भारत में आवाजाही: छोटी दूरी का लंबा सफर तय करते हैं गुवाहाटी वासी

शहर में पंजीकृत सभी वाहनों में से 50 फीसदी दो पहिया हैं और पेट्रोल से चलने वाले चारपहिया 27 फीसदी हैं
गुवाहाटी बढ़ती वाहन संख्या की वजह से सड़कों का नेटवर्क नाकाफी साबित हो रहा है। संदीपन तालुकदार
गुवाहाटी बढ़ती वाहन संख्या की वजह से सड़कों का नेटवर्क नाकाफी साबित हो रहा है। संदीपन तालुकदार
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किसी भी आम कार्यदिवस में जुमी बोरवाह को अपने कार्यालय आने-जाने में तीन घंटे से ज्यादा लगते हैं, जबकि वह अपने घर बेहराबाड़ी से केवल 8.5 किलोमीटर दूर काम करती हैं। 40 वर्षीय जुमी साझा  गुवाहाटी की उमस भरी गर्मी और भीड़भाड़ वाली सड़कों को झेलते हुए टाटा मैजिक वैन और सिटी बसों से सफर करती हैं।

वह बताती हैं, "बेहराबाड़ी से क्रिश्चियन बस्ती जाना मतलब जीएस रोड पकड़ना, जो शहर की मुख्य सड़क है और वहां हमेशा जाम रहता है।" वह आगे कहती हैं, "सार्वजनिक परिवहन भी सस्ता नहीं है। मैं हर महीने लगभग 1,500 रुपए खर्च करती हूं।"

जुमी का अनुभव असम की राजधानी के हजारों दैनिक यात्रियों के अनुभव को दर्शाता है, जहां छोटी दूरी भी लंबा और थका देने वाला सफर बन जाती है।

भीड़ और महंगे ईंधन से जूझते निजी वाहन मालिक

हांडीक गर्ल्स कॉलेज की प्रवक्ता पल्लवी डेका हर दिन 11 किलोमीटर का सफर तय करती हैं, जिसमें उन्हें एक घंटे से ज्यादा का समय लगता है। वह अपना अनुभव बताती हैं, “जीएस रोड पर गाड़ी चलाना थका देता है। ट्रैफिक की वजह से माइलेज भी कम हो जाता है, और मैं हर महीने लगभग 10,000 रुपये ईंधन पर खर्च करती हूं।”

जब सार्वजनिक और निजी दोनों ही परिवहन राहत नहीं दे पा रहे ऐसे में दोपहिया वाहन लोगों की पहली पसंद बन गए हैं। वास्तव में, अब शहर में टू-व्हीलर की संख्या सभी अन्य वाहनों से अधिक हो गई है।

युवा प्रोफेशनल प्रत्युश दत्ता कहते हैं, “4-5 किलोमीटर की दूरी के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट से लगभग एक घंटा लग जाता है, लेकिन मेरी स्कूटी से केवल 30 मिनट का समय लगता है और यह सस्ता भी पड़ता है।”

जाम में उलझा गुवाहाटी का ट्रैफिक नेटवर्क

गुवाहाटी की सड़क व्यवस्था बढ़ते वाहनों की संख्या के आगे बुरी तरह पस्त है। शहर पूर्व से पश्चिम तक लगभग 31 किलोमीटर में फैला है, जलुकबाड़ी से लेकर नरेंगी साटगांव तक। शहर से बाहर जाने वाला नेशनल हाईवे 27 का बाहरी मार्ग अपेक्षाकृत निर्बाध रहता है, लेकिन जीएस रोड पर वही सफर दो घंटे लग सकता है।

शहर में सार्वजनिक परिवहन सीमित और बिखरा हुआ है। यात्री अक्सर "मध्यवर्ती सार्वजनिक परिवहन" जैसे टाटा मैजिक वैन, ई-रिक्शा, ऑटो और साइकिल रिक्शा का उपयोग कर शहर की बसों तक पहुंचते हैं।

