भारत में आवाजाही: छोटे से शहर सिलचर में भी जाम बना नासूर

सरकारी सार्वजनिक परिवहन सेवाएं न होने के कारण सड़कों पर निजी वाहनों और ऑटाे चालकों का कब्जा रहता है
भारत में आवाजाही: छोटे से शहर सिलचर में भी जाम बना नासूर
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सिलचर के लोगों के लिए यातायात जाम उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यहां तक कि असम की बराक घाटी के मुख्य शहर सिलचर में छह किलोमीटर का सफर तय करने में घंटों का समय लग जाता है।

सरकारी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था न होने के कारण सिलचर के रोजाना की आवाजाही के लिए तीन पहिया वाहन या अपनी निजी गाड़ी का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं। दरअसल, यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सिलचर तीन पहिया वाहनों पर चलता है, जिसमें ई-ऑटो, ई-रिक्शा और पेट्रोल ऑटो रिक्शा शामिल हैं।

रितिव्का पॉल सिलचर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की इंटर्न हैं, हर सुबह प्रेमटोल स्थित अपने घर से कॉलेज के लिए 7 किलोमीटर की यात्रा करने के लिए एक ऑटो-रिक्शा पकड़ती हैं। वह कहती हैं, "सुबह के समय जब सड़कों पर भीड़भाड़ कम होती है, तब मुझे लगभग 20 मिनट लगते हैं, लेकिन दोपहर के समय वही दूरी तय करने में 45 मिनट तक लग जाते हैं।"

सिलचर के ऑटो रिक्शा तीन सीट वाले होते हैं, लेकिन अक्सर एक अतिरिक्त यात्री को भी बिठा लिया जाता है, जिससे सफर और भी असहज हो जाता है। रितिव्का के इस कष्टकारी सफर पर महीने का खर्च लगभग 2,000 रुपए तक पहुंच जाता है।

राणा प्रताप भी सिलचर मेडिकल कॉलेज में दूसरे वर्ष के एमबीबीएस छात्र हैं। वह रांची, झारखंड के रहने वाले हैं। एक आरामदायक रहन-सहन की तलाश में उन्होंने इस साल फरवरी में कॉलेज होस्टल छोड़ दिया। लेकिन आवाजाही के कष्ट ने इसे परेशानी भरा बना दिया। उन्हें भी कॉलेज से 6.5 किलोमीटर दूर अंबिकापट्टी से ऑटो पकड़ने के लिए जल्दी आना पड़ता है।

राणा कहते हैं, “ सामान्य तौर पर ऑटो को 6.5 किलोमीटर की दूरी तय करने में लगभग 40 मिनट का समय लगता है, लेकिन जब ट्रैफिक अधिक होता है, तो कभी-कभी एक घंटे से अधिक समय लग जाता है। गर्मियों में यह और भी कष्टकारी हो जाता है। ऑटो चालकों का कोई निश्चित किराया नहीं होता। मुझे हर महीने एक असहज यात्रा पर 1500 रुपये से अधिक खर्च करना पड़ता है। इस समस्या से बचने के लिए मैं अक्सर लौटते समय रांगिखरी पर उतर जाता हूं। वहां से चलना मेरे लिए अधिक आरामदायक होता है।”

आपातकालीन स्थिति में यातायात की समस्याओं का एक उदाहरण साझा करते हुए अरका साहा ने बताया कि सोचिए जब एंबुलेंस यातायात में फंस जाती है, तो उसे रास्ता देना मुश्किल हो जाता है, भले ही कोई चाहें भी तो। एक बार एक महिला ने ऐसी ही स्थिति में अपने बच्चे को जन्म दिया था, जब उसे मेडिकल कॉलेज लाया जा रहा था।" साहा एक स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं।

सिलचर की जाम सड़कें

सिलचर नगर का 1832 के आसपास हुआ। जब ब्रिटिशों ने कछार के मैदानी इलाकों को अपने कब्जे में लिया और इस क्षेत्र को जिसमें सिलचर भी शामिल था पर उपनिवेश प्रशासन के तहत शासन शुरू किया। इससे पहले, सिलचर एक छोटे से गांव के रूप में कछारी राजाओं के शासन में था।

