
“30 साल पहले जब मैं भागलपुर आया तो न ही यहां इतना शोर था और न ही इतने वाहन, उन दिनों आवाजाही के लिए हाथ रिक्शा ज्यादा चला करते थे।” करीब 70 वर्षीय मनोज कुमार शर्मा शहर की सबसे लोकप्रिय और व्यवस्त जगहों में से एक तिलकामांझी चौक पर खड़े होकर यह बताते हैं। उन्हें तेज रफ्तार और लगातार आते-जाते वाहनों के कारण सड़क पार करने में करीब 15 मिनट लगे। चलते हुए कहने लगे, “अब सबकुछ बदल रहा है, हर शहर की पहचान भीड़-भाड़ ही है।”
ट्रैफिक लाइट है लेकिन नियमों को मानने वाला कोई नहीं। लगातार वाहनों के हॉर्न को बजाए रखना शहर की आदत है। बुजुर्ग शर्मा थोड़ा ऊंचा सुनते हैं और कहते हैं कि यह इस शहर की देन है।
डाउन टू अर्थ ने शहर के हर चौक और प्रमुख सड़कों की यात्रा की। भागलपुर को स्मार्ट सिटी बनना है, 2015 से प्रयास जारी हैं लेकिन वह जमीन पर प्रभावी नहीं दिखाई देते। न ही शहर के पास अपना कोई भी कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी) मौजूद है। स्थिति यह है कि 18 ट्रैफिक लाइट लगाई गईं, लेकिन इनमें से एक दर्जन बंद करनी पड़ गई, क्योंकि इससे और भयंकर जाम लगने लगा।
गंगा के दक्षिणी किनारे पर बसा भागलपुर बिहार का तीसरा सबसे बड़ा शहर है और सिल्क के मामले में एक व्यावसायिक केंद्र भी। यह शहर स्मार्ट सिटी मिशन के तहत चुने गए 100 शहरों में भी शामिल है। निगम ने योजनाओं को अमलीजामा पहचाने के लिए भागलपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड (बीएससीएल) का गठन किया गया है।
बीएससीएल के मुताबिक कुल 175 किलोमीटर लंबा सड़क नेटवर्क है, लेकिन अधिकतर सड़कें संकरी, अविभाजित और अतिक्रमण से घिरी हुई हैं, जिन पर अव्यवस्थित पार्किंग के कारण जाम आम है। पैदल चलने के लिए फुटपाथ नहीं हैं। शहर में आंतरिक आवागमन मुख्य रूप से साइकिल और ऑटो रिक्शा से होता है, जबकि 6 सीटर डीजल रिक्शा सबसे प्रमुख और प्रदूषणकारी साधन है। शहर में कोई भी सिटी बस जैसी व्यवस्था नहीं है।
डाउन टू अर्थ ने पाया कि रेलवे स्टेशन के ठीक बाहर न ही ट्रैफिक लाइट काम कर रही है और न ही सड़कों पर पांव तक रखने की जगह है। जहां तक नजर जाए ई-रिक्शा और डीजल ऑटो की कतारे लगी हुई हैं। बीएससीएल का आधिकारिक तौर पर कहना है कि प्रदूषण और ट्रैफिक जाम स्मार्ट सिटी बनने का सबसे बड़ा रोड़ा है। चार लाख से अधिक की आबादी वाले भागलपुर नगर निगम क्षेत्र में धूल प्रदूषण के कारण सुबह और शाम को लोग मुंह पर मास्क लगाकर निकलने को मजबूर हैं।
भागलपुर से सबौर की तरफ जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 80 जो कि अब राष्ट्रीय राजमार्ग 33 के हिस्से मे आता है, वहां सड़क के चौड़ीकरण और मजबूती का काम जारी है। आलम यह है कि चारो तरफ सिर्फ धूल और बड़े गड्ढे ही गड्ढे मौजूद हैं। सबौर मे स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने कहा कि खराब सड़क के चलते उनके कार्यक्रमों में किसान नहीं शामिल हो पा रहे हैं।
