भारत में आवाजाही: जयपुर को है 2500 बसों की जरूरत, चलती हैं सिर्फ 190

राजस्थान की राजधानी जयपुर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की हिस्सेदारी 1980 में 26 प्रतिशत से घटकर 13 प्रतिशत पहुंच गई है, जिसकारण कारों की संख्या 7.50 लाख तक पहुंच चुकी है
गाड़ियों से पटी रहती हैं जयपुर की सड़कें। फोटो: माधव शर्मा
गाड़ियों से पटी रहती हैं जयपुर की सड़कें। फोटो: माधव शर्मा
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60 साल के धर्मचंद जैन पिछले तीन साल से जयपुर के मानसरोवर के अग्रवाल फार्म से गोपालपुरा तक सफर करते हैं। वे रोजाना 500 मीटर दूर 9ए बस पकड़ने के लिए घर से आधे घंटे पहले निकलते हैं क्योंकि बस स्टैंड तक पहुंचने के लिए कोई सुविधा नहीं हैं।

वह कहते हैं, “कई बार बस समय पर उपलब्ध नहीं होती तो ई-रिक्शा या मैजिक में जाना होता है। बस से जाने पर रोजाना 30 रुपये खर्च होते हैं, लेकिन मैजिक या किसी और साधन से आने-जाने में 50-60 रुपए तक खर्च हो जाते हैं।

बस में कम किराया लगने और मासिक पास के कारण कम पैसा लगता है। मूलतः भरतपुर जिले के छौंकरबाड़ा गांव के रहने वाले धर्मचंद बताते हैं कि जयपुर आने के बाद उनका समय और पैसा शहर के अंदर आने-जाने में ज्यादा खर्च हो रहा है। 

धर्मचंद की तरह ही 24 साल के विनोद कुमार भी जयपुर शहर के सार्वजनिक परिवहन सेवा के उपयोगकर्ता हैं। कहते हैं, “बसों की इतनी कमी है कि इंतजार में ही एक-डेढ़ घंटा खराब हो जाता है। सुविधा के लिए बनाया गया जयपुर बस एप बसों की सही लोकेशन नहीं बताता। बसों की इंटर कनेक्टिवटी भी नहीं है, इसीलिए अगर सीतापुरा से आगरा रोड जाना है तो मुझे तीन बसें बदलनी पड़ती हैं। लो-फ्लोर बसें भी काफी पुरानी हैं, इसीलिए कई बार रास्ते में ही ब्रेक डाउन हो जाता है। इसीलिए गंतव्य तक पहुंचने में कई बार तीन घंटे भी लग जाते हैं। चूंकि मैं स्टूडेंट हूं, इसीलिए हर रोज ओला-उबर जैसी सर्विस अफोर्ड नहीं कर सकता। यह काफी महंगा है।” 

अभी जयपुर में 200 लो-फ्लोर बस, सितंबर में 120 ही रह जाएंगी

जयपुर शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए सरकार ने 2008 में जयपुर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड (जेसीटीएसएल) कंपनी बनाई। बसों के संचालन के लिए दो डिपो टोडी और बगराना बनाए गए। इससे पहले 2005 में केन्द्र में तत्कालीन यूपीए सरकार ने जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन शुरू किया।

जेसीटीएसएल बनने के बाद जयपुर में 400 लो-फ्लोर बसें शुरू की गईं,लेकिन तब से अब तक इनकी संख्या घटती ही गई। फिलहाल जेसीटीएसएल के पास 27 रूट पर सिर्फ 200 बसें हैं, जिनमें से रोजाना 190 बसें ही चालू हालत में हैं।

इसी साल सितंबर तक इनमें से 80 बसों को कंडम घोषित किया जाएगा और तब यह संख्या घटकर 120 ही रह जाएगी। इतनी सी बसों पर शहर की 35-40 लाख की जनसंख्या निर्भर है। फिलहाल जयपुर की लो-फ्लोर बसों में 1.25 लाख लोग रोजाना यात्रा करते हैं। 

