भारत में आवाजाही : देश की पहली प्राइवेट सिटी में शिक्षित बेरोजगारों के हवाले दौड़ता बेदम निजी परिवहन

  श्रमिकों की बड़ी संख्या होने के बावजूद इस शहर में अब साइकल का क्रेज खत्म हो गया। छह घंटे में एक साइकल बेचने वाला शहर अब छह दिन में दो साइकल बेच पा रहा है।
जमशेदपुर में ऑटो स्थानीय आवाजाही के लिए प्रमुख साधन बना हुआ है। फोटो : विकास चौधरी/सीएसई
जमशेदपुर में ऑटो स्थानीय आवाजाही के लिए प्रमुख साधन बना हुआ है। फोटो : विकास चौधरी/सीएसई
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“इस पूरी तरह निजी शहर में कोई सरकारी सार्वजनिक परिवहन नहीं है। नई पीढ़ियां तो इस सरकारी सार्वजनिक परिवहन और उसकी महत्वता को शायद जानती भी नहीं हैं। किसी जमाने में (1970 से पहले) झारखंड सरकार की लाल बसें शहर में चला करती थीं। वही, जमशेदपुर में आवाजाही का प्रमुख साधन था। किराया पांच और दस पैसे तक हुआ करता था। न जाने बसें कहां गईं। अब तो सड़कों पर सिर्फ दोपहिया, तीनपहिया और चारपहिया जैसे निजी वाहनों का ही राज है।” 

देश के सबसे पहले निजी शहर टाटा के नाम से मशहूर जमशेदपुर के बर्मा माइंस क्षेत्र में चाय की दुकान पर अपने बूढ़े मित्र के साथ बैठे 66 वर्षीय धनराज यह बताते हुए पुराने दिनों में लौट जाते हैं।

वह कहते हैं, “सिर्फ साइकल और सार्वजनिक बसें ही शहर में एक जगह से दूसरी जगह जाने का जरिया थीं। जनसंख्या भी तबसे काफी बढ़ चुकी है, शहर पर ज्यादा बोझ है लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि यहां किसी तरह का सार्वजनिक परिवहन नहीं है।”

जमशेदपुर की छोटी-छोटी दुकानों में श्रमिकों की बिक्री के लिए हेलमेट, जैकेट और अन्य सामान दिखाई देते है जो शहर का मिजाज बताते हैं। हालांकि, लोगों का कहना है कि यहां कभी साइकिलों की मरम्मती और उससे जुड़ी दुकानें भी खूब थीं जो अब नहीं हैं।

इसे इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि शहर में जहां कुछ वर्ष पहले ही औसतन हर छह घंटे पर एक साइकल बिका करती थी, वहीं, अब छह दिन में महज दो साइकल बिक रही है।

जमशेदपुर के पश्चिमी हिस्से में बाजार और औद्योगिक कामकाज अधिक है, इसलिए यहां आज भी शहर के अन्य क्षेत्रों से लोगों का आना-जाना सबसे ज्यादा रहता है। एक छोटे से हिस्से में ऑटो रिक्शा,निजी मिनी बसें और मोटरसाइकल की आवाजाही दिन-रात बनी रहती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, शहर में सर्वाधिक प्रदूषण औद्योगिक और परिवहन के जरिए होता है।  

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक जमशेदपुर के कोर शहर एरिया की आबादी करीब 7.5 लाख थी और यदि शहरी उपसमूह (मानगो, जुगसलाई) की आबादी को मिलादें तो यह 13.5 लाख के आस-पास पहुंच जाती है। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि जनसंख्या में काफी बढोत्तरी 14-15 सालों में हुई है। खासतौर से श्रमिकों के कांट्रेक्ट वाले कामकाज ने यहां फ्लोटिंग पॉपुलेशन भी बढाई है।

शहर में साइकल की सबसे पुरानी दुकानों में से एक करीब 70 वर्ष पुरानी जमशेदपुर साइकल एजेंसी के रोहित मुतरेजा ने डाउन टू अर्थ को बताया “22 या 24 इंच वाली साइकल की बिक्री में करीब 80 फीसदी की कमी आई है।” वह आगे कहते हैं “ज्यादातर श्रमिक और कंपनी से जुड़े अन्य कामकाजी लोग इस श्रेणी की साइकल खरीदते थे, कुछ वर्षों पहले तक महीने में 100 से अधिक साइकल बिकती थी लेकिन इस श्रेणी में अब महीने में 10 से 12 साइकल की ही बिक्री रह गई है।”

डाउन टू अर्थ ने पाया कि शहर में साइकल के कुछ ट्रैक जरूर हैं लेकिन उनपर साइकल चलाने वाले काफी कम लोग ही बचे हैं।

