
दो दशक पहले, चंडीगढ़ की चौड़ी सड़कों और कम यातायात को देखकर कई लोगों को लगता था कि यह शहर जरूरत से ज्यादा बड़ा बना दिया गया है। लेकिन 2025 तक आते-आते यह धारणा पूरी तरह पलट गई है। अब चंडीगढ़ में पंजीकृत वाहनों की संख्या इसकी मानव आबादी से भी ज्यादा हो चुकी है, जिससे यह भारत में प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा वाहनों वाला शहर बन गया है।
2023 की "एनुअल रिपोर्ट ऑन रोड सेफ्टी इन चंडीगढ़ 2023" के मुताबिक, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ की आबादी 12.5 लाख थी, जबकि यहां वाहनों की संख्या 13.2 लाख थी।
वाहनों की इस तेज बढ़ोतरी ने शहर की प्रसिद्ध ग्रिड प्रणाली पर भारी दबाव डाल दिया है। रोजाना आने-जाने वाले लोग बताते हैं कि यात्रा में लगने वाला समय काफी बढ़ गया है।
39 वर्षीय गुरनाज कौर बोपराय रोजाना गाड़ी से काम के लिए आती-जाती हैं। वह बताती हैं “कुछ साल पहले तीन किलोमीटर की दूरी तय करने में पांच से छह मिनट लगते थे। अब यही दूरी तय करने में 15 से 20 मिनट लगते हैं।” उन्होंने कहा कि ट्रैफिक सिग्नल की अवधि बढ़ने (अब कुछ स्थानों पर 120 सेकेंड तक) और गति सीमा कम होने से यह देरी हो रही है।
वहीं, रोड सेफ्टी कार्यकर्ता हरमन सिद्धू ने कहा, “यह शर्मनाक है कि एक योजनाबद्ध शहर जैसे चंडीगढ़ में तीन किलोमीटर की दूरी तय करने में 20 मिनट लगते हैं।”
निवासियों ने शिकायत की है कि अब पीक आवर्स में ट्रैफिक में फंसना आम हो गया है और सिग्नल पर दो चक्कर तक इंतजार करना पड़ता है। बोपराय ने बताया कि पहले एक ही सिग्नल में रास्ता मिल जाता था, लेकिन अब दो बार इंतजार करना पड़ता है।
ईंधन की खपत भी बढ़ गई है। टैक्सी चालक तरनजीत सिंह ने कहा, “पहले 15 लीटर पेट्रोल 15 दिन चल जाता था, अब हर 10 दिन में रिफिल कराना पड़ता है।” चंडीगढ़ प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक, दोपहिया वाहन चालकों की मासिक खपत करीब 20 से 45 लीटर होती है, जबकि कारें लगभग 200 लीटर प्रति माह ईंधन खपत करती हैं।
शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बसा और 114 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस शहर में लगातार वाहन स्वामित्व बढ़ता जा रहा है। 2022 में ही 52,996 नए वाहन पंजीकृत हुए थे, जो 2021 के 36,867 की तुलना में कहीं ज्यादा हैं। इनमें से 94 प्रतिशत निजी वाहन थे, जिसमें 54.2 प्रतिशत चारपहिया और 40 प्रतिशत दोपहिया वाहनों की संख्या थी । बसें, ऑटो, टैक्सी, ई-रिक्शा और मालवाहक वाहन मिलाकर सार्वजनिक व व्यावसायिक परिवहन का हिस्सा महज 6 प्रतिशत था।
कोविड-19 महामारी के दौरान वाहन पंजीकरण में गिरावट आई थी।2019 में 42,616 से घटकर 2020 में 29,518 हो गए थे। लेकिन उसके बाद से संख्या तेजी से बढ़ रही है।
चंडीगढ़ की मूल ग्रिड प्रणाली, जिसे चार्ल्स एडुअर्ड जेनेरेट और ले कॉर्बूसियर के नाम से मशहूर वास्तुकार ने 1950 के दशक में डिजाइन किया था। इसका उद्देश्य सुरक्षित पैदल यातायात और वाहनों का संतुलित प्रवाह सुनिश्चित करना था लेकिन अनियंत्रित विकास ने उस योजना को कमजोर कर दिया है। अब निजी कारों के बढ़ने से वही समस्याएं पैदा हो रही हैं जिनसे यह डिजाइन बचना चाहता था, आज स्थिति यह है कि पैदल यात्री और साइकिल सवार सबसे असुरक्षित हो गए हैं और उन्हें शहर में चलना खतरे से भरा लगता है।
हरमन सिद्धू का कहना है कि मोहाली, पंचकूला और मुल्लांपुर जैसे पड़ोसी शहरों को ले कॉर्बूसियर की योजना में 25 किलोमीटर के दायरे में अनविकसित रखना था, लेकिन अब ये जगहें भी तेजी से विकसित हो चुकी हैं और ट्रैफिक बढ़ा रही हैं।
