
दिशा मूलतया केरल की रहने वाली हैं, लेकिन सात साल से गुजरात के सूरत में रह रही हैं। वह यहां पटेल नगर में एक कार्यालय में काम करती हैं। वह वहां से लगभग सात किलोमीटर दूर रहती हैं। कुछ समय पहले तक वह शेयरिंग ऑटो में आती थी। दो ऑटो बदल कर अपने ऑफिस पहुंचती थी, लेकिन उन्हें ऑफिस आने में एक घंटा लग जाता था और लगभग इतना ही समय घर लौटने में लगता है। ऐसे में उन्होंने किसी तरह स्कूटी चलानी सीखी और स्कूटी से आने-जाने लगी हैं। खर्च भी कम हो गया और समय भी बच गया।
दिशा की तरह देवराज को भी दोपहिया (मोटर साइकिल) वाहन लेना पड़ा। हालांकि उनका वेतन इतना नहीं था कि मोटर साइकिल ले पाते, क्योंकि वह एक पावरलूम में करते हैंं। लगभग चार किलोमीटर पर उनकी पावरलूम तक जाने का कोई साधन नहीं है। वह सूरत अर्बन डवलमेंट अथॉरिटी द्वारा गोठान में ईडब्ल्यूएस (कमजोर आय वर्ग ) और एलआईजी (कम आय वर्ग) कॉलोनी में रहते हैं। लेकिन यहां इस कॉलोनी तक आवाजाही के कोई साधन उपलब्ध नहीं हैं। यहां से शहर लगभग 10 किलोमीटर दूर है। शहर जाने के लिए लोगों को साइकिल या बाइक से जाना होता है।
गुजरात का सूरत शहर देश के सबसे तेजी से बढ़ते औद्योगिक केंद्रों में से एक है। कपड़ा और हीरा उद्योगों के साथ-साथ तेजी से बढ़ते शहरीकरण ने सूरत को आर्थिक शक्ति तो बनाया है, लेकिन इसके साथ शहर की हवा और यातायात दोनों पर गहरा असर डाला है। प्रवासियों के शहर का तमगा हासिल कर चुके सूरत के ये दो उदाहरण बताते हैं कि शहर के अंदर हो या बाहर, आवाजाही के लिए दिशा की तरह लोगों को निजी वाहनों पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है।
सूरत नगर निगम के अनुमान के मुताबिक साल 2024 में शहर की आबादी 75 लाख के आसपास रही। शहर में सार्वजनिक परिवहन (पब्लिक ट्रांसपोर्ट) के नाम पर सूरत में सिटी बसें चलती हैं। सूरत बीआरटीएस(बसी रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम) का पहला 10.3 किमी लंबा कॉरिडोर जनवरी 2014 में उद्घाटित किया गया था और आज तक यह 102 किमी तक विस्तारित हो चुका है। बीआरटीएस की 166 बसें 12 रूटों पर और 575 सिटी बसें 44 रूटों पर चल रही हैं। इसके अलावा सूरत प्राधिकरण ने 15 किमी लंबे हाई मोबिलिटी कॉरिडोर भी बनाया है, जो पुराने शहर क्षेत्र के चारों ओर रिंग रोड पर चलता है और इसमें 24 बस स्टेशन और 12 बसें हैं।
साल 2004 तक सूरत शहर में सार्वजनिक परिवहन सेवाएं गुजरात राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा संचालित की जाती थीं। समय के साथ बस मार्गों की संख्या तो बढ़ी, लेकिन बसों की उपलब्धता में भारी कमी आई। अंततः मई 2007 में परिवहन निगम ने शहर की सभी शहरी बस सेवाएं बंद कर दीं और अगस्त 2007 में रेनबो टूर्स एंड ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निजी बस सेवाएं शुरू की गईं, जो नेट कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट के तहत सूरत नगर निगम की निगरानी में संचालित होती रहीं।
यह व्यवस्था अगस्त 2017 तक जारी रही। इसके बाद सूरत नगर निगम की कंपनी सिटीलिंक लिमिटेड को बस सेवाओं की जिम्मेवारी दी गई। हालांकि बसें चलाने का काम निजी कंपनियों को ही दिया गया।