हालांकि 2025-2045 के लिए एक नया मास्टर प्लान तैयार किया गया है, लेकिन यात्रियों में विश्वास की कमी है। बहुत से लोग अब भी शहरी विकास मंत्रालय के 2016 के डॉक्यूमेंट की बात करते हैं, जिसमें गुवाहाटी की औसत ट्रैफिक स्पीड 20 किमी प्रति घंटा और यात्रा की औसत लंबाई केवल 4.1 किमी बताई गई थी। विशेषज्ञों के अनुसार अब यह औसत 6.3 किमी तक पहुंच गई है।

गुवाहाटी के “साइकिल मेयर” और पीयूआरवीसीए फाउंडेशन के सह-संस्थापक अर्शेल अख्तर ने 2016 के आंकड़ों के आधार पर अनुमान लगाया कि शहर में टू-व्हीलर का उपयोग 20 फीसदी से बढ़कर 25 फीसदी हो गया है, जबकि फोर-व्हीलर का उपयोग 18 फीसदी से 20 फीसदी हुआ है। मध्यवर्ती परिवहन का उपयोग भी 12 फीसदी से बढ़कर 15 फीसदी हुआ है, लेकिन साइकिल चलाना घटकर 14 फीसदी रह गया है (2016 में 21 फीसदी)। अख्तर ने कहा, “पैदल चलने वालों की संख्या स्थिर बनी हुई है, लेकिन सार्वजनिक परिवहन का उपयोग लगभग वही है।” 

सार्वजनिक परिवहन का बुरा हाल, अव्यवस्था कायम

गुवाहाटी में सार्वजनिक परिवहन के कई विकल्प मौजूद हैं। मसलन, बसों से लेकर ओला और उबर जैसे ऐप आधारित टैक्सी तक। बावजूद इसके रोजमर्रा का सफर मुश्किल बना रहता है।

असम राज्य परिवहन निगम (एएसटीसी) 256 इलेक्ट्रिक और 100 सीएनजी बसों का संचालन करता है। ये सरकारी सार्वजनिक परिवहन के एकमात्र विकल्प हैं। एएसटीसी के एक अधिकारी के मुताबिक, “हर बस रोजाना लगभग 4-5 चक्कर लगाती है और कार्यदिवस पर कुल मिलाकर लगभग एक लाख यात्रियों को ढोती है।” लेकिन बाढ़ के दौरान यह संख्या काफी गिर जाती है, जब सड़कों पर पानी भर जाता है।

मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन गुवाहाटी (एमटीएजी) के सचिव देवराज दास के अनुसार, गुवाहाटी में लगभग 200 निजी सिटी बसें भी थीं। लेकिन एक नए ट्रैफिक कंट्रोल नियम के तहत अब सभी को प्रतिदिन संचालन की अनुमति नहीं है। दास ने बताया, “नई गाइडलाइनों और एसी इलेक्ट्रिक बसों के आने के बाद बस मालिकों को घाटा हो रहा है। गर्मियों में यात्री एसी बसों को प्राथमिकता देते हैं।” 

इन निजी बसों के संचालन को भी “टाइम कार्ड” सिस्टम के जरिए सीमित कर दिया गया है, जिसमें हर बस को फिक्स्ड अंतराल पर चलना होता है। इससे बसें केवल 2-3 बार ही चल पाती हैं। दास ने कहा, “इस गैप से ऑपरेशन असुविधाजनक और घाटे का सौदा बन गया है।” इसके बावजूद, निजी बसें अब भी सरकारी बसों के मुकाबले केवल थोड़ा कम यात्री ढोती हैं।

2025 तक, गुवाहाटी में 1,160 चार पहिया मध्यवर्ती वाहन (जैसे टाटा मैजिक) और 2,769 ऑटो-रिक्शा पंजीकृत थे। इसके अलावा, बड़ी संख्या में ई-रिक्शा भी शहर में मौजूद हैं। जिला परिवहन कार्यालय (डीटीओ) के एक अधिकारी ने कहा, “इनकी सटीक संख्या बताना मुश्किल है, क्योंकि इन्हें परमिट की जरूरत नहीं होती और अधिकतर स्थानीय स्तर पर असेंबल किए जाते हैं।” 