अपने लंबे इतिहास के बावजूद, आधुनिक सिलचर एक संकुचित और पुराने सड़क नेटवर्क की समस्या से जूझ रहा है। शहर के मुख्य क्षेत्र में केवल दो प्रमुख सड़कों का इस्तेमाल होता है, जिनके बीच कई छोटी-छोटी कनेक्टिंग सड़कें हैं, जिससे विस्तार के लिए बहुत कम जगह बचती है। स्थिति और भी खराब हो जाती है जब वाहनों की संख्या में तेजी से वृद्धि होती है और पार्किंग की खराब व्यवस्था के कारण निरंतर जाम की समस्या उत्पन्न होती है।

हाल ही में बने सिलचर बाइपास, जिसे सिर्फ दो से तीन साल पहले पूरा किया गया था ने शहर की सड़क नेटवर्क में विस्तार किया है। यह बाइपास शहर के एक छोर, घुंगूर स्थित सिलचर मेडिकल कॉलेज से लेकर सिलचर रेलवे स्टेशन, तारापुर तक एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है। यह मार्ग मेहेरपुर, बीरबल बाजार, अंबिकापट्टी, रांगिखरी, प्रेमटोल, देवदूत प्वाइंट और कैपिटल प्वाइंट से होकर गुजरता है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि बाइपास के बनने से अब वाहन मध्य शहर के क्षेत्रों जैसे प्रेमटोल, अंबिकापट्टी, देवदूत और कैपिटल प्वाइंट से बच सकते हैं, जहां ट्रैफिक कम रहता है। हालांकि बाइपास मार्ग थोड़ा लंबा है।

दूसरी प्रमुख सड़क शाखा सदरघाट प्वाइंट से शुरू होती है, जो बाराक नदी के किनारे स्थित है, और शहर के अंदरूनी इलाकों जैसे इटाखोला और अन्य प्रमुख क्षेत्रों से होकर जाती है। कुछ साल पहले बाराक नदी पर सदरघाट ब्रिज के पूरा होने से मुख्य शहर और पहले से अलग-थलग पड़े इलाकों, जैसे डुडपाटिल, जो नदी के दूसरी ओर स्थित है, के बीच कनेक्टिविटी में सुधार हुआ है। इससे पहले, उन क्षेत्रों के निवासी शहर पहुंचने के लिए नावों पर निर्भर थे।

सिलचर की जाम की समस्या में एक और योगदान उसके शहर की संरचना से जुड़ा है। शहर के सभी मुख्य कार्यालय, न्यायालय और शैक्षिक संस्थान — निजी और सरकारी, सर्किट हाउस और शॉपिंग सेंटर — सभी 3-4 किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं, जो कैपिटल प्वाइंट के आस-पास हैं। इसने कर्मचारियों और छात्रों को रोजाना इस सीमित क्षेत्र में एक साथ आकर फंसा दिया है।

सिलचर मेडिकल कॉलेज, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) और असम विश्वविद्यालय सभी मुख्य शहर क्षेत्र के बाहरी हिस्से में स्थित हैं। हालांकि, इन स्थानों तक पहुंचने के लिए सीमित और संकरे रास्ते यात्रा को एक कष्टकारी अनुभव बना देते हैं।

लोग कैसे सफर करते हैं:

सिलचर के शहरी परिदृश्य की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यहां सरकारी सार्वजनिक परिवहन का पूरी तरह से अभाव है। पहले जो शहर बसें यात्रियों को सेवा देती थीं, वे काफी समय पहले गायब हो चुकी हैं, जिसके परिणामस्वरूप सड़कें तीन पहिया वाहनों से भर गई हैं। ये ऑटो-रिक्शा अब अनौपचारिक सार्वजनिक परिवहन का मुख्य हिस्सा बन गए हैं, जो अक्सर संकरे रास्तों और चौराहों पर जाम का कारण बनते हैं।

जन परिवहन के सीमित विकल्पों और यात्रा समय के निरंतर बढ़ने के कारण निजी वाहनों विशेष रूप से दोपहिया वाहनों की खरीदारी तेजी से बढ़ी है। इससे शहर की पहले से ही दबाव में चल रही सड़कों को अपनी क्षमता से कहीं अधिक बोझ झेलने पड़ता है।

