शिमला के उपनगर पंथाघाटी इलाके में रहने वाले 30 वर्षीय रमन कांत हर सुबह अपने ऑफिस के लिए निकलते हैं, तो उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ देखी जा सकती हैं। महज 14 किलोमीटर दूर बालूगंज स्थित दफ्तर पहुंचने में उन्हें अब औसतन पौने दो घंटे लग जाते हैं-जबकि कभी यही दूरी वे 45 मिनट में तय कर लिया करते थे।
रमन बताते हैं, “अब तो लगता है, दिन का बड़ा हिस्सा बसों में धक्के खाते हुए ही गुजर जाता है। पहले सफर आसान था, लेकिन अब बसों में भीड़, ट्रैफिक जाम और बसों की कमी ने जिंदगी मुश्किल कर दी है।”
उनका रोज का सफर न सिर्फ समय खा जाता है, बल्कि जेब पर भी भारी पड़ता है- हर महीने की तनख्वाह से करीब 1500 रुपये बस किराए में ही खर्च हो जाते हैं। थकान, लेट-लतीफी और ऑफिस में बॉस की नाराजगी अब उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गई है।
रमन अकेले नहीं हैं। शिमला के हजारों लोग-चाहे वे स्कूटर या मोटरसाइकिल से काम पर जाएं, पैदल चलें, सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर हों या निजी वाहन चलाएं-हर दिन ट्रैफिक, जाम, भीड़ और बढ़ती गाड़ियों की वजह से इसी तरह की जद्दोजहद से गुजर रहे हैं।
शिमला की संकरी सड़कें, बेतहाशा बढ़ती गाड़ियों की संख्या और कमज़ोर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था ने शहर की रफ्तार को थाम दिया है।
महज 35 वर्ग किलोमीटर में फैला शिमला शहर आज मोबिलिटी की गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। प्रदेश की राजधानी होने के कारण यहां सभी प्रमुख सरकारी विभागों के मुख्यालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, सचिवालय, उच्च न्यायालय और बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान स्थित हैं।
इसके अलावा, शिमला देश का प्रमुख पर्यटन स्थल भी है, जहां साल भर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। खासकर गर्मियों के मौसम में मैदानों की तपिश से बचने के लिए रोजाना हजारों पर्यटक शिमला का रुख करते हैं, जिससे शहर की सड़कों पर वाहनों और लोगों की भीड़ कई गुना बढ़ जाती है। पर्यटन सीजन में ट्रैफिक जाम, पार्किंग की समस्या और सार्वजनिक परिवहन पर बोझ आम हो जाता है, जिससे स्थानीय निवासियों की रोजमर्रा की जिंदगी भी प्रभावित होती है।
ऐसे में शहर की सड़कों पर ट्रैफिक का दबाव लगातार बढ़ रहा है। ट्रैफिक वॉल्यूम काउंट सर्वे 2018 के अनुसार, शिमला के 11 प्रमुख इंटरसेक्शन पर सुबह 9 से 11 बजे और शाम 5 से 7 बजे पीक आवर के दौरान जबरदस्त भीड़ देखी जाती है।
बालूगंज में सुबह के समय 1001 पैसेंजर कार यूनिट (पीसीयू) और विक्टरी टनल में 3901 पैसेंजर कार यूनिट (पीसीयू) दर्ज किए गए, जबकि शाम के वक्त इंदिरा गांधी चौक पर 812 और विक्टरी टनल पर 4210 पीसीयू रिकॉर्ड हुए।
पैदल चलने वालों की संख्या भी कम नहीं है-विक्टरी टनल में 257 और आईजीएमसी चौक में 3068 पैदल यात्री दर्ज किए गए। ये आंकड़े बताते हैं कि शिमला में पैदल चलने वालों और वाहन चालकों दोनों के लिए सफर आसान नहीं रहा।
जेब पर पड़ रहा अतिरिक्त बोझ
शिमला शहर में यातायात अब सिर्फ समय ही नहीं, जेब पर भी भारी पड़ने लगा है। शहर के कांप्रीहैंसिव मोबिलिटी प्लान के मुताबिक, एक औसत परिवार हर महीने करीब 926 रुपये केवल सफर में खर्च करता है, जो उनकी मासिक आय का लगभग 5 फीसदी है। यह आंकड़ा साफ दिखाता है कि ट्रैफिक और ट्रांसपोर्ट अब शिमला के आम नागरिक के बजट का बड़ा हिस्सा बन चुका है।
शहर में बढ़ती मोबिलिटी की समस्या के चलते लोगों को अपने यात्रा के समय और यातायात के साधनों को भी बदलने में मजबूर होना पड़ रहा है। दो दशकों से अधिक समय तक बसों में सफर करने वाली 52 वर्षीय अर्चना फुल्ल बताती हैं कि अब न केवल उन्हें यात्रा के माध्यम और समय को बदलना पड़ा है, बल्कि इसका आर्थिक बोझ भी बढ़ गया है।
वह कहती हैं, “पहले मेरे घर से दफ्तर की दूरी महज तीन किलोमीटर थी और 10–15 मिनट में बस से पहुंच जाती थी। आने-जाने में कुल खर्च 10 रुपये होता था। लेकिन अब मुख्य सड़क पर वाहनों की लंबी कतारों से बचने के लिए मुझे प्रतिबंधित मार्ग पर चलने वाली महंगी टैक्सी लेनी पड़ती है, जिससे रोज़ का खर्च 40 रुपये तक पहुंच गया है।”
शहर के एक छोर टुटू से शहर के बीचोंबीच अपने कार्यस्थल लक्कड़ बाजार निजी वाहन में पहुंचने वाले राज अरोड़ा बताते हैं, “अब शहर थम सा गया है।” 50 वर्षीय राज कहते हैं, “मैं पिछले 15 वर्षों से लगातार अपने निजी वाहन से 9 किलोमीटर दूर लक्कड़ बाजार जाता हूं और इसमें मुझे महीने में कई बार एक घंटे से ऊपर का समय लग जाता है। ऐसे मौके बहुत कम होते हैं जब मैं बिना जाम में फंसे दफ्तर पहुंचा हूं।”
वह आगे जोड़ते हैं, “पहले जो सफर 50 रुपये के पेट्रोल में पूरा होता था, अब जाम में फंसे रहने और रेंगते ट्रैफिक की वजह से दोगुना खर्च कराना पड़ता है।”
एंट्री प्वाइंट्स पर ही शुरू हो जाता है जाम
शिमला शहर में चार मुख्य प्रवेश द्वार हैं-शिमला-मंडी रोड (टूटू-बालूगंज होते हुए सर्कुलर रोड), चंडीगढ़-सोलन-शोघी रोड, ऊपरी शिमला से ढली के रास्ते, और करसोग-ततापानी-सुन्नी-शिमला रोड (ढली में मिलता है)। इन सभी रास्तों से आने वाला ट्रैफिक शहर की एकमात्र सर्कुलर रोड पर केंद्रित हो जाता है।
यही वजह है कि सर्कुलर रोड और शहर के प्रमुख चौकों-बालूगंज, एमएलए क्रॉसिंग, 103 टनल, ओल्ड बेरियर, शोघी बाजार, विधानसभा क्रॉसिंग, विक्टरी टनल, नियर लिफ्ट, खलीनी चौक, सेंट एडवर्ड चौक, संजौली चौक, ढली चौक, मशोबरा बाइफरकेशन, ऑकलैंड टनल, तारा हॉल, बीसीएस, कसुम्पटी चौक आदि-पर हर दिन वाहनों की लंबी कतारें लगती हैं। इन इलाकों में ट्रैफिक जाम अब रोजमर्रा की समस्या बन गई है, जिससे लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचने में घंटों लग जाते हैं।
शहर में बढ़ते जाम और वाहनों की संख्या पर नियंत्रण के लिए हाईकोर्ट को भी हस्तक्षेप करना पड़ा है। हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद शिमला नगर निगम क्षेत्र में वाहन पंजीकरण के नियमों में बदलाव किए गए हैं। अब नए वाहन का पंजीकरण तभी संभव है जब वाहन मालिक प्रमाणित करे कि उसके पास पार्किंग की व्यवस्था है।
इसके लिए पार्किंग सर्टिफिकेट संबंधित प्रमाणीकरण एजेंसी के पास जमा कराना अनिवार्य है, और यह सर्टिफिकेट पुलिस द्वारा मौके पर जाकर पार्किंग की वास्तविकता की जांच के बाद ही जारी किया जाता है। इस कदम का उद्देश्य शहर की सड़कों पर अनियंत्रित वाहनों की संख्या को सीमित करना और ट्रैफिक जाम की समस्या को कम करना है।
वर्तमान में शिमला में वाहनों को पंजीकृत करने के लिए अगल-अलग एजेंसियां हैं जिसमें उपमंडलाधिकारी शिमला शहरी और ग्रामीण के अलावा रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस में वाहनों का पंजीकरण होता है। शिमला शहर, शिमला ग्रामीण और आरटीओ शिमला के तहत पंजीकृत वाहनों की संख्या 1,21,437 है। विशेषज्ञों का मानना है कि शिमला शहर में प्रदेश के अन्य स्थानों से आने वाले लोग जो शिमला में रहते हैं, उनके पास लगभग 50 हजार से अधिक वाहन हैं। शहर में रोजाना 5-8 हजार बाहरी वाहन भी प्रवेश करते हैं।
पर्यटक ज्यादा आधारभूत ढांचा नाकाफी
हिमाचल आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, जनवरी से दिसंबर 2024 के बीच शिमला में 25.77 लाख से अधिक पर्यटक पहुंचे हैं और हर साल पर्यटकों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। हालांकि, इतनी बड़ी संख्या में आने वाले पर्यटकों के ठहरने, पार्किंग और अन्य बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था शहर के लिए बड़ी चुनौती बन गई है।
आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक, शिमला जिले में कुल 623 होटल, होम स्टे और गेस्ट हाउस हैं, जिनमें लगभग 10,596 बिस्तरों की व्यवस्था है, जो इतनी बड़ी पर्यटक भीड़ के लिए अपर्याप्त है।
पार्किंग की बात करें तो शिमला शहर में कुल पार्किंग क्षमता 4,000 से अधिक वाहनों की नहीं है। नतीजतन, पर्यटकों को पार्किंग के लिए घंटों भटकना पड़ता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, शिमला आने वाले 80% पर्यटकों को पार्किंग की समस्या का सामना करना पड़ता है और कई बार उनसे ओवरचार्जिंग भी की जाती है।
पर्यटन सीजन के दौरान यह समस्या और गंभीर हो जाती है, जिससे न सिर्फ पर्यटक बल्कि स्थानीय लोग भी प्रभावित होते हैं। पार्किंग की इस समस्या के बीच अवसर तलाशते हुए शहर से सटे ग्रामीण इलाकों में लोग खेती छोड़ रहे हैं और पार्किंग स्पेसिज विकसित कर रहे हैं। इससे खेती योग्य भूमि का सिमटना भी शुरू हो गया है।
कमजोर सार्वजनिक परिवहन भी बढ़ा रहा दिक्कत
सार्वजनिक परिवहन की बात करें तो वर्तमान में शिमला में 106 निजी बसें और 182 एचआरटीसी की बसें रोजाना चलती हैं, लेकिन बढ़ती आबादी और पर्यटकों की संख्या के मुकाबले यह संख्या नाकाफी साबित हो रही है।
एक समय था जब शिमला के 65 फीसदी लोग सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करते थे, 2005 में जहां 65 फीसदी लोग सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते थे, वहीं अब यह आंकड़ा घटकर 49 फीसदी रह गया है। 2018 के हाउसहोल्ड प्राइमरी सर्वे के अनुसार, 35 फीसदी लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट, 23 फीसदी पैदल और 41 फीसदी लोग निजी वाहनों (19 फीसदी कार, 22 फीसदी मोटरसाइकिल) का इस्तेमाल करते हैं। निजी वाहनों की बढ़ती संख्या ने शहर की सड़कों पर दबाव और ट्रैफिक जाम को और बढ़ा दिया है।
राजधानी और पर्यटन स्थल होने के कारण यहां हर रोज सैंकड़ों सरकारी और निजी बसें भी आती हैं, जिससे ट्रैफिक का दबाव कई गुना बढ़ जाता है। ओल्ड आईएसबीटी, जो शहर का प्रमुख ट्रांजिट पॉइंट है, वहां एक सामान्य दिन में 49,633 लोग चढ़ते-उतरते हैं। शहर की कई सड़कें प्रतिबंधित हैं, जहां बिना परमिट वाहनों की आवाजाही मान्य नहीं है, लेकिन सर्कुलर रोड पर सभी प्रकार के वाहन चलते हैं, जिससे ट्रैफिक नियंत्रण और भी कठिन हो जाता है।
शिमला शहर में जनसंख्या और वाहनों का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। शहर के पूर्व डिप्टी मेयर और शिमला सिटी मोबिलिटी प्लान तैयार करने वाले टिकेंद्र सिंह पंवार ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में बताया कि नगर निगम में कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक व्यापक सर्वेक्षण करवाया था, जिसके नतीजे चौंकाने वाले थे।
पंवार बताते हैं कि शिमला में पैसेंजर कार यूनिट्स की संख्या अत्यधिक है। विक्ट्री टनल क्षेत्र में किए गए 16 घंटे प्रतिदिन के नियमित ट्रैफिक सर्वे में यह संख्या 4,000 से 45,000 पीसीयू के बीच दर्ज की गई। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि शहर की सड़कें क्षमता से कहीं अधिक दबाव में हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि शहर में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था कमजोर है, जिससे 50 प्रतिशत से अधिक वाहन ऐसे लोग चलाते हैं जो अकेले यात्रा करते हैं। इससे सड़कों पर वाहनों का घनत्व और भी बढ़ जाता है।
पंवर के अनुसार, शिमला को इस जाम और प्रदूषण की समस्या से उबारने के लिए मल्टीमॉडल सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत है। उन्होंने कहा, “हमने इस दिशा में पहल की थी, लेकिन योजनाएं आगे नहीं बढ़ पाईं।”
एक अर्बन प्लानर के रूप में वे मानते हैं कि शिमला को ट्राम, गोल्फ कार्ट, साइकिल ट्रैक और आधुनिक इलेक्ट्रिक बसों के बेड़े जैसे साधनों की ओर बढ़ना चाहिए। साथ ही, शहर के भीतर परिवहन के लिए रोपवे जैसी वैकल्पिक व्यवस्था में भी निवेश जरूरी है।
उन्होंने पहाड़ी शहरों की विशेष जरूरतों की ओर इशारा करते हुए कहा कि ऊर्ध्वाधर गतिशीलता (वर्टिकल मोबिलिटी) को भी अपनाना चाहिए, जिसमें लिफ्ट, एस्केलेटर और अन्य आधुनिक तकनीकी समाधान शामिल हों। इससे न केवल भीड़ का बोझ घटेगा, बल्कि शहर का जीवन स्तर भी बेहतर होगा।
शिमला में लगातार बढ़ती वाहनों की संख्या का असर न केवल वायु गुणवत्ता पर पड़ रहा है, बल्कि दुर्घटनाओं और मौतों की दर में भी चिंताजनक वृद्धि देखी जा रही है। हिमाचल प्रदेश परिवहन विभाग की हाल ही में जारी "रोड एक्सीडेंट इन हिमाचल प्रदेश 2023" रिपोर्ट के अनुसार, शिमला क्षेत्र में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या वर्ष 2015 की तुलना में 2024 में काफी बढ़ी है।
बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं
वर्ष 2015 में शिमला में 225 सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गई थीं, जिनमें 431 लोग घायल हुए और 98 लोगों की मौत हुई थी। वहीं, वर्ष 2024 में दुर्घटनाएं बढ़कर 319 हो गईं, जिनमें 462 लोग घायल हुए और 137 लोगों की जान चली गई।
ये आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि बढ़ती वाहन संख्या और अपर्याप्त सड़क सुरक्षा ढांचा, शिमला जैसे पहाड़ी शहरों में जानलेवा साबित हो रहे हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए मजबूत यातायात प्रबंधन, सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन और बेहतर रोड इंफ्रास्ट्रक्चर की सख्त जरूरत है।
शहर की हवा पर ट्रैफिक का दबाव
आईसीएलईआई सस्टेनबल मोबिलिटी की रिपोर्ट में शिमला शहर में मोबिलिटी की दयनीय स्थिति के बारे में बताया गया है। इसमें बताया गया है कि शिमला शहर में परिवहन से होने वाले कार्बनाइजेशन में सार्वजनिक परिवहन की 48 प्रतिशत और गैर मोटरचालित परिवहन का 43% योगदान है।
हालांकि यह कम है मगर पहाड़ी स्थलाकृति होने और पर्यटकों के भारी आवागमन के चलते यहां की संकरी सड़कों पर भीड़भाड़ ज्यादा बढ़ जाती है। पीक आवर्स में तो यहां के प्रमुख कार्ट रोड पर वाहनों की औसत गति 2 किमी प्रतिघंटा से 12 किमी प्रति घंटा रहती है।
परिवहन क्षेत्र वायु प्रदूषण में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, और शिमला इसका ज्वलंत उदाहरण है। शहर में वाहनों की बढ़ती संख्या का सीधा असर वायु गुणवत्ता पर पड़ा है। हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के डैशबोर्ड में दर्ज 2020 से 2024 के आंकड़े शहर की हवा की गिरती स्थिति को स्पष्ट रूप से दिखाते हैं।
वर्ष 2020 में हालांकि शुरुआती तीन महीनों का डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन अप्रैल से दिसंबर के बीच एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 164 बार ‘गुड’, 41 बार ‘सैटिस्फैक्टरी’ और 2 बार ‘मॉडरेट’ की श्रेणी में दर्ज किया गया। इसके विपरीत, वर्ष 2024 में वायु गुणवत्ता में गिरावट स्पष्ट रूप से देखी गई—पूरे साल में एक्यूआई 151 बार ‘गुड’, 123 बार ‘सैटिस्फैक्टरी’ और 4 बार ‘मॉडरेट’ रहा। यह परिवर्तन संकेत देता है कि शहर की हवा अब पहले से अधिक प्रदूषित हो रही है।
वहीं, ‘अर्बन एमिशन डॉट इन्फो’ द्वारा जारी शोध भी यही रुझान दिखाता है। रिपोर्ट के अनुसार, शिमला में पीएम 2.5 (PM 2.5) का स्तर 1998 में 22.9 माइक्रोग्राम/घन मीटर था, जो 2016 तक बढ़कर 31.5 तक पहुंच गया। इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2018 में पीएम 2.5 उत्सर्जन में परिवहन क्षेत्र का योगदान लगभग 900 टन प्रति वर्ष था, जबकि पीएम 10 उत्सर्जन में यह योगदान 950 टन प्रति वर्ष रहा।
विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि वर्ष 2018 में शहर में पीएम 2.5 प्रदूषण में परिवहन क्षेत्र का हिस्सा 38.9 प्रतिशत था, जो कि समय के साथ बढ़ते हुए वर्ष 2030 तक 42 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है।
सेहत बिगाड़ रहा ट्रैफिक जाम
एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. ओमेश भारती का कहना है कि लंबे समय तक ट्रैफिक जाम या जाम जैसी स्थिति में फंसे रहना यात्रियों और चालकों दोनों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है। वे बताते हैं कि जाम के दौरान वाहनों से निकलने वाली जहरीली गैसों का संकेन्द्रण (कंसंट्रेशन) काफी अधिक होता है, जिससे आसपास खड़े लोग और वहां से गुजरने वाले पैदल यात्रियों के लिए हवा और भी ज़हरीली हो जाती है।
डॉ. भारती के अनुसार, ऐसी स्थिति में इन गैसों का प्रभाव सीधे तौर पर श्वसन तंत्र, हृदय, फेफड़ों और मस्तिष्क पर पड़ता है। विशेष रूप से वे लोग जो पहले से अस्थमा या अन्य सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं, उनके लिए यह स्थिति और भी घातक साबित हो सकती है।
सरकार की क्या है तैयारी?
शिमला डेवलपमेंट प्लान में शहर की तेजी से बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए आधारभूत ढांचे के विस्तार और सुदृढ़ीकरण पर बल दिया गया है। सिटी डिवेलपमेंट प्लान के अनुसार, वर्ष 2041 तक शिमला की कुल अनुमानित जनसंख्या 6.25 लाख तक पहुंचने की संभावना है, जिसमें स्थायी और अस्थायी (फ्लोटिंग) दोनों तरह की आबादी शामिल होगी।
प्लान में दिए गए आंकड़ों के अनुसार:
2011 में शिमला प्लानिंग एरिया की स्थायी जनसंख्या 2.41 लाख थी। इसमें 70,000 की फ्लोटिंग पॉपुलेशन जोड़ने पर कुल जनसंख्या 3.11 लाख थी।
2021 में यह संख्या 3.07 लाख स्थायी और 85,000 अस्थायी जनसंख्या के साथ कुल 3.92 लाख तक पहुंच गई।
2031 में यह अनुमानित जनसंख्या 3.91 लाख (स्थायी) और 1.04 लाख (फ्लोटिंग) मिलाकर कुल 4.95 लाख होगी।
2041 तक यह आंकड़ा 4.98 लाख स्थायी और 1.26 लाख फ्लोटिंग जनसंख्या के साथ कुल 6.25 लाख तक पहुंचने का अनुमान है।
डवेलपमेंट प्लान में शिमला प्लानिंग एरिया की वर्कफोर्स से जुड़े आंकड़े भी दिए गए हैं। कुल 1,04,051 श्रमिकों में से 88,777 नियमित और 15,274 सीमांत श्रमिक हैं। इनमें 28,877 महिलाएं शामिल हैं। इतनी बड़ी कार्यशील जनसंख्या के लिए कुशल और समावेशी मोबिलिटी सिस्टम की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
बढ़ती जनसंख्या और वर्कफोर्स के दबाव को देखते हुए, भविष्य में सतत, सुरक्षित और सुगम परिवहन तंत्र पर गहनता से कार्य करने की जरूरत है। इससे न केवल शहर की कार्यक्षमता बढ़ेगी, बल्कि जीवन की गुणवत्ता भी बनी रहेगी।
जिला उपायुक्त अनुपम कश्यन ने कहा कि मोबिलिटी और बढ़ते जाम की समस्या को हल करने के लिए जिला प्रशासन भी प्रयास कर रहा है। हमने नया ट्रैफिक प्लान विकसित करने के लिए आम जनता से भी सुझाव मांगे हैं। जनता के सुझावों को शामिल करते हुए हम शहर के लिए एक नया ट्रैफिक प्लान बनाने की दिशा में प्रयासरत हैं।
जमीन पर नहीं उतर पाईं मोबिलिटी सुधार की योजनाएं
हालांकि विभिन्न सरकारों ने समय-समय पर शिमला शहर में मोबिलिटी सुधारने के प्रयास किए हैं, लेकिन ये अभी तक पर्याप्त और प्रभावी नहीं साबित हो सके हैं। वर्ष 2012 में शिमला के लिए 4700 करोड़ रुपये का सिटी मोबिलिटी प्लान तैयार किया गया था, जिसमें ट्राम, रोपवे और रेपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम जैसे आधुनिक विकल्पों को शामिल किया गया था। लेकिन वित्तीय मंजूरी न मिलने के कारण यह महत्वाकांक्षी योजना अब तक सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित रह गई है।
इसी तरह, लगभग 3000 करोड़ रुपये के शिमला स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में भी मोबिलिटी सुधार के लिए विशेष बजट का प्रावधान किया गया था। रोपवे परियोजना को तीन चरणों में लागू करने की योजना थी—फेज-1 में 1232 करोड़, फेज-2 में 766 करोड़ और फेज-3 में 1326 करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही गई थी। लेकिन एक दशक से अधिक समय गुजरने के बाद भी यह परियोजना सर्वेक्षण से आगे नहीं बढ़ पाई है।
भीड़ कम करने के लिए कुछ सरकारी कार्यालयों को शहर से बाहर स्थानांतरित करने और सेटेलाइट टाउन विकसित करने की भी योजनाएं बनाई गईं, मगर इन पर गंभीरता से अमल नहीं हो सका। आज भी शिमला वही पुरानी समस्याओं से जूझ रहा है।
कैसे सुलझेगी मोबिलिटी की पहेली
पर्यावरण विशेषज्ञ और अर्बन प्लानर डिंपल बहल का मानना है कि पहाड़ों में भी अब बड़े शहरों की तरह मोबिलिटी की समस्याएं उभरने लगी हैं। उन्होंने कहा कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए सबसे पहले पहाड़ी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहे ओवर टूरिज्म को नियंत्रित करना जरूरी है। पर्यटन के नए क्षेत्रों का विकास करना चाहिए। इसके साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को डिजिटल तकनीक से सशक्त बनाना चाहिए, ताकि यात्रियों को समय पर सटीक जानकारी मिल सके और वे निजी वाहनों की बजाय सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता दें।
डिंपल बहल ने सुझाव दिया कि शहरों में भीड़भाड़ को कम करने के लिए ‘डिकंजेशन’ (भीड़ घटाने की योजनाओं) पर गंभीरता से काम होना चाहिए। अकेले व्यक्ति द्वारा चलाई जाने वाली कारों को हतोत्साहित किया जाए, सड़क सुरक्षा और यातायात नियमों के पालन के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाए जाएं, और कार पूलिंग जैसी सामूहिक यात्रा की प्रणालियों को बढ़ावा दिया जाए। साथ ही, उन्होंने यह भी ज़ोर दिया कि पहाड़ी शहरों में एडवांस्ड मोबिलिटी सॉल्यूशंस पर गंभीरता से काम करने का समय आ गया है।
शिमला की यह कहानी भारत के कई पहाड़ी शहरों की हकीकत है-जहां बढ़ती आबादी, निजी वाहनों की बेतहाशा वृद्धि, कमजोर सार्वजनिक परिवहन और नीतिगत अक्षमता ने मोबिलिटी को संकट में डाल दिया है। यह संकट केवल समय, धन और ऊर्जा की बर्बादी नहीं बल्कि वायु प्रदूषण, दुर्घटनाओं और स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डाल रहा है। इसके समाधान के लिए जरूरी है-सशक्त, समावेशी और सतत सार्वजनिक परिवहन, कार पूलिंग, डिजिटल तकनीक, और सख्त नीतिगत क्रियान्वयन। तभी भारत की सड़कों पर चलना आसान और सुरक्षित बन सकेगा।
यह स्टोरी हमारी खास सीरीज भारत में आवाजाही का हिस्सा है, जो शहरों और कस्बों में वायु गुणवत्ता और इंसानों की आवाजाही के बीच संबंधों पर बात करती है। अंग्रेजी में पढ़ने के लिए क्लिक करें