राजस्थान की राजधानी और प्रदेश के सबसे बड़े शहर में मोबिलिटी की भयानक समस्या को लेकर डाउन-टू-अर्थ ने कई विशेषज्ञों से बात की। इनमें से एक हैं जयपुर विकास प्राधिकरण से रिटायर्ड हुए एनसी माथुर। वे शहर के पब्लिक ट्रांसपोर्ट के इतिहास से वर्तमान और आ रही समस्याओं को विस्तार से समझाते हैं।

माथुर बताते हैं, “1981 में जयपुर शहर की जनसंख्या 10 लाख थी और तब यहां डबल डेकर सहित कुल 200 बस एक ही डिपो से संचालित होती थीं। 80 के दशक में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का शेयर प्रति लाख जनसंख्या पर 26 प्रतिशत पहुंच गया था। इसी दौर में मारुति जैसी निजी गाड़ियों का चलन बढ़ा और सरकारों ने भी मोबिलिटी के इश्यू पर खास ध्यान नहीं दिया। 90 के दशक में निजी वाहन भी बढ़ने लगे। इस तरह जयपुर में 2005 आते-आते पब्लिक ट्रांसपोर्ट की हिस्सेदारी घटकर 19 प्रतिशत रह गई।"

उनके मुताबिक हालात सुधारने के प्रयास 2005-2010 के बीच हुए। 2005 में केन्द्र सरकार ने जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन शुरू किया। इसके तहत केंद्र सरकार की मदद से नए बसें खरीदी गईं और बीआरटीएस (बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) की शुरुआत हुई। इससे 2010 तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का शेयर 19 से बढ़कर 22 प्रतिशत तक पहुंच गया। तब शहर के बेड़े में 400 बसें थीं।

माथुर आगे जोड़ते हैं, “1980 से तुलना करते हैं तो शहर की जनसंख्या 10 लाख से बढ़कर करीब 44 लाख हो गई, लेकिन बसों की संख्या आधी रह गई। जयपुर राजस्थान की राजधानी है, लेकिन इसमें भी ऑर्गेनाइज्ड पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं हैं। यह दुख की बात है। आज शहर में जिस rate से population बढ़ रही है और उस से ढाई गुना रेट से वाहनों की संख्या बढ़ रही है। स्टैंडर्ड के हिसाब से प्रति एक लाख की आबादी पर 50 बसें होनी चाहिए।”

माथुर की इन बातों की तस्दीक जयपुर आरटीओ के आंकड़े करते हैं। डाउन-टू-अर्थ ने अपनी पड़ताल में पाया कि शहर में बेतहाशा तरीके से कार-बाइक बढ़ रहे हैं। 

जयपुर के तीन आरटीओ में कुल   2,631,886 दोपहिया वाहन, 1.07 लाख तीन-पहिया और 749,018 कार रजिस्टर्ड हैं। वहीं, राजस्थान में कुल 2,813,269 कार रजिस्टर्ड हैं। बढ़ते निजी वाहन और घटती पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के कारण आज जयपुर का पब्लिक ट्रांसपोर्ट शेयर गिरकर 13 प्रतिशत रह गया है। जो अब तक का निम्नतर है।

वाहन नामक सरकारी डेटाबेस के मुताबिक जयपुर फर्स्ट, जयपुर सेकंड एवं जगतपुरा आरटीओ में पंजीकृत कुल दो पहिया वाहनों की संख्या 26,31,886, तीन पहिया वाहनों की संख्या 1,07,098 और चार पहिया वाहनों की संख्या 7,49,018 है।

मेट्रो बनाम बस? 