सिलचर के जिला परिवहन अधिकारी (डीटीओ) ने डाउन टू अर्थ को बताया कि शहर की सड़कों पर चलने वाले तीन पहिया वाहनों को संचालन के लिए परमिट की आवश्यकता नहीं होती है, और यह एक ऐसा कानूनी कमी है जिसने इनकी अनियंत्रित वृद्धि में योगदान दिया है।

पंजीकृत वाहनों का ब्यौरा देते हुए उन्होंने बताया कि अप्रैल 2024 से मार्च 2025 के दौरान दोपहिया वाहनों की संख्या सभी अन्य वाहनों से अधिक रही, जबकि तिपहिया वाहन दूसरे स्थान पर रहे। उन्होंने कहा कि इस अवधि में जिले में कुल 19,823 दोपहिया वाहन पंजीकृत हुए, जबकि तिपहिया वाहनों की संख्या 4,890 रही और हल्के मोटर वाहनों की संख्या 2,312 रही। हालांकि यह आंकड़ा पूरे कछार जिले के लिए है। सिलचर शहर के लिए विशेष आंकड़ा डाउन टू अर्थ को प्राप्त नहीं हो सका।

ऑल कछार कमर्शियल ई-ऑटो एसोसिएशन के अध्यक्ष बिकाश भट्टाचार्य ने डाउन टू अर्थ को बताया कि सिलचर की सड़कों पर सप्ताह के कार्यदिवसों में लगभग 8,000 इलेक्ट्रिक ऑटो-रिक्शा चलते हैं, जो पारंपरिक पेट्रोल से चलने वाले ऑटो की घटती संख्या की भरपाई करते हैं।
उन्होंने कहा, "फिर भी करीब एक हजार पुराने पेट्रोल ऑटो सिलचर में आज भी चल रहे हैं। दोनों मिलाकर 10,000 से अधिक ऑटो-रिक्शा कार्यदिवसों में एक लाख से अधिक यात्रियों की आवाजाही की सेवा करते हैं।" गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए श्री भट्टाचार्य ने कहा—“तिपहिया वाहनों की अनियंत्रित बढ़ोतरी राजनीतिक संरक्षण से जुड़ी हुई है। इसके लिए सब्सिडी भी दी जा रही है। इससे भी अधिक गंभीर समस्या इनके अनियंत्रित आवागमन की है। आजकल सिलचर के बाहर के इलाकों जैसे सोनाई, धलाई, काठीगोड़ा आदि से भी तीन पहिया वाहन शहर में आ रहे हैं। इस पर रोक लगाना जरूरी है।”

जब संघ के प्रमुख भट्टाचार्य से इस मुद्दे पर उनकी भूमिका के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया—"हमने जिला आयुक्त को ज्ञापन सौंपे हैं, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।" एक सुझाव देते हुए उन्होंने कहा कि तिपहिया वाहनों के लिए रंग कोडिंग की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि यह तय किया जा सके कि कौन शहर के अंदर चल सकता है और कौन बाहर के अन्य शहरी क्षेत्रों में चल सकता है।

तिपहिया वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण को उजागर करते हुए अरका साहा ने कहा—"हमारे जिले में बेरोजगार युवाओं की संख्या अधिक है। राजनीतिक नेता उन्हें रोजगार के एक साधन के रूप में तीन पहिया वाहन चलाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह टिकाऊ नहीं है।"

सिलचर के यातायात प्रभारी शंतनु ने शहर में यातायात पुलिस द्वारा ट्रैफिक लाइट्स स्थापित करने की नई योजना के बारे में जानकारी दी। उन्होंने तिपहिया वाहनों के प्रसार के कारण यातायात समस्याओं में वृद्धि को स्वीकार करते हुए कहा—"पार्किंग की आदत भी बड़ी भूमिका निभाती है। जबकि प्रशासन द्वारा 11 पार्किंग स्पॉट आवंटित किए गए हैं, लोग कहीं भी पार्क करने की प्रवृत्ति रखते हैं, जिससे समस्या पैदा होती है, खासकर शॉपिंग सेंटर और निजी अस्पतालों के पास। कई निजी अस्पतालों में पार्किंग की कोई जगह नहीं होती, जिससे मेहेरपुर क्षेत्र यातायात पुलिस के लिए एक कठिन स्थान बन जाता है।"

दुर्घटनाओं के बारे में श्री शंतनु ने कहा कि शहर में छोटे-मोटे दुर्घटनाओं के मामले होते हैं, जबकि गंभीर दुर्घटनाएं मुख्यत: हाईवे और बाइपास पर होती हैं। डाउन टू अर्थ ने सिलचर में सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े प्राप्त करने की कोशिश की, लेकिन उसे वह प्राप्त नहीं हो सके।

रिंग रोड का प्रस्ताव?

