गैर-प्राप्ति (नॉन अटेनमेंट) शहरों का दर्जा मिला है। कार्यक्रम के तहत 2019-20 आधार वर्ष की तुलना में 2025-26 तक प्रदूषक कणों की सघनता (कॉन्सेंट्रेशन) में 40 प्रतिशत कमी लाना है। सवाल है कि क्या एनसीएपी अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए सही रास्ते पर है? केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जनवरी 2019 में शुरू किया गया एनसीएपी वायु गुणवत्ता में सुधार की दिशा में पहला प्रदर्शन आधारित वित्तपोषण कार्यक्रम है।

एनसीएपी के तहत फंडिंग हासिल करने के लिए शहरों को वायु गुणवत्ता में सुधार का प्रदर्शन करना होता है। कोष के इस प्रवाह के तीन प्रमुख दृष्टिकोण हैं: 1) एनसीएपी कार्यक्रम के तहत 82 शहरों को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा आवंटित कोष; 2) 42 शहरों और 10 लाख से अधिक आबादी वाले सात नगरीय समूहों को 15वें वित्त आयोग से सीधी फंडिंग; और 3) सम्मिलित फंडिंग जो स्वच्छ वायु लक्ष्यों पर परिणाम देने को लेकर क्षेत्रवार योजनाओं के लिए अलग-अलग कोषों का मेल है। एनसीएपी के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 2019-20 में 82 शहरों के लिए शहर-विशिष्ट लक्ष्य तय किए ताकि 2021-26 तक पीएम10 के स्तरों में 3-15 प्रतिशत की कमी लाई जा सके। साथ ही 2026 तक 40 प्रतिशत कटौती का लक्ष्य रखा गया है। इसके अतिरिक्त 15वें वित्त आयोग के वायु गुणवत्ता अनुदान के तहत 49 शहरों के समक्ष पीएम10 के स्तरों में 15 प्रतिशत तक की कमी लाने के साथ-साथ अच्छी वायु गुणवत्ता वाले दिनों (जब हवा की गुणवत्ता सूचकांक 200 से नीचे हो) की संख्या में बढ़ोतरी का लक्ष्य है।

एनसीएपी के तहत मुहैया की जाने वाली रकम को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जरिए संबंधित विभागों तक भेजा जाता है, जबकि 15वें वित्त आयोग की फंडिंग को राज्यों के वित्त विभागों से शहरी स्थानीय निकायों तक पहुंचाया जाता है। भले ही प्रदर्शन के मूल्यांकन के मापदंड अभी उभर रहे हैं, लेकिन फिलहाल इसके तहत शहरों को पीएम10 के स्तरों में सुधार दिखाना आवश्यक है। हालांकि, मूल्यांकन के लिए अपनाई गई प्रणाली की प्रभावशीलता संदेह के घेरे में है।

मूल्यांकन प्रक्रिया

एनसीएपी कार्यक्रम के तहत 82 एनसीएपी शहरों का प्रदर्शन मूल्यांकन, विशिष्ट लक्ष्य के सापेक्ष आधार वर्ष से मौजूदा वर्ष में पीएम10 के स्तरों में गिरावट से निर्धारित होता है। इसके विपरीत 15वें वित्त आयोग के तहत 49 शहरों का मूल्यांकन पिछले वर्ष की तुलना में पीएम10 के स्तरों में भारी गिरावट और बेहतर वायु गुणवत्ता वाले दिनों (15 फीसदी या अधिक) में बड़े सुधारों के आधार पर किया जाता है। इस कड़ी में स्वच्छ वायु सर्वेक्षण (एसवीएस) एक और समानांतर कार्यक्रम है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने नीतिगत उपायों को लागू किए जाने के स्तर के आधार पर शहरों की रैंकिंग तय करने के लिए 2022 में इसकी शुरुआत की थी। एसवीएस ने एक अहम बदलाव लाते हुए जनसंख्या-आधारित रैंकिंग प्रणाली शुरू की। एनसीएपी के सभी 131 शहरों का एसवीएस के तहत भी मूल्यांकन किया जाता है।