लतासिल मैदान के पास एक स्टैंड पर बैटरी रिक्शा चालकों ने अनुमान लगाया कि उनके इलाके में लगभग 400 ई-रिक्शा चलते हैं। एक रिक्शा चालक के मुताबिक, “हममें से हर एक दिन में कई चक्कर लगाते हैं। मिलाकर देखा जाए तो हमारे इलाके में रोजाना लगभग 1,000 यात्री इन रिक्शों का उपयोग करते हैं।”  वहीं, बाढ़ग्रस्त इलाकों में ये रिक्शा जीवनरेखा बन जाते हैं।

केवल सिटी बसें ही तय रूट पर चलती हैं, बाकी वाहन नियमों की अनदेखी करते हैं। निजी कारें और टू-व्हीलर अब भी सड़कों पर हावी हैं। साइकिल चलाना अब असुरक्षित हो गया है।

प्रदूषण, उत्सर्जन और नियोजन की खामियां

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी द्वारा 2025 में प्रस्तुत एक अध्ययन स्थिति की गंभीरता को उजागर करता है। यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के ईस्टर्न ज़ोन बेंच में मार्च में पेश की गई थी। इसका स्रोत 2022 में असम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबीए) के खिलाफ दाखिल मुकदमे थे।

वरिष्ठ अधिवक्ता विक्रम राजखोवा ने पुष्टि की कि रिपोर्ट सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा है। उन्होंने बताया, “यह अध्ययन अदालत को 2022 में सूचना दिए जाने के बाद शुरू किया गया था और 2025 में प्रस्तुत किया गया।” 

रिपोर्ट के अनुसार, शहर में पंजीकृत सभी वाहनों में से 50 फीसदी दो पहिया हैं और पेट्रोल से चलने वाले चारपहिया 27 फीसदी हैं।

वाहनों की बेतहाशा वृद्धि के पर्यावरण पर गंभीर परिणाम हैं। दोपहिया से पीएम2.5 का 52 फीसदी और पीएम 10 का 21 फीसदी उत्सर्जन होता है। पीएम 10 का सबसे बड़ा सड़क की धूल है। इसके जरिए 28 फीसदी, जबकि परिवहन  21 फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।

अध्ययन के प्रमुख शरद गोखले ने कहा, “पेट्रोल से चलने वाले टू-व्हीलर कारों की तुलना में कम उत्सर्जन करते हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत ज्यादा है, जिससे वे प्रमुख प्रदूषक बन गए हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि पहाड़ी कटाई, कचरा जलाना, लघु उद्योग और निर्माण की धूल भी बड़े प्रदूषण स्रोत हैं।

2023 में गुवाहाटी को स्विस वायु निगरानी संस्था आईक्यूएयर द्वारा दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर बताया गया। दिसंबर से मार्च के बीच शुष्क मौसम में प्रदूषण चरम पर होता है और मानसून में थोड़ा घटता है।

फ्लाईओवर को समाधान के तौर पर देखा गया, लेकिन वे भी अव्यवस्था और संकीर्ण सोच का प्रतीक बन गए। अर्शेल अख्तर ने कहा,  “योजना बनाने वाली एजेंसियां अक्सर 'विंडशील्ड बायस' से ग्रस्त होती हैं, यानी वे कार की खिड़की से बाहर देखने वाली सोच अपनाती हैं और पैदल यात्रियों व साइकिल चालकों की जरूरतों को नजरअंदाज करती हैं।” उनके अनुसार, गुवाहाटी की अनुमानित 16 लाख आबादी के लिए कम से कम 800 सिटी बसें होनी चाहिएं, लेकिन सार्वजनिक परिवहन अब भी बिखरा और अपर्याप्त है।

गोखले ने यह भी कहा कि सड़क पर यातायात का सुचारु रूप से न चलना भी प्रदूषण का बड़ा कारण है। वह आगे कहते हैं, “बसें कहीं भी रुक जाती हैं, वाहन रुकते-चलते रहते हैं, जिससे उत्सर्जन बहुत बढ़ जाता है।”

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