“मैंने साइकल चलाना 2014 से ही छोड़ दिया। अब मैं स्कूटी से ही चलता हूं।” दीपक रजत इसका कारण बताते हैं कि टाटा नगर स्टेशन पर स्थित मेरे घर से साकची बाजार स्थित कार्यालय साकची बाजार तक करीब चार किलोमीटर की दूरी है। यह तो चलना ही है साथ ही अब सेल्स के लिए मेरी फील्ड जॉब है ऐसे में स्कूटी की जरूरत थी। वहीं, वे कहते हैं कि शहर अब साइकल से चलने के लायक नहीं रह गया। सड़कें संकरी हैं और वाहनों की काफी भीड़ है।

ऐसे ही रूपनगर में रहने वाले 40 वर्षीय पवन कुमार कहते हैं “ मैं घर से करीब चार-पांच किलोमीटर दूर बिस्टुपुर क्षेत्र में एक स्टूडियो में रोजाना काम करने जाता हूं। जहां महीने की कमाई आठ हजार रुपए तक हो जाती है लेकिन कार्यालय की आवाजाही और शहर के अन्य हिस्सों में आने-जाने के लिए मुझे करीब 1500 से 1800 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। ” यानी “महीने में करीब 20 फीसदी कमाई काम के लिए आने-जाने में चली जाती है। क्या करें, मजबूरी है। मोटरसाइकल न हो तो कमाई का और अधिक हिस्सा भाड़े में ही चला जाएगा।” 

वह इशारा करके बताते हैं “मेरे घर के सामने ही एक बस स्टॉप था लेकिन यह कई वर्ष पहले खत्म हो गया। अब इस सड़क पर कोई बस नहीं आती।”

बिहार के हाजीपुर से जमशेदपुर में टाटा स्टील में काम करने के लिए ठेकेदार के जरिए बुलाए गए श्रमिक सुनील कुमार हावड़ा ब्रिज एरिया के पास रहते हैं। वहां से उन्हें कंपनी में काम करने के लिए साकची लेबर गेट तक करीब दो किलोमीटर के लिए रोजाना यात्रा करनी पड़ती है। वह बताते हैं “ कार्यस्थल जाने के लिए प्राइवेट मिनी बस और ऑटो दोनों घर के सामने से ही मिल जाते हैं, लेकिन वह ऑटो या ई-रिक्शा से ही आवाजाही करते हैं।” वह इसका कारण भी समझाते हैं, “मिनी बस के लिए काफी इंतजार करना पड़ता है, जबकि ऑटो सुलभ है और जल्दी पहुंचा देती है, हालांकि, मिनी बस के मुकाबले किराया थोड़ा ज्यादा देना पड़ता है।”

वहीं, जमशेदपुर के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में टेलको यानी टाटा मोटर्स टाउनशिप में रहने वाले 21 वर्षीय अंकित कुमार सार्वजनिक परिवहन के अभाव में करीब 25 किलोमीटर दूर आरका जेन यूनिवर्सिटी में बीबीए की पढ़ाई के लिए प्राइवेट बस पर महीने का 10 हजार रुपए खर्च करते हैं।

शहर के एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि सार्वजनिक परिवहन ही नहीं बच्चों के लिए स्कूली बसों तक का अभाव है यहां पर। यह शहर जिस तरह से निजी प्रबंधन वाला है, यहां के लोग भी पूरी तरह से निजी साधनों पर निर्भर हैं।

जमशेदपुर शहर में यातायात के लिए निजी बस अड्डा। फोटो : विकास चौधरी/ सीएसई
जमशेदपुर शहर में यातायात के लिए निजी बस अड्डा। फोटो : विकास चौधरी/ सीएसई

शिक्षित बेरोजगारों ने चलाया शहर

जमशेदपुर में 56 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र औद्योगिक नोटिफाइड एरिया है। इसके अलावा इसी शहर से लगे हुए मानगो नगर निगम, और नगर परिषद् क्षेत्र जुगसलाई भी स्थित हैं। हालांकि, प्रशासनिक कामकाज जमशेदपुर नोटिफाईड एरिया में ही होता है और इनकी कनेक्टिविटी पूरी तरह निजी परिवहनों पर निर्भर है।

शिक्षित बेरोजगार मिनी बस एसोसिएशन के पूर्व पदाधिकारी संजय पांडेय बताते हैं, “ 1975 में इंदिरा गांधी ने जमशेदपुर, रांची, पटना और मुजफ्फरपुर में शिक्षित बेरोजगारों के लिए एक स्कीम चलाई थी। इस स्कीम के तहत iस्नातक बेरोजगार कर्ज लेकर बस और ऑटो रिक्शा खरीद सकते थे। उसी वक्त मिनी बसें और ऑटो बड़ी संख्या में बेरोजगारों के द्वारा खरीदी गईं। जमशेदपुर में करीब 350 बसें आईं और तभी हमारा एक एसोसिएशन बना।”

वह आगे कहते हैं, “ज्यादा बसें थीं और बसों का परिचालन कैसे हो, किस रूट पर हो, यह निर्णय लेने के लिए एसोसिएशन बनाया गया था। तबसे अब तक जमशेदपुर में शहर के परिवहन के लिए यही बसे प्रमुख साधन बनी हुई हैं।”