मोबिलटी के डिस्कोर्स में टियर-२ और टियर-३ शहरों में मेट्रो बनाम बस की चर्चा काफी होती है। जयपुर के संदर्भ में एनसी माथुर कहते हैं, “जयपुर जैसे शहरों में मेरे हिसाब से सिर्फ टोंक रोड पर ही मेट्रो रूट की जरूरत है। बीरआटीएस के बाद मेट्रो निर्माण ने एक उम्मीद जगाई, लेकिन 2012 में मेट्रो संचालन के बाद बसों को भुला दिया गया। हाल ही में सरकार ने करीब 43 किमी लंबे बीआरटीएस को भी तोड़ने के आदेश दिए हैं, जिस पर काम जारी है। अभी मानसरोवर मेट्रो स्टेशन से 200 फुट तक 1.35 किमी मेट्रो के लिए 200 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इस पैसे से कहीं कम में 500 से ज्यादा नई बसें खरीदी जा सकती हैं। इन बसों और अन्य छोटे वाहनों को मेट्रो रूट से इंटिग्रेड कर के मोबिलिटी के इश्यू का काफी हद तक समाधान हो सकता है, लेकिन मेट्रो टियर-2/3 शहरों में सरकारों के लिए स्टेटस सिंबल बन गया है। दूसरी बात, मेट्रो में प्रति यात्रा सब्सिडी खर्च 100 रुपये है, जबकि बस में सिर्फ पांच रुपये ही है।”

बता दें कि फिलहाल जयपुर में मानसरोवर से चांदपोल 9.63 किमी के रूट पर चल रही है। इसके अलावा फेज 1बी में 2.4 किलोमीटर चांदपोल से बड़ी चौपड़ तक मेट्रो चलाई गई।

मानसरोवर से 200 फुट बाईपास तक 1.35 किमी मेट्रो लाइन का काम जारी है। मई महीने में ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने जयपुर मेट्रो के फेज-2 को मंजूरी दी है। इसकी लंबाई करीब 43 किलोमीटर है, जो टोडी मोड़ से लेकर प्रह्लादपुरा जाएगी। लागत करीब 12,600 करोड़ रुपये है। इसे केन्द्र और राज्य सरकार आधा-आधा वहन करेंगी।

पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी से बढ़ती गिग इकोनॉमी

राजस्थान गिग एंड ऐप बेस्ड वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष आशीष अरोड़ा कहते हैं, “पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी के कारण जयपुर सहित प्रदेश के अन्य शहरों में गिग इकोनॉमी बढ़ रही है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक प्रदेश में एक लाख ऑटो, 50 हजार कैब, बाइक और करीब 50 हजार ई-रिक्शा चल रहे हैं जिन्हें शहरी लोग मोबिलिटी के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।”

आशीष का दावा है कि अकेले जयपुर शहर में ही कैब, ऑटो, बाइक टैक्सी और ई-रिक्शा से प्रतिदिन अनुमानित 10-12 लाख लोग यात्रा कर रहे हैं। राजस्थान में करीब चार लाख गिग वर्कर्स इस इकोनॉमी में काम कर रहे हैं। आशीष कहते हैं, “अगर सरकारी बसों की व्यवस्था अच्छी हो तो इनमें से 60 से 70 प्रतशित यात्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर शिफ्ट हो सकते हैं। क्योंकि ओला-उबर रोजाना ट्रेवल करने वालों के लिए काफी महंगा सौदा होता है।”

प्रदूषण में अहम रोल निभाता है वाहनों से निकला धुआं

आईआईटी कानपुर की ओर से किए एक रिसर्च में सामनेे आया है कि जयपुर के प्रदूषण (पीएम 2.5) वाहन 15 प्रतिशत और सड़क पर उड़ने वाली धूल का 36 प्रतिशत योगदान करते हैं। इनमें ट्रक (60 प्रतिशत), बस (12 प्रतिशत) और दोपहिया वाहनों का (13 प्रतिशत) योगदान होता है।

वहीं, 2019 में आई संजीव मेहता की एक रिपोर्ट " असेसमेंट ऑफ अर्बन मोबिलिटी इन जयपुर यूजिंग दी सस्टेनेबल अर्बन ट्रांसपोर्ट इंडेक्स (एसयूटीआई) " कहती है कि यदि जयपुर में इस गति से विकास होता रहा तो जयपुर में पीक आवर (यानी भीड़ के समय) में मोटर चालित यात्राओं की संख्या 2010 में 2,35,000 से बढ़कर 2031 तक 6,30,000 हो जाएगी। इसी अवधि में निजी कारों की हिस्सेदारी भी 13 प्रतिशत से बढ़कर 36 प्रतिशत हो जाएगी।

आखिर समाधान क्या और क्या कर रही सरकार?

जयपुर में सेंटर फॉर एनर्जी, एनवायरमेंट और पीपुल के सीईओ सिमरन ग्रोवर डाउन टू अर्थ को बताते हैं, “मोबिलिटी की समस्या का समाधान बहुत आसान है। सरकार को सही अप्रोच के साथ पब्लिक ट्रांसपोर्ट के विभिन्न माध्यमों को एक साथ जोड़ते हुए एक मॉडल तैयार करना चाहिए। इससे अंतिम छोर तक पहुंच (लास्ट माइल अप्रोच) में भी सुधार होगा। मसलन, जिस रूट पर मेट्रो की जरूरत है, वहां मेट्रो चलाई जाए। जहां बस और छोटे वाहनों की जरूरत है वहां पर्याप्त संख्या में ऐसे वाहन चलाए जाएं। इनमें इलेक्ट्रिक और सीएनजी व्हीकल पर्यावरण के अनुकूल हैं।”

वहीं, एनसी माथुर दोहराते हैं, “जयपुर जैसे शहर के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का शेयर 35 प्रतिशत तक होना चाहिए। इसके लिए ज्यादा बसें, इंटीग्रेटेड सिस्टम और फीडर सेवाएं (जैसे टाटा मैजिक) लाना जरूरी है। इसके अलावा, साइकिल ट्रैक और फुटपाथ जैसी बुनियादी जरूरतें पूरी करनी होंगी। केवल फ्लाईओवर या कार-केंद्रित ढांचे पर ध्यान देने से समस्या का समाधान नहीं होगा। हर प्रोजेक्ट में लॉन्ग-टर्म दृष्टि और संसाधनों का सही उपयोग जरूरी है।”

वहीं, कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी के सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर सूदन शर्मा ने कहते हैं कि टियर-2 शहर होने के बावजूद, जयपुर में निजी वाहनों का स्वामित्व कुछ मेट्रो शहरों की तुलना में कहीं अधिक है।

सरकार का दावाः 6 महीने में जुड़ेंगी 150 इलेक्ट्रिक बस

राज्य सरकार ने 17 दिसंबर 2024 में 300 सीएनजी बसों की खरीद के लिए टेंडर निकालें हैं। सरकार का दावा है कि जल्द ही ये बसें डिलीवर कर दी जाएंगी। हालांकि बस खरीद का स्टेटस लेने के लिए डाउन-टू-अर्थ ने जेसीटीएसएल के चेयरमैन राजेश यादव को कई बार फोन किया और मैसेज भी भेजा, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। हमारी पड़ताल के मुताबिक इन सीएनजी बसों की खरीद के लिए कंपनी सरकार के फाइनल अप्रूवल का इंतजार कर रही है। 

वहीं, पीएम ई-ड्राइव योजना के तहत प्रदेश का जल्द ही 1100 इलेक्ट्रिक बसें राजस्थान को दी जाएंगी। इनमें पहले फेज में 695 बसें प्रदेश को मिलेंगी। इनमें से 150 जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और उदयपुर को 100-100, भीलवाड़ा, अजमेर, कोटा, अलवर और भरतपुर को 50-50 बसें दी जाएंगी। भी बसें मिलने के बाद राजधानी जयपुर को 450 इलेक्ट्रिक बसें मिलेंगी। जेसीटीएसएस का कहना है कि 300सीएनजी और 150 इलेक्ट्रिक बसें इसी साल से सेवा देना शुरू कर देंगी।

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