
दिल्ली का रिंग रेलवेरेलवे नेटवर्क, जिसमें 21 स्टेशन हैं, ( यह निजामुद्दीन से शुरू होकर और वहीं पर खत्म होता है ) 1970 के दशक के अंत से 2020 में कोविड- 19 महामारी और फिर लॉकडाउन के पहले तक यात्रियों को गोलाकर रास्ते से यात्रा कराता था। इस नेटवर्क का पुनर्जीवन दिल्ली की मेट्रो और बसों की भीड़ को कम कर सकता है लेकिन इसके लिए सहायक रेलवे लाइनों के साथ ही दयाबस्ती जैसे कई रेलवे स्टेशनों समेत रेलवे की जमीन पर गैरकानूनी अतिक्रमण हटाने का रास्ता भी निकालना होगा।
रिंग रेलवे का पुनरुद्धार: एक बड़ा काम
उत्तर रेलवे के दिल्ली मंडल के डिविजनल रेलवे मैनेजर (डीआरएम) पुष्पेश रमण त्रिपाठी डाउन टू अर्थ से कहते हैं, -‘दिल्ली से बाहर जाने वाले कई मुख्य रेलवे मार्ग हैं और इन सभी मार्गों को जोड़ने वाला एक गोलाकार मार्ग है जिसे रिंग रेलवे के नाम से जाना जाता है। हम इसे रेलवे की भाषा में दिल्ली अवॉइडिंग लाइन (डीएएल) कहते हैं, जिसका मतलब है कि इसका इस्तेमाल किसी भी बड़े शहर के आसपास सड़क बाईपास की तरह दिल्ली से बचने के लिए किया जाता है और यह दिल्ली के रिंग रोड की तरह ही है।’
वह आगे कहते हैं, ‘दिल्ली में और इसके आसपास यात्रियों की तादाद इतनी ज्यादा है कि डीएएल जैसे एक वैकल्पिक मार्ग के बगैर हम दिल्ली के आसपास के बड़े क्षेत्र और यहां तक कि दूरदराज की जगहों तक भी मालढुलाई की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएंगे।’ डीआरएम कार्यालय से डाउन टू अर्थ को मिले आंकड़े के मुताबिक, रोजाना 549 यात्री ट्रेने या तो दिल्ली से होकर गुजरती हैं या यहां रुकती हैं जबकि ऐसी मालगाड़ियों की संख्या 210 है।
दिल्ली के उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व और दक्षिण क्षेत्रों से कोयला, कृषि उपज और तैयार किए गए उत्पादों जैसी चीजों के परिवहन के लिए यह मालढुलाई बहुत महत्वपूर्ण है।
देश के बड़े कोयला और खनिज उत्पादक क्षेत्र पूर्वी हिस्से में स्थित हैं जबकि कोयले पर आधारित पॉवर प्लांट पंजाब व हरियाणा के पानीपत, भटिंठा, सूरतगढ़, चरखी और झज्जर में हैं। दिल्ली के उत्तर-पश्चिम में स्थित क्षेत्र भी चावल और गेहूं के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। कुछ निर्यात केंद्र दिल्ली के पूर्व में मौजूद हैं और मेरठ में उनका जलग्रहण क्षेत्र है, जहां रेलवे के कई अंतरराष्ट्रीय कंटेनर डिपो हैं। पश्चिमी तट पर स्थित बंदरगाहों से और वहां तक कई माल का परिवहन भी दिल्ली के माध्यम से किया जाता है।
त्रिपाठी के मुताबिक, ‘माल के परिवहन के लिए डीएएल या रिंग रेलवे जरूरी है और इसी मकसद को पूरा करने के लिए के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1920 के आसपास उस समय ज्यादातर जंगली इलाकों से होकर इसका निर्माण किया था।‘ वह आगे बताते हैं - ‘हम अपने नेटवर्क की 131 फीसदी क्षमता से मालढुलाई वाली गाड़ियों को चला रहे हैं क्योंकि रेलवे प्लेटफार्मों से इनका संचालन नहीं किया जा सकता, इससे यात्रियों को आने-जाने में दिक्कत होगी।’
वह कहते हैं, ‘ हम इस नेटवर्क में चार नई लाइनें और जोड़ सकते हैं, हमें इनकी जरूरत है लेकिन फिर ऐसा नहीं कर पा रहे क्योंकि सामाजिक- आर्थिक वजहों से हम ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं। निश्चित रूप से मालढुलाई वाली ट्रेनों के लिए हम अपनी लाइनों का विस्तार चाहते हैं, हालांकि हम रिंग रेलवे नेटवर्क पर यात्री ट्रेनों के लिए भी उनका इस्तेमाल करेंगे।’
