
भुवनेश्वरनेश्वर के निवासी और मीडिया मार्केटिंग प्रोफेशनल लिंगराज बारिक को अपने सरकारी कार्यों के लिए शहर के केंद्र स्थल तक जाना होता है, जहां सचिवालय, विधानसभा, विभागीय कार्यालय और व्यापारिक प्रतिष्ठान स्थित हैं।
बारिक बताते हैं, “कुछ साल पहले तक शहर में आना-जाना काफी आसान था,, लेकिन अब कई जगहों पर ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ता है। जो दूरी पहले 15 मिनट में तय हो जाती थी, अब उसमें 50 मिनट लगते हैं।”
पूर्व कॉलेज शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष पांडा जयदेव विहार में रहते हैं। यहीं से एक 13 किलोमीटर लंबी सड़क की शुरुआत होती जो नंदनकानन तक जाती है।
सुबह 8:30 से 11:30 और शाम 4 से 9 बजे तक यह सड़क अत्यधिक जाम से जूझती है। पांडा अब इस मुख्य सड़क से बचते हैं और वैकल्पिक, लेकिन लंबा रास्ता चुनते हैं ताकि समय और प्रदूषण से बच सकें।
बारिक और पांडा रोजाना ट्रैफिक की स्थिति के अनुसार दोपहिया और चारपहिया दोनों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन घरेलू सहायिका राधा सेठी के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं है। वह शहर के अपार्टमेंट्स में काम करने के लिए रोजाना 11 किलोमीटर की यात्रा करती हैं। इसके लिए उन्हें 45 मिनट का समय लगता है। इस सफर में उन्हें बस के अलावा 1.5 किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ता है।
अनियोजित विस्तार
अर्बन प्लानर पीयूष रंजन राउत कहते हैं, “भुवनेश्वर जनसंख्या, अवसंरचना और वाहनों की संख्या में तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन यह विकास असंतुलित और बिना योजना के हो रहा है। अगर इसे संतुलित नहीं किया गया तो यह यात्रियों के लिए बुरे सपने जैसा होगा।”
1948 में भीड़भाड़ वाले कटक की जगह ओडिशा की राजधानी बना भुवनेश्वर, भारत के पहले योजनाबद्ध शहरों में से एक है। इसे जर्मन वास्तुविद ओटो कोनिग्सबर्गर ने 1966 में डिजाइन किया था। उनकी डिजाइन में सरकारी इमारतें, कर्मचारियों के क्वार्टर, बाजार और कॉलोनियां शामिल थीं, जिन्हें चौड़ी सड़कों और ग्रिड-आधारित नेटवर्क से जोड़ा गया था।
इस शहर की शुरुआती आबादी मात्र 40,000 थी। परिवहन का प्रमुख माध्यम साइकिलें थीं। लेकिन आज, शहर ने अपनी मूल संरचना को बहुत पीछे छोड़ दिया है।
2011 की जनगणना के अनुसार भुवनेश्वर की आबादी 8.85 लाख थी, जो अब वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के अनुसार 13 लाख तक पहुंच चुकी है। 2011-2021 के बीच शहर की जनसंख्या में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है।
भुवनेश्वर नगर निगम क्षेत्र (बीएमसी) 186 वर्ग किलोमीटर में फैला है और इसमें 1600 किलोमीटर सड़क नेटवर्क है, जिसकी औसत सड़क घनता 11.82 वर्ग किलोमीटर है, जो कि राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर शीर्ष शहरों में गिना जाता है।
शहर की सड़कों का प्रबंधन तीन एजेंसियां करती हैं। इनमें मुख्य सड़कों का प्रबंधन लोक निर्माण विभाग, आंतरिक सड़कों का प्रबंधन बीएमसी और राष्ट्रीय राजमार्गों का प्रबंधन नेशनल हाईवे अथॉरिटी के द्वारा किया जाता है।
वाहनों की बाढ़
रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस के आंकड़ों के अनुसार, 2000-01 में सालाना 25,543 वाहनों का पंजीकरण होता था, जो 2019-20 में 1,10,370 तक पहुंच गया। पिछले दस सालों में 20 लाख से अधिक वाहन शहर की सड़कों पर जुड़ चुके हैं। इनमें से 80 फीसदी दोपहिया वाहन हैं।
