
लगभग साढ़े चार किलोमीटर लंबे साइकिल ट्रैक पर लगी सब्जी की दुकानों के बीच एक साइकिल सवार भाईलाल अपनी साइकिल जैसे-तैसे खड़ी करने की कोशिश में जुटे हुए हैं, लेकिन सब्जी विक्रेताओं ने उन्हें खदेड़ कर ही दम लिया।
परेशान हाल साइकिल सवार ने कई बार उन्हें समझाने की कोशिश की कि यह साइकिल चलाने की जगह है तो कम से कम खड़ी तो करने दो, लेकिन उनकी बातों का सब्जी विक्रेताओं पर कोई असर नहीं हुआ।
भाईलाल कहते हैं कि यह मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ है। मैंने कई बाद इस ट्रैक पर चलने की कोशिश की लेकिन हर बार असफल ही रहा। वह बताते हैं कि यदि आप इस साइकिल ट्रैक पर साइकिल चलाने की कोशिश भी करते हैं तो बार-बार आपको अपनी साइकिल को अपने कंधों पर उठा कर मेन रोड पर लानी होगी क्योंकि कई स्थानों पर इन अतिक्रमणकारियों ने पूरा का पूरा ट्रैक ही कब्जा कर रखा है।
डाउन टू अर्थ ने लगभग एक सप्ताह तक इस ट्रैक पर नजर रखी, लेकिन इन दिनों के दौरान कभी कोई साइकिल सवार इस पर चलता नजर नहीं आया।
यह उस सतना (मध्य प्रदेश) जिले की स्थिति है जिसे 2015 में केंद्र सरकार द्वारा घोषित सौ स्मार्ट सिटी में शामिल किया गया था और यह साइकिल ट्रैक उसी स्मार्ट योजना के अंतर्गत सतना निवासियों को सौगात के रूप में मिला था।
भाईलाल पेशे से फल विक्रेता हैं। वह शहर की गलियों में घूम-घूम कर फल बेचते हैं। उन्होंने बताया कि आज 22 किलो आम खरीदा है। वह नौ बजे सुबह से शुरू करते हैं और देर शाम तक आम बेचते हैं।
शहर में जाम के कारण उन्हें अधिक समय तक सड़क पर गुजारना पड़ जाता है। वह बताते हैं कि आज से दस साल पहले ऐसी स्थिति नहीं थी। वह तब भी फल ही बेचते थे लेकिन सुबह नौ बजे निकलते थे तो दोपहर दो बजे तक काम निपटा कर घर वापस चले जाते थे। अब तो एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले तक पहुंचने में ही अधिकतर समय चला जाता है।
स्मार्ट सिटी घोषित हो जाने के बाद सतना स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट लिमिटेड ने शहर में कुल 72 विकास कार्यों को पूरा करने का लक्ष्य रखा। इनमें से अब तक 43 कार्य पूरे करने का दावा किया गया है। इनमें से 5.5 करोड़ रुपए की लगात से बना यह साइकिल ट्रैक भी शामिल है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शहर के अन्य विकास कार्यों का हाल भी इसी साइकिल ट्रैक की तरह बेहाल है?
