संसद में आज: जल संकट से जूझ रहे तीन जिलों में बन रहे हैं थर्मल प्लांट

11 दिसंबर 2025 को संसद के दोनों सदनों में पर्यावरण को लेकर विभिन्न मुद्दों पर सवाल उठे और मंत्रियों ने सरकार की योजनाओं व प्रगति की जानकारी दी
संसद में आज: जल संकट से जूझ रहे तीन जिलों में बन रहे हैं थर्मल प्लांट
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सारांश
  • वन क्षेत्रों में खनन के लिए सख्त मूल्यांकन, प्रतिपूरक वनीकरण और पर्यावरण ऑडिट लागू किए गए।

  • प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन में प्रगति: ईपीआर नीति के तहत 178 लाख टन से अधिक प्लास्टिक का प्रसंस्करण हुआ।

  • वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए सड़क की धूल प्रबंधन दिशानिर्देश: एनसीएपी के तहत धूल-रहित सड़क डिजाइन और डस्ट कंट्रोल सेल्स की स्थापना।

  • पहली राष्ट्रीय हिम तेंदुआ गणना पूरी – देश में 718 हिम तेंदुए दर्ज, संरक्षण कार्यक्रमों को और मजबूत किया गया।

भारत में पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन, वन क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के अधिकार तथा वायु प्रदूषण जैसे विषय लगातार राष्ट्रीय चर्चा में बने रहते हैं। आज, 11 दिसंबर 2025 को संसद के दोनों सदनों-राज्यसभा और लोकसभा में इन मुद्दों पर जवाब मांगे गए।

विभिन्न मंत्रियों ने जवाब देते हुए सरकार की योजनाओं, प्रगति और चुनौतियों को सदन के सामने रखा। नीचे इन प्रमुख बिंदुओं पर विस्तार से विवरण दिया गया है।

महत्त्वपूर्ण खनिजों की खनन गतिविधियों पर निगरानी

सदन में उठाए गए एक सवाल के जवाब में आज, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में बताया कि स्वच्छ ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और राष्ट्रीय सुरक्षा में उपयोग होने वाले क्रिटिकल मिनरल्स यानी महत्त्वपूर्ण खनिजों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इनमें लिथियम, कोबाल्ट, निकेल जैसे खनिज शामिल हैं। कई बार ये खनिज वन क्षेत्रों में पाए जाते हैं, इसलिए उनकी खनन गतिविधियां पर्यावरणीय नियमों के तहत की जाती हैं।

मंत्री ने स्पष्ट किया कि ऐसी परियोजनाएं भी उन्हीं प्रक्रियाओं से गुजरती हैं जिनसे सामान्य खनन परियोजनाएं गुजरती हैं, जैसे विस्तृत पर्यावरण प्रभाव आकलन, प्रतिपूरक वनीकरण, और नेट प्रेजेंट वैल्यू (एनपीवी) का भुगतान।

खनन से पर्यावरण को नुकसान न हो, इसके लिए विशेषज्ञ समितियां जैव विविधता, स्थानीय पारिस्थितिकी और शमन उपायों का मूल्यांकन करती हैं। हाल में मंत्रालय ने निगरानी को और मजबूत करने के लिए पंजीकृत पर्यावरण ऑडिटर्स की प्रणाली लागू की है।

प्रतिपूरक वनीकरण की निगरानी भी पारदर्शी तरीके से सीएएफ अधिनियम के अंतर्गत की जाती है। सिंह ने कहा सरकार का लक्ष्य रणनीतिक खनिजों की जरूरतों को पूरा करते हुए पर्यावरण की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देना है।

प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन और ईपीआर प्रणाली

प्लास्टिक के कचरे को लकेर सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में कहा कि पिछले पांच सालों में भारत में हर साल लगभग 39 से 41 लाख टन प्लास्टिक का कचरा उत्पन्न हुआ है। इस बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने 2022 में विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (ईपीआर) नीति लागू की।

