
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की सड़कों पर वाहनों की बढ़ती तादाद हादसों की संख्या में इजाफा कर रही है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी “रोड एक्सीडेंट इन इंडिया 2022” की रिपोर्ट कहती है कि रायपुर में 2021 में 1,763 और 2022 में 1,911 हादसे हुए जिनमें क्रमश: 472 और 583 लोगों की मौत हुई। वहीं इन वर्षों में हादसों में घायलों की संख्या क्रमश: 1,311 और 1,322 रही।
रिपोर्ट के अनुसार, 10 लाख से अधिक आबादी वाले 50 शहरों की सूची में हादसों के मामले में रायपुर की रैंकिंग 2021 में 14 व 2022 में 16 थी। 2018 से 2022 के बीच रायपुर में 2,422 लोग सड़क हादसों में मारे गए हैं और यह हादसों में सबसे अधिक जान गंवाने वाले 10 प्रमुख शहरों में शामिल है। 2022 में टी जंक्शन में हादसों के मामले में रायपुर (594), जबलपुर (1,831) के बाद दूसरे स्थान पर है। टी जंक्शन पर हुए इन हादसों में रायपुर में 238 लोगों की मृत्यु हुई।
2022 में रायपुर में राहगीरों के साथ हुए कुल 249 हादसों में 108 राहगीरों और साइकल सवारों के साथ हुए 63 हादसों में 22 साइकल सवारों की जान गई। वहीं 1,034 हादसों में 401 बाइक सवारों की मौत हो गई। जानकार बताते हैं कि शहर में ज्यों ज्यों वाहनों की संख्या बढ़ रही है, त्यों-त्यों हादसों और उसमें मरने वालों लोगों की तादाद में भी बढ़ोतरी हो रही है।
प्रदूषण की मार
रायपुर में प्रतिदिन स्थानीय वाहनों की संख्या और इसके राष्ट्रीय राजमार्गों से गुजरने वाले अन्य राज्यों के वाहन प्रदूषण में अपना बड़ा योगदान देते हैं। डॉक्टर भीमराव आंबेडकर मेमोरियल अस्पताल की सीएमओ (मुख्य चिकित्सा अधिकारी) प्रिया डहाके डाउन टू अर्थ को बताती हैं कि वाहनों से निकलने वाले कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे प्रदूषक शहर के प्रदूषण में बड़ा योगदान देते हैं। वह मानती हैं कि प्रदूषण के कारण सांस के रोगी मुख्यत: अस्थमा से जुड़ी शिकायतें अधिक रिपोर्ट हो रही हैं। इसी अस्पताल के श्वसन रोग विशेषज्ञ एवं विभागाध्यक्ष आरके पांडे कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल शहर तक ही सीमित है। उनका स्पष्ट मानना है कि वाहनों की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों से सांस की बीमारियों की शिकायतें मिल रही हैं।
रायपुर स्थित दाऊ कल्याण सिंह स्नातकोत्तर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र (डीकेएसपीजीआई) में डिप्टी मेडिकल सुपरिंटेंडेंट एंव रजिस्ट्रार हेमंत शर्मा का भी मत है कि प्रदूषण अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ा रहा है। उनका कहता है कि प्रदूषण की एक वजह यह भी है कि वाहनों को बिना जांचें पीयूएसी (पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल) सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है। वह कहते हैं कि प्रदूषण से दिल और किडनी से संबंधित समस्याएं भी बढ़ती हैं।
छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड (सीईसीबी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक एसके दीवान डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि रायपुर के प्रदूषण में वाहनों का सबसे अधिक योगदान है, खासकर वाहनों से उड़ने वाली धूल का। ये वाहन शहर के प्रदूषण में करीब 30 प्रतिशत योगदान देते हैं। वह कहते हैं कि रायपुर में प्रदूषण का स्तर मॉडरेट की श्रेणी में रहता है, लेकिन सर्दियों में पराली में आग के समय स्थिति खराब हो जाती है।
हालांकि मॉडरेट श्रेणी में भी वायु गुणवत्ता सूचकांक 101-200 रहता है जो फेफड़े, अस्थमा और हृदय के रोगियों को असहज करता है। रायपुर के कलेक्ट्रेट और एनआईटी में कंटीन्यूअस एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग सिस्टम (सीएएक्यूएमएस) के 2024 और 2025 के आंकड़े समान अवधि में प्रदूषण का स्तर बढ़ने के संकेत देते हैं।
उदाहरण को लिए 12 मई 2025 से 18 मई 2025 के बीच हफ्ते में केवल एक दिन को छोड़कर शेष सभी दिनों में पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले वायु गुणवत्ता सूचकांक बढ़ा हुआ दिखता है। एनआईटी और कलेक्ट्रेट के सीएएक्यूएमएस के अधिकांश साप्ताहिक वायु गुणववत्ता सूचकांक के आंकड़े 2024 के मुकाबले 2025 में बढ़े हुए दिख रहे हैं जो वाहनों की बढ़ती संख्या से मेल खाते हैं और उनमें एक सहसंबंध स्थापित करते हैं।
स्टडी ने चेताया था
दिसंबर 2015 में एक्ट ऑन क्लाइमेट (एसीटी) द्वारा प्रकाशित रायपुर पब्लिक ट्रांसपोर्ट स्कोपिंग स्टडी के अनुसार, छत्तीसगढ़ जलवायु परिवर्तन राज्य कार्य योजना में 107 कार्य शामिल हैं, जिनमें से 16 परिवहन से संबंधित हैं, जो सार्वजनिक परिवहन को दी जाने वाली प्राथमिकता को दर्शाता है।
स्टडी कहती है कि रायपुर से परिवहन मापदंडों की जांच से पता चलता है कि पिछले दशक में निजी वाहनों की संख्या में 13 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई है। यह पर्याप्त और सुविधाजनक सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की अनुपस्थिति के कारण है।
स्टडी के अनुसार, सार्वजनिक परिवहन के लिए कोई भी वित्तीय आवंटन बड़ी रेल परियोजनाओं तक ही सीमित है और वह भी मध्यम से लंबी दूरी तक। इस तरह के दृष्टिकोण के कारण बुनियादी बस परिवहन प्रणाली के विकास पर ध्यान केंद्रित नहीं हो पाया है।
स्टडी के मुताबिक, वाहनों की संख्या में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि की तुलना में कहीं अधिक है। 2021 तक यही स्थिति रहने पर यात्रा की मांग वर्तमान स्तर से दोगुनी हो जाएगी। इसके परिणामस्वरूप पीक आवर्स में यात्रा की गति 20 किमी/घंटा से भी कम होगी, जो साइकल चलाने से भी धीमी है। जगह-जगह जाम, ट्रैफिक सिग्नल और वाहनों की भारी मौजदगी के कारण मौजूदा स्थिति और बदतर है। डाउन टू अर्थ रिपोर्टर को शहर में 5-6 किलोमीटर की दूरी तय करने में 30-35 का समय लगा।
स्टडी आगे बताती है कि वर्तमान शहरी विकास पैटर्न को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2021 के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट (पीटी) केंद्रित परिदृश्य के लिए पीटी और गैर-मोटर चालित परिवहन (एनएमटी) के लिए 60 प्रतिशत मोड शेयर हासिल करने के लिए 674 बसों के बेड़े के साथ पीटी प्रणाली की आवश्यकता है।
स्टडी में कहा गया है कि सार्वजनिक परिवहन से समय की बचत, उत्पादकता में सुधार, अधिक निवेश, कम प्रदूषण से स्वास्थ्य लाभ और कम कार्बन उत्सर्जन जैसे लाभ हैं।
नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के अधिकारी बताते हैं कि राज्य में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर बनाने के लिए परिवहन निगम बनना चाहिए जो राज्य में कभी नहीं बना। इसके साथ ही सिटी बसों को संचालित करने वाली सोसायटी के लिए स्थायी स्टाफ मुहैया कराना चाहिए क्योंकि यह केवल पैसा कमाने की जरिया नहीं है बल्कि लोगों की बुनियादी जरूरत और पर्यावरण से संबंधित मुद्दा है।