भारत में आवाजाही: घर से काम की जगह तक पहुंचने में कड़ी मुश्किलों से जूझते हैं लुधियाना के प्रवासी मजदूर

वाहनों की बढ़ती तादाद, सड़क दुर्घटनाएं और खराब आधारभूत ढांचा जैसी खामियां बड़ी वजह
सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था न होने के कारण, निवासियों के लिए यात्रा का मुख्य साधन ऑटो-रिक्शा ही है।
सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था न होने के कारण, निवासियों के लिए यात्रा का मुख्य साधन ऑटो-रिक्शा ही है।
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पंजाब के शहर लुधियाना में ऑटो-पार्टस् बनाने वाले एक कारखाने में काम करने वाले प्रवासी मजदूर चंद्रमा प्रसाद पिछले 18 सालों से साइकिल से काम पर जाते हैं। वे साल 2007 से ऐसा कर रहे हैं। उनके घर से कारखाने की दूरी कुछ किलोमीटर की है जिसमें बीस मिनट से ज्यादा नहीं लगने चाहिए लेकिन उन्हें सुबह कारखाने पहुंचने में 40-45 मिनट लगते हैं जबकि शाम को व्यस्त घंटों के दौरान घर लौटने में करीब एक घंटा लग जाता है। 

41 साल के चंद्रमा डाउन टू अर्थ से कहते हैं - ‘यहां का ट्रैफिक तो अकल्पनीय है। साइकिल से चलने वालों के लिए कोई अलग ट्रैक न होने की वजह से बड़े वाहनों के बीच से रास्ता बनाते हुए काम पर जाने और लौटने में काफी वक्त लग जाता है। ट्रैफिक बढ़ने पर आना-जाना और थकाऊ हो जाता है।’

चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के प्रेसीडेंट उपकार सिंह आहूजा के मुताबिक, लुधियाना में छोटी और मध्यम आकार के करीब 12.4 लाख कारखाने है, जिनमें लगभग दस लाख मजदूर काम करते हैं, जिनमें ज्यादातर प्रवासी हैं और इस इंडस्ट्री के लिए रीढ़ की हड्डी जैसे हैं।

सरकारी आकलन के मुताबिक, कुछ साल पहले तक लुधियाना की शहरी आबादी 16 लाख थी, जो अब वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के मुताबिक बीस लाख से ज्यादा हो चुकी है। क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज से यह पंजाब का सबसे बड़ा जिला है , जिसका क्षेत्रफल 159.37 स्क्वायर किलोमीटर है। यह शहर होजरी, साइकिल, सिलाई-मशीन, कपड़ा और सहित सभी प्रकार के उद्योगों का केंद्र है, जिसके कारण इसे ‘भारत की लघु औद्योगिक राजधानी’ भी कहा जाता है।

मजदूरों पर सबसे ज्यादा पड़ती है ट्रैफिक की मार

चंद्रमा प्रसाद की तरह ही ज्यादातर मजदूर काम पर आने-जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते हैं। सार्वजनिक यातायात की व्यवस्था न होने के चलते रोजाना करीब तीन सौ रुपये कमाने वाले मजदूरों के लिए यह संभव भी नहीं है कि वे ऑटो या कैब का खर्च उठा सकें।

ट्रैफिक पुलिस के साथ जुड़कर काम करने वाले ट्रैफिक विशेषज्ञ राहुल वर्मा के मुतबिक, शहर की करीब पचास फीसदी आबादी, जो सड़कों का सबसे कम हिस्सा घेरती है उसे ही सड़कों पर सबसे ज्यादा दिक्क्तों का सामना करना पड़ता है।

लुधियाना नगर निगम द्वारा प्रकाशित कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान के अनुसार, 2009 में किए गए एक मॉडल विभाजन सर्वेक्षण से पता चला कि काम पर जाने के लिए 31.5 फीसदी यात्राएं पैदल, 43.4 फीसदी दोपहिया वाहनों से और 21.8 फीसदी (पैदल यात्रा को छोड़कर) साइकिलों से की गईं।

टायर बनाने वाली एक कंपनी में काम करने वाले एक अन्य प्रवासी मजदूर संतोष कुमार कहते हैं,- ‘गाड़ियों से निकलने वाला जहरीला धुआं हालात को बदतर बना देता है। हम वायु प्रदूषण फैलाने के लिए सबसे कम जिम्मेदार है लेकिन उसकी मार सबसे ज्यादा हम पर ही पड़ती है।’

शहर में हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए काम करने वाले, ‘क्लीन एयर पंजाब’ अभियान, के संयोजक आकाश गुप्ता बताते हैं कि लंबे ट्रैफिक जाम की वजह से शहर के अंदर यात्रा में लगने वाला उनका समय दोगुना हो गया है जबकि ईंधन की खपत तीन गुना तक बढ़ गई है। वह कहते हैं- ‘ वाहन के रखरखाव का खर्च भी बढ़ गया है। मुझे लगातार गियर बदलना पड़ता है, जिससे क्लच और ब्रेक पर दबाव पड़ता है। मेरी सर्विसिंग की लागत लगभग 20 फीसदी बढ़ गई है।’

2014 में तैयार की गई कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान में बताया गया कि कुल यात्राओं में 49 फीसदी यात्राएं कार्य के लिए, 26 फीसदी शिक्षा के लिए जबकि शेष 25 फीसदी अन्य उद्देश्यों के लिए थीं। 

सार्वजनिक परिवहन की कोई व्यवस्था न होने की वजह से शहरवासियों के लिए आने-जाने का मुख्य साधन ऑटोरिक्शा ही बचता है। 46 वर्षीय गृहिणी शालिनी धींढसा बताती है कि सुरक्षा कारणों से स्थानीय लोग ऑटोरिक्शा का इस्तेमाल करने से बचते हैं। उनके मुताबिक, ‘ ऑटोरिक्शा के ड्राईवर उद्दंड हैं और ज्यादा किराया वसूलते है। लोग निजी वाहन या ओला और उबर जैसी कैब सेवाओं को प्राथमिकता देते हैं। ऑटो का इस्तेमाल आमतौर पर तभी किया जाता है, जब कोई बाहर से लौटता है।’

शहर के निवासियों की शिकायत है कि यहां के ऑटो चालक लापरवाह हैं और ई-रिक्शा के आने से यह समस्या और भी बदतर हो गई है। ड्राइवर अक्सर तेज गति से गाड़ी चलाते हैं, यातायात नियमों का उल्लंघन करते हैं और अचानक रुक जाते हैं, जिससे यातायात बाधित होता है और भीड़भाड़ बढ़ जाती है।

इंटरमीडिएट पब्लिक ट्रांजिट (आईपीटी) - जिसमें ऑटो-रिक्शा, टैक्सी और साइकिल रिक्शा शामिल हैं - यात्री परिवहन के लिए यात्रा का मुख्य साधन बना हुआ है। कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान ने आईपीटी वाहनों की संख्या में क्रमिक वार्षिक वृद्धि दर्ज की।

वर्मा कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2009 में डीजल से चलने वाले ऑटोरिक्शा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था लेकिन फिर भी तमाम ऐसे वाहन गैरकानूनी तरीके से चल रहे हैं। उनके मुताबिक, ‘तेजी से बढ़ रहे ऑटोरिक्शा पर नियंत्रण लागने की जरूरत है।’

आग में घी डालने का काम कर रहे निजी वाहन

हाल के सालो में लुधियाना में निजी गाड़ियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि वाहन पंजीकरण की संख्या 2021 के 48,143 से बढ़कर 2022 में 70,486 हो गई यानी इसमें 46 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई। 2024 में 1,15,122 पंजीकरण हुए जो 2023 के 79,144 से 45 फीसदी ज्यादा थे। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, लुधियाना में लगभग 16,63,071 गाड़ियां हैं।

2014 की व्यापक गतिशीलता योजना (सीएमपी) में दर्ज किया गया कि शहर के 62 फीसदी गृहस्वामियों के पास कम से कम एक स्कूटर या मोटरसाइकिल थी, 35 फीसदी लोगों के पास एक साइकिल थी जबकि महज आठ फीसदी लोगों के पास कार थी।

गुप्ता ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पिछल दशक में स्थिति में काफी बदलाव आया और सड़कों पर चार पहिया वाहन ज्यादा नजर आने लगे। उनके मुताबिक, ‘ दूसरा बड़ा मुद्दा यह है कि सड़कों की चौड़ाई उतनी ही है, कई तो पहले से भी संकरी हो गई हैं जबकि गाड़ियां खासकर बड़ी एसयूवी जो ज्यादा जगह घेरती हैं, ट्रैफिक को बदतर बना रही हैं।’

डाउन टू अर्थ ने फुटपाथ का दौरा करने पर पाया कि ये जगह कई बार अतिक्रमण कर पार्किंग के लिए इस्तेमाल की जाती है, जिससे पैदल चलने वालों को मुश्किल होती है। फुटपाथ ज्यादातर कमर्शियल और बाजार क्षेत्रों में होते हैं, उन पर अतिक्रमण से पैदल चलने वालों की आवाजाही बाधित होती है और भीड़भाड़ बढ़ती है।

कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी) में  शहर के भारत नगर चौक, लघु सचिवालय, भाईबाला चौक, आरती चौक, रेलवे स्टेशन क्षेत्र, आईएसबीटी, दुगरी चौक और गिल चौक पर पैदल यात्रियों की आवाजाही से जुड़ी प्रमुख समस्याओं की पहचान की गई थी।

खराब आधारभूत ढांचे और वाहनों की बढ़ती संख्या की वजह से बढ़ती सड़क दुघर्टनाएं चिंता का सबब बनी हुई हैं। रोड क्रैशेस एंड ट्रैफिक इन पंजाब 2023 के मुताबिक, 2023 में लुधियाना में 504 दुघर्टनाएं हुईं, जिनमें 402 लोगों की मौत हुई जबकि अन्य 152 गंभीर रूप से घायल हुए। पीड़ितों में से 47 फीसदी दोपहिया वाहन चालक और 32 फीसदी पैदल यात्री थे। ट्रकों से 34 फीसदी दुर्घटनाएं हुईं, उसके बाद कार, टैक्सी और एलएमवी से 33 फीसदी दुर्घटनाएं हुईं।

दोपहिया वाहनों से 15 फीसदी दुर्घटनाएं हुईं। पुलिस कमश्निर के अधिकार क्षेत्र में कुल 89 दुर्घटना ब्लैक स्पॉट की पहचान की गई। पैदल यात्रियों की सुरक्षा से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा फुटपाथ और फुटपाथ पर दुकानों और व्यावसायिक गतिविधियों का विस्तार है। सीएमपी ने कहा कि इससे पैदल यात्रियों को सड़कों पर आना पड़ता है, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।

वायु प्रदूषण की समस्या

लुधियाना के रास्तों के पैटर्न और बड़ी तादाद में औद्योगिक इकाईयों की वजह से भी यहां प्रदूषण बढ़ रहा है, जिससे यह देश के दस सबसे प्रदूशित शहरों में शामिल है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक, 2018 में यहां औसत पीएम 2.5 का स्तर 51 था, जो 2024 में बढ़कर 61.1 हो गया। नगर निगम के अधिकारी कहते हैं कि शहर का करीब 49 फीसदी प्रदूषण उद्योगों की वजह से है, तीस फीसदी सड़कों की धूल की वजह से और 11 करीब 11 फीसदी गाड़ियों की वजह से है।

नाम न उजागर करने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया- ‘ यहां की वायु की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ है। निगरानी वाले दो केंद्रों - पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और वेरका मिल्क प्वाइंट, दिखा रहे हैं कि एयर क्वालिटी इंडेक्स, यानी एक्यूआई लगातार तीन सौ बना हुआ है, पिछले तीन सालों से हो रहे फ्लाई ओवर के निर्माण- कार्य ने स्थिति को और बदतर कर दिया है।’

औद्योगिक क्षेत्र में स्थित एक अन्य स्टेशन कभी भी 400 से नीचे का एक्यूआई दर्ज नहीं करता है, जबकि पुराने शहर के बाजार क्षेत्र में एक्यूआई 250-280 के बीच में रहता है। वायु गुणवत्ता के नियमों के हिसाब से 200 से ऊपर का एक्यूआई स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है जबकि 300 से ऊपर का एक्यूआई खतरनाक और स्वास्थ्य के लिए इमरजेंसी की चेतावनी है।

2010 में इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि खराब वायु गुणवत्ता के कारण दृश्यता में कमी सांख्यिकीय रूप से दैनिक मृत्यु दर में वृद्धि से जुड़ी हुई है। इसमें बताया गया कि दोपहर के समय दृश्यता में हर किलोमीटर की गिरावट के कारण प्राकृतिक कारणों से मृत्यु दर में 2.4 फीसदी की वृद्धि हुई।

इन सबके बीच, एक दशक से भी पहले प्रस्तावित जिस महत्वाकांक्षी सीएमपी में ट्रैफिक की समस्याओं को सुलझाने, गतिशीलता बढ़ाने और सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को स्थापित करने का लक्ष्य तय किया गया था, उसकी लगभग पूरी तरह उपेक्षा की गई।

सीएमपी का लक्ष्य 60 फीसदी यात्राओं को सार्वजनिक परिवहन में बदलना और 90 फीसदी आबादी को कवर करना है, जिसमें पैदल यात्री और गैर-मोटर चालित परिवहन पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसने फुटपाथों को अतिक्रमण से मुक्त करने और पार्किंग के बुनियादी ढांचे में सुधार करने की भी सिफारिश की।

हालांकि पंजाब प्रशासन और परिवहन विभाग के अघिकारियों ने स्वीकार किया कि सीएमपी ज्यादातर कागजों तक ही सीमित रहा है। ग्रेटर लुधियाना एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी के एक अधिकारी के मुताबिक, ‘ कुछ एलिवेटेड सड़कों और फ्लाईओवरों के निर्माण से यातायात में आसानी हुई है। शहर को बाईपास करने के लिए केवल एक बाहरी रिंग रोड का निर्माण-कार्य चल रहा है।’

पंजाब सरकार के ट्रैफिक एडवाइजर नवदीप असीजा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि 4 मई को राज्य ने दुर्घटना संभावित क्षेत्रों का आकलन करने और ब्लैक स्पॉट्स को तलाशने के लिए योजनाएं विकसित करने पर सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि एजेंसियों को मौजूदा फुटपाथों और साइकिल ट्रैकों का आकलन करने और सुधार योजनाएं तैयार करने का निर्देश दिया गया है।

उनके मुताबिक, ‘हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद, सरकार नागरिकों के पैदल चलने के अधिकार को मान्यता देती है। जागरुकता अभियानों के माध्यम से डीजल ऑटो को चरणबद्ध तरीके से हटाने और साइकिल चलाने को बढ़ावा देने के भी प्रयास किए जा रहे हैं।’

हालांकि सीएमपी के तहत प्रस्तावित मेट्रो, बीआरटी और सिटी बस सेवाओं को लागू किया जाना अभी भी बाकी है। परिवहन विभाग के एक अधिकारी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि सौ इलेक्ट्रिक बसों की खरीद को केंद्र सरकार ने स्वीकृति दे दी है लेकिन यहां उनके लिए  सिस्टम तैयार करने मे अभी समय लगेगा।

उन्होंने कहा, ‘ विशेषज्ञों की एक टीम को नियमित रूप से उच्च मृत्यु दर वाले ब्लैक स्पॉट की पहचान करने और उन्हें घटाने की योजना तैयार करने के लिए लगाया गया है।’

वर्मा कहते हैं कि सीएनजी स्टेशनों जैसा बुनियादी ढांचे न होने की वजह से लुधियाना के ऑटो ड्राईवर, स्वच्छ ईंधन के इस्तेमाल को लेकर प्रोत्साहित नही हो रहे हैं। वह आगे कहते हैं कि निजी गाड़ियों की जगह सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को अपनाने के लिए लोगों का माइंडसेट बदलना होगा, जो एक बड़ी चुनौती बनी रहेगी। 

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