ईपीआर के तहत, प्लास्टिक उत्पाद बनाने वाली कंपनियां यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके द्वारा बाजार में डाला गया प्लास्टिक वापस संग्रहित हो और उसका पुनर्चक्रण हो। सिंह ने बताया कि अब तक 178 लाख टन से अधिक प्लास्टिक पैकेजिंग का प्रसंस्करण किया जा चुका है। साल 2022-23 में 24.96 लाख टन और 2023-24 में 46.36 लाख टन प्लास्टिक का प्रबंधन हुआ।

ईपीआर पोर्टल पर पंजीकृत कंपनियों से अब तक 133.20 करोड़ रुपये एकत्र किए गए हैं, जिन्हें पोर्टल के संचालन और तृतीय-पक्ष ऑडिट में उपयोग किया जा रहा है। मंत्री ने कहा कि सरकार को उम्मीद है कि रीसाइक्लिंग के लक्ष्य, पुन: उपयोग की अनिवार्यता और रीसायकल सामग्री के उपयोग से भारत की प्लास्टिक अर्थव्यवस्था अधिक परिपत्र और स्वच्छ बनेगी।

सड़क की धूल प्रदूषण नियंत्रण के उपाय

सदन में उठे एक और सवाल के जवाब में आज, राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा कि भारत के कई शहरों में वायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण सड़क की धूल है। इसे ध्यान में रखते हुए मंत्रालय ने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के तहत वैज्ञानिक सड़क-धूल प्रबंधन का एक विस्तृत दस्तावेज जारी किया है। इस दस्तावेज में पर्यावरण के अनुकूल सड़क निर्माण, धूल-रहित डिजाइन, बेहतर ड्रेनेज सिस्टम और सड़क किनारे हरियाली विकसित करने जैसे उपाय शामिल हैं।

इसके अलावा, सीएक्यूएम ने सभी सड़क-स्वामित्व एजेंसियों को निर्देश दिया है कि वे डस्ट कंट्रोल एंड मैनेजमेंट सेल्स स्थापित करें ताकि मशीन आधारित सफाई के दौरान इकट्ठी धूल का वैज्ञानिक ढंग से निपटान सुनिश्चित किया जा सके। इससे शहरी क्षेत्रों की वायु गुणवत्ता में सुधार होने की उम्मीद है।

हिम तेंदुए के संरक्षण पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण

सदन में पूछे गए के प्रश्न का उत्तर देते हुए आज, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में बताया कि भारत में पहली बार राष्ट्रीय हिम तेंदुआ गणना का काम पूरा हो गया है। 2019 से 2023 तक चले इस सर्वेक्षण से पता चला कि देश में लगभग 718 हिम तेंदुए पाए गए हैं। सर्वाधिक संख्या लद्दाख में है, इसके बाद उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश का स्थान है।

1.2 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कैमरा ट्रैप, चिन्ह सर्वेक्षण और आधुनिक मॉडलिंग तकनीकों का उपयोग किया गया। अब एसपीएआई 2.0 शुरू किया गया है जो लंबे समय तक संरक्षण पर ध्यान देगा। हिम तेंदुओं के लिए प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड, स्पीशीज रिकवरी प्रोग्राम और सिक्योर हिमालय जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं। स्थानीय समुदायों की भागीदारी, बेहतर कानून प्रवर्तन और उच्च हिमालयी पारिस्थितिकी संरक्षण पर विशेष बल दिया जा रहा है।

कोयला आधारित ताप विद्युत परियोजनाओं में पानी की कमी

ताप विद्युत परियोजनाओं में पानी की कमी को लेकर सदन में उठाए गए एक सवाल के जवाब में ऊर्जा मंत्रालय में बिजली राज्य मंत्री श्रीपद नाइक ने लोकसभा में जानकारी देते हुए कहा कि कुछ प्रमुख कोयला आधारित बिजली परियोजनाएं जल-संकट वाले जिलों में स्थित हैं। हालांकि ये क्षेत्र गंभीर या अति शोषित (ओवर-एक्सप्लोइटेड) भूजल जोन में हैं, लेकिन अब तक परियोजनाओं में पानी की कमी के चलते कोई देरी नहीं हुई है।