चंडीगढ़ की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली संघर्ष कर रही है। चंडीगढ़ ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग (सीटीयू) के अनुसार, 2016-17 में बसों की संख्या 565 थी, जो 2018-19 में घटकर 534 रह गई, और उस दौरान यात्रियों की संख्या भी 5.69 लाख से घटकर 5.54 लाख हो गई।
हालांकि 2022-23 में बसों की संख्या 635 हो गई, लेकिन यात्री संख्या घटकर 2.19 लाख से 1.31 लाख रह गई। परिवहन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, निजी वाहनों की संख्या में बढ़ोतरी और बसों द्वारा सफर में लगने वाला अधिक समय इसके लिए जिम्मेदार है। सेक्टर 17 के बीचोंबीच स्थित सेंट्रल बस टर्मिनल को सेक्टर 43 के बाहरी इलाके में स्थानांतरित करने से भी समस्या बढ़ी है।
निवासियों का कहना है कि बस से यात्रा लंबी और थकाऊ हो गई है, जिसमें कई बार बस बदलनी पड़ती है और लंबा पैदल चलना पड़ता है। निवासी प्रमोद शर्मा ने कहा, “3-5 किलोमीटर की यात्रा में दो बार बस बदलनी पड़ती है और 600 मीटर पैदल चलना होता है। कार से यही दूरी आधे समय में तय हो जाती है।”
शहर की मूल योजना में सात प्रकार की सड़कें थीं, जिनका उद्देश्य पैदल और वाहन यातायात को अलग रखना था। आज वह व्यवस्था चरमराई हुई है। फुटपाथ और साइकिल ट्रैक अक्सर पार्किंग के लिए कब्जा कर लिए जाते हैं, जिससे पैदल यात्रियों की सुरक्षा खतरे में है।
वाहनों की भीड़ के कारण जाम और सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं। ट्रैफिक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में जहां पैदल मौतें कुल सड़क हादसों में 35 प्रतिशत थीं, वहीं 2023 में यह बढ़कर 42 प्रतिशत हो गईं। साइकिल चालकों की मौतें भी 10 प्रतिशत से बढ़कर 18 प्रतिशत हो गईं। 2023 में 90 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं तेज रफ्तार से चलने वाले निजी वाहनों के कारण हुईं। 25 पैदल यात्री उन इलाकों में मारे गए जहां फुटपाथ नहीं थे, जबकि तीन अन्य ज़ेब्रा क्रॉसिंग पर मारे गए।
पंचकूला से चंडीगढ़ तक रोजाना साइकिल से आने वाली गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. सुनैना बंसल ने कहा कि साइकिल स्टैंड और सुरक्षित लॉकिंग स्थानों की कमी एक बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा, “सरकार को बुनियादी ढांचा विकसित करना चाहिए ताकि लोग साइकिल को अपने रोज के आवागमन का माध्यम बना सकें।”
पैदल यात्री और साइकिल सवार दोनों ही खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि सड़कें अब मोटर गाड़ियों से भरी रहती हैं। स्थानीय निवासी सुनील डोगरा ने कहा, “हालांकि सरकार ने गति सीमा और ट्रैफिक जांच लागू की है, लेकिन रात के समय चारपहिया वाहन तेज़ी से चलते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि कई इलाकों में फुटपाथ और साइकिल ट्रैक पार्किंग के लिए कब्जा कर लिए गए हैं।
पर्यावरण विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक बृज भूषण पिछले तीन वर्षों से साइकिल से ऑफिस जा रहे हैं। 68 वर्षीय भूषण ने बताया कि छह किलोमीटर के सफर में उन्हें अवैध कब्जों, खुले मैनहोल और चौराहों पर तेज रफ्तार यातायात से जूझना पड़ता है।
उन्होंने कहा, “शहर में साइकिल के लिए काफी ढांचा है, और इसका 90 प्रतिशत काम कर रहा है। लेकिन ट्रैफिक सिग्नल अक्सर साइकिल सवारों के लिए बने सिग्नल से समन्वय नहीं रखते, जिससे भ्रम पैदा होता है और खतरा बढ़ता है।”
भूषण ने यह भी सुझाव दिया कि राउंडअबाउट और चौराहों पर विशेष स्लिप रोड या पैदल यात्री द्वीप बनाए जाएं, जिससे साइकिल चालकों और पैदल यात्रियों की सुरक्षा बढ़े।