इस सवाल पर विश्वतारा दूसरे (राष्ट्रीय समाचार पत्र के संपादक) कहते हैं, “कमोबेश शहर के अन्य विकास कार्य भी इसी ढर्रे पर चल रहे हैं।” जैसा कि इस साइकिल ट्रैक पर साइकिल चलने की जगह पर सब्जी मंडी, फल मंडी और सड़क किनारे बने बड़े-बड़े शोरूम की गाड़ियां खड़ी नजर आ रही हैं, ठीक इसकी दूसरी ओर की सड़क भी तमाम गाड़ियों की पार्किंग से पट सी गई हैं।
ऐसे में चार लेन की यह लंबी-चौड़ी सड़क अब गली बन कर रह गई है। हकीकत भी यही है कि पांच किलोमीटर के दायरे में सिमटे इस शहर में साढ़े चार किलोमीटर लंबे साइकिल ट्रैक होने के बावजूद यहां का ट्रैफिक रेंगता नजर आ रहा है।
स्मार्ट सिटी के विकास कार्यों में पूरा होने वाला एक और अहम कार्य पूरा हुआ है, वह है जिला मुख्यालय में स्मार्ट सिटी का 49.9 करोड़ रुपए की लगात से बना इंट्रीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (ईटीएमएस)। इसके पूरा होने और पिछले एक दशक से नो एंट्री व शहर के अंदर 18 मीटर की चौड़ी फोरलेन होने के बावजूद रोज-ब-रोज दो किलीमीटर दूरी तय करने में वर्तमान समय में 45 मिनट से अधिक का समय लग रहा है।
शहर के यातायात विभाग का कहना है कि उनके पास सीमित संसाधन हैं। इसके साथ ही विभाग का कहना है कि इस संबंध में अन्य विभागों सहित स्थानीय लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए।
स्मार्ट सिटी होने के बाावजूद जिले में ट्रैफिक पुलिस बल की संख्या आज भी दस साल पहले जितनी ही बनी हुई है। ट्रैफिक पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में 68 कर्मचारियों की तैनाती है, लेकिन यह दस साल पहले की जनसंख्या के हिसाब से तय की गई तैनाती है। अब इनकी संख्या दोगुनी करने की जरूरत है।
विश्वतारा दूसरे कहते हैं, “यह शहर 125 साल पुराना है। तब से अब तक इस शहर का विस्तार बिल्कुल नहीं हुआ, यह एक केंद्रीकृत शहर बनकर रह गया है।” वह कहते हैं कि इस शहर का विकास 1996 तक तो ठीक ढंग से होता रहा लेकिन इसके बाद तेजी से बढ़ती आबादी (चूंकि यह विंध प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी बन गया) ने इस शहर को प्रदेश का सबसे अधिक सघन बस्ती वाला जिला बना दिया। जनसंख्या तो बढ़ी लेकिन शहर एक ही स्थान पर ठिठक कर रह गया।
शहर के एक ही स्थान पर ठिठकने और लगातार दो, तीन और चार पहिया वाहनों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि ने शहर को रेंगने पर मजबूर कर दिया। यदि शहर में वाहनों की संख्या का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि 2020 में जहां 26,509 दोपहिया रजिस्टर हुए, वहीं 2024 में 37,448 दोपहिया वाहन रजिस्टर हुए। 2020 में 725 तिपहिया वाहन पंजीकृत हुए। तो 2024 में 2056 तिपहिया पंजीकृत हुए। शहर में 2020 में 4,684 कारें पंजीकृत हुए , जो 2024 में बढ़कर 6,267 कारें पंजीकृत हुई।
जहां निजी वाहनों की संख्या में 20 से 30 फीसद की तेजी आई वहीं, लोकल बसों की संख्या में इजाफे की दर बहुत कम है। आंकड़ों के अनुसार 2020 में 114 बसें थीं तो 2024 में बढ़कर 210 हुई हैं।
विश्वतारा दूसरे कहते हैं कि शहर में इंट्रीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम लागू है, लेकिन ये बस कागजों पर ही चल रही है। इसलिए तो शहर की आबोहवा पहले के मुकाबले अधिक स्वच्छ नहीं है।
प्रदूषण विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि पिछले तीन माह से शहर में वायु प्रदूषण की गुणवत्ता का औसत लगातार 133 एक्यूआई पर बना हुआ है। इसका एक बड़ा कारण है, स्मार्ट सिटी बनाने के लिए शहर में सीवर लाइन बिछाने के लिए शहर की लगभग हर सड़क खोदी गई है, लेकिन इनका बकायदा रेस्टोरेशन नहीं किया गया है।
इसके चलते सड़कों पर मिट्टी फैल गई है, जो धूल के रूप में अब उड़ती रहती है।