हालांकि ऑटो रिक्शा अब भी अहम हैं, लेकिन 2018 में “मो बस” सेवा की शुरुआत के बाद सार्वजनिक परिवहन में बड़ा बदलाव आया। कैपिटल रीजन अर्बन ट्रांसपोर्ट (सीआरयूटी) द्वारा चलाए गए इस सिस्टम में अब 560 से अधिक बसें हैं, जिनमें 180 इलेक्ट्रिक बसें भी शामिल हैं। 300 बसें भुवनेश्वर में चलती हैं, जो कटक से भी जुड़ी हैं।
वर्ष 2023 की सीआरयूटी रिपोर्ट के अनुसार, मो बस के शुरू होने से पहले बसों की हिस्सेदारी कुल ट्रिप्स में सिर्फ 8 फीसदी थी जबकि ऑटो की 17 फीसदी है। दोपहिया और कारें मिलाकर 62 फीसदी हिस्सेदारी रखती थीं। मो बस शुरू होने के साढ़े चार साल में इसकी सवारी में 200 फीसदी वृद्धि हुई और 57 फीसदी यात्रियों ने निजी वाहन छोड़ दिए।
2024 में सरकार बदलने के बाद इसका नाम “अमा बस” रखा गया। इसकी सुगमता और कम लागत के कारण लाखों लोग इसे अपनाते हैं। 2023 में इसे केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय से “सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक परिवहन प्रणाली वाला शहर” घोषित किया गया।
प्रदूषण की चुनौती
लेकिन कुछ सड़कें जैसे जयदेव विहार-नंदनकानन, खंडगिरी-टमांडो और पाला-रसूलगढ़ सड़कों पर अत्यधिक ट्रैफिक रहता है। इन इलाकों में नए मॉल, दफ्तर, अस्पताल और कोचिंग संस्थान खुलने से यातायात का दबाव बढ़ गया है।
यहां हजारों फ्लैट्स के साथ रिहायशी टावर बन रहे हैं, जिनमें प्रत्येक घर में दो से अधिक दोपहिया वाहन और एक या दो कारें हैं। सड़कों पर वाहन पार्किंग के लिए जगह नहीं बची है। पांडा बताते हैं कि दुकानों ने फुटपाथ घेर लिए हैं, जिससे लोग जल्दी में सड़क पर ही गाड़ी खड़ी कर लेते हैं।
2023 के एक अध्ययन “आइंडेटिफिकेशन एंड क्वांटिफिकेशन ऑफ इमिशन हॉटस्पॉट्स ” के अनुसार, शहर के सिर्फ 12 फीसदी क्षेत्र से 50 फीसदी नाइट्रोजन ऑक्साइड्स का उत्सर्जन होता है। पार्टिकुलेट मैटर 10 में रोड डस्ट और ट्रांसपोर्ट का योगदान क्रमशः 31 फीसदी और 29 फीसदी है।
पीएम 2.5 का वार्षिक औसत स्तर 47.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, जो राष्ट्रीय औसत 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक है। सर्दियों में यह स्तर 111 से 176 तक पहुंच गया था, जो कि “बहुत खराब” और “अत्यंत खराब” श्रेणियों में आता है।
राज्य स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, बीते पांच वर्षों में श्वसन समस्याओं में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है जो बच्चों और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही है।
बचाव की राह
सरकार नए फ्लाईओवर, अंडरपास और समानांतर सड़कें बना रही है। जैसे उत्कल हॉस्पिटल रोड को ट्रैफिक डायवर्जन के लिए खोला गया है। एआई आधारित ट्रैफिक सिग्नल्स और आईआईटी संस्थानों से सलाह भी ली जा रही है।
बीएमसी ने एक मॉनिटरिंग सेंटर शुरू किया है, जो शहर में ट्रैफिक स्थिति पर नजर रखता है। मेयर सुलोचना दास के मुताबिक, समय पर अलर्ट भेजने से कई बार जाम और दुर्घटनाएं रोकी गई हैं।
हालांकि राउत का मानना है कि सड़कों की डिजाइन में अब भी भारी वाहनों को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि अधिकांश लोग दो पहिया और साइकिल पर निर्भर हैं। वे आगे कहते हैं, “अलग लेन न होने से ये छोटे वाहन सड़कों पर असुरक्षित हैं।”
2018 में “मो साइकिल” नाम से एक साइकिल शेयरिंग प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, जिसमें जीपीएस ट्रैकिंग साइकिलें, 40 किमी लंबे साइकिल पथ और आसान किराए की सुविधा दी गई थी। लेकिन हॉकी वर्ल्ड कप के बाद यह योजना धीमी पड़ गई।
राउत और कई नागरिकों का मानना है कि यह परियोजना दोबारा सक्रिय की जानी चाहिए। पैदल मार्गों को दुकानों से मुक्त किया जाए और हरियाली बढ़ाई जाए ताकि प्रदूषण अवशोषित हो सके।
राउत कहते हैं, “भुवनेश्वर जैसे शहर में सुधार की बहुत गुंजाइश है।”