लेकिन सूरत शहर में परिवहन व्यवस्था से जुड़ी कई गंभीर समस्याएं सामने आई हैं। सूरत के पुराने शहर में सिटी बसें दिख जाती हैं, जबकि कुछ मुख्य इलाकों में बीआरटीएस का सफर हो जाता है, लेकिन बाहरी इलाकों, खासकर औद्योगिक क्षेत्रों में भी बसों की पहुंच नहीं है।
प्रवासी श्रमिकों के बीच काम कर रही संस्था आीजविका ब्यूरो, सूरत के एक्जीक्यूटवि शरद जगाडे बताते हैं कि प्रवासी श्रमिकों को आवाजाही में खासी परेशानी होती है। कुछ बड़ी कंपनियों ने अपने श्रमिकों के आने-जाने के लिए बसों का इंतजाम किया है, लेकिन मीडियम व स्माल स्केल के उद्योगों में श्रमिकों के लिए बस का इंतजाम नहीं है।।
कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी), सूरत 2046 में एक सर्वे के आधार पर बताया गया है कि सरत की सबसे बड़ी समस्या ट्रैफिक जाम है, जिसकी औसत रेटिंग 3.97 है। इसके बाद दुर्घटनाएं और सड़क सुरक्षा की स्थिति है, जिसे 3.79 की रेटिंग मिली। इसी तरह सार्वजनिक परिवहन को 3.70 रेटिंग दी गई, जो बताती है कि सूरत की तीसरी सबसे बड़ी समस्या सार्वजनिक परिवहन है।
इसके अलावा साइकिल चलाने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी को 3.58, पार्किंग समस्या को 3.45, पैदल यात्रियों की सुविधाओं को 3.37 और सार्वजनिक परिवहन की वहनीयता को 3.36 की रेटिंग दी गई है। सीएमपी में साफ-साफ कहा गया है कि यह भी पाया गया कि मोटर चालित यात्राओं में साझा (शेयरिंग) ऑटो रिक्शा की हिस्सेदारी लगभग 16 प्रतिशत थी, जबकि सार्वजनिक परिवहन की हिस्सेदारी मात्र 1.75 प्रतिशत थी। यह अंतर दर्शाता है कि लोगों की सार्वजनिक परिवहन तक पहुंच सीमित थी, जिसके कारण लोगों ने साझा ऑटो को प्राथमिकता दी।
निजी वाहनों की संख्या बढ़ी
इन्हीं दिक्कतों की वजह से सूरत में निजी वाहनों की संख्या बढ़ रही है। वाहन पोर्टल के आंकड़े बताते हैं कि अकेले सूरत सिटी में 22 जून 2025 तक 29,76,933 वाहन पंजीकृत हैं। इनमें 19.75 लाख दोपहिया है। पंजीकरण के आंकड़े बताते हैं कि सूरत में औसतन हर साल 30 हजार से अधिक नई कारें और 1.20 लाख से अधिक मोटर साइकिल व स्कूटर सड़कों पर उतर रहे हैं। यही वजह है कि शहर में जाम बढ़ता जा रहा है।
सीएमपी में 2016 के घरेलू सर्वेक्षणों के हवाले से बताया गया कि सूरत शहर में कुल यात्राओं में से लगभग 85 प्रतिशत यात्राएं निजी वाहनों द्वारा की जाती हैं। जैसे-जैसे निजी वाहनों की खरीद बढ़ती है, यातायात जाम और यात्रा समय में वृद्धि होती है।
सेंटर फॉर एनवायरमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीईपीटी) यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर रुतुल जोशी ने कहा, “अगर लोगों को शेयरिंग ऑटो में भी सफ करना पड़े और एक तरफ के लिए दो बार ऑटो बदलना पड़े, तब भी किराए पर जितना खर्च आएगा, वह खर्च मोटर साइकिल के खर्च के रोज के खर्च से ज्यादा ही होगा। हालांकि मोटर साइकिल खरीदते वक्त जो इंवेस्टमेंट करना पड़ता है, वह काफी ज्यादा होता है और गरीब मजदूर के लिए संभव नहीं होता।”
जोशी की इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि सूरत दौरे के दौरान डाउन टू अर्थ ने पाया कि सूरत के पावरलूम श्रमिक या तो पैदल सफर करते हैं या साइकिल पर आते-जाते हैं और हीरा उद्योग में काम करने वाले श्रमिक मोटर साइकिल या स्कूटर में सफर करते हैं।
