
बिहार की राजधानी और स्मार्ट सिटी में शामिल पटना का चेहरा और नक्शा जरूर बदल रहा है लेकिन उसकी सड़कों पर वाहनों के जाम का चरित्र अब भी दशकों पुराना है। शहर के पास अब भी कोई निर्णायक कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी) नहीं है।
नई सड़के, नए पुल और निजी व शहर के लिए सरकारी सार्वजनिक परिवहनों की संख्या में विस्तार हुआ है। मेट्रो का काम जोर-शोर से जारी है। डीजल वाहन सीएनजी में बदल गए हैं, पटना जंक्शन और मल्टी-मॉडल हब को जोड़ने के लिए एक 440 मीटर लंबा भूमिगत पैदल मार्ग (सबवे) बनाया गया है। इस मार्ग में एस्केलेटर, ट्रैवलेटर, लिफ्ट और रैंप जैसी सुविधाएं हैं, जिससे यात्रियों को आसानी से आवाजाही में मदद मिल रही है लेकिन अब भी शहर के भीतर 10 से 15 किलोमीटर तक दूरी की आवाजाही यात्रियों के लिए मुसीबतों भरी है।
पटना जंक्शन के सामने बनाए गए चार मंजिला मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट हब में वाहनों की पार्किंग, सिटी बसों के लिए पार्किंग, ऑटो रिक्शा और टैक्सी के लिए पार्किंग की व्यवस्थाएं की गई हैं। डाउन टू अर्थ ने पाया इसके बावजूद सड़कों के किनारे ऑटो और ई-रिक्शों का जमावड़ा बना हुआ है जो मनमाने किराए पर यात्रियों को ढो रहे हैं।
पटना के पूर्वी हिस्से दीबारगंज और पश्चिमी हिस्से दीघा को जोड़ने वाले 20.5 किलोमीटर लंबे जेपी गंगा पथ पर शाम को सैकड़ों लोग खड़े हैं। हाल ही में बनाए गए इस पुल को पटना का मरीन ड्राइव कहा जा रहा है। रिंग रोड पर खड़े राजीव कुमार यहां से गंगा का नजारा लेने मोटरसाइकल से लेने आए हैं। वह बताते हैं, "वह एक निजी कैब एजेंसी कंपनी के लिए शहर में रोजाना मोटरसाइकल चलाते हैं। चूंकि यहां कोई सार्वजनिक परिवहन नहीं आता तो कई बार यहां से शहर के भीतर आवाजाही करने वाली सवारी जल्दी मिल जाती है।"
कुमार कहते हैं कि बाइक पटना के भीड़-भाड़ में आवाजाही के लिए एक आसान विकल्प बनकर उभरा है। मेरे जैसे हजारों युवक अब बाइक चलाकर रोजी-रोटी कमा रहे हैं। 7 से 8 किलोमीटर की दूरी के लिए 250 रुपए तक किराया उन्हें मिल जाता है।
शहर के सबसे व्यस्ततम इलाके बोरिंग रोड पर एक दुकान में काम करने वाले विष्णु कुमार बस के इंतजार में खड़े हैं। वह बताते हैं, इस रोड पर कोई सरकारी सिटी बस नहीं आती। वे रोजाना 16 किलोमीटर दूर पुनपुन से पटना काम करने आते हैं।
वह बताते हैं कि पुनपुन तक जाने के लिए कोई बस सेवा नहीं है और शेयरिंग ऑटो करीब 60 रुपए लेते हैं। इसलिए वह रोजाना ट्रेन से ही आते-जाते हैं। इसके लिए वह नियमित मासिक सीजन टिकट (एमएसटी) बनवाते हैं, जिससे रोजाना उन्हें किराए में करीब 50 फीसदी की बचत होती है।
विष्णु ने बताया ,"सुबह और शाम को पटना जंक्शन के आस-पास शहरी क्षेत्रों से आने वाले कामकाजी और स्टूडेंट्स की बहुत बड़ी संख्या ट्रेन का ही सहारा देखती है। लेकिन बोगियों में इतनी भीड़ होती है कि कई बार चढ़ पाना मुश्किल हो जाता है। जो कम दूरी वाली ट्रेनें हैं, वह नियमित नहीं हैं और उनका टाइम टेबल भी गड़बड़ है। 25 लाख की आबादी वाले पटना को लोकल ट्रेन की सख्त जरूरत है।"