स्थानीय जल उपलब्धता का मूल्यांकन राज्य और डेवलपर्स के माध्यम से किया जाता है। पानी बचाने के लिए नई परियोजनाएं एयर-कूल्ड कंडेंसर (एसीसी) प्रणाली अपना रही हैं, जिससे पानी की खपत 60 फीसदी तक कम होती है। यह तकनीक भविष्य में जल-संकट वाले क्षेत्रों में ऊर्जा उत्पादन को और टिकाऊ बनाएगी।

वन भूमि से विस्थापन और वनाधिकार

सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, जनजातीय मामलों के मंत्रालय में मंत्री जुएल ओराम ने लोकसभा में वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 का हवाला दिया। जिसमें कहा गया है कि किसी भी आदिवासी परिवार या पारंपरिक वनवासी को तब तक नहीं हटाया जा सकता, जब तक उनकी दावा प्रक्रिया पूरी न हो जाए। मंत्रालय के अनुसार अब तक किसी राज्य ने ऐसा कोई मामला नहीं बताया है जहां लंबित दावे के बावजूद विस्थापन हुआ हो।

देशभर में 51 लाख से अधिक दावे दायर हुए, जिनमें लगभग 25 लाख शीर्षक जारी किए गए। देवास जिला (मध्य प्रदेश) में 9,200 से अधिक दावों में अधिकांश को अधिकार दिए जा चुके हैं। मंत्री ने कहा कि पर्यटन या टाइगर प्रोजेक्ट के लिए एफआरए के तहत कोई नया दावा दायर नहीं हुआ है।

वाहनों के प्रदूषण परीक्षण केंद्रों में आधुनिक उपकरण

सदन में उठे एक प्रश्न के उत्तर में आज, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय में मंत्री नितिन जयराम गडकरी ने लोकसभा में बताया कि वाहन उत्सर्जन परीक्षण को अधिक सटीक बनाने के लिए पीयूसीसी 2.0 सॉफ्टवेयर लागू किया गया है। यह प्रणाली फोटो, वीडियो और जियो-फेंसिंग का उपयोग करती है ताकि फर्जी परीक्षण रोके जा सकें।

बिना कैलिब्रेशन वाले उपकरणों वाले केंद्र अपने-आप ब्लॉक हो जाते हैं। दूर-दराज क्षेत्रों के लिए मोबाइल टेस्टिंग यूनिट को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार एक अध्ययन भी करा रही है जिससे रिमोट सेंसिंग तकनीक के जरिए चलती गाड़ियों से उत्सर्जन की निगरानी की जा सके।

टाइगर रिजर्व से समुदायों का स्वैच्छिक पुनर्वास

लोगों के पुनर्वास को लेकर सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, जनजातीय कार्य मंत्रालय में मंत्री दुर्गादास उइके ने लोकसभा में कहा कि सरकार ने स्पष्ट किया कि टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्रों से किसी भी समुदाय का पुनर्वास सिर्फ स्वैच्छिक होना चाहिए। पिछले दस वर्षों में 257 गांवों का स्वैच्छिक पुनर्वास हुआ है। किसी भी प्रकार के जबरन विस्थापन की आधिकारिक जानकारी राज्यों से प्राप्त नहीं हुई है।

पुनर्वास से पहले ग्राम सभा की सहमति और अधिकारों का निपटारा जरूरी है। पुनर्वास के लिए आर्थिक सहायता प्रोजेक्ट टाइगर के तहत दी जाती है। वर्ष 2025 में राज्यों को फिर से पत्र भेजकर स्वैच्छिक पुनर्वास के सिद्धांतों को सख्ती से लागू करने की सलाह दी गई।

कुल मिलाकर संसद में प्रस्तुत ये जानकारियां बताती हैं कि भारत में पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, जन-अधिकार और प्रदूषण नियंत्रण के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। चाहे हिम तेंदुए का संरक्षण हो, प्लास्टिक कचरे की चुनौती, सड़क धूल नियंत्रण, या आदिवासी अधिकार-सभी क्षेत्रों में नीतिगत सुधार और निगरानी बढ़ने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की बात कही गई है।

भारत के सतत विकास के लिए यह आवश्यक है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन कायम रहे और हाल की चर्चाएं इसी दिशा में सकारात्मक संकेत देती हैं।

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