वहीं, शहर के भीतर खलीफाबाग चौक पर ट्रैफिक पुलिस के बावजूद वाहनों का जमावड़ा बना हुआ है। यही हाल कोतवाली चौक और घंटाघर की तरफ भी दिखाई दिया। प्रभात खबर के वरिष्ठ पत्रकार, संजीव कुमार बताते हैं कि अतिक्रमण यहां की सबसे मूल समस्या है। एक भी सड़क अतिक्रमण मुक्त नहीं है। बहुत ही संकरी सड़कों पर लोगों को और वाहनों को गुजरना पड़ता है, जिसके कारण सड़कों पर हमेशा जाम लगा रहता है।
भागलपुर में ट्रैफिक जाम की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत मई, 2024 में एआई इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (एआईआईसीसीसी) भवन स्थापित किया गया है। यहां से पूरे शहर में यातायात पर निगरानी रखी जाती है। चौराहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों से यह कनेक्ट रखता है। बावजूद इसके जंक्शन से लेकर शहर के प्रमुख चौराहों तक सिर्फ धूल और जाम की स्थिति बनी है।
शहर की सबसे अहम और व्यस्ततम जगहों में एक डिक्सन मोड़ पर शहर से दूसरे शहरों को जाने के लिए प्राइवेट बसों का जमावड़ा होता है। नगर निगम के सफाई कर्मचारी चुनचुन कुमार इस मोड़ पर अपनी साइकल को संभालते हुए कहते हैं, “यहां कभी-कभी लगता है कि वे बड़ी दुर्घटना के शिकार हो जाएंगे। इतनी भीड़ हो जाती है कि साइकल से उतरकर खुद को संभालना पड़ता है और पैदल चलना पड़ता है।”
लोहिया पथ पर प्राइवेट बसें, निजी कारें और तिपहिया वाहनों की भरमार रहती है। चुनचुन के मुताबिक, पहले यह हालात नहीं थे कुछ वर्षों में वाहनों की संख्या में सड़कों पर तेज इजाफा हुआ है।
वाहन डैशबोर्ड के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों (2020–2024) में भागलपुर में वाहन पंजीकरण के आंकड़े यह स्पष्ट संकेत देते हैं कि निजी परिवहन वाहनों का पंजीकरण सार्वजनिक परिवहन की तुलना में कहीं अधिक रहा है। सबसे अधिक पंजीकृत वाहन वर्ग मोटरसाइकिल/स्कूटर रहा, जिसकी कुल संख्या 1,14,952 है। वहीं, मोटर कार की संख्या 12,202 और ई-रिक्शा की संख्या 14,927 रही, जो कि आम तौर पर व्यक्तिगत स्वामित्व के तहत आते हैं।
वहीं दूसरी ओर इन पांच वर्षों में सार्वजनिक परिवहन जैसे बस (193), मोटर कैब (330), मिनी बस/ओमनी बस (7), और मैक्सी कैब (76) का पंजीकरण बेहद सुस्त रहा। कुल मिलाकर इन सार्वजनिक परिवहन वाहनों की पंजीकरण संख्या लगभग 606 रही, जबकि निजी इस्तेमाल वाले वाहनों की संख्या लाख के पार चली गई।
वहीं, 2020-2024 के बीच वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के आधार पर मोटरसाइकिल/स्कूटर की औसत वृद्धि दर लगभग 7.2 फीसदी रही, जबकि मोटर कारों की वृद्धि दर करीब 6.5 फीसदी रही। ई-रिक्शा की वृद्धि दर इनसे अधिक, करीब 25 फीसदी रही, जो दर्शाता है कि व्यक्तिगत स्वामित्व वाले इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर तेजी से रुझान बढ़ा है।
वाहनों, ट्रैफिक जाम के कारण होने वाले प्रदूषण न सिर्फ जानलेवा है बल्कि भागलपुर मेगासिटीज से भी ज्यादा वायु प्रदूषित शहरों में शामिल है। साइंस डायरेक्ट में प्रकाशित अध्ययन पीएम 10 एंड पीएम 2.5 इन इंडो गैंगेटिक प्लेन (आईजीपी) ऑफ इंडिया : केमिकल कैरेक्टराइजेशन, सोर्स एनालिसिस, एंड ट्रांसपोर्ट पाथवेज में बताया गया कि भागलपुर छोटे शहरों में शामिल होकर भी दिल्ली और कोलकाता जैसी महानगरों की तुलना में अधिक प्रदूषित था।