हालांकि सीवरेज प्रोजेक्ट से क्षतिग्रस्त हुई सड़कों को बनाने के लिए पिछले चार माह के अंदर 5 करोड़ 86 लाख के छह टेंडर वर्क आर्डर किए गए हैं। इसके बावजूद हालात जस के तस ही बने हुए हैं।
विश्वतारा कहते हैं कि यह शहर खदानों के ऊपर बसा एक कस्बा है और इसकी भौगोलिक स्थिति से आज के इंजीनियर पूरी तरह से वाकिफ नहीं होने के कारण उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य सफल नहीं हो रहे हैं।
इस संबंध में जिला प्रदूषण नियंत्रण विभाग का कहना है कि शहर में कंस्ट्रक्शन और सरकारी प्रोजेक्ट के कारण एक्यूआई इंडेक्स सामान्य से अधिक बना हुआ है। शहर में पानी के छिड़काव से हवा की गुणवत्ता को सही किए जाने की दिशा में काम किया जा रहा है।
दूसरी ओर इस शहर में 1960 में पहली सीमेंट फैक्टरी लगी थी। अब यह फैक्टरी शहर के बीचोबीच आ गई है। शहर के आसपास कुल पांच सीमेंट फैक्टरी हैं। इनके लिए कच्चे माल की जरूरत पूरी करने के लिए शहर के बाहरी हिस्से में ही आधे दर्जन से अधिक पत्थर खदानें स्थित हैं।
इस संबंध में भाईलाल कहते हैं कि जब वह फल बेचने के लिए इस फैक्टरी एरिया यानी घूरडांग क्षेत्र में जाते हैं तो मुंह पर कपड़ा बांध कर ही जा पाते हैं। नहीं तो सांस घुटने लगती है। हालांकि वह यह कहने से नहीं चूकते कि मुंह का कपड़ा भी तो दिल की तसल्ली के लिए ही मात्र है। यह मोहल्ला सतना सीमेंट फैक्टरी से लगा हुआ है।
यहां फैक्टरी में काम करने वाले मजदूरों का घर है। बस्ती के चारों ओर धुएं का गुबार फैला हुआ है। फैक्टरी के मुख्य द्वार से थोड़ा दूर हटकर राघव व बंभोलिया कहते हैं कि जब फैक्टरी चालू होती है तब वहां से बहुत अधिक मात्रा में धुंआ निकलता है और हमारा खांस-खांस कर बुरा हाल हो जाता है। यही हाल शहर के बाहरी इलाके में बनी पत्थर की खदानों के किनारे बसे लोगों का भी है।
अव्यवस्थित शहर होने के कारण शहर में सड़क दुर्घटनाओं का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। जिला पुलिस कार्यालय से मिले आंकड़ों के अनुसार जहां 2020 में 369 लोगों की सड़क दुर्घटना में मौत हुई थी, वहीं 2024 में यह बढ़कर चार अंको में पहुंच गई है यानी 1,145 मौतें हुईं। पिछले पांच सालों में शहर में सड़क दुर्घटनाओं में तीन गुना वृद्धि हुई है।
इन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए जिले में चार स्थानों की ब्लैक स्पाट (किसी सड़क पर एक ही जगह पर तीन साल के अंदर यदि पांच सड़क हादसे हो जाएं या इसी जगह पर तीन साल के अंदर दस मौतें हो जाएं तो उस जगह को ब्लैक स्पॉट के रूप में घोषित किया जाता है) के रूप में पहचान की गई है। जिले की सड़क सुरक्षा समिति का कहना है कि इन ब्लैक स्पॉट पर जब तक रोड सेफ्टी ऑडिट नहीं कराया जाता तब तक इसकी कोई अहमियत नहीं है।
अंत में कहा जा सकता है कि अगर भारत अगले तीन वर्षों में 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखता है तो सुलभ और मजबूत सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था सबसे अहम शर्त होगी।
शहरी स्तर पर प्राइवेट ऑपरेटर के द्वारा चलाई जाने वाली शहर के भीतर की स्थानीय एवं कस्बा बस सेवाओं का नतीजा परिवहन के निजी साधनों के दबदबे के रूप में निकला है। प्राइवेट गाड़ियां आवागमन की तत्काल जरूरतों का समाधान तो कर सकती हैं लेकिन प्राइवेट गाड़ियों का इस्तेमाल करने की आदत से सड़कों पर भीड़ बढ़ती है, ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) और प्रदूषकों का उत्सर्जन बढ़ता है और इन सबके कारण ईंधन के आयात पर भारत की निर्भरता में बढ़ोतरी होती है।
यह स्टोरी हमारी खास सीरीज भारत में आवाजाही का हिस्सा है, जो शहरों और कस्बों में वायु गुणवत्ता और लोगों की आवाजाही (परिवहन सेवाओं) के बीच संबंधों पर फोकस है। पूरी सीरीज पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें