
पश्चिम त्रिपुरा जिला अदालत में कार्यरत प्रभीर दासगुप्ता ने डॉक्टर की सलाह पर हर दिन कम से कम 40 मिनट पैदल चलना शुरू किया था। वह अगरतला के जगहरिमुरा में रहते हैं, सुबह समय नहीं मिलता, इसलिए वह बीते 15 वर्षों से रोज दफ्तर से घर तक 4.5 किलोमीटर पैदल चलते रहे हैं। लेकिन अब उन्हें यह दूरी लगभग 1.5 किलोमीटर घटानी पड़ रही है क्योंकि मुख्य सड़कों पर ट्रैफिक बहुत ज्यादा है और फुटपाथ तक सुरक्षित नहीं रहे।
अगरतला सरकारी मेडिकल कॉलेज में कार्यरत क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट नबनीता बणिक ने एक महीने पहले सुबह की सैर बंद कर दी, जब पोस्ट ऑफिस चौमुहानी इलाके में एक हादसे के दौरान एक साइकिल सवार को पीछे से आ रहे रेत से भरे ट्रक ने टक्कर मार दी।
शहर के बीचोबीच रहने वाले प्रदीप दास ने अपने बेटे और बेटी को न ही पैदल और न ही साइकल से महज एक-दो किलोमीटर की दूरी पर ट्यूशन जाने से मना कर दिया। उनका कहना है कि बच्चों के लिए शहर की सड़कें सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं।
कक्षा 10 की छात्रा किंजल भट्टाचार्य अच्छी साइकिल चलाती हैं, लेकिन उन्हें न तो पैदल और न ही साइकिल से स्कूल या ट्यूशन जाने का भरोसा है। उन्हें छोटी दूरी भी रिक्शा या ‘टमटम’ से तय करनी पड़ती है, या पिता की इलेक्ट्रिक स्कूटी पर पीछे बैठकर जाना पड़ता है।
एमबीबी कॉलेज के बीएससी पहले वर्ष के छात्र जयंत रॉय कहते हैं,“हमें कहा जाता है कि हम रोज एक्सरसाइज क्यों नहीं करते। लेकिन माता-पिता न तो साइकिल चलाने देते हैं और न दोस्तों के साथ पैदल चलने। वो चाहते हैं कि हम जिम जाएं, जो हमें पसंद नहीं। इस बात को लेकर घर में बहस होती रहती है।”
शौकिया साइक्लिस्ट अंजन सेनगुप्ता सुबह-सुबह साइकिल चलाना पसंद करते हैं, लेकिन शहर में यह मुमकिन नहीं। केवल रविवार को उनकी टीम ‘अगरतला साइक्लोराइडर्स’ शहर से बाहर निकलकर 30 से 50 किलोमीटर की दूरी तय कर पाती है।
अंजन कहते हैं, “अगरतला की सड़कों पर मोटरवाहनों का कब्जा है। सड़क के किनारे उबड़-खाबड़ हैं और पार्किंग में तब्दील हो चुके हैं। पैदल चलने वालों और साइकिल चालकों के लिए कोई जगह नहीं बची। शहर के खुले मैदान अब कंक्रीट की इमारतों से ढक गए हैं। हमारे बच्चे कहां खेलें, दौड़ें या टहलें? हर कोई युवाओं को मोटापे के लिए दोषी ठहरा रहा है, लेकिन गतिशीलता, पैदल यात्री सुरक्षा या साइक्लिस्ट सुविधा पर कोई बात नहीं करता।।”
अगरतला की बढ़ती रफ्तार
त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की स्थापना 1862 में तत्कालीन महाराजा बीर चंद्र माणिक्य ने की थी। उस वक्त यह महज तीन वर्ग मील के दायरे में 875 लोगों के लिए विकसित किया गया था। 2012 तक यह शहर 62 वर्ग किलोमीटर तक फैल चुका था और 4 लाख की आबादी बसा चुका था, ज्यादातर मूलभूत ढांचा भी राजशाही दौर में ही बना था।