पटना के नगर क्षेत्र और उससे सटे अर्ध-शहरी क्षेत्रों में कम-से-कम 10 प्रमुख स्टेशन हैं जहां मेनलाइन इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट (मेमू) ट्रेनें नियमित रूप से रुकती हैं या चलती हैं। इनका उपयोग रोजाना यात्रा करने वाले कामकाजी लोग, छात्र, और व्यापारी करते हैं। इनमें राजेंद्र नगर टर्मिनल, पटना साहिब, गुलजारबाग, दानापुर, पाटलिपुत्र जंक्शन, फुलवारीशरीफ, नेउरा, पुनपुन, फतुहा अहम स्टेशन हैं। इन मेमू के अलावा पटना जंक्शन से चलने वाली इंटरसिटी एक्सप्रेस में भी सुबह और शाम जमकर भीड़ होती है।
एक स्टेशन अधिकारी के मुताबिक, पटना और उसके आस-पास के शहरी क्षेत्रों से करीब 30- फीसदी आबादी की आवाजाही रोजाना होती है। पटना सिटी से रोजाना पटना जंक्शन से करीब दो किलोमीटर दूर मीठापुर से सब्जी लेकर दीघा तक सब्जी पहुंचाने वाले दिलीप चौधरी ने बताया कि यदि ट्रेन का सहारा न हो तो वह यह काम नहीं कर पाएंगे।
पटना से पटना सिटी की ओर करीब 10 किलोमीटर की यात्रा के दौरान डाउन टू अर्थ ने पाया कि अशोक राजपथ से पटना सिटी तक सार्वजनिक परिवहन से जाना दुरूह काम है। निजी कैब चलाने वाले अंकुश कुमार ने कहा कि सुबह और शाम को घंटो का जाम होता है। इसलिए इस सड़क पर हम नहीं जाते हैं। पटना सिटी शहर का व्यावसायिक केंद्र हैं, यहां सड़के संकरी और अतिक्रमण के चलते वाहनों का घंटों लंबा जाम लगता है। हालांकि, 11 जून को अशोक राजपथ पर पटना का पहला डबल‑डेकर फ्लाईओवर शुरु किया गया है जिससे 45 मिनट की दूरी अब 15 मिनट में तय हो रही है।
पटना मेट्रो के पहले कॉरिडोर ब्लू लाइन करीब 6.5 किमी पटना जंक्शन से आईएसबीटी के बीच 15 अगस्त को शुरू किए जाने की योजना है। वहीं, पटना जंक्शन के पास ही हार्डिन्ज पार्क टर्मिनल बनेगा जहां से लोकल ट्रेन के संचालन में भी मदद मिलेगी।
पैदल मार्ग और साइकल ट्रैक की अब भी जबरदस्त कमी है। नेहरू पथ से लेकर गांधी मैदान तक ट्रैफिक को सुगम बनाने की कोशिश सड़कों पर कारगर दिखाई देती है। हालांकि, अब भी सिटी बस की पटना में बीएसआरटीसी के तहत 145 सरकारी सिटी बसें चल रही हैं, जिनमें सीएनजी तथा इलेक्ट्रिक बसें शामिल हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए भी 20 पिंक बसें भी नियमित रूप से चली जा रही हैं। वहीं, निजी वाहनों में लगभग 300 बसें सीएनजी आधारित होकर सिटी सेवा दे रही हैं।
यदि जेएनएनयूआरएम की नीतिगत सलाह के हिसाब से देखा जाए तो पटना की करीब 25 लाख आबादी के लिए कम-से-कम 1000 से 1250 बसों की जरूरत है, जबकि केवल 465 बसें ही उपलब्ध हैं, यानी घोर अभाव है।
तमाम नई सुविधाओं और निर्माण कार्य के बावजूद सबसे बड़ी परेशानी वायु प्रदूषण की है। हालांकि, वायु प्रदूषण रोकथाम को लेकर भी काम जारी है। पटना 2024 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु सर्वेक्षण रैंकिंग में प्रति 10 लाख से अधिक आबादी वाले 47 शहरों में पटना का रैंक 14वां आया जो कि पहले 29वां था। इसके फलस्वरूप केन्द्र से 30.39 करोड़ रुपए का इंसेंटिव ग्रांट मिला, जिसे प्रदूषण रोकने के उपायों में खर्च किया जाएगा।