वर्ष 2005 में भारत सरकार की एक महात्वाकांक्षी योजना जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रीन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) की शुरुआत हुई थी। इस योजना के तहत शहरी बुनियादी ढांचा और परिवहन को बेहतर किया जाना था। इस मकसद से जमशेदपुर में भी 2009 में  करीब 50 बसें आवंटित की गईं थीं।

यह सोचा गया था कि शहर में किफायती और आधुनिक सार्वजनिक परिवहन से भीड़भाड़, ऑटो रिक्शा पर निर्भरता और ट्रैफिक जाम में कमी आएगी।

हालांकि, 2012 में इस योजना ने दम तोड़ दिया। एग्रिको के पास मौजूद बस अड्डे पर डाउन टू अर्थ ने पाया कि बस अड्डा पूरी तरह से वीरान हो चुका है। स्थानीय लोगों ने बताया कि लोग यहां से लोहा वगैरा चोरी करके चले जाते थे। यहां खड़ी बसें भी पूरी तरह जीर्ण-शीर्ण हो गई थीं, जिन्हें अब हटा दिया गया है।

पांडेय कहते हैं “ शहर में चलने वाली निजी बसें भी अपने आखिरी मकाम पर हैं। 350 में अब केवल 50 बसें ही बची हैं। न ही उतने यात्री मिलते हैं और न ही इसमें कोई फायदा बचा है। हर घर में दो से चार गाड़ियां मौजूद हैं।”

पांच साल में बिके 2,04,896 दोपहिया वाहन

परिवहन के आंकड़ों के मुताबिक, शहर में लगातार दोपहिया वाहनों की मांग और बिक्री बढ़ी है। 2021 से 2025 (मई तक) कुल 2,04,896 मोटरसाइकल बिकी हैं। यदि वर्षवार देखें तो करीब 8 से 9 फीसदी की बढोत्तरी हर वर्ष हो रही। इसी तरह निजी चारपहिया वाहनों में हर वर्ष 9 से 10 हजार वाहन बिक रहे हैं। इसके अलावा पैसेंजर को ढोने वाले थ्री व्हीलर, कैरियर गुड्स जैसे वाहनों की बिक्री भी हो रही है। शहर में ई-रिक्शा का क्रेज उतना नहीं है, जितना अन्य शहरों में देखा जा रहा है।

उद्योग और परिवहन, शहर के सबसे बड़े वायु प्रदूषक

 

सिंतबर, 2021 में झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जरिए तैयार की गई कंप्रिहेंसिव क्लीन एयर एक्शन प्लान जमशेदपुर के मुताबिक, जमशेदपुर में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक क्षेत्र (26%) का है। इसके बाद परिवहन क्षेत्र (23%) और सड़क की धूल (15%) का स्थान आता है। ईंट भट्टों और डीजी सेट्स (जनरेटर) का योगदान शहर के अंदर सीमित है। कचरा जलाने से 3 फीसदी और डीजी सेट्स से करीब 3 फीसदी प्रदूषण होता है, जबकि ईंट भट्टों का योगदान 2 फीसदी है। घरेलू रसोई (कुकिंग) से 6 फीसदी प्रदूषण होता है।

वहीं, शहर में सालाना अनुमानित पीएम 2.5 प्रदूषण का 22 फीसदी हिस्सा शहर के बाहर से आता है, जो यह दर्शाता है कि शहर के लिए एक समुचित ‘एयरशेड प्रबंधन योजना’ बनाना भी जरूरी है।

 शहर में प्रदूषण को नियंत्रित करने और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को सुदृढ़ करने के प्रयास किए जाने थे। हालांकि, अभी तक यह प्रयास धरातल पर उतरे नहीं हैं। इसके अंतर्गत टैक्सी उद्योग को विनियमित  करने की योजना है, जिसे दिसंबर 2026 तक परिवहन विभाग द्वारा लागू किया जाएगा।

साथ ही, शहर में सीएनजी आधारित ऑटो गैस आपूर्ति के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जाएगा और सार्वजनिक परिवहन वाहनों को सीएनजी मोड में परिवर्तित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, मेट्रो शहरों में ई-बसों की शुरुआत की जाएगी, जिससे प्रदूषण रहित सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा मिलेगा।

बैटरी चालित वाहनों जैसे ई-रिक्शा और ई-कार्ट को बढ़ावा देने के लिए भी विभिन्न कदम उठाए जाने हैं। इन सभी पहलों के साथ-साथ चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर भी ध्यान दिया जाएगा, ताकि इलेक्ट्रिक वाहनों का सुचारू संचालन सुनिश्चित हो सके। इन सभी कार्यों को दिसंबर 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है और इसकी जिम्मेदारी परिवहन विभाग और जमशेदपुर नोटिफाइड एरिया कमेटी को सौंपी गई है।

बहरहाल, शहर में बेहतर और प्रदूषणरहित परिवहन और क्लीन एयर के लिए कोई प्रयास दिखाई नहीं दिए। 

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