1972 में जहां शहर में केवल 3,000 वाहन (सार्वजनिक बसें भी शामिल) पंजीकृत थे और सड़क नेटवर्क केवल 200 किलोमीटर तक फैला था, वहीं 1998 में वाहन संख्या 25,000 हो गई और सड़कें 286 किलोमीटर तक बढ़ीं। 2012 में वाहन संख्या बढ़कर 1.5 लाख हो गई और सड़क नेटवर्क 394 किलोमीटर तक। उस साल त्रिपुरा में वार्षिक वाहन वृद्धि दर 108 प्रतिशत थी—पूर्वोत्तर राज्यों में सबसे अधिक।
वाहनों की बारिश और परिवहन संकट
अगरतला में वाहनों की बढ़ोतरी विस्फोटक रही है और इसके कई कारण हैं। जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत सरकार ने 100 से ज्यादा सीएनजी बसें खरीदी थीं, लेकिन इनमें से लगभग 70 प्रतिशत तकनीकी खराबी या अनुपयुक्तता के कारण सड़कों से बाहर हो गईं। जो बचीं वे शहर से दूर इलाकों में चलाई जा रही हैं। इसके चलते पूरा सार्वजनिक परिवहन निजी कारों, तिपहिया और दोपहिया वाहनों पर शिफ्ट हो गया।
23 किलोमीटर दायरे वाले अगरतला शहर में आबादी 6 लाख के करीब है, वहां सड़क किनारे विक्रेताओं और पार्किंग के अलावा 15,000 मोटर चालित रिक्शा और टमटम, 16,000 से अधिक ऑटो रिक्शा, और 10,000 से अधिक निजी कारें हैं।
एआरपीएएन (अर्पण) संस्था के अनुसार, अगरतला में पीक ऑवर के समय गतिशीलता 2014 में 7 किमी प्रति घंटे से घटकर 2025 में 4 किमी प्रति घंटे रह गई। धीमी गति (जैसे रिक्शा) और तेज रफ्तार (नई पीढ़ी की कारें) वाहनों का आपसी मिश्रण जाम और प्रदूषण दोनों को बढ़ा रहा है।
2019-20 की तुलना में 2024-25 में दोपहिया वाहनों में 1,476.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसी अवधि में तिपहिया वाहनों में 1,064.6 प्रतिशत, चारपहिया में 1,868.3 प्रतिशत, बसों में 7,693.2 प्रतिशत और छोटे मालवाहकों में 3,342.7 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई।
अगरतला नगर निगम के अनुसार, रोजाना औसतन 90,000 वाहन शहर में प्रवेश करते और बाहर निकलते हैं। सबसे अधिक ट्रैफिक विशालगढ़ रोड पर देखा जाता है। यातायात मिश्रण में 65 प्रतिशत मोटर चालित यात्री वाहन, 6 प्रतिशत मालवाहन और 29 प्रतिशत गैर-मोटर चालित वाहन शामिल हैं। दोपहिया और कारें यात्री वाहनों का बड़ा हिस्सा हैं। लेकिन लगभग 50 प्रतिशत सड़कें केवल 8-10 मीटर चौड़ी हैं, जिससे ट्रैफिक चौराहों पर भारी जाम लग रहा है।
नागरिकों की परेशानी
वाहनों की इस बाढ़ का असर अगरतला की हवा पर साफ दिखता है। त्रिपुरा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव बिशु कर्मकार के अनुसार, शहर में दो जगहों पर हर सप्ताह दो बार वायु गुणवत्ता के चार मुख्य मानकों, जिनमें पीएम 10, पीएम 2.5, सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड की जांच की जाती है।
पिछले पांच वर्षों में पीएम 10 की मात्रा 36.54 से 149.17 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर , पीएम 2.5 की मात्रा 14.99 से 90.79 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर , सल्फर डाई ऑक्साइड की मात्रा 2.64 से 19.40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड की मात्रा 3.62 से 16.47 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गई। उन्होंने साफ कहा, “अगरतला के आस-पास कोई उद्योग नहीं है, इसलिए सारा प्रदूषण ट्रांसपोर्ट सेक्टर से ही आ रहा है।”