नया मूल्यांकन आठ क्षेत्रों को वेटेज आवंटित करता है, जिसमें बायोमास और शहरी ठोस कचरा दहन को सबसे अधिक महत्व (20 प्रतिशत) दिया गया है। इसके बाद सड़कों की धूल, वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक उत्सर्जन का क्रम आता है। पीएम10 की सघनता में बेहतरी लाने और जन जागरुकता अभियानों को महज 2.5 प्रतिशत वेटेज ही है, जबकि निर्माण कार्यों और विध्वंस के कचरे से निकलने वाली धूल को 5 प्रतिशत वेटेज मिला है। एनसीएपी, 15वें वित्त आयोग और एसवीएस कार्यक्रम के विभिन्न दृष्टिकोणों के तहत अलग-अलग प्रणालियों में शहरों के मूल्यांकन किए जाते हैं। इनकी कमियों और पहले से ठोस और विस्तृत कार्यक्रम की जरूरतों को समझने के लिए दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने एनसीएपी के प्रदर्शन आधारित नियोजन और फंडिंग की समीक्षा की है।

स्रोत: गैर-प्राप्ति शहरों में वायु प्रदूषण के नियमन के लिए पोर्टल (पीआरएएनए)- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की क्रियान्वयन समिति की 15वीं बैठक का विवरण, 24 नवंबर 2023 को प्राप्त

कमियां और सुझाव

एनसीएपी की रूपरेखा ने स्वच्छ हवा से जुड़ी कार्रवाई में बहु-क्षेत्रीय और बहु-विभागीय हिस्सेदारी की जरूरत तैयार करने में मदद की है, जो पहले नदारद थी। इससे एक रणनीतिक बदलाव आया है जिसके तहत विभिन्न विभाग स्वच्छ वायु कार्रवाई में योगदान देने के लिए योजनाएं बनाकर उनमें भागीदारी कर रहे हैं। लक्षित शहरों में प्रदूषण के स्रोतों के आकलन लिए काफी प्रयास किए गए हैं। इससे स्थानीय डेटा के निर्माण को बढ़ावा मिला है, जो पहले उपलब्ध नहीं था। अनुपालन के लिए वायु गुणवत्ता की पड़ताल करने के मकसद से एनसीएपी ने वायु गुणवत्ता निगरानी व्यवस्था के विस्तार में भी मदद की है। इससे उन तमाम इलाकों से भी आंकड़े तैयार हो पा रहे हैं जहां से पहले उपलब्ध नहीं हो पाते थे। इतना कुछ होने के बाद भी एनसीएपी को सुस्त करने वाली निम्न कमियों पर बात जरूरी है:

(1) कोष का बड़ा हिस्सा धूल प्रबंधन में जा रहा है: वैसे तो एनसीएपी कार्यक्रम की योजना गैर-प्राप्ति शहरों में मूल रूप से पीएम10 और पीएम2.5 की सघनता, दोनों में कमी लाने के लिए बनाई गई थी, लेकिन व्यवहार में केवल पीएम10 पर ही विचार किया जाता है। पीएम10 प्रदूषक कणों का मोटा हिस्सा है और ये व्यापक रूप से हवा से उड़कर आने वाली धूल से प्रभावित होता है। इस प्रकार, मोटे तौर पर दहन स्रोतों से उत्सर्जित होने वाला पीएम2.5 (जो पीएम10 का बेहद छोटा और ज्यादा नुकसानदेह उप समूह है) नजरअंदाज हो जाता है। 15वें वित्त आयोग के अनुदान के तहत 10 लाख से अधिक आबादी वाले हर शहर में पीएम2.5 के मॉनिटर्स हैं और वो तत्काल पीएम2.5 पर आधारित प्रदर्शन फंडिग व्यवस्था में शामिल हो सकते हैं। पीएम10 पर जोर देने से एनसीएपी और 15वें वित्त आयोग के अनुदानों के तहत क्षेत्रवार खर्च प्रभावित हो रहा है। कुल रकम का लगभग 64 प्रतिशत हिस्सा सड़कों को पक्का करने और चौड़ीकरण, दरारों और गड्ढों की मरम्मत, पानी के छिड़काव और यांत्रिक साफ-सफाई को चला गया है (देखें, “गलत प्राथमिकता” )। इसकी तुलना में ज्यादा नुकसानदेह प्रदूषक उत्सर्जित करने वाले दहन स्रोतों के लिए काफी कम वित्त आवंटित किए गए हैं। बायोमास दहन पर नियंत्रण के लिए कुल वित्तपोषण का सिर्फ 14.51 प्रतिशत, वाहन प्रदूषण के लिए 12.63 प्रतिशत और औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण के लिए महज 0.61 प्रतिशत वित्त का प्रावधान किया गया है। ऐसी फंडिंग का प्राथमिक जोर सड़कों पर धूलकणों की रोकथाम पर है। इसकी बजाए एनसीएपी और 15वें वित्त आयोग अनुदानों के लिए समर्पित वित्तपोषण को परिवहन, उद्योग, कचरा प्रबंधन और ठोस ईंधन जैसे क्षेत्रों में प्राथमिकतापूर्ण उपायों से जोड़ा जाना चाहिए।

(2) प्रदर्शन आधारित फंडिंग के लिए पीएम2.5 को मानदंड बनाएं: पीएम2.5 के नियमन पर वित्त पोषण के लिए शहरों के प्रदर्शन मूल्यांकन को आधार बनाना बेहद जरूरी है। वायु गुणवत्ता में सुधार का आकलन करने के लिए यह एक अधिक प्रासंगिक स्वस्थ संकेतक है। अलग-अलग शहरों में पीएम2.5 स्रोतों की समीक्षा से पता चलता है कि उत्तर के शहरों में पीएम2.5 स्तरों में सड़क किनारे की धूल का योगदान ज्यादा हो सकता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में पीएम2.5 स्तरों में दहन स्रोतों (उद्योग, वाहन और कचरा दहन समेत) का बड़ा योगदान है (देखें, “पीएम2.5 का भार”)।

सर्दियों में जब लगभग हर शहर में प्रदूषण का स्तर आसमान छूने लगता है, सड़क की धूल का हिस्सा काफी हद तक कम हो जाता है जबकि दहन स्रोतों के हिस्से में नाटकीय बढ़ोतरी होती है। उद्योग, वाहन, खुले में दहन, रसोई के लिए ठोस ईंधन, कूड़ा जलाए जाने और डीजल जेनेरेटर सेट्स से होने वाले उत्सर्जन के शमन के लिए अब नियमन प्रक्रिया को पीएम2.5 की ओर मोड़े जाने की आवश्यकता है।

*राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत 131 शहरों में से केवल इन 16 शहरों के उत्सर्जन की सूची ही सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं। स्रोत: विभिन्न शहरों की उत्सर्जन सूची
*राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत 131 शहरों में से केवल इन 16 शहरों के उत्सर्जन की सूची ही सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं। स्रोत: विभिन्न शहरों की उत्सर्जन सूची