सूरत में आवाजाही को आसान करने के लिए मेट्रो का निर्माण कार्य चल रहा है। इस वजह से कुछ जगह जाम भी रहने लगा है, लेकिन जोशी कहते हैं कि मेट्रो का संचालन तब ही सफल होगा, जब तक मेट्रो स्टेशन पहुंचने के लिए सार्वजनिक फीडर बसों का इंतजाम न किया जाए।
एक लाख से अधिक ऑटो
देश के ज्यादातर बड़े शहरों में डीजल ऑटो रिक्शा को सीएनजी में तब्दील कर दिया गया है और डीजल ऑटो चलने पर पाबंदी लगा दी गई है, लेकिन सूरत में अभी भी डीजल ऑटो का रजिस्ट्रेशन हो रहा है। साल 2025 में अब तक 802 डीजल चलित ऑटो का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। वाहन पोर्टल के मुताबिक सूरत में लगभग 1.10 हजार तिपहिया चल रहे हैं, इनमें 57 हजार पेट्रोल/सीएनजी, 25 हजार सीएनजी एवं 30 हजार डीजल चलित हैं। हालांकि डीजल से चलने वाले ऑटो का इस्तेमाल माल ढोने में अधिक किया जा रहा है।
हवा में जहर
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना के अंतर्गत तैयार किए गए सूरत क्लीन एयर एक्शन प्लान के मुताबिक सूरत की हवा में धूल कणों (पार्टिकुलेट मैटर) के लिए सड़क की धूल 55 प्रतिशत पीएम10 और 33 प्रतिशत पीएम2.5 के लिए जिम्मेदार है।
वहीं पीएम2.5 प्रदूषकों में परिवहन क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत (4.19 किलोटन प्रतिवर्ष) और पीएम10 12 प्रतिशत बताई गई है। हालांकि प्रदूषण की यह मात्रा मौसम के अनुसार बदलती है। जैसे- सर्दियों में यह 16 प्रतिशत और गर्मियों में 6 प्रतशित तक आंकी गई है।
इसके अलावा, कार्बन मोनोऑक्साइड के कुल उत्सर्जन में परिवहन क्षेत्र की हिस्सेदारी 62 प्रतिशत है, जबकि नाइट्रोजन ऑक्साइड में यह आंकड़ा 85 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। साल 2021 में तैयार किए इस एक्शन प्लान में इन दोनों गैसों का मुख्य स्रोत पुराने डीजल वाहन, ट्रक, ऑटो रिक्शा और व्यक्तिगत दोपहिया वाहन बताया गया है।
सूरत क्लीन एयर एक्शन प्लान के मुताबिक सूरत के पीएम2.5 का वार्षिक औसत स्तर 52 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक मापा गया है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की तय सीमा (5 माइक्रोग्राम) से दस गुना अधिक है। पीएम10 का स्तर भी 90 से 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के बीच रहता है, जबकि मानक 60 माइक्रोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। नागरिकों का कहना है कि वेसू, मांगरोल और वराछा जैसे इलाकों में सर्दियों में धुंध और धूल इतनी बढ़ जाती है कि सांस लेने में दिक्कत होती है।
सूरत क्लीन एयर एक्शन प्लान के तहत 2025 तक पीएम2.5 में 36 प्रतिशत और 2030 तक 60 प्रतिशत की कटौती का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए सड़कों की सफाई, निर्माण स्थलों की निगरानी, इलेक्ट्रिक बसों की शुरुआत, ऑटोमोबाइल से उत्सर्जन की निगरानी, और हरियाली बढ़ाने जैसे कदम शामिल किए गए हैं। लेकिन ये प्रयास तब तक पर्याप्त नहीं माने जा सकते जब तक सार्वजनिक परिवहन को शहर की रीढ़ नहीं बनाया जाता।