वहीं पैदल चलने और साइकिल चलाने वालों की संख्या बढ़ी है, लेकिन उनके लिए सुरक्षित रास्ते नहीं हैं। जो कुछ फुटपाथ हैं जैसे, मोटर स्टैंड रोड, हरिगंगा बसाक रोड, फायर ब्रिगेड रोड, उज्जयंत पैलेस रोड, गोल बाजार रोड, उसपर दुकानदारों ने कब्जा कर लिया है।
हालांकि वाहन संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन शहर में दुर्घटनाओं की संख्या में गिरावट आई है, ऐसा सरकारी आंकड़े बताते हैं। लेकिन मोटर और गैर-मोटर वाहनों के मिश्रण से शहर की रफ्तार धीमी हो गई है। साइकिल रिक्शा की धीमी गति और सड़कों पर पार्किंग ने जाम की समस्या और बढ़ा दी है।
अव्यवस्थित पार्किंग सबसे बड़ा संकट
पर्यावरण कार्यकर्ता धिमन दासचौधुरी कहते हैं, “शहर में ऑफ-स्ट्रीट पार्किंग की पर्याप्त सुविधा नहीं है। अधिकतर वाहन मुख्य सड़कों के किनारे खड़े कर दिए जाते हैं, जिससे सड़क की चौड़ाई घट जाती है। हरिगंगा बसाक रोड, नेताजी मार्केट, फायर ब्रिगेड रोड और मोटर स्टैंड रोड पर यह समस्या गंभीर है। ओरिएंट चौमुहानी से जैकसन गेट के बीच अगरतला नगर निगम ने करीब 30 वाहनों के लिए ऑन-स्ट्रीट पार्किंग की व्यवस्था की है, लेकिन यह पीक समय की मांग पूरी नहीं करता।”
फिर कैसे चलायमान बने अगरतला ?
पत्रकार सम्राट चौधरी बताते हैं, “2008 में हम हाईकोर्ट में अगरतला के लिए समग्र मोबिलिटी प्लान की मांग को लेकर लड़े थे। हमने ऑटो और निजी वाहनों के रजिस्ट्रेशन का विरोध किया था और सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक चलने वाली पैसेंजर-फ्रेंडली बस सेवा का प्रस्ताव दिया था, जिसमें यात्री बस का इंतजार न करें बल्कि बसें उनका इंतजार करें।
निजी वाहनों को हतोत्साहित किया जाना था, जबकि मुख्य सड़कों पर पैदल चलने, साइक्लिंग और बस यात्रा को बढ़ावा देने की बात थी। फीडर मार्गों के लिए ऑटो और रिक्शा की भूमिका तय की गई थी। हमने एक पार्किंग नीति भी सुझाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ।”
राज्य सरकार का दावा है कि वह अब कार्रवाई कर रही है। परिवहन मंत्री सुशांत चौधरी के अनुसार, “हमने अगरतला में अब और कोई व्यवसायिक यात्री वाहन परमिट देना बंद कर दिया है। निजी वाहनों के लिए भी परमिट रोक दिया गया है। हम सड़क के किनारों और पैदल पथों को बेहतर बनाने और नालों को ढककर फुटपाथ बनाने की योजना बना रहे हैं। मल्टी-लेवल पार्किंग का निर्माण हो रहा है और ट्रैफिक प्रबंधन में सुधार की कोशिशें जारी हैं।”
लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। वाहन अतिक्रमण, धीमी गति, भीड़भाड़, अपर्याप्त पार्किंग, खराब ट्रैफिक प्रबंधन, कमजोर सार्वजनिक परिवहन और पैदल यात्रियों की अनदेखी की समस्याएं बरकरार हैं। सड़क चौड़ाई बढ़ाने, मौजूदा बस नेटवर्क को मजबूत करने, बाईपास सड़कें बनाने और जंक्शन सुधार जैसे उपाय अब भी अधूरे हैं|