(3) शहरों के प्रदर्शन के मूल्यांकन में मापकों के बीच असंतुलन: एनसीएपी के तहत पीएम10 स्तरों में सुधार के लिए ऊंचे अंक हासिल करने वाले शहरों को एसवीएस या इसके विपरीत कार्रवाई में अक्सर नीचे का दर्जा दिया जाता है। नीतिगत क्रियान्वयन और पीएम10 सुधार के बीच कोई स्पष्ट सह-संबंध नहीं है। उदाहरण के तौर पर सीएसई के आकलन से पता चलता है कि 2022-23 में आगरा, दिल्ली, गाजियाबाद, मेरठ और जबलपुर जैसे शहरों (10 लाख से अधिक आबादी वाली श्रेणी) का एसवीएस के तहत प्रदर्शन भले ही अच्छा था लेकिन एनसीएपी के तहत पीएम10 में कमी लाने में उनका प्रदर्शन लचर रहा। नीतिगत उपायों को लागू करने के लिए दिल्ली को एसवीएस के तहत 9वीं रैंक मिली लेकिन एनसीएपी में शून्य अंक के साथ यह सबसे नीचे था। 3 लाख से 10 लाख की जनसंख्या श्रेणी में एसवीएस के तहत कदम उठाने में अमरावती, गुंटूर और राजामुंद्री का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा लेकिन एनसीएपी के तहत ये सबसे निचले पायदान पर रहे। 3 लाख से कम आबादी वाले शहरों में काला अंब, अंगुल और तालचेर एसवीएस के तहत शीर्ष पर रहे लेकिन एनसीएपी में उनका क्रम सबसे नीचे रहा। साफ तौर पर नीतिगत कार्रवाई और पीएम10 स्तरों में सुधार के बीच कोई स्थापित कड़ी नहीं है। जैसे-जैसे एनसीएपी अपने आखिरी चरण की ओर बढ़ रहा है, मूल्यांकन मापदंडों में संशोधन निहायत जरूरी हो गए हैं ताकि इसमें एक वृहद और ज्यादा समावेशी दृष्टिकोण शामिल हो सके। पीएम2.5 की ओर रुख करने से शहरों के प्रयासों और वायु गुणवत्ता में सुधार की ओर प्रगति का ज्यादा सटीक और निष्पक्ष मूल्यांकन सुनिश्चित होगा।

(4) जहरीले उत्सर्जकों को बाहर छोड़ने वाले दहन स्राोतों को प्राथमिकता देने, तकनीकी रोडमैप और संरचना में परिवर्तन लाने के लिए सुधार: शहर-विशिष्ट कार्रवाई और स्पष्ट रूप से पालन की जाने वाली नगरपालिका सीमाओं के चलते ज्यादातर औद्योगिक स्रोत और बिजली संयंत्र शहर की कार्य योजनाओं के दायरे से बाहर रहते हैं। शहरों के गैर-अनुपालक इलाकों में मौजूद लघु और मध्यम स्तरीय इकाइयों पर ऐसी कार्य योजनाओं में अक्सर विचार नहीं किया जाता है। कार्रवाई, तकनीक परिवर्तन और संरचना में बदलाव को सहारा देने के लिए बेहतर रूप से वित्तपोषित योजनाओं की कमी जैसे विविध मसले और नए युग की नीतियों की जटिलता इन क्षेत्रों में कार्रवाई को धीमा कर रही हैं।

(5) परिवहन उत्सर्जन पर अपर्याप्त ध्यान: परिवहन क्षेत्र के लिए सीपीसीबी संकेतकों को मौजूदा परिवहन और शहरी नियोजन नीतियों के हिसाब से परिभाषित नहीं किया गया है। ऑन-रोड उत्सर्जन प्रबंधन के लिए जानकारी मुख्य रूप से पॉल्यूशन अंडर-चेक (पीयूसी) चालानों और पुराने वाहनों को चरणबद्ध रूप से हटाने तक सीमित है। लेकिन यह केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की प्रभावी नवीकरण और स्क्रैपेज नीतियों में परिलक्षित नहीं हुई। राज्य सरकारों ने भी क्रियात्मक बदलाव लाने और सवारियों की संख्या बढ़ाने में सक्षम होने के लिए सार्वजनिक परिवहन बुनियादी ढांचे के नियोजन में राज्य और शहर-स्तरीय दिशानिर्देशों और सेवा-स्तरीय मानदंडों को पर्याप्त रूप से नहीं अपनाया है। सीपीसीबी को स्पष्ट मार्गदर्शन विकसित करते हुए परिवहन संकेतकों को केंद्र की नीतियों से जोड़ना चाहिए।

(6) उद्योग पर ध्यान की कमी: औद्योगिक क्षेत्र के लिए रिपोर्टिंग की प्रक्रिया मोटे तौर पर जस की तस बनी हुई है। स्टैक उत्सर्जन निगरानी, चालान और क्लोजर नोटिस या स्वीकृत ईंधन सूची की अधिसूचना पर न्यूनतम रिपोर्टिंग होती है। औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण पर उठाए गए कदमों को तभी रिपोर्ट किया जाता है जब गैर-प्राप्ति शहर औद्योगिक हो। नियमों पर सख्ती से अमल और जमीनी क्रियान्वयन पर निगरानी के लिए प्रभावी निगरानी तंत्र की आवश्यकता है।

(7) ठोस ईंधनों के दहन को नजरअंदाज किया गया: सीपीसीबी के अनुसार गंगा के मैदानी क्षेत्र के सात राज्यों में घरों और खुले ढाबों में खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन का उपयोग शीर्ष प्रदूषकों में से एक है। हालांकि केंद्र सरकार के कार्यक्रमों से राष्ट्रीय स्तर पर तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) का उपयोग बढ़ा है, लेकिन इस दिशा में प्रभावी बदलाव लाने के लिए अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। पश्चिम बंगाल जैसे राज्य उत्सर्जन में कटौती करने के लिए कोलकाता में ठोस ईंधन स्टोव के स्थान पर एलपीजी स्टोव के उपयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। साथ ही धुआं रहित चूल्हे का भी वितरण किया जा रहा है।

(8) शहरों और राज्यों में स्थानीय कार्रवाई को सक्षम बनाने के लिए राष्ट्रीय नीतियों को और मजबूत बनाने की जरूरत: उद्योग, बिजली संयंत्र, सार्वजनिक परिवहन बुनियादी ढांचा, कचरा प्रबंधन और स्वच्छ ईंधनों से जुड़ी तमाम रणनीतियों में केंद्र की मदद की जरूरत है। मिसाल के तौर पर, राज्य सरकारों ने स्वीकृत ईंधन सूचियां जारी की हैं, लेकिन ईंधन के ढांचागत विकास और वित्तपोषण के साथ-साथ ईंधन मूल्य निर्धारण नीति के लिए केंद्र के हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार, राज्य करों से बचने और अधिक प्रदूषणकारी ईंधनों की तुलना में किफायती बने रहने के लिए प्राकृतिक गैस का वस्तु और सेवा कर व्यवस्था के तहत रहना जरूरी है।

(9) निरंतर और मापनीय कार्रवाई के लिए केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर टिकाऊ वित्तपोषण रणनीति की आवश्यकता: 15वें वित्त आयोग के अनुदान के तहत मौजूदा वित्तपोषण 2025-26 में समाप्त हो रहा है। एनसीएपी के लिए केंद्रीय आवंटन की मापनीयता भी अस्पष्ट बनी हुई है। इस सिलसिले में एक चुनौती कोष शुरू किए जाने का प्रस्ताव है जिसके विशिष्ट क्षेत्रीय रणनीतियों के लिए चिन्हित किए जाने की संभावना है। सभी राज्यों में क्रियान्वयन के लिए इसे बेहतर रूप से डिजाइन किए जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: सीएसई द्वारा संकलित। गैर-प्राप्ति शहरों में वायु प्रदूषण के नियमन के लिए पोर्टल (पीआरएएनए) पर आधारित डेटा- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की क्रियान्वयन समिति की 16वीं बैठक का विवरण, 3 मई 2024 को प्राप्तç
स्रोत: सीएसई द्वारा संकलित। गैर-प्राप्ति शहरों में वायु प्रदूषण के नियमन के लिए पोर्टल (पीआरएएनए) पर आधारित डेटा- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की क्रियान्वयन समिति की 16वीं बैठक का विवरण, 3 मई 2024 को प्राप्तç

2030 तक स्वच्छ वायु कार्रवाई के लिए संसाधन जुटाने और उनका तालमेल बिठाने के लिए ज्यादा संरचनात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। अगले चरण में स्वच्छ तकनीक, ईंधन, हरित बुनियादी ढांचा और अर्बन डिजाइन सॉल्यूशन के हिसाब से कार्रवाई को गति देने के लिए क्षेत्रवार वित्तपोषण रणनीतियों की आवश्यकता है। करों, मूल्य निर्धारण नीतियों और उपकरों की संरचना तैयार करने के लिए “प्रदूषण फैलाने वालों द्वारा भुगतान” किए जाने के सिद्धांत को लागू किए जाने की जरूरत है। इससे लक्षित कार्रवाई के लिए समर्पित कोष तैयार हो सकेगा। कार्रवाई के प्रमुख वाहक के तौर पर नगरपालिकाओं को हरित नगरपालिका बॉन्ड की संभावना तलाशनी चाहिए।

(10) शहरों से परे जाकर, क्षेत्रीय या एयरशेड दृष्टिकोण अपनाएं: शहर केवल स्थानीय उपायों के जरिए अपने स्वच्छ वायु लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते; सीमा-पार प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए क्षेत्रीय स्तर की कार्रवाई आवश्यक है। एनसीएपी ने क्षेत्रीय दृष्टिकोण और अंतर-राज्यीय समन्वय के विचार को स्वीकार किया है। क्षेत्रीय स्रोत बंटवारा अध्ययनों से प्राप्त जानकारी को शामिल करके समग्र क्षेत्रीय योजना जरूरी है। राज्य के भीतर हवा की दिशा वाले प्रदूषण स्रोतों का हवा की विपरीत दिशा में वायु गुणवत्ता पर प्रभाव को कम से कम करने के लिए राज्य कार्य योजनाओं का भरपूर उपयोग करना होगा। एयरशेड दृष्टिकोण अपनाने की शुरुआत करने वाला उत्तर प्रदेश ऐसा ही एक राज्य है। शहरों की रैंकिंग तय करने और उन्हें अंक देने की व्यवस्था विभिन्न शहरों में क्षेत्रवार अच्छी प्रथाओं का ब्योरा सामने लाने का अवसर देती है। अगर इन्हें ठीक ढंग से समझा गया तो ये दूसरों के लिए कार्रवाई की गुणवत्ता और पैमाने से सबक लेने का माध्यम बन सकती है।

पाई-पाई का इस्तेमाल हो

केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की 2023-24 की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-20 से 2025-26 तक 131 शहरों के लिए 19,711 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए हैं, लेकिन कोष का सकल उपयोग नहीं हुआ। 3 मई 2024 तक एनसीएपी और 15वें वित्त आयोग के 131 शहरों को कुल 10,566.47 करोड़ रुपए की रकम जारी की जा चुकी है, जिनमें से सिर्फ 64 प्रतिशत का ही उपयोग हो सका है। इनमें से 51 प्रतिशत (831.42 करोड़ रुपए) का उपयोग 82 गैर-प्राप्ति शहरों और 67 प्रतिशत (5,974.73 करोड़ रुपए) का उपयोग 15वें वित्त आयोग के 49 शहरों द्वारा किया गया है (देखें, “लंबित उपयोग, पेज 47”)। 15वें वित्त आयोग के 49 शहरों की तुलना में एनसीएपी के 82 शहरों में उपयोग काफी कम है। सीएसई का विश्लेषण एनसीएपी में तत्काल सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करता है। एनसीएपी, 15वें वित्त आयोग और एसवीएस मूल्यांकनों के तहत इन 131 शहरों के प्रदर्शन का सटीक ढंग से मूल्यांकन करने के लिए पीएम2.5 को ध्यान में रखते हुए नए और ठोस मापदंड विकसित करना निहायत जरूरी हो जाता है। अगले चरण में ठोस कार्रवाई को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित हो सके।

Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in