सिलचर की जाम समस्या से मुक्ति पाने के लिए सड़क नेटवर्क का विस्तार एक रास्ता प्रतीत होता है। जबकि असम सरकार ने अव्यवस्थित यातायात से निपटने के लिए कई बुनियादी ढांचा विकास योजनाओं की घोषणा की है, सिलचर विकास प्राधिकरण एक मास्टर प्लान तैयार करने में व्यस्त है।

प्राधिकरण के अध्यक्ष मोंजुल देव ने कहा—"हम एक रिंग रोड का योजना बना रहे हैं। इस सड़क से शहर के मुख्य क्षेत्रों के कई प्रमुख बिंदुओं से आसानी से पहुंचा जा सकेगा। जैसे अगर कोई प्रेमटोल से सिलचर मेडिकल जा रहा है, तो वह जाम वाले मार्गों से बच सकता है।"

उन्होंने कहा कि इस मार्ग का विस्तृत नक्शा तैयार किया जा रहा है और इसे अंतिम रूप लेने में कुछ समय लगेगा।

दो पहिया वाहन योगदान करते हैं आधे प्रदूषण का

नेशनल एम्बियंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स के अनुसार, सिलचर को उच्च पीएम2.5 और पीएम 10 स्तर के लिए लगातार पांच वर्षों तक "नॉन-अटेनमेंट" शहर माना गया है।

आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर शरद गोखले की अगुवाई में एक एमिशन इन्वेंट्री और सोर्स अपॉर्टनमेंट अध्ययन किया गया था। इसके निष्कर्षों को साझा करते हुए प्रोफेसर गोखले ने डाउन टू अर्थ से कहा कि वाहन उत्सर्जन पीएम10 में 22 प्रतिशत और पीएम2.5 में 28 प्रतिशत योगदान करते हैं, जबकि जैविक ईंधन जलने से पीएम10 में 14 प्रतिशत और पीएम2.5 में 9 प्रतिशत योगदान होता है। औद्योगिक क्षेत्र, जिसमें कारखाने शामिल हैं, पीएम10 में 12 प्रतिशत और पीएम2.5 में 16 प्रतिशत योगदान करते हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि सड़क धूल और निर्माण धूल वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं, जो पीएम10 में 35 प्रतिशत और पीएम2.5 में 32 प्रतिशत योगदान करते हैं।

प्रोफेसर गोखले ने कहा, "बड़े ट्रक 29 प्रतिशत प्रदूषण पैदा करते हैं, लेकिन दो पहिया वाहन प्रमुख स्रोत हैं, जो 52 प्रतिशत प्रदूषण का कारण बनते हैं। हल्के व्यावसायिक 4 पहिया डीजल वाहन 11 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न करते हैं, जबकि शहर की बसें केवल 2 प्रतिशत प्रदूषण का कारण बनती हैं।"

शहर की सफाई की स्थिति और इसके प्रदूषण से संबंधित लिंक पर टिप्पणी करते हुए, उन्होंने कहा—"कुल मिलाकर शहर की सफाई स्थिति अच्छी नहीं है, जो खराब वायु गुणवत्ता का एक और कारण है। कई स्थानों पर, नालों से साफ किए गए मलबे को सड़क किनारे रखा जाता है, जो सूखने पर वायु में उड़कर प्रदूषण का कारण बनता है। इसके अलावा, मिजोरम रोड पर ट्रक सड़क पर बहुत धूल पैदा करते हैं, क्योंकि सड़क की स्थिति खराब है।"

 यह स्टोरी भारत में आवाजाही सीरीज का हिस्सा है। जो भारत में आवाजाही और वायु प्रदूषण के बीच संबंध स्थापित करती हैं। सीरीज की अन्य स्टोरीज पढ़ने के लिए क्लिक करें

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