वाहनों की बढ़ती संख्या के साथ वायु प्रदूषण भी तेजी से बढ़ा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार, पीएम 2.5 यानी महीन कणीय पदार्थ का स्तर 2020 में 33 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जो 2024 में बढ़कर 70 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गया — जबकि भारत में सुरक्षित सीमा 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। इसे हासिल करने के लिए 43 प्रतिशत की कटौती जरूरी है।
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के 2020 के वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के अनुसार, इस क्षेत्र के निवासियों की जीवन प्रत्याशा वायु प्रदूषण के कारण औसतन 5.9 साल कम हो सकती है।
चंडीगढ़ प्रशासन के पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त निदेशक नवीन कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि शहर में कोई बड़ा औद्योगिक क्षेत्र नहीं है, इसलिए वायु प्रदूषण का मुख्य कारण वाहन उत्सर्जन है।
पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के प्रोफेसर जेएस ठाकुर ने कहा कि वायु गुणवत्ता के बिगड़ने से फेफड़ों की पुरानी बीमारियों (सीओपीडी) के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है।
उन्होंने कहा, “कैंसर के मामलों में फेफड़ों का कैंसर सबसे ऊपर है, जिसका मुख्य कारण धूम्रपान और वायु प्रदूषण है। 2017-18 में कुल कैंसर मामलों में फेफड़ों के कैंसर की हिस्सेदारी 11.5 प्रतिशत थी, जो गंभीर है।” उन्होंने बच्चों में टीबी और सांस की बीमारियों में भी वृद्धि की बात कही।
परिवहन विभाग के अधिकारियों ने स्वीकार किया कि चंडीगढ़ की "कम्प्रिहेन्सिव मोबिलिटी प्लान 2031", जिसमें मेट्रो रेल और बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस) शामिल हैं,अब तक लागू नहीं हो सकी है।
एक अधिकारी ने डाउन टू अर्थ को बताया, “बाहरी रिंग रोड और सीएमपी के अन्य बड़े बुनियादी ढांचे अब तक धरातल पर नहीं उतर सके हैं। कुछ लोगों को चिंता है कि नए निर्माण कार्य शहर की वायु गुणवत्ता को और खराब कर सकते हैं और मौजूदा ग्रिड संरचना को नुकसान पहुंचा सकते हैं।”
इस संकट से निपटने के लिए प्रशासन निजी वाहनों की संख्या पर लगाम और इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। श्रीवास्तव ने कहा, “नया नीति इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को प्राथमिकता देती है, खासकर ऐसे शहर में जहां व्यास केवल 10 किलोमीटर है और लोग सार्वजनिक परिवहन का उपयोग नहीं करना चाहते।”
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने सितंबर 2022 में एक ईवी नीति शुरू की, जिसमें सब्सिडी और रजिस्ट्रेशन शुल्क माफ किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि ईवी की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत तक पहुंच गई, जो कि देश में सबसे अधिक बताई गई। प्रशासन अब 2025-26 तक इसे 18 प्रतिशत और 2035 तक 70 प्रतिशत करने का लक्ष्य रख रहा है।
इलेक्ट्रिक साइकिल के लिए 4,000 रुपये की सब्सिडी भी दी गई थी, लेकिन अधिकारियों ने माना कि इसका असर बहुत कम रहा है।
सिद्धू ने चेतावनी दी कि पेट्रोल कारों को ईवी में बदलने मात्र से अगर कुल कारों की संख्या कम नहीं की गई, तो जाम की समस्या बनी रहेगी। उन्होंने कहा, “एक निजी कमरे से निकलकर बस दूसरे निजी कमरे में जाने का क्या फायदा? ट्रैफिक की समस्या तो रहेगी ही।”
शर्मा हालांकि थोड़ी उम्मीद रखते हैं। “चंडीगढ़ अभी भी सुधार की स्थिति में है। अन्य महानगरों की तरह यह पूरी तरह बर्बाद नहीं हुआ है। हम शहर की मूल सुंदरता को वापस ला सकते हैं। इसे फिर से पैदल यात्रियों और साइकिल चालकों के लिए अनुकूल बनाना जरूरी है, जैसा कि ले कॉर्बूसियर ने सपना देखा था। उन्होंने कहा था कि लोग चंडीगढ़ में कारों को नहीं, प्रकृति को देखने आएंगे।”