भारत में आवाजाही: हिमाचल की औद्योगिक नगरी बद्दी में अपने 'रिस्क' पर चलते हैं लोग

औद्योगिक क्षेत्र बनने के दो दशक बाद भी नहीं सुधरे हालात, अभी भी साफ हवा, उचित परिवहन समेत कई दिक्कतों से जुझ रहे लोग
हिमाचल प्रदेश के शहर बद्दी में सड़कों पर  उड़ती धूल आपकी सेहत बिगाड़ सकती हैं। फोटो: रोहित पराशर
हिमाचल प्रदेश के शहर बद्दी में सड़कों पर उड़ती धूल आपकी सेहत बिगाड़ सकती हैं। फोटो: रोहित पराशर spiu shimla
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मनोज कुमार पिछले 15 वर्षों से देश की फार्मा राजधानी बद्दी में कार्यरत हैं। वे वर्तमान में बरोटीवाला स्थित एक ऑटो पार्ट्स निर्माण कंपनी में काम करते हैं और रोज पिंजौर से 20  किलोमीटर का सफर तय करते हैं।

मनोज सुबह पौने आठ बजे घर से निकलते हैं और 9 बजे तक कंपनी पहुंचते हैं। उनकी कंपनी मुख्य सड़क से 6 किलोमीटर अंदर स्थित है, जिसमें अंतिम दो किलोमीटर का रास्ता उन्हें बाइक पर या पैदल तय करना पड़ता है।

मनोज बताते हैं कि शुरुआती वर्षों में वे बसों में भीड़ और असुविधा झेलते हुए कंपनी पहुंचते थे, लेकिन अब पैदल चलने में कठिनाई और बसों की अनुपलब्धता के कारण वे अपने एक साथी के साथ बाइक साझा करते हैं। इससे समय और पैसे की कुछ बचत तो होती है, लेकिन खराब सड़कों, बारिश, धूल और प्रदूषण के चलते यह यात्रा जोखिम भरी और असुविधाजनक बनी रहती है।

मनोज का हर महीने आने-जाने में करीब 1,000 रुपये खर्च होता है। वे कहते हैं, "यहां बसें नहीं चलतीं, बाइक पर चलना भी सुरक्षित नहीं है, लेकिन कोई और विकल्प नहीं है।"

मनोज के अनुसार, उनकी फैक्ट्री में दो हजार कर्मचारी हैं और अधिकांश को रोज़ाना आवागमन में ऐसी ही परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ (बीबीएन) क्षेत्र, जिसे हिमाचल की औद्योगिक रीढ़ कहा जाता है, देश की आर्थिकी में अहम योगदान देता है। यहां 2,150 से अधिक लघु और मध्यम उद्योग हैं, जिनमें एक लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं। 

2003 में केंद्र सरकार से विशेष औद्योगिक पैकेज मिलने के बाद इस क्षेत्र में उद्योगों की बाढ़ सी आ गई। पंजाब, हरियाणा, बिहार, झारखंड और उड़ीसा से बड़ी संख्या में श्रमिक यहां रोजगार की तलाश में आए। लेकिन दो दशक बीत जाने के बावजूद, बद्दी आज भी बुनियादी सुविधाओं खासकर परिवहन व्यवस्था के संकट से जूझ रहा है।

2008 में लागू किए गए ‘डेवलपमेंट प्लान 2025’ में बीबीएन क्षेत्र के समग्र विकास, विशेष रूप से यातायात व्यवस्था के सुधार के कई सुझाव दिए गए थे। योजना में अनुमानित जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रखते हुए बुनियादी ढांचे को विकसित करने की बात कही गई थी—वर्ष 2025 तक इस क्षेत्र की अनुमानित आबादी 4.3 लाख मानी गई थी, जिसमें 1.5 लाख फ्लोटिंग जनसंख्या शामिल है।

लेकिन आज भी न तो सार्वजनिक परिवहन की स्थिति सुधरी है, न ही सड़कें सुरक्षित बन पाई हैं। कामगारों से लेकर स्थानीय निवासियों तक, हजारों लोग प्रतिदिन पैदल चलने या जोखिमपूर्ण सवारी करने को मजबूर हैं।

फार्मा और अन्य कंपनियों को श्रमिक उपलब्ध करवाने वाली एक मैनपावर एजेंसी चलाने वाले शशि सकलानी बताते हैं कि बद्दी, बरोटीवाला और नालागढ़ क्षेत्र में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की स्थिति बेहद चिंताजनक है।

डाउन टू अर्थ से बातचीत में वे कहते हैं, "अगर एनएच-21 को छोड़ दें, जो पिंजौर से नालागढ़ तक जाता है, तो इसके दोनों ओर पांच से सात किलोमीटर तक के दायरे में हजारों फैक्ट्रियां फैली हैं। यहां हर दिन हजारों कामगार आते-जाते हैं, लेकिन उन्हें लाने-ले जाने की कोई ठोस सार्वजनिक व्यवस्था नहीं है।"

शशि बताते हैं कि कुछ कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए खुद परिवहन की सुविधा देती हैं, लेकिन बीबीएन क्षेत्र में ऐसी कंपनियों की संख्या 20 प्रतिशत से भी कम है। शेष कामगारों को आने-जाने के लिए या तो निजी वाहनों पर निर्भर रहना पड़ता है या फिर लंबी दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। “जो फैक्ट्रियां मुख्य सड़कों से अंदरूनी इलाकों में हैं, वहां तक पहुंचना मजदूरों के लिए रोज की चुनौती है—खासतौर पर बारिश, गर्मी या सर्दी के महीनों में,”

सार्वजनिक परिवहन का संकट और ट्रैफिक का दबाव

‘डेवलपमेंट प्लान 2025’ के अनुसार, नालागढ़ क्षेत्र में कुल 144 बस रूट हैं, जिन पर प्रतिदिन लगभग 750 फेरे लगाए जाते हैं। इसके अलावा, नालागढ़-चंडीगढ़ मार्ग पर रोज 100 और बद्दी-चंडीगढ़ मार्ग पर करीब 120 एचआरटीसी बसें संचालित होती हैं। लेकिन बीबीएन क्षेत्र की कुल आबादी स्थायी और अस्थायी मिलाकर साढ़े चार लाख से अधिक है जिसके मुकाबले यह सुविधा अपर्याप्त साबित हो रही है।

ट्रैफिक के अन्य माध्यमों की बात करें तो क्षेत्र में 600 से 700 टैक्सियां और 105 थ्री-व्हीलर हैं। इसके साथ ही, एशिया की सबसे बड़ी ट्रक यूनियन बद्दी-नालागढ़ भी यहीं है, जिसमें 10,000 से अधिक ट्रक पंजीकृत हैं। इन वाहनों का भारी दबाव पहले से ही जर्जर और संकरी सड़कों पर दिखाई देता है।

एक ट्रैफिक सर्वे के अनुसार, बीबीएन की 12 प्रमुख सड़कों पर पीक ऑवर्स—सुबह  8 से 10 और शाम 5:30 से 7:30 बजे के दौरान सरकारी बसों की आवाजाही लगभग शून्य पाई गई। वहीं, कार, जीप और दोपहिया वाहनों की संख्या अत्यधिक रही। विशेष रूप से बद्दी से झाड़माजरी मार्ग, जो उद्योगों से घिरा हुआ है, सबसे अधिक दबाव वाला पाया गया।

सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। शाम के पीक ऑवर (5:30 से 6:30 बजे) के दौरान, बद्दी-झाड़माजरी मार्ग पर पैसेंजर कार यूनिट (पीसीयू) की संख्या 1,610 थी, जबकि इस सड़क की वहन क्षमता महज 900 पीसीयू की है। इनमें 368 कारें, 164 दोपहिया वाहन, 420 डबल एक्सेल ट्रक, 108 थ्री एक्सल ट्रक, 114 अन्य बसें, 105 टैंपो और 294 ट्रैक्टर शामिल थे। इस दौरान सरकारी बसों की संख्या शून्य रही, जबकि केवल 4 मिनी बसें इस रूट पर देखी गईं।

बीबीएन की 12 प्रमुख सड़कों में से 5 रूट क्षमता से अधिक दबाव झेल रहे हैं, जिससे न सिर्फ ट्रैफिक जाम की समस्या बढ़ी है, बल्कि हादसों और प्रदूषण का खतरा भी गंभीर होता जा रहा है।

बढ़ता ट्रैफिक, बढ़ती दुर्घटनाएं

हालांकि डेवलपमेंट प्लान 2025 तैयार करते समय भविष्य की जरूरतों और चुनौतियों का आकलन किया गया था, लेकिन जमीनी हालात बताते हैं कि इस औद्योगिक क्षेत्र में यातायात अब एक बड़ी और जटिल समस्या बन चुका है। सड़कों पर लगातार बढ़ते निजी और मालवाहक वाहनों के दबाव के चलते दुर्घटनाओं की संख्या में भी चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है।

पुलिस और परिवहन विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 से 2024 के बीच बद्दी क्षेत्र में सड़क दुर्घटनाएं लगभग अढ़ाई गुना हो गई हैं। वर्ष 2014 में जहां कुल 58 सड़क हादसों में 26 लोगों की जान गई थी और 62 लोग घायल हुए थे, वहीं 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 143 घटनाओं तक पहुंच गया, जिनमें 68 लोगों की मौत हुई और 154 घायल हुए।

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह केवल बढ़ते ट्रैफिक का परिणाम नहीं है, बल्कि यातायात नियंत्रण प्रणाली, सार्वजनिक परिवहन की कमी और खराब सड़क जैसी अवस्थाओं का मिला-जुला असर है। बीबीएन जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में जहां रोज़ाना हजारों लोग आवाजाही करते हैं, ऐसी स्थितियाँ मानव जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं।

स्थानीय चालकों की जुबानी—"विकास नहीं, दोहन हो रहा है"

बीबीएन क्षेत्र में पिछले 35 वर्षों से टैक्सी चलाने वाले सुरजीत सिंह इस औद्योगिक विकास की हकीकत को एक अलग नजरिए से देखते हैं। डाउन टू अर्थ से बातचीत में वे कहते हैं, “बोलने को तो बद्दी का विकास हो रहा है, लेकिन असल में यहां कंपनियां सिर्फ दोहन के लिए आ रही हैं। शहर की हालत पहले से भी खराब हो गई है, खासकर यातायात की।”

सुरजीत बताते हैं कि कुछ साल पहले तक नालागढ़ से बद्दी की दूरी जो लगभग 16 किलोमीटर है 15 से 20 मिनट में पूरी हो जाती थी, लेकिन अब इसी सफर में डेढ़ घंटे तक लग जाते हैं। "बार-बार सड़कों का उखड़ना, अधूरी निर्माण प्रक्रियाएं और ट्रैफिक नियंत्रण का अभाव—ये सब मिलकर हालात बद से बदतर बना रहे हैं," वे अपनी बात में जोड़ते हुए कहते हैं।

उनकी बातों में एक और चिंता झलकती है—कमाई और साख दोनों पर असर। वे कहते हैं, “अगर हमें नालागढ़ से चंडीगढ़ एयरपोर्ट तक सवारी मिलती है, तो हम बद्दी की मुख्य सड़क से नहीं जाते। बाया रोपड़ रास्ता लेते हैं, जो 20 किलोमीटर लंबा है और उस पर टोल भी लगता है। इससे हमारी कमाई का बड़ा हिस्सा चला जाता है। लेकिन बद्दी की ओर से जाएं तो ट्रैफिक इतना होता है कि यात्री समय पर नहीं पहुंचते। कई बार तो पूरा दिन सिर्फ एक चक्कर में ही निकल जाता है।”

सुरजीत जैसे दर्जनों टैक्सी चालकों और स्थानीय निवासियों के अनुभव इस बात की तस्दीक करते हैं कि बद्दी का ‘औद्योगिक विकास’ एकतरफा और असंतुलित रहा है—जिसमें न तो कामगारों की ज़रूरतें शामिल हैं, न बुनियादी ढांचा ।”

हवा में घुलता जहर और बद्दी के लोग

बद्दी का नाम देश के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में शामिल है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) द्वारा तैयार प्रोग्रेस रिपोर्ट ऑफ नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के अनुसार, वर्ष 2024 में देश के 253 शहरों की वायु गुणवत्ता की रैंकिंग में बद्दी पीएम10 के स्तर पर 22वें स्थान पर रहा—जो बेहद चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बद्दी में वर्षभर (360 दिनों) में केवल 9 दिन "गुड", 80 दिन "सैटिस्फैक्टरी", जबकि 244 दिन "मॉडरेट", 23 दिन "पुअर", 2 दिन "वेरी पुअर" और 2 दिन "सीवियर" वायु गुणवत्ता की स्थिति रही।

वहीं पीएम2.5 के आंकड़े भी कुछ कम खतरनाक नहीं हैं—बद्दी इस मापदंड पर देश में 28वें स्थान पर रहा। यहां सालाना औसत पीएम2.5 67 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा, जो तय मानक से कई गुना अधिक है।

इन खतरनाक आंकड़ों के बीच यहां काम करने और रहने वाले लोगों को सांस से जुड़ी बीमारियों, आंखों में जलन और फेफड़ों की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।

क्यों इतनी जहरीली है बद्दी की हवा?

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण में राज्य सरकार द्वारा दाखिल रिपोर्ट के अनुसार, बद्दी की हवा को प्रदूषित करने वाले प्रमुख स्रोत हैं:

  • •               सड़क की धूल और मिट्टी: 17-24%

  • •               औद्योगिक ईंधन दहन: 21-22%

  • •               वाहनों से निकलने वाला धुआं: 12-15%

  • •               जैविक कचरा जलाना: 8%

  • •               इनऑर्गेनिक एयरोसोल: 13-14%

  • •               बायोमास बर्निंग: 14-17%

हालांकि 2017 से 2024 के बीच कुछ सुधार देखने को मिला है। जहां 2017-18 में PM10 का औसत स्तर 168 था, वहीं 2024-25 तक यह घटकर 67 पर आ गया है। लेकिन यह सुधार औद्योगिक समय सारणी और लॉकडाउन जैसे बाहरी कारणों के चलते हुआ माना जा रहा है, किसी स्थायी समाधान के तहत नहीं।

"यहां की हवा में दम नहीं बचा"

बद्दी में छोटी सी कंपनी चलाने वाले इंद्र पाल सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उन्होंने यहां रहने के लिए मकान बनवाया था, लेकिन अब वह चंडीगढ़ में रहते हैं। वे कहते हैं, “रात में जब फैक्ट्रियां फुल शिफ्ट में चलती हैं तो बद्दी की हवा सांस लेने लायक नहीं रहती। यहां रहना स्वास्थ्य के लिए खतरा बन गया है।”

इंद्रपाल हर दिन 40 किलोमीटर दूर चंडीगढ़ से बद्दी आते हैं। वह मानते हैं कि आने-जाने में उन्हें ट्रैफिक, खराब सड़कों और खर्च का सामना करना पड़ता है, लेकिन उनका कहना है “स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ नहीं।

एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. ओमेश भारती ने डाउन टू अर्थ से बात करते हुए बताया कि खराब वायु गुणवत्ता वाले क्षेत्रों में लंबे समय तक रहना लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है।

“लगातार प्रदूषित हवा में सांस लेने से सांस की बीमारियां, जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों से संबंधित अन्य रोगों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इतना ही नहीं, लंबे समय तक पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे सूक्ष्म कणों के संपर्क में रहने से हृदय संबंधी समस्याएं और यहां तक कि स्ट्रोक और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है,”

डॉ. भारती ने यह भी कहा कि बद्दी जैसे औद्योगिक क्षेत्र में रहने वाले श्रमिक, टैक्सी चालक, ट्रक चालक और अन्य स्थानीय निवासी प्रदूषण के सीधे प्रभाव में हैं क्योंकि वे दिनभर सड़कों और फैक्ट्रियों के बीच रहते हैं।

“यहां के अधिकांश लोग स्वास्थ्य जांच नहीं करवा पाते, जिससे बीमारियां तब तक पता नहीं चलती जब तक स्थिति गंभीर न हो जाए। ऐसी परिस्थितियों में सरकार और उद्योगों को मिलकर एक सक्रिय स्वास्थ्य निगरानी तंत्र विकसित करना चाहिए,”

अर्बन प्लानर अनुज बहल का मानना है कि बद्दी जैसे तेज़ी से विकसित हो रहे औद्योगिक क्षेत्र के लिए एकीकृत योजना की आवश्यकता है। डाउन टू अर्थ से बात करते हुए वे कहते हैं,

“ऐसे औद्योगिक इलाकों के विकास के लिए जरूरी है कि सभी हितधारकों—सरकार,  उद्योग,  स्थानीय निकाय और नागरिकों—को एक मंच पर लाकर साझा दृष्टिकोण से योजना बनाई जाए। बद्दी क्षेत्र की बढ़ती मोबिलिटी की चुनौती से निपटने के लिए एक समग्र  'इंटीग्रेटेड मोबिलिटी प्लान' तैयार किया जाना चाहिए, जिसमें निजी वाहनों के साथ-साथ पैदल चलने वालों,  सार्वजनिक परिवहन, और संभावित रेल संपर्क जैसे विकल्पों को शामिल किया जाए। इसके साथ ही रियल टाइम ट्रैफिक अपडेट्स और सूचना प्रणाली जैसे कम्युनिकेशन टूल्स को मज़बूत करने की भी जरूरत है।”

वे आगे कहते हैं कि भविष्य में बढ़ते औद्योगिक विस्तार को देखते हुए दीर्घकालिक योजनाएं बननी चाहिए जिन्हें समयबद्ध ढंग से लागू किया जाए। साथ ही पर्यावरणीय स्थिरता बनाए रखने के लिए कड़े नियमों का पालन हो, उद्योगों पर निगरानी बनी रहे और आम लोगों में भी जागरूकता फैलाई जाए ताकि हवा की गुणवत्ता बेहतर बनी रहे और शहर रहने योग्य बन सके।

बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ (बीबीएन) क्षेत्र देश के सबसे बड़े औद्योगिक क्लस्टरों में से एक है, जहां लाखों की संख्या में श्रमिक प्रतिदिन काम पर आते-जाते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, इस क्षेत्र का आधारभूत ढांचा—खासतौर पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट और मोबिलिटी—आज भी बुरी तरह पिछड़ा हुआ है।

उद्योगों की भरमार, वाहनों की बेतहाशा वृद्धि और पब्लिक ट्रांसपोर्ट की भारी कमी ने श्रमिकों और आम लोगों के जीवन को जटिल बना दिया है। इसके अलावा, बढ़ता वायु प्रदूषण इस औद्योगिक क्षेत्र को एक “डिज़ास्टर ज़ोन” के रूप में बदलता जा रहा है, जहां रहना और काम करना स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा होता जा रहा है।

मोबिलिटी की समस्याओं को दूर करने के लिए कई प्रयास तो जरूर किए गए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। 21 किलोमीटर लंबे पिंजौर-नालागढ़ फोरलेन प्रोजेक्ट, जो इस क्षेत्र की यातायात समस्या को काफी हद तक कम कर सकता था, का कार्य वर्ष 2023 में शुरू हुआ और इसे अक्टूबर 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था।

हालांकि, 24 नवंबर 2024 को लोकसभा में दिए गए आधिकारिक जवाब के अनुसार यह प्रोजेक्ट अभी तक केवल 37 फीसदी ही पूरा हो पाया है, जिससे स्पष्ट होता है कि इसे पूर्ण होने में अभी दो साल से भी अधिक का समय लग सकता है।

इसी प्रकार, वर्ष 2007-08 में स्वीकृत चंडीगढ़ से नालागढ़ तक की 33 किलोमीटर ब्रॉड गेज रेलवे लाइन भी अभी तक अधूरी है। यदि यह प्रोजेक्ट समय पर पूरा हो गया होता, तो इससे न केवल क्षेत्र में मालवाहक ट्रकों की संख्या में कमी आती बल्कि हज़ारों कामगारों को सुरक्षित और सुलभ परिवहन का विकल्प भी मिलता।

इन अधूरे प्रोजेक्ट्स और धीमी योजनाओं की वजह से यह पूरा क्षेत्र विकास के नाम पर केवल औद्योगिक विस्तार देख रहा है, जबकि बुनियादी नागरिक सुविधाएं—जैसे ट्रैफिक प्रबंधन, सार्वजनिक परिवहन, स्वच्छ हवा और सुरक्षित सड़कें—अभी भी नजरअंदाज की जा रही हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक सरकार, उद्योग और स्थानीय प्रशासन मिलकर एक समन्वित और दूरदर्शी योजना के तहत काम नहीं करते, तब तक बीबीएन क्षेत्र में काम करना और रहना दोनों ही आम लोगों के लिए चुनौती बना रहेगा।

यह स्टोरी भारत में आवाजाही सीरीज का हिस्सा है। जो भारत में आवाजाही और वायु प्रदूषण के बीच संबंध स्थापित करती हैं। सीरीज की अन्य स्टोरीज पढ़ने के लिए क्लिक करें

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