नई लाइनों के निर्माण में मुख्य समस्या दया बस्ती और शकूर बस्ती जैसे कई स्टेशनों पर रेलवे की ज़मीन पर अतिक्रमण है। दया बस्ती स्टेशन रिंग रेलवे नेटवर्क पर स्थित है और आगे रोहतक और पलवल रेलवे लाइनों से जुड़ता है जबकि शकूर बस्ती रिंग रेलवे के बाहर रोहतक लाइन पर स्थित है। उत्तर रेलवे के दिल्ली मंडल के अंतर्गत कुल 12134 हेक्टेयर भूमि में से आधे से भी कम (5901 हेक्टेयर) का वर्तमान में इस्तेमाल किया जा रहा है। त्रिपाठी कहते हैं, ‘ फिलहाल संसाधनों की कमी और निर्माणाधीन परियोजनाओं के चलते हम स्थानीय यात्रियों के लिए रिंग रेलवे चालू करने पर विचार नहीं कर रहे हैं।’
डाउन टू अर्थ ने दया बस्ती का दौरा किया और पाया कि रेलवे की जमीन के बड़े हिस्से पर उन लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है, जो वहां दशकों से रह रहे थे। उनमें से कुछ घरों के मुख्य दरवाजे तो रेलवे प्लेटफार्म पर खुल रहे थे।
गौरी शंकर प्रजापति यहां 35 साल से रह रहे हैं और दया बस्ती रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर दो के पास की बाड़बंदी के बिल्कुल पास में छोटी सी दुकान चलाते हैं। उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया, ‘ लोग रेलवे स्टेशन के पास 35-40 सालों से रह रहे हैं। यहां फिलहाल 35000 से 40000 के करीब लोग रहते हैं। हमें यहां सुविधा के नाम पर केवल प्राइवेट बिजली मिलती है। पानी के लिए एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता है और यही हालत सार्वजनिक शौचालयों की है, जिससे महिलाओं को खासकर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।’ लोग घटिया स्थितियों में रह रहे हैं, पास में ही एक बड़ा कूड़े का ढेर लगा हुआ है।
प्रजापति के मुताबिक, इस क्षेत्र में रहने वाले लोग अपने गांव और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन जाने के लिए रेलवे लाइन का इस्तेमाल भी करते हैं। स्टेशन पर तैनात रेलवे सुरक्षा बल के कर्मियों ने स्टेशन पर यात्रियों की सुरक्षा से संबंधित एक और बड़ी समस्या को उजागर किया। इस क्षेत्र में अपराध दर काफी ज्यादा है, जो लोगों को रेलवे की सेवाओं का उतना उपयोग करने से हतोत्साहित करती है, जितना वे चाहते है। इसके अलावा, यात्रियों की सुरक्षा को संभालने के लिए आरपीएफ के पास पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं।
सरदार पटेल मार्ग रेलवे स्टेशन भी रिंग रेलवे नेटवर्क पर पड़ता है, इसके प्लेटफॉर्म जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं, हालांकि रेलवे पटरियां अच्छी स्थिति में हैं और अभी भी मालगाड़ियों के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं। डाउन टू अर्थ ने दो घंटों के दौरान यहां से चार मालगाड़ियों को गुजरते पाया। स्टेशन, ताज पैलेस होटल के ठीक सामने है, लेकिन स्टेशन का प्रवेश द्वार आसानी से दिखाई नहीं देता। यह प्रवेश द्वार यातायात पुलिस बूथ से थोड़ी दूरी पर है, जहां रिंग रेलवे यात्री ट्रेनों की समय-सारिणी दर्शाने वाला जंग लगा हुआ बोर्ड लगा है। ये प्लेटफॉर्म आखिर बार 2020 की शुरुआत में तब इस्तेमाल किए गए थे, जब कोविड-19 महामारी फैलना शुरू हुई थी और अब इन्हें चालू करने के लिए पर्याप्त संसाधनों की जरूरत होगी। रिंग रेलवे के कई और स्टेशन भी इसी हालत में अपने यात्रियों का इंतजार कर रहे हैं।
यह स्टोरी हमारी खास सीरीज भारत में आवाजाही का हिस्सा है, जो शहरों और कस्बों में वायु गुणवत्ता और लोगों की आवाजाही (परिवहन सेवाओं) के बीच संबंधों पर फोकस है